Monday, November 1, 2010
Indira Gandhi: Life in Pictures
It has been 26 years since prime minister Indira Gandhi was assassinated on Oct 31, 1984. Events of those days are still fresh in memory. Worshipped by her supporters and cursed by her enemies, who later assassinated her, Indira Gandhi paved the way for democracy in India during the twentieth century.
Through the glorious chapters of history, we bring you pictures that bear testimony to the global icon and woman of substance, Indira Gandhi.
Indira Gandhi: Life in Pictures
Born in the politically influential Nehru family, Indira grew up in an extremely charged political atmosphere. Her grandfather, Motilal Nehru, was a prominent Indian nationalist leader. Her father, Jawaharlal Nehru, was a pivotal figure in the Indian independence movement and the first Prime Minister of Independent India.
Indira Gandhi: Life in Pictures
Indira Gandhi: Life in Pictures
After her father's death in 1964, Indira was appointed as a member of the Rajya Sabha by the President of India and became a member of the Cabinet as Minister of Information and Broadcasting. In January 1966, when Lal Bahadur Shastri died, Gandhi was elected leader of the Congress Party in Parliament and became the third prime minister of independent India.
Indira Gandhi: Life in Pictures
Gandhi assumed office at a very critical time in the history of India. She inherited a nation still demoralised after its defeat in the 1962 war with China, a party with an ongoing struggle for power and a country caught in the midst of drought and a deepening economic crisis. With courage, Indira Gandhi took on the challenge of helping the nation tide over the crisis.
Indira Gandhi: Life in Pictures
Indira Gandhi: Life in Pictures
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Under Gandhi's order, the Indian army forcefully entered the Golden Temple in Amritsar to arrest insurgents, resulting in many Sikh deaths.
Indira Gandhi: Life in Pictures
मोक्ष के लिए बर्लिन से हरिद्वार
हर की पौडी में गंगा के तट पर चार साल का एक नन्हा बालक अपने पिता की अस्थियाँ विसर्जित कर रहा है। पिता की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना के साथ। पंडित संस्कार करा रहे हैं और निकट ही आँखों में आँसू लिए उसकी माँ और कुछ परिजन भी हैं। किसी हिंदू परिवार के लिए मत्यु के बाद ये जरूरी संस्कार है लेकिन यहाँ दिलचस्प ये है कि ये बालक हिंदू नहीं जर्मन है।
जी हाँ, सात समंदर पार से ये परिवार गंगा और हिंदू रीति-रिवाज में अपनी आस्था और विश्वास के कारण ही जर्मनी से भारत आया है। जर्मनी के बर्लिन शहर की रहनेवाली मेस्टर बूर के पति का निधन पिछले महीने हो गया था। वो कैंसर से पीड़ित थे और सिर्फ 40 वर्ष के थे और मेस्टर के अनुसार प्राच्य दर्शन से प्रभावित थे और हिंदू संस्कारों का अक्सर जिक्र किया करते थे।
आस्था : उनके निधन के बाद मेस्टर को लगा कि गंगा में अपने पति की अस्थियाँ विसर्जित करके ही वो उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे पाएँगी। इसलिए उन्होंने हरिद्वार आने का फैसला किया। मेस्टर बूर की खुद भी भारतीय दर्शन और धार्मिक चिंतन में गहरी आस्था है। मेस्टर कहती हैं, 'मेरे पति को मौत से पहले काफी कष्ट सहना पड़ा और मैं चाहती थी कि उनकी आत्मा सारे कष्टों से मुक्त हो जाए इसलिए मैं गंगा की शरण में आई। मैंने यहाँ हिंदू पुरोहितों से बात की और उन्होंने मुझे ये संस्कार करने की सलाह दी।'
मुझे बताया गया कि ये संस्कार बेटे के हाथ से ही होना चाहिए इसलिए मैं अपने बेटे को लेकर यहाँ आई। मेस्टर बूर के लिए ये एक भाव विह्वल कर देने वाला क्षण था और उनके चेहरे पर असीम संतोष के भाव थे। हिंदू संस्कारों के प्रति मेस्टर का आग्रह इतना ज्यादा है कि उन्होंने ईसाई होने के बावजूद अपने पति का दाह संस्कार करवाया उनके शरीर को दफनाया नहीं।
हरिद्वार में उनका संस्कार कराने वाले प्राच्य विद्या सोसायटी के अध्यक्ष प्रतीक मिश्रपुरी कहते हैं, 'विदेशी तो हमारी संस्कति के प्रति समर्पित हो रहे हैं। वो इनका महत्व समझ रहे हैं, लेकिन खुद भारतीय अपने संस्कारों से विमुख हो रहे हैं।' हिंदू वैवाहिक परंपरा के प्रति विदेशियों का आकर्षण नई बात नहीं है, लेकिन हिंदू तरीके से अंतिम संस्कार कराना विरल घटना है। लिहाजा हरिद्वार के पुरोहित समाज में तो ये सुर्खियों में है ही आम लोगों में भी इसकी खूब चर्चा है।
60 साल बाद आई है दो अमावस्या वाली दिवाली
इस बार की दीपावली बेहद खास है। 5 नवंबर को 60 साल बाद दो अमावस्याओं वाला योग बन रहा है। ज्योतिष के जानकारों का कहना है कि यह निवेशकों के लिए शुभकारी होगा, वहीं देश में इसके कारण राजनीतिक अस्थिरता और महंगाई बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। लक्ष्मी प्राप्ति के लिए धन कुबेर और लक्ष्मी का पूजन पूर्ण रूप से फल देने वाला साबित होगा।
दीपावली पर अमावस्या दोपहर बाद 1:02 बजे शुरू होगी और गोवर्धन पूजन के दिन शनिवार को 10:22 मिनट तक रहेगी। पर्व स्वाति नक्षत्र शुक्रवार के दिन शुक्र की राशी में आ रहा है। इस दिन सूर्य भी शुक्र की राशी में होगा। इसके कारण मुद्रास्फीति की दर में परिर्वतन के आसार हैं। हालांकि वर्षों बाद पुण्य नक्षत्र का महा मुहूर्त दिनभर रहेगा। इस दिन प्रॉपर्टी, सोना-चांदी, बर्तन, कपड़ा, वीइकल, इलेक्ट्रॉनिक आइटमों की खरीद करने वाले फायदे में रहेंगे।
अग्रवाल कॉलेज बल्लभगढ़ के लेक्चरर और ज्योतिषाचार्य डॉ. बांके बिहारी के अनुसार दीपावली पर दो अमावस्या का योग 60 वर्ष बाद बन रहा है। दीपावली और गौवर्धन पर अमावस्या काल में पूजन लाभकारी होता है। इस योग में की जाने वाली पूजा शनि की पीड़ा से छुटकारा दिलाएगी। शनिवार सुबह 10:22 मिनट तक अमावस्या रहने तक दिवाली का त्यौहार रहेगा।
शनिवार की अमावस्या में दीपावली पर शनि सिद्धि भी संभव है। दीपावली के दिन व्यापारी कुंभ लग्न में दोपहर बाद 1:42 से 3:07 बजे तक पूजन कर सकेंगे। गृहस्थ लोगों के लिए वृष लग्न में शाम 6:02 बजे से 7:56 बजे तक पूजन का समय रहेगा। साधना के लिए सिंह लग्न में रात को 12:33 से 2:53 बजे तक समय निर्धारित है। शनिवार सुबह 10:22 बजे तक पितरों के स्थान की पूजा की जा सकेगी।
डॉ. बांके बिहारी ने बताया कि इस योग के कारण राजनीतिक संकट पैदा हो सकता है। दूसरी ओर यह योग सोना, चांदी व अन्य धातुओं को महंगा करेगा वहीं खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयोग होने वाले गुड, शक्कर जैसी कई जरूरी चीजों को भी महंगा कर सकता है। इस योग के कारण उत्तर भारत में भयंकर सर्दी का प्रकोप आ सकता है। लक्ष्मी जी की पूजा, हिंदुओं के व्रत और त्योहार सूर्य एवं चंद्रमा की स्थितियों को ध्यान में रख कर मनाए जाते हैं। सूर्य आत्मा का प्रतीक है, उसी प्रकार चंद्रमा मन का। दीपावली पर सूर्य एवं चंद्रमा दोनों एक ही राशि में होते हैं, जिससे अमावस्या का योग बन जाता है। अमावस्या पर चंद्रमा के सूर्य में अस्त हो जाने से चंद्रमा शून्य अंश का हो जाता है। इसके प्रभाव से मन शांत एवं स्थिर होता है, तभी महालक्ष्मी का पूजन सफल होता है।
Friday, October 22, 2010
शरद पूर्णिमा : चाँदनी रोशनी में खीर बनेगी अमृत
शरद ऋतु, पूर्णाकार चंद्रमा, संसार में उत्सव का माहौल और पौराणिक मान्यताएँ। इन सबके संयुक्त रूप का यदि कोई नाम या पर्व है तो वह है 'शरद पूनम'। वह दिन जब इंतजार होता है रात्रि के उस पहर का जिसमें 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा अमृत की वर्षा धरती पर करता है। वर्षा ऋतु की जरावस्था और शरद ऋतु के बालरूप का यह सुंदर संजोग हर किसी का मन मोह लेता है। आज भी इस खास रात का जश्न अधिकांश परिवारों में मनाया जाता है।
इसके महत्व और उल्लास के तौर-तरीकों को संबंध में ज्योतिषाचार्य प्रेमनारायण शास्त्री के अनुसार शरद पूनम का महत्व शास्त्रों में भी वर्णित है। वे बताते हैं कि इस रात्रि को चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ होता है और धरती पर अमृत वर्षा करता है। रात्रि 12 बजे होने वाली इस अमृत वर्षा का लाभ मानव को मिले इसी उद्देश्य से चंद्रोदय के वक्त गगन तले खीर या दूध रखा जाता है जिसका सेवन रात्रि 12 बजे बाद किया जाता है। मान्यता तो यह भी है कि इस तरह रोगी रोगमुक्त भी होता है। इसके अलावा खीर देवताओं का प्रिय भोजन भी है।
इस संबंध में स्मिता हार्डिकर बताती हैं कि उनके परिवार में शरद पूनम के दिन एक और जहाँ चंद्रमा की पूजा कर दूध का भोग लगाते हैं वहीं अनंत चतुर्दशी के दिन स्थापित गुलाबाई का विसर्जन भी किया जाता है। इस दिन परिवार के सबसे बड़े बच्चे की आरती उतारकर उसे उपहार भी दिया जाता है। शरद पूर्णिमा पर घर में कन्याओं को आमंत्रित कर गुलाबाई के गीत गाए जाते हैं।
प्राचीन काल से शरद पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है। शरद पूर्णिमा पर चाँद अपनी पूर्ण कलाएँ लिए होता है। मान्यता है कि इस दिन केसरयुक्त दूध या खीर चाँदनी रोशनी में रखने से उसमें अमृत गिर जाता है। यह पर्व शुक्रवार को धूमधाम से मनाया जाएगा।
ज्योतिषाचार्य पं. जी.एम. हिंगे के अनुसार शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन चंद्र भगवान की तथा भगवान भोलेनाथ की पूजा सायंकाल के समय करके केसरयुक्त दूध या खीर का भोग रात को लगाते हैं। इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण कलाएँ लिए होता है।
ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा की सारी कलाएँ रात्रि के समय इस धरती पर बिखरती हैं, इसलिए रात्रि के समय दूध या खीर चंद्रमा को भोग के रूप में खिलाते हैं, जिससे चंद्रमा की अमृतमय किरणें इस खीर पर पड़ती हैं। इस खीर को पूजा-अर्चना व भजन-कीर्तन के बाद सभी लोगों में वितरण की जाती है। इस अमृतमय खीर पान से मनुष्य की उम्र बढ़ती है। इसके बाद से हेमंत ऋतु का प्रारंभ हो जाता है।
चामेलिका कुंडू बताती हैं कि शरद पूर्णिमा को कोजागौरी लोक्खी (देवी लक्ष्मी) की पूजा की जाती है। चाहे पूर्णिमा किसी भी वक्त प्रारंभ हो पर पूजा दोपहर 12 बजे बाद ही शुभ मुहूर्त में होती है। पूजा में लक्ष्मीजी की प्रतिमा के अलावा कलश, धूप, दुर्वा, कमल का पुष्प, हर्तकी, कौड़ी, आरी (छोटा सूपड़ा), धान, सिंदूर व नारियल के लड्डू प्रमुख होते हैं। जहाँ तक बात पूजन विधि की है तो इसमें रंगोली और उल्लू ध्वनि का विशेष स्थान है।
अनादिकाल से चली आ रही प्रथा का आज फिर निर्वाह किया जाएगा। स्वास्थ्य और अमृत्व की चाह में एक बार फिर खीर आदि को शरद-चंद्र की चाँदनी में रखा जाएगा और प्रसाद स्वरूप इसका सेवन किया जाएगा। शरद पूर्णिमा के अवसर पर मंदिरों में गरबा-डांडिया का आयोजन के बाद प्रसाद के रूप में खीर का वितरण होगा।
Monday, October 18, 2010
दुनिया की सबसे लंबी सुरंग स्विट्जरलैंड में
स्विट्जरलैंड एक छोटा-सा देश है। अपने 41 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ वह लगभग उतना ही बड़ा है, जितना भारतीय लद्दाख का आक्साई चिन इलाका, जिसे चीन ने दबा रखा है। हिमालय की ऊँची-ऊँची पर्वतमालाओं के बीच लद्दाख की ही तरह स्विट्जरलैंड भी यूरोप के सबसे ऊँचे आल्प्स पर्वतों की गोद में बसा है। उसने संसार की सबसे लंबी सुरंग बनाने का बीड़ा उठा रखा है।
लद्दाख लगभग सुनसान है, जबकि स्विट्ज़रलैंड बेहद सुंदर और गुँजान है। उसके अपनी जनसंख्या तो केवल 78 लाख (दिल्ली की आधी) ही है पर इससे कहीं ज्यादा विदेशी पर्यटक हर साल उसे आबाद करते हैं।
इसी बौने देश ने 25 साल पहले ठानी कि वह आल्प्स पर्वतों वाले गोटगार्ड दर्रे के पास 57 किलोमीटर लंबी संसार की सबसे लंबी सुरंग बनाएगा। यह इतनी बड़ी महत्वाकाँक्षी और खर्चीली परियोजना थी कि उसकी तुलना केवल स्वेज नहर और पनामा नहर के निर्माण जैसी चुनौतियों से ही की जा सकती थी। हर महत्वपूर्ण निर्णय से पहले स्विट्जरलैंड में जनमतसंग्रह द्वारा जनता की राय ली जाती है। सुरंग निर्माण से पहले भी ऐसा ही हुआ। जनता ने उस पर लगने वाली भारी लागत के बावजूद अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी।
सारे यूरोप में खुशी- 1997 में गोटहार्ड पहाड़ को तोड़ने और भारी-भरकम मशीनों से उसमें बोरिंग करने का काम शुरू हुआ। समय बचाने के लिए एक साथ पाँच अलग-अलग जगहों पर यह काम शुरू किया गया। गत 15 अक्टूबर को, भारतीय समय के अनुसार शाम पौने छह बजे, दो विपरीत दिशाओं से खुदाई कर रही मशीनों में से एक ने सुरंग के बीच के उस अंतिम डेड़ मीटर मोटे टुकड़े को भी तोड़ कर गिरा दिया, जो उसे तब तक दो भागों में बाँटे हुए था। सुरंग के आर-पार जाने का रास्ता अब साफ हो गया था।
स्विट्जरलैंड के टेलीविजन ने इस दृश्य का सीधा प्रसारण किया। केवल स्विट्जरलैंड में ही नहीं, सारे यूरोप में इस ऐतिहासिक क्षण पर खुशी मनायी गई। खुशी का एक कारण यह भी था कि यह सुरंग यूरोप के उत्तर में विश्व के एक सबसे बड़े बंदरगाह, हॉलैंड के रोटरडम को, रेलमार्ग के द्वारा दक्षिण में इटली के भूमध्यसागरीय बंदरगाह गेनुआ से जोड़ने की एक कहीं बड़ी यूरोपीय योजना का निर्णायक हिस्सा है। अब तक उस पर 18 अरब 70 करोड़ स्विस फ्रांक (लगभग 900 अरब रूपए) खर्च हो चुके हैं।
पहाड़ ने लोहे के चने चबवा दिए- रोबेर्ट मायर 11 वर्षों तक गोटहार्ड सुरंग के मुख्य निर्माण निदेशक रहे हैं। पिछले ही वर्ष सेवानिवृत्त हुए। सुरंग की डेढ़ मीटर मोटी अंतिम चट्टान टूटने के समय वे भी आमंत्रित थे। मायर बताते हैं कि पहाड़ से लड़ना कोई आसान काम नहीं है। गोटहार्ड ने हमें लोहे के चने चबवा दिए। कभी हमारे ऊपर पानी और कीचड़ उड़ेल दिया। कभी हमारी छेनियाँ उसकी दरारों में ही अटक गईं तो कभी अतिकठोर ग्रेनाइट चट्टानों से टकरा कर टूट गईं। संसार की हमारी सबसे बड़ी सुरंग कटाई मशीन भी कभी तो एक दिन में 20 मीटर तक आगे बढ़ गई, तो कभी एक मीटर भी आगे नहीं रेंग पाई।
इंजीनियरिंग का चमत्कार- "सिसी" नाम की यह मशीन भी अपने आप में एक इंजीनियरिंग-चमत्कार है। करीब 450 मीटर लंबी है। 3000 टन भारी है। बर्मे का काम करने वाले उसके मुखाग्र की 62 घूमती हुई छेनियों में से हर छेनी चट्टानों पर 25 टन का बोझ डालती हुई उन्हें छीलती, पीसती और काटती है। मुखाग्र अपने 10 मीटर व्यास और 5000 हॉर्सपावर बल के साथ जब चट्टानों से जूझता है, तब पूरा पहाड़ जैसे गुस्से से झंझनाने और थर्राने लगता है। उसने और दूसरी मशीनों ने पहाड़ को काट कर अब तक जो कंकड़-पत्थर निकाले हैं, उनका कुल वजन ढाई करोड़ टन है। यदि किसी एक ही मालगाड़ी को यह मलबा ढोना होता, तो उसकी लंबाई 6350 किलोमीटर होती। यानी, वह स्विट्ज़रलैंड में ज्यूरिच से लेकर अमेरिका में न्यू यॉर्क तक लंबी होती।
नई गोटहार्ड सुरंग का निर्माणकार्य पूरा होने में अभी सात साल और लगेंगे। अभी तो उसके भीतर रहते हुए केवल आर-पार आना-जाना ही संभव हो पाया है। अब उसकी छतों और दीवारों को लोहे की जालियों पर सीमेंट-कंक्रीट की परत चढ़ाकर पुख्ता करना होगा। बिजली के केबल और रेल पटरियाँ बिछानी होंगी। हवा के प्रवाह और तापमान नियंत्रण की प्रणालियाँ लगानी होंगी। यदि कभी आग लग गई या कोई दुर्घटना हो गई, तो उससे निपटने के लिए आवश्यक तकनीकी व्यवस्थाएँ करनी होंगी।
2017 में होगा निर्माणकार्य पूरा- यह सारे काम जब पूरे हो जाएँगे, तब आशा है कि 2017 से नई गोटहार्ड सुरंग में यात्री और माल गाड़ियों का चलना भी शुरू हो जाएगा। तब, हर दिशा के लिए एक-एक, यानी कुल दो सुरंगें होंगी। कुछ निश्चित दूरियों पर उन्हें जोड़ने वाली 176 संपर्क सुरंगें अलग से होंगी। सुरंग प्रणाली की कुल लंबाई तब 152 किलोमीटर हो जाएगी।
ट्रेनों की औसत गति 200 और अधिकतम गति 270 किलोमाटर प्रतिघंटा होगी। औसत गति इस समय की अपेक्षा 80 किलोमीटर बढ़ जाने और इटली तथा स्विट्जरलैंड के बीच की दूरी 40 किलोमीटर घट जाने से ज्यूरिच से मिलान जाने में लगने वाला समय एक घंटा कम हो जाएगा, यानी 2 घंटे 40 मिनट ही रह जाएगा। अनुमान है कि तब हर दिन 300 गाड़ियाँ गोटहार्ड सुरंग से होकर गुजरेंगी। अधिकतर लंबी-लंबी मालगाड़ियाँ होंगी, जो इस समय की अपेक्षा दुगुनी, यानी 160 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से दौडेंगी और दुगुने माल की ढुलाई करेंगी।
बाऐँ सड़क सुरंग और पुरानी रेल सुरंग, दाएँ नई सुरंग- इटली और स्विट्जरलैंड के बीच के गोटहार्ड दर्रे को पार करने के उपाय लंबे समय से खोजे जाते रहे हैं। 1830 में वहाँ पहली बार एक सड़क बनी। 1882 में पहली रेलवे सुरंग बनाई गई। इस समय ट्रेनें इसी 128 साल पुरानी सुरंग से होकर आती-जाती हैं। 1980 में सड़क परिवहन के लिए 17 किलोमीटर लंबी एक अलग सुरंग बनकर तैयार हुई। हर साल कोई 60 लाख वाहन इस सड़क-सुरंग से गुजरते हैं। उन में से 12 लाख माल ढुलाई ट्रक होते हैं।
चिंता है पर्यावरणरक्षा की- सड़क परिवहन इस बुरी तरह बढ़ जाने और साथ ही पर्यावरण चेतना के कारण उसके प्रति जनविरोध भी प्रबल हो जाने से स्विट्जरलैंड की सरकार को दो नई सुरंगों वाली एक अलग योजना का सहारा लेना पड़ा। "आल्प्स अंतरपरिवहन के नये रेलमार्ग" (Neat) नाम की इस योजना के अधीन आल्प्स पर्वतों के आर-पार हो रहे सड़क परिवहन को रेलवे लाइन पर डालने के लिए गोटहार्ड के साथ-साथ एक और रेल सुरंग बनाई गयी है। लौएचबेर्ग नाम की दूसरी सुरंग इस बीच बन चुकी है।
सोचा यह गया है कि सड़क परिवहन वाले ट्रकों को भविष्य में रेलवे की मालगाड़ियों पर लाद कर आल्प्स पर्वत पार कराये जाएँ। इससे स्विट्जरलैंड की सड़कों पर हर दिन 3600 ट्रकों का बोझ और दमघोंट धुँआ घटेगा, पर्यावरण को कुछ राहत मिलेगी।
बहुत मामूली उठान और ढलान- ताकि भारी ट्रकों से लदी लंबी मालगाड़ियों को अधिक चढ़ाई न करनी पड़े और वे अपनी तेज गति बनाए रख सकें, गोटहार्ड सुरंग को पहाड़ के नीचे इतनी गहराई पर बनाया गया है कि गाड़ियों को एक किलोमीटर दूरी के भीतर आठ मीटर से अधिक ऊँची ढलान न पार करनी पड़े। सुरंग का उत्तरी छोर समुद्रतल से 460 मीटर की ऊँचाई पर और 57 किलोमीटर बाद दक्षिणी छोर 312 मीटर की ऊँचाई पर है। दोनो के बीच का सबसे ऊँचा स्थान समुद्रतल से केवल 549 मीटर की ऊँचाई पर है। सुरंग अपने ऊपर के सबसे ऊँचे पहाड़ से 2300 मीटर की गहराई पर है।
अनोखी चुनौतियाँ- गोटहार्ड सुरंग के निर्माण के 11 वर्षों तक मुख्य निदेशक रहे रोबेर्ट मायर बताते हैं कि पहाड़ के नीचे इतनी गहराई पर सही दिशाज्ञान एक बड़ी समस्या है। सुरंग खोदने का काम समय बचाने के लिए क्योंकि एक साथ कई जगहों पर दोनो दिशाओं से आगे बढ़ते हुए किया जाता है, इसलिए यह संभावना हमेशा बनी रहती है कि आप बीच में मिलने के बदले एक-दूसरे की बगल से, या ऊपर-नीचे से, निकल जाएँगे। यह सुरंग क्योंकि पहाड़ के नीचे करीब दो किलोमीटर की गहराई पर है, इसलिए यह जानने के लिए कि हम कहाँ हैं, हम वहाँ उपग्रह आधारित GPS नेविगेशन सिस्टम के सिग्नल भी नहीं पकड़ सकते थे। कुतुबनुमा वाला चुंबकीय दिशासूचक भी वहाँ साथ नहीं देता। इसलिए हमें एक विशेष कंपास और लेजर किरणों की मदद से पता लगाना पड़ता था कि हम कहाँ हैं।
यह विधि इतनी सटीक निकली कि 15 अक्टूबर को जब डेढ़ मीटर मोटी अंतिम दीवार गिरी, तब दोनो दिशाओं से आकर मिलने वाली सुरंगों के आड़े और खड़े निर्देशांकों (कोओर्डिनेट) वाली रेखाओं के कटान-बिंदुओं के बीच केवल एक-एक सेंटीमीटर का अंतर मिला।
सुरंग में भठ्ठी जैसी गर्मी- रोबेर्ट मायर के अनुसार पहाड़ के नीचे इस गहराई पर तापमान भी किसी भठ्ठी की तरह होता है। गोटहार्ड सुरंग के भीतर पंखों और एयरकूलरों की सहायता से 28 डिग्री सेल्सीयस का तापमान बनाए रखने की कोशिश की गई, वर्ना वह 40 डिग्री से भी अधिक हो जाता। हवा में 70 प्रतिशत आर्द्रता के कारण इतने ऊँचे तापमान पर काम करने में नानी याद आ जाती। रोबेर्ट मायर का यह भी कहना है कि "गोटहार्ड हमेशा एक पहेली बना रहेगा।" यह पहाड़ बड़ा छलिया है। कब आप के साथ कौन सा नया छल कर बैठे, किस अनुमान को झुठला कर रख दे, आप नहीं जान सकते।
इसीलिए, आज भी पक्के भरोसे के साथ नहीं कहा जा सकता कि 2017 से नई गोटहार्ड सुरंग में रेल गाड़ियाँ सचमुच दौड़ने लगेंगी। भरोसे के साथ केवल इतना ही कहा जा सकता है कि 57 किलोमीटर की उसकी लंबाई ने 1988 में जापान के होक्काइदो और होन्शू द्वीपों के बीच समुद्र के नीचे बनी 53.9 किलोमीटर लंबी संसार की अब तक की सबसे लंबी सुरंग को पीछे छोड़ दिया है। फ्रांस और इंग्लैंड को जोड़ने वाली 1993 में खुली चैनल सुरंग अब तीसरे नंबर पर पहुँच गई है। स्विट्जरलैंड ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि वह छोटा जरूर है, पर बड़ों से कम नहीं है।
लद्दाख लगभग सुनसान है, जबकि स्विट्ज़रलैंड बेहद सुंदर और गुँजान है। उसके अपनी जनसंख्या तो केवल 78 लाख (दिल्ली की आधी) ही है पर इससे कहीं ज्यादा विदेशी पर्यटक हर साल उसे आबाद करते हैं।
इसी बौने देश ने 25 साल पहले ठानी कि वह आल्प्स पर्वतों वाले गोटगार्ड दर्रे के पास 57 किलोमीटर लंबी संसार की सबसे लंबी सुरंग बनाएगा। यह इतनी बड़ी महत्वाकाँक्षी और खर्चीली परियोजना थी कि उसकी तुलना केवल स्वेज नहर और पनामा नहर के निर्माण जैसी चुनौतियों से ही की जा सकती थी। हर महत्वपूर्ण निर्णय से पहले स्विट्जरलैंड में जनमतसंग्रह द्वारा जनता की राय ली जाती है। सुरंग निर्माण से पहले भी ऐसा ही हुआ। जनता ने उस पर लगने वाली भारी लागत के बावजूद अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी।
सारे यूरोप में खुशी- 1997 में गोटहार्ड पहाड़ को तोड़ने और भारी-भरकम मशीनों से उसमें बोरिंग करने का काम शुरू हुआ। समय बचाने के लिए एक साथ पाँच अलग-अलग जगहों पर यह काम शुरू किया गया। गत 15 अक्टूबर को, भारतीय समय के अनुसार शाम पौने छह बजे, दो विपरीत दिशाओं से खुदाई कर रही मशीनों में से एक ने सुरंग के बीच के उस अंतिम डेड़ मीटर मोटे टुकड़े को भी तोड़ कर गिरा दिया, जो उसे तब तक दो भागों में बाँटे हुए था। सुरंग के आर-पार जाने का रास्ता अब साफ हो गया था।
स्विट्जरलैंड के टेलीविजन ने इस दृश्य का सीधा प्रसारण किया। केवल स्विट्जरलैंड में ही नहीं, सारे यूरोप में इस ऐतिहासिक क्षण पर खुशी मनायी गई। खुशी का एक कारण यह भी था कि यह सुरंग यूरोप के उत्तर में विश्व के एक सबसे बड़े बंदरगाह, हॉलैंड के रोटरडम को, रेलमार्ग के द्वारा दक्षिण में इटली के भूमध्यसागरीय बंदरगाह गेनुआ से जोड़ने की एक कहीं बड़ी यूरोपीय योजना का निर्णायक हिस्सा है। अब तक उस पर 18 अरब 70 करोड़ स्विस फ्रांक (लगभग 900 अरब रूपए) खर्च हो चुके हैं।
पहाड़ ने लोहे के चने चबवा दिए- रोबेर्ट मायर 11 वर्षों तक गोटहार्ड सुरंग के मुख्य निर्माण निदेशक रहे हैं। पिछले ही वर्ष सेवानिवृत्त हुए। सुरंग की डेढ़ मीटर मोटी अंतिम चट्टान टूटने के समय वे भी आमंत्रित थे। मायर बताते हैं कि पहाड़ से लड़ना कोई आसान काम नहीं है। गोटहार्ड ने हमें लोहे के चने चबवा दिए। कभी हमारे ऊपर पानी और कीचड़ उड़ेल दिया। कभी हमारी छेनियाँ उसकी दरारों में ही अटक गईं तो कभी अतिकठोर ग्रेनाइट चट्टानों से टकरा कर टूट गईं। संसार की हमारी सबसे बड़ी सुरंग कटाई मशीन भी कभी तो एक दिन में 20 मीटर तक आगे बढ़ गई, तो कभी एक मीटर भी आगे नहीं रेंग पाई।
इंजीनियरिंग का चमत्कार- "सिसी" नाम की यह मशीन भी अपने आप में एक इंजीनियरिंग-चमत्कार है। करीब 450 मीटर लंबी है। 3000 टन भारी है। बर्मे का काम करने वाले उसके मुखाग्र की 62 घूमती हुई छेनियों में से हर छेनी चट्टानों पर 25 टन का बोझ डालती हुई उन्हें छीलती, पीसती और काटती है। मुखाग्र अपने 10 मीटर व्यास और 5000 हॉर्सपावर बल के साथ जब चट्टानों से जूझता है, तब पूरा पहाड़ जैसे गुस्से से झंझनाने और थर्राने लगता है। उसने और दूसरी मशीनों ने पहाड़ को काट कर अब तक जो कंकड़-पत्थर निकाले हैं, उनका कुल वजन ढाई करोड़ टन है। यदि किसी एक ही मालगाड़ी को यह मलबा ढोना होता, तो उसकी लंबाई 6350 किलोमीटर होती। यानी, वह स्विट्ज़रलैंड में ज्यूरिच से लेकर अमेरिका में न्यू यॉर्क तक लंबी होती।
नई गोटहार्ड सुरंग का निर्माणकार्य पूरा होने में अभी सात साल और लगेंगे। अभी तो उसके भीतर रहते हुए केवल आर-पार आना-जाना ही संभव हो पाया है। अब उसकी छतों और दीवारों को लोहे की जालियों पर सीमेंट-कंक्रीट की परत चढ़ाकर पुख्ता करना होगा। बिजली के केबल और रेल पटरियाँ बिछानी होंगी। हवा के प्रवाह और तापमान नियंत्रण की प्रणालियाँ लगानी होंगी। यदि कभी आग लग गई या कोई दुर्घटना हो गई, तो उससे निपटने के लिए आवश्यक तकनीकी व्यवस्थाएँ करनी होंगी।
2017 में होगा निर्माणकार्य पूरा- यह सारे काम जब पूरे हो जाएँगे, तब आशा है कि 2017 से नई गोटहार्ड सुरंग में यात्री और माल गाड़ियों का चलना भी शुरू हो जाएगा। तब, हर दिशा के लिए एक-एक, यानी कुल दो सुरंगें होंगी। कुछ निश्चित दूरियों पर उन्हें जोड़ने वाली 176 संपर्क सुरंगें अलग से होंगी। सुरंग प्रणाली की कुल लंबाई तब 152 किलोमीटर हो जाएगी।
ट्रेनों की औसत गति 200 और अधिकतम गति 270 किलोमाटर प्रतिघंटा होगी। औसत गति इस समय की अपेक्षा 80 किलोमीटर बढ़ जाने और इटली तथा स्विट्जरलैंड के बीच की दूरी 40 किलोमीटर घट जाने से ज्यूरिच से मिलान जाने में लगने वाला समय एक घंटा कम हो जाएगा, यानी 2 घंटे 40 मिनट ही रह जाएगा। अनुमान है कि तब हर दिन 300 गाड़ियाँ गोटहार्ड सुरंग से होकर गुजरेंगी। अधिकतर लंबी-लंबी मालगाड़ियाँ होंगी, जो इस समय की अपेक्षा दुगुनी, यानी 160 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से दौडेंगी और दुगुने माल की ढुलाई करेंगी।
बाऐँ सड़क सुरंग और पुरानी रेल सुरंग, दाएँ नई सुरंग- इटली और स्विट्जरलैंड के बीच के गोटहार्ड दर्रे को पार करने के उपाय लंबे समय से खोजे जाते रहे हैं। 1830 में वहाँ पहली बार एक सड़क बनी। 1882 में पहली रेलवे सुरंग बनाई गई। इस समय ट्रेनें इसी 128 साल पुरानी सुरंग से होकर आती-जाती हैं। 1980 में सड़क परिवहन के लिए 17 किलोमीटर लंबी एक अलग सुरंग बनकर तैयार हुई। हर साल कोई 60 लाख वाहन इस सड़क-सुरंग से गुजरते हैं। उन में से 12 लाख माल ढुलाई ट्रक होते हैं।
चिंता है पर्यावरणरक्षा की- सड़क परिवहन इस बुरी तरह बढ़ जाने और साथ ही पर्यावरण चेतना के कारण उसके प्रति जनविरोध भी प्रबल हो जाने से स्विट्जरलैंड की सरकार को दो नई सुरंगों वाली एक अलग योजना का सहारा लेना पड़ा। "आल्प्स अंतरपरिवहन के नये रेलमार्ग" (Neat) नाम की इस योजना के अधीन आल्प्स पर्वतों के आर-पार हो रहे सड़क परिवहन को रेलवे लाइन पर डालने के लिए गोटहार्ड के साथ-साथ एक और रेल सुरंग बनाई गयी है। लौएचबेर्ग नाम की दूसरी सुरंग इस बीच बन चुकी है।
सोचा यह गया है कि सड़क परिवहन वाले ट्रकों को भविष्य में रेलवे की मालगाड़ियों पर लाद कर आल्प्स पर्वत पार कराये जाएँ। इससे स्विट्जरलैंड की सड़कों पर हर दिन 3600 ट्रकों का बोझ और दमघोंट धुँआ घटेगा, पर्यावरण को कुछ राहत मिलेगी।
बहुत मामूली उठान और ढलान- ताकि भारी ट्रकों से लदी लंबी मालगाड़ियों को अधिक चढ़ाई न करनी पड़े और वे अपनी तेज गति बनाए रख सकें, गोटहार्ड सुरंग को पहाड़ के नीचे इतनी गहराई पर बनाया गया है कि गाड़ियों को एक किलोमीटर दूरी के भीतर आठ मीटर से अधिक ऊँची ढलान न पार करनी पड़े। सुरंग का उत्तरी छोर समुद्रतल से 460 मीटर की ऊँचाई पर और 57 किलोमीटर बाद दक्षिणी छोर 312 मीटर की ऊँचाई पर है। दोनो के बीच का सबसे ऊँचा स्थान समुद्रतल से केवल 549 मीटर की ऊँचाई पर है। सुरंग अपने ऊपर के सबसे ऊँचे पहाड़ से 2300 मीटर की गहराई पर है।
अनोखी चुनौतियाँ- गोटहार्ड सुरंग के निर्माण के 11 वर्षों तक मुख्य निदेशक रहे रोबेर्ट मायर बताते हैं कि पहाड़ के नीचे इतनी गहराई पर सही दिशाज्ञान एक बड़ी समस्या है। सुरंग खोदने का काम समय बचाने के लिए क्योंकि एक साथ कई जगहों पर दोनो दिशाओं से आगे बढ़ते हुए किया जाता है, इसलिए यह संभावना हमेशा बनी रहती है कि आप बीच में मिलने के बदले एक-दूसरे की बगल से, या ऊपर-नीचे से, निकल जाएँगे। यह सुरंग क्योंकि पहाड़ के नीचे करीब दो किलोमीटर की गहराई पर है, इसलिए यह जानने के लिए कि हम कहाँ हैं, हम वहाँ उपग्रह आधारित GPS नेविगेशन सिस्टम के सिग्नल भी नहीं पकड़ सकते थे। कुतुबनुमा वाला चुंबकीय दिशासूचक भी वहाँ साथ नहीं देता। इसलिए हमें एक विशेष कंपास और लेजर किरणों की मदद से पता लगाना पड़ता था कि हम कहाँ हैं।
यह विधि इतनी सटीक निकली कि 15 अक्टूबर को जब डेढ़ मीटर मोटी अंतिम दीवार गिरी, तब दोनो दिशाओं से आकर मिलने वाली सुरंगों के आड़े और खड़े निर्देशांकों (कोओर्डिनेट) वाली रेखाओं के कटान-बिंदुओं के बीच केवल एक-एक सेंटीमीटर का अंतर मिला।
सुरंग में भठ्ठी जैसी गर्मी- रोबेर्ट मायर के अनुसार पहाड़ के नीचे इस गहराई पर तापमान भी किसी भठ्ठी की तरह होता है। गोटहार्ड सुरंग के भीतर पंखों और एयरकूलरों की सहायता से 28 डिग्री सेल्सीयस का तापमान बनाए रखने की कोशिश की गई, वर्ना वह 40 डिग्री से भी अधिक हो जाता। हवा में 70 प्रतिशत आर्द्रता के कारण इतने ऊँचे तापमान पर काम करने में नानी याद आ जाती। रोबेर्ट मायर का यह भी कहना है कि "गोटहार्ड हमेशा एक पहेली बना रहेगा।" यह पहाड़ बड़ा छलिया है। कब आप के साथ कौन सा नया छल कर बैठे, किस अनुमान को झुठला कर रख दे, आप नहीं जान सकते।
इसीलिए, आज भी पक्के भरोसे के साथ नहीं कहा जा सकता कि 2017 से नई गोटहार्ड सुरंग में रेल गाड़ियाँ सचमुच दौड़ने लगेंगी। भरोसे के साथ केवल इतना ही कहा जा सकता है कि 57 किलोमीटर की उसकी लंबाई ने 1988 में जापान के होक्काइदो और होन्शू द्वीपों के बीच समुद्र के नीचे बनी 53.9 किलोमीटर लंबी संसार की अब तक की सबसे लंबी सुरंग को पीछे छोड़ दिया है। फ्रांस और इंग्लैंड को जोड़ने वाली 1993 में खुली चैनल सुरंग अब तीसरे नंबर पर पहुँच गई है। स्विट्जरलैंड ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि वह छोटा जरूर है, पर बड़ों से कम नहीं है।
Sunday, October 3, 2010
गेम्स के दौरान पाँच ग्लैमर गर्ल रहेंगी सभी के आकर्षण का केन्द्र
दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में देशभर की उम्मीदें अपनी पाँच महिला खिलाडिय़ों बैडमिंटन स्टार साइना नेहवाल, उनकी साथी खिलाड़ी ज्वाला गुट्टा, देश की पहली महिला विश्व चैंपियन निशानेबाज तेजस्विनी सावंत, टेनिस परी सानिया मिर्जा और स्क्वॉश की नवोदित स्टार दीपिका पल्लीकल पर बहुत कुछ निर्भर होंगी।
बैडमिंटन में विश्व की तीसरे नंबर की खिलाड़ी साइना नेहवाल स्वर्ण पदक की शर्तिया दावेदार हैं। हाल में साइना ने लाजवाब खेल दिखाया है और विश्व रैंकिंग में लगातार सुधार भी किया है। उन्होंने कुछ माह पहले लगातार तीन सुपर सिरीज खिताब जीतकर दुनिया भर में अपने प्रतिद्वंद्वियों के लिए खतरे की घंटी बजा दी थी। विश्व चैंपियनशिप में हालांकि इस हैदराबादी बाला को निराशा हाथ लगी थी लेकिन वह इससे उबरकर शानदार प्रदर्शन के लिए तैयार हैं। राष्ट्रमंडल खेलों में मिलने वाली चुनौतियों से भली भांति वाकिफ साइना ने विश्वास व्यक्त किया है कि वह इन खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगी।
साइना और अन्य महिला बैडमिंटन खिलाड़ी हैदराबाद की ही ज्वाला गुट्टा को क्रमश: एकल और युगल मुकाबलों में स्वर्ण पदक जीतने का दावेदार माना जा रहा है। सात बार राष्ट्रीय युगल चैंपियंन रह चुकी ज्वाला ने तो कहा है कि वह देश के लिए कम से कम दो स्वर्ण जरूर झटकेंगी।
निशानेबाजी के क्षितिज पर पुरुष वर्चस्व को तोड़ते हुए अचानक उभरी महिला विश्व चैंपियन तेजस्विनी सावंत से इस बार सबको उम्मीदें बंधी हैं। देशवासी तो क्या तेजस्विनी के प्रतिद्वंद्वी उनका लोहा मान रहे हैं।
पुणे की तेजस्विनी ने गत माह म्यूनिख में संपन्न विश्व चैंपियनशिप में 600 में से 597 का स्कोर कर इस प्रतियोगिता में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त किया था। इसके अलावा उन्होंने महिला निशानेबाजी में विश्व रिकॉर्ड भी कायम किया था। टेनिस में हैदराबादी बाला सानिया मिर्जा से पदक की उम्मीद की जा रही है। लंबे समय तक आउट ऑफ फार्म रही सानिया ने हाल में अच्छी वापसी की है।
घरेलू माहौल में और अपेक्षाकृत आसान प्रतिद्वंद्वियों के सामने उनके लिए यह पदक जीतने का बेहतरीन मौका है। वर्ष 2009 में महेश भूपति के साथ मिलकर ऑस्ट्रेलियन ओपन का मिश्रित युगल जीतने वाली सानिया से एकल और युगल दोनों मुकाबलों में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है।
स्क्वॉश में दीपिका पल्लीकल ने विश्व चैंपियनशिप में अच्छा प्रदर्शन कर भारत की उम्मीदें बढ़ाई हैं। यूरोपीय और एशियाई स्क्वॉश रैंकिंग में शीर्ष स्थान पाने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी चेन्नई की दीपिका अपने नाम कई खिताब कर चुकी हैं। इस कड़ी में राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्णिम नगीना वह जड़ पाएँ तो उनके और देशवासियों के लिए इससे बड़ी खुशी क्या होगी।
उपरोक्त पाँच सितारों के अलावा महिलाओं में तीरंदाज डोला बनर्जी, दीपिका कुमारी और बोम्बाल्या देवी से भी पदक उम्मीदें हैं। महिला हॉकी टीम पिछले दो खेलों में पदक हासिल कर चुकी है और इस बार भी इन खेलों में पदक जीतने की दावेदार रहेगी।
दुनिया की टॉप 50 रैंकिंग में शुमार देश की एकमात्र महिला जिमनास्ट दीपा करमाकर यदि कामयाबी हासिल कर लें तो यह सोने पर सुहागे जैसा होगा। इसके अलावा बैडमिंटन में अपर्णा बालन, स्क्वॉश में जोशना चिनप्पा, भारोत्तोलन में सोनिया चानू, मोनिका देवी. हॉकी में रानी रामपाल और सबा अंजुम जैसी खिलाडिय़ों से भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीदें हैं।
खेल के दौरान वेश्यावृत्ति का खतरा
एस्कॉर्ट सेवाएँ उपलब्ध कराने वाली एक एजेंसी ने राष्ट्रमंडल खेलों के लिए पूर्वोत्तर भारत की हजारों महिलाओं को नियुक्त किया है। बड़ी संख्या में लड़कियों और महिलाओं की नियुक्ति पर 'इंपल्स' नाम के गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने संदेह जताया है।
'इंपल्स' ने आशंका जताई है कि इन महिलाओं और लड़कियों को वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया जाएगा। एनजीओ के मुताबिक इस एजेंसी ने पूर्वोत्तर के सात पहाड़ी राज्यों से करीब 40 हजार महिलाओं और युवतियों को अच्छी तनख्वाह का प्रलोभन देकर नियुक्त किया है।
अच्छी नौकरी का वादा : इस तरह की नियुक्तियों के लिए इस एस्कॉर्ट एजेंसी ने अखबार में विज्ञापन दिया था। पूर्वोत्तर भारत में महिलाओं की खरीद-फरोख्त के खिलाफ काम करने वाले 'इंपल्स' की अध्यक्ष हसीना खरबीह कहती हैं, 'राष्ट्रमंडल खेलों के लिए पूर्वोत्तर की इन महिलाओं की नियुक्ति पर बारीकी से नजर रखी जा रही है।'
वे कहती हैं, 'वास्तव में हम अपनी लड़कियों को लेकर बहुत चिंतित हैं, क्योंकि उनमें से बहुतों को एस्कॉर्ट सेवाओं के नियुक्त किया गया है। उन्हें अच्छी तनख्वाह और नौकरी दिलाने का वादा किया गया है।'
मेघालय के समाज कल्याण मंत्री जेबी लिंगदोह इस समस्या से काफी चिंतित हैं। वे कहते हैं, 'ये केवल मेघालय की लड़िकयाँ नहीं हैं बल्कि पूर्वोत्तर के सभी राज्यों से बड़ी संख्या में लड़कियों को नियुक्त किया गया है। हमारे पासे इनके आँकड़े तो नहीं है, लेकिन हमारे चिंतित होने का कारण है।'
उन्होंने बताया कि हमने लोगों से इस पर नजर रखने को कहा है। दिल्ली के एक एनजीओ 'दी नार्थ ईस्ट सपोर्ट सेंटर एंड हेल्पलाइन' का कहना है कि एस्कॉर्ट सेवाओं के लिए पूर्वोत्तर की लड़िकियों का इतने बड़े पैमाने पर चयन चिंता का विषय है।
हेल्पलाइन की मधु चंदर कहती हैं, 'खेलों के लिए पूर्वोत्तर भारत की हजारों लड़कियों को संदिग्ध प्लेसमेंट एजेंसियों ने नियुक्त किया है। इससे हम बहुत चिंतित हैं। हमें डर है कि वे गलत हाथों में जा सकती हैं।'
रविवार से शुरू हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों के टिकटों के बिक्री की रफ्तार काफी कम है। ऐसा अनुमान है कि इस दौरान हजारों पर्यटक दिल्ली आएँगे। पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में हुई पुलिस जाँच में पता चला है कि पिछले दशक में 15 हजार से अधिक युवतियाँ और महिलाएँ गायब हुई हैं।
पुलिस का कहना है कि इन युवतियों को अच्छी नौकरी का लालच दिया गया था, लेकिन वे वापस अपने घर नहीं लौटीं। इनमें से कुछ को पुलिस ने बचा लिया और 'इंपल्स' जैसे एनजीओ ने उनका पुनर्वास कराया।
Thursday, September 2, 2010
दागियों पर भारी क्रिकेट प्रेमियों का जुनून
यूँ तो क्रिकेट को पसंद करने वाले लाखों लोग शुरू से ही 'जेंटलमैन गेम' को देखते आ रहे हैं, लेकिन अस्सी और नब्बे के दशक से क्रिकेट की लोकप्रियता में जबरदस्त बढोतरी हुई है। क्रिकेट के 'पारखी' लोगों ने राष्ट्र की प्रतिष्ठा से जोड़कर इसके बाजार को हजारों गुना बढ़ा दिया। क्रिकेट के आरंभिक काल में इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज सरीखी टीमों का दबदबा रहा। क्रिकेट की शुरुआत इंग्लैंड में ही हुई, इसलिए शुरुआत में ज्यादातर मैच इंग्लैंड में ही हुए।
इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट सिरीज को एशेज कहा गया और 'एशेज' नाम के बाद अचानक इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ गई। साथ ही अन्य देश जहाँ क्रिकेट उस समय शैशवकाल में था, वहाँ भी एशेज का इंतजार होने लगा। वास्तव में एशेज सिरीज का नामकरण क्रिकेट को दो देशों के लोगों की भावनाओं से जोड़ने की कोशिश थी, जो बहुत सफल रही।
एशेज सिरीज का इतिहास कुछ इस तरह है कि 1882 में ऑस्ट्रेलिया ने ओवल में पहली बार इंग्लैंड टीम को उसी की धरती पर हराया। ऑस्ट्रेलिया से मिली इस करारी हार को ब्रिटिश मीडिया बर्दाश्त नहीं कर पाया। स्पोर्टिंग टाइम्स ने लिखा कि इंग्लैंड क्रिकेट की मौत हो चुकी है और उसकी चिता जलाने के बाद राख (एशेज) ऑस्ट्रेलिया टीम अपने साथ ले जा रही है। इसके बाद इंग्लैंड टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे के समय ब्रिटिश मीडिया ने इस दौरे को इंग्लैंड की प्रतिष्ठा बचाने का अवसर कहा। इंग्लैंड टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर इंग्लैंड के कप्तान इवो ब्लिग को बेल्स की राख (एशेज) तोहफे में दी गई, जो इस सिरीज का प्रतीक बनी।
इस पूरे घटनाक्रम में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के लोग अपनी-अपनी टीमों से भावनात्मक रूप से जुड़ गए। अब चाहे एशेज ऑस्ट्रेलिया में हो या इंग्लैंड में दोनों टीमों के समर्थक वहाँ मौजूद रहते हैं और हार या जीत पर जश्न मनाते हैं, दुखी होते हैं। आज तो एशेज का इंतजार पूरी दुनिया के लोग करते हैं और कुछ 'दीवाने' तो इसे विश्वकप से भी बड़ा आयोजन मानते हैं। कहने की जरूरत नहीं कि एशेज ने क्रिकेट को इंग्लैंड सहित पूरे यूरोप में पहचान दिलाई। ऑस्ट्रेलिया ने एशेज के जमाने से ही अपने क्रिकेट का विस्तार किया और उसमें नए-नए प्रयोग किए। बाद में वनडे क्रिकेट आया और ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी सबसे पहले क्रिकेट के इस छोटे फॉर्मेट में ढले।
दूसरी तरफ वेस्टइंडीज टीम ने भी अपनी ताकत दिखाई और जल्द ही यह टीम क्रिकेट की महाशक्ति बन गई। वेस्टइंडीज छोटे-छोटे कैरेबियाई द्वीप हैं और इन सभी द्वीपों के आपस में कई विवाद हैं, लेकिन क्रिकेट की बात जब आती है तो ये सभी विवाद भुलाकर एक टीम बनाकर खेलते हैं। 1975 में जब वनडे क्रिकेट में विश्वकप की शुरुआत हुई तब वेस्टइंडीज ने अपना पराक्रम दिखाकर लगातार दो विश्व कप जीते थे।
यहाँ भी वेस्टइंडीज की 'एकता' इसलिए थी कि लोगों की भावनाओं को क्रिकेट से जोड़ा गया, इसलिए सभी द्वीप एक होकर वेस्टइंडीज के लिए खेलते हैं।
1932 में क्रिकेट एशिया में आया, जब पहली बार भारतीय टीम ने लॉर्ड्स के मैदान पर मजबूत इंग्लैंड का सामना किया। तब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। सूचना के साधन नहीं होने के बावजूद लोग यह जानने के लिए उत्सुक थे कि हमारी टीम कैसा खेली। टीम के लिए दु्आएँ हुईं कि फिरंगियों को हराओ। क्रिकेट एक बार फिर भावनाओं से जुड़ा और आजादी के बाद इसकी लोकप्रियता में और भी बढो़तरी हुई।
विभाजन के बाद 1952 में पाकिस्तान क्रिकेट टीम ने भारत का पहली बार दौरा किया तो बात फिर खेल से ज्यादा राष्ट्र की प्रतिष्ठा की थी। बहरहाल, यह सिरीज बहुत लोकप्रिय हुई और क्रिकेट संचालकों को भान हो गया कि क्रिकेट के बाजार में बहुत संभावनाएँ हैं। इसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच टेस्ट क्रिकेट सिरीज होने लगीं।
वनडे क्रिकेट के आने के बाद एशिया कप और शारजाह क्रिकेट टूर्नामेंट जैसे आयोजनों ने क्रिकेट संचालकों की जेब भर दी। एशिया कप और शारजाह क्रिकेट टूर्नामेंट 1984 में पहली बार आयोजित हुए और इन्हें बहुत सफलता मिली। वास्तव में यही वह समय था, जब क्रिकेट को एशिया में पूरी तरह से पहचान मिली और उसकी लोकप्रियता चारों तरफ बढ़ गई।
इसके बाद भारत-पाकिस्तान क्रिकेट की लोकप्रियता को भुनाया गया और इसीलिए टोरेंटो में हर एक साल के अंतराल पर दोनों टीमों के बीच पाँच वनडे मैचों की सिरीज का आयोजन किया गया। हालाँकि दोनों देशों के बीच खराब राजनीतिक संबंधों के चलते यह टूर्नामेंट बंद हो गया। 1995 में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में इनडिपेंडेंस कप का आयोजन भी बहुत लोकप्रिय हुआ।
कहने का अर्थ यह है कि क्रिकेट आज वह क्रिकेट नहीं होता अगर उसमें लोगों की भावनाएँ नहीं जुड़तीं। इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट, ऑस्ट्रेलिया में बिगबैश टूर्नामेंट, पाकिस्तान में पाक चैंपियंस और भारत में इंडियन प्रीमियर लीग का कॉन्सेप्ट भी यही है कि अपनी टीम से भावनात्मक रूप से जुड़कर खेल देखिए। और इसलिए इन टूर्नामेंट में नामी खिलाड़ी खेलते हैं, क्योंकि उन्हें क्रिकेट प्रेमियों का भरपूर प्यार मिलता है और धन वर्षा होती है।
हाल ही में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के फिक्सिंग में शामिल होने के खुलासे के बाद लाखों क्रिकेट प्रेमी आहत हुए। क्रिकटरों के सट्टेबाजों के हाथों यूँ बिकने की खबर से क्रिकेट प्रेमी हिल गए। इस 'सनसनी' के बाद लगा कि वो सुबह जल्दी उठकर स्कोर जानने की ललक, देर रात तक जागकर मैच देखना, फोन पर दोस्तों को स्कोर बताना सब छलावा था। स्पॉट फिक्सिंग के साथ ही इन दगाबाज क्रिकेटरों क्रिकेट प्रेमियों के जज्बात भी बेच दिए।
फिक्सिंग कांड में जो हुआ वह दुखदायी था और दोषी क्रिकेटरों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि फिर कोई खिलाड़ी ऐसी जुर्रत न कर सके। एक बात और, क्रिकेट को बदनाम करने वाले ये 'दागी' इतना जान लें कि क्रिकेट प्रेमियों की भावनाएँ इस खेल से इस कदर जुड़ी हुई हैं कि इन आसिफों, आमिरों, और सलमानों के काले कारनामें क्रिकेट प्रेमियों की इस खेल के प्रति श्रद्धा कम नहीं कर सकते। उनके काले कारनामों पर क्रिकेट प्रेमियों का जुनून बहुत भारी है।
Miss pakistan
The 21 year old Annie was crowned Miss pakistan world at a glittering event. Annie hails from Karachi, Pakistan but is currently residing in Houston, Texas. She along withher father has established the Rupani Foundation to create employment, promote equity participation, and reduce poverty in the mountain communities of South and Central Asia.
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फिक्सिंग के दागी क्रिकेटर राष्ट्रद्रोही
क्रिकेट की पिच और उसके बाहर की दुनिया में पाकिस्तानी क्रिकेटरों की 'नाजायज' हरकतों ने समूची क्रिकेट बिरादरी को शर्मसार किया हुआ है। 'स्पॉट फिक्सिंग' के ताजे एपिसोड के बाद दुनिया के क्रिकेट को चलाने वाली संस्था जिसे लोग आईसीसी के नाम से पुकारते हैं, उसकी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा बढ़ जाती है।
इन दिनों आईसीसी के मुखिया भारतीय राजनीति के चतुर खिलाड़ी शरद पवार हैं, जिन्हें फिक्सिंग कांड ने हिलाकर रख दिया है। पवार के हाथों में पॉवर है, जिसका इस्तेमाल उन्हें क्रिकेट की भलाई के लिए करना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे क्रिकेट की पिच को राजनीति की बिसात से ऊपर उठकर देखें और दोषी क्रिकेटरों को कड़ी सजा दिलवाने की मुहिम की शुरुआत करें।
वैसे पवार को इस बात का दिली तौर पर अफसोस है कि क्रिकेटरों की शर्मनाक हरकत की वजह से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को सार्वजनिक तौर पर माफी माँगनी पड़ी। यही कारण है कि वे क्रिकेटरों को ऐसा सबक देने का मन तो बना ही चुके होंगे जिससे भविष्य में किसी एक देश के प्रधानमंत्री का सिर शर्म से झुकने की नौबत नहीं आए।
मंगलवार को शरद पवार एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पाकिस्तान के क्रिकेट प्रशासकों के साथ-साथ इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) के अधिकारियों से बातचीत करने वाले हैं। आईसीसी मुखिया को इनसे बात करने के पूर्व स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस को तलब करना चाहिए ताकि हकीकत का पता चल सके।
जो स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस इस कांड में सक्रिय भूमिका निभाने वाले सट्टेबाज मजहर माजिद को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में जमानत पर छोड़ सकती है, उसकी पुलिस रिपोर्ट क्या होगी ये बताने की जरूरत नहीं है और मजेदार बात तो ये हैं कि आईसीसी मुखिया को इसी रिपोर्ट का इंतजार है। 'फिक्सिंग कांड' से इतर भी कुछ बातें हैं, जिनका यहाँ जिक्र होना लाजिमी है।
सब जानते हैं कि 'स्टार टीवी' के कार्यक्रम भारत के साथ पाकिस्तान में भी चोरी-छुपे या सीनाजोरी के साथ देखे-सुने जाते होंगे। कुछ महीनों पहले इस टीवी पर एक विवादास्पद कार्यक्रम पेश किया जाता था 'सच का सामना'। 'कौन बनेगा करोड़पति' से अमिताभ बच्चन की गरीबी दूर करने वाले सिद्धार्थ बसु ने ही 'सच' को पेश किया था और इसके एंकर राजीव खंडेलवाल सच की तह में जाकर सब कुछ उगला लेते थे।
ऐसे ही कार्यक्रम में उन तमाम नामचीन क्रिकेटरों को बुलाना चाहिए, जिन पर फिक्सिंग के आरोप लगे हों। फिर चाहे वह टेस्ट टीम के कप्तान सलमान बट्ट हो, मोहम्मद आसिफ हों, उनकी पूर्व गर्लफ्रेंड वीना मलिक हों ताकि सच्चाई पूरी दुनिया के सामने आ सके। वैसे विनोद कांबली एक दफा इसके प्लेटफार्म पर आकर पंगा ले चुके हैं।
सट्टेबाजों की अँगुलियों पर नाचने वाले लालची क्रिकेटर इस बात से बेखबर होते हैं कि उनकी हरकत का खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है, पूरी दुनिया में आज हर पाकिस्तानी 'शक' की निगाहों से देखा जा रहा है। दिलों में नफरत का ग्राफ तेजी से ऊपर जा रहा है, ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि आरोपित क्रिकेटरों पर आजीवन प्रतिबंध की सजा नाकाफी है और उससे आगे बढ़कर उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। यही नहीं, ऐसे क्रिकेटरों के साथ हमदर्दी रखने वालों की जगह भी सलाखों के पीछे होनी चाहिए।
कहते हैं ना कि दुनिया गलती करती है, गलती के बारे में सुनती है, लेकिन सबक कभी नहीं लेती। हर आदमी जिंदगी के अंतिम मोड़ पर आकर कुछ सयाना अवश्य हो जाता है, लेकिन उसे ये समझदारी दूसरों की ठोकर से नहीं बल्कि उसके खुद के जख्मों से आती है। दुनिया के जितने भी क्रिकेटर हैं, उन्होंने मैच फिक्सिंग में फँसकर क्रिकेट के सीने पर जो जख्म दिए हैं, वे वक्त गुजरने के साथ भर तो जाएँगे लेकिन पीछे छोड़ जाएँगे दाग।
ओशो कहते हैं 'फूलों को चुनों, काँटों को छोड़ों।' आदमी की मूढ़ता ऐसी है कि वो काँटों को चुन लेता है और फूलों छोड़ देता है। रातों को गिन लेता है, दिन को छोड़ देता है। दु:ख को पकड़ लेता है, आनंद का जाम भी लिए उसके सामने बैठो रहो, देखेगा भी नहीं।
अगले बरस भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट का महासंग्राम 'विश्वकप' के जरिए होने जा रहा है, लिहाजा अब वक्त आ गया है, जब क्रिकेट के सम्मान और विश्वास को बचाने के लिए पहल की जाए और दुनिया का हर क्रिकेटर इसमें ईमानदारी के साथ अपना किरदार निभाए ताकि इसका 'जैंटलमैन' गौरव फिर से स्थापित हो सके।
सेक्स की 'अंधी' दौड़
एक शब्द है कामांध। अर्थात काम या सेक्स में अंधा हो जाना। आधुनिकता के फेर में दुनिया कुछ ऐसी ही हो चली है। दुनिया में कामुकता का नशा बढ़ता ही जा रहा है। साथ ही असुरक्षित तथा अप्राकृतिक सेक्स की लत भी बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि एड्स जैसे गंभीर रोग के डर के बावजूद वेश्यावृति और समलैंगिकता भी बढ़ गई है।
जहाँ तक सेक्स की शिक्षा का सवाल है तो यह कौन तय करेगा की सेक्स की किस तरह की शिक्षा दी जानी चाहिए? अभी भारत में यह बहस का विषय है। भारत ही नहीं कई देशों में भी सेक्स पर बातचीत, बहस या शिक्षा को वर्जित ही माना जाता रहा है।
सेक्स का बाजार : शायद यही कारण रहा है कि यह विषय अभी तक लोगों की जिज्ञासा और रुचि का विषय बना हुआ है और इसका भरपूर फायदा उठाया है बाजारवादियों ने। पहले सिर्फ किताबें और फिल्में ही होती थीं, लेकिन अब पोर्न वेबसाइटों पर सेक्सी वीडियो और फोटो की भरमार होने के कारण इसके बाजार में और उछाल आ गया है। दुनिया भर में मंदी हो, लेकिन सेक्स का बाजार दिन दूना फल-फूल रहा है।
बाजारवादियों के लिए सेक्स का बाजार कभी मंदा नहीं रहा है। बाजार में सस्ते सेक्स साहित्य के साथ ही कुछ जानकारीपरक और उपयोगी साहित्य भी उपलब्ध है। लेकिन बाजार में उपलब्ध इस सेक्स साहित्य की शिक्षा के दुष्परिणाम रहे हैं या नहीं, इसको भी अभी उजागर किया जाना बाकी है। सेक्स की किताबों के ढेर के बीच कामशास्त्र और कामसूत्र की असलियत पर सवाल उठाए जा सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद यह साहित्य दुनिया भर की भाषाओं में अपने आसनों के बल पर धूम मचा रहा है। दुनियाभर में सेक्स इंडस्ट्रीज का फैलाव होता जा रहा है। इस धंधे में अब हर कोई तामझाम से उतरकर कार्य करने लगा है।
नीम-हकीम खतरे जान : जब दिमाग विकृत हो जाता है बाजार के उस गंदे साहित्य को पढ़ने से जिसे पश्चिमी तर्ज के चलते बेचा जाता है, तब रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंडों पर 'मर्दाना कमजोरी' के विज्ञापन देखकर गरीब और निम्न आय वर्ग का व्यक्ति सहम जाता है। उसे किसी भी प्रकार का रोग नहीं है फिर भी वह अश्लील साहित्य को पढ़ने की सोच से उपजे वहम के कारण डर जाता है। झोला छाप नीम-हकीमों के आलावा ऐसे भी डॉक्टर हैं जिनके विज्ञापनों के चलते ये लोग उनके पास जाकर अपना वहम दूर करते हैं।
बस और रेलवे स्टेशन : देश भर के बस स्टेंड और रेलवे स्टेशनों पर आपको सहज ही नजर आ आएगी गुमटीनुमा या फर्निस्ड दुकानें, जिनके सामने खड़े रहकर यदि आप दुकान का अवलोकन करेंगे तो सबसे पहले नजर आएगी वे किताबें और सीडी जिसमें से अर्धनग्न युवा लड़कियों के मसल्सभरे गदराएँ बदन के धमाकेदार फोटो आपको निहार रहे होंगे और जिन्हें देखकर आम शहरी युवाओं की इच्छाएँ मचल सकती है। यहाँ अच्छे साहित्य को ढूँढने के लिए उक्त दुकानों पर मशक्कत करना पड़ती है।
पब्लिसिटी : शहर में लगे बड़ी कंपनियों के ज्यादातर होर्डिंग सुंदर सूरतों से सजे हैं जहाँ अर्धनग्न लड़कियाँ आपके ध्यान को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है। फिर चाहे वह कंडोम का विज्ञापन हो, किसी सिम कार्ड पर नई स्कीम लांच हु्ई हो या मर्दाना कमजोरी को भुनाने का विज्ञापन। कहीं ना कहीं आपको ऐसे दृश्य या अखबारों में तेल के विज्ञापन देखने को मिल ही जाएँगे, जिसे आप चोरी-छिपे देखना पसंद करेंगे।
फिल्में और टीवी चैनल : कोई सा भी चैनल घुमाओ आपको ऐसे विज्ञापनों से सामना करना पड़ेगा, जो आपको बगलें झाँकनें पर मजबूर कर देंगे। चड्डी, बनियान या ब्रॉ की छोड़ो- सोचिए पहले चॉकलेट सिर्फ बच्चों के लिए होती थी, लेकिन अब तो दो प्यार करने वालों के लिए भी होती है। चॉकलेट का सेक्स से क्या नाता है?
बात ब्लू फिल्म की होती है तो उसका दर्शक वर्ग भारत के हर शहर, गाँव व कस्बों के गलीकूचों से निकलकर आता है और तमाम गंदगी थूकने के साथ सीट के नीचे की फोम उखाड़कर चला जाता है, लेकिन हॉलीवुड की फिल्म हो या बॉलीवुड की हर फिल्म में अब बहुत कुछ ब्लू होने लगा है। किसिंग सीन तो अब आम हो चला है, इससे आगे भी बहुत कुछ होता है। चाहे वह अवतार फिल्म हो या बॉलीवुड की कोई एक्शन फिल्म। सामान्य फिल्में भी अब सामान्य नहीं रहीं। यू सर्टिफिकेट की फिल्मों में गालियों पर अब सेंसर की कैची नहीं चलती।
जिन्होंने स्वाभिमान जैसे धारावाहिक देखा हैं वे जानते हैं कि भारत ऐसा नहीं था, लेकिन घर-घर की कहानी और वर्तमान दौर के तमाम रियलिटी शो तथा सीरियलों ने सारी हदें पार कर भारतीय समाज के कल्चर को बदलने में अहम भूमिका निभाई है।
सेक्स टॉयस : दुनिया भर में सेक्स टॉयस के बढ़ते प्रचलन से भारत भी अछूता नहीं रहा है। लेकिन सर्वे कहता है कि सेक्स खिलौनों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीन ने दूसरे देशों को पछाड़ दिया है।
सेक्स स्कैंडल : हाल ही में बेंगलुरु में स्वामी नित्यानंद का तमिल ऐक्ट्रेस के साथ नित्य आनंद की चर्चा टीवी चैनलों पर गरम रही है। दिल्ली में इच्छाधारी भीमानंद बाबा के सेक्स रैकेट का मामला भी चल ही रहा है। कथित बाबाओं के सेक्स स्कैंडल आए दिन उजागर होते रहते हैं। दूसरी ओर विश्वभर में कैथोलिक चर्च के पादरियों द्वारा यौन शोषण के कई मामले सामने आते रहे हैं।
राजनयिकों का महिलाओं से मधुर संबंध कोई नई बात नहीं है। मोनिका लेविंस्की और बिल क्लिंटन के संबंधों की चर्चा को सभी जानते हैं। इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी का टीवी अदाकारा से संबंध होना विवाद का कारण बना था। हाल ही में अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर पर फिर से दो महिलाओं से यौन दुराचरण के आरोप लगे हैं। ब्रिटेन में 80 के दसक में मिस इंडिया पामेला बोर्डेस से जुड़े सेक्स स्कैंडल ने ब्रिटिश सरकार को हिला दिया था।
दूसरी ओर भारत में गत वर्ष ताजातरीन मामलों में कांग्रेस के वयोवृद्ध (85 वर्षीय) नेता एवं आंध्रप्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी को कथित रूप से तीन युवतियों के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखे जाने के बाद अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था।
भारत में हॉकी, वेटलिफ्टिंग और भारोत्तोलन में सेक्स स्कैंडल का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है। दुनिया के नंबर वन गोल्फ खिलाड़ी टाइगर वुड्स भी अपने सेक्स स्कैंडल से खासे चर्चित रहे हैं। जहाँ भी खेलों का कुंभ आयोजित होता रहा है वहाँ पर सेक्स रैकेट की सक्रियता को सभी जानते हैं।
छेड़छाड़ और रेपकांड : आए दिन अखबारों में मेट्रो सिटी में बढ़ते बलात्कार और छेड़छाड़ की घटना छपती रहती है। इसी बीच पढ़ने को मिला की दिल्ली में अब महिलाएँ नहीं रही सुरक्षित। शराब और कबाक की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते लगभग प्रत्येक शहरों में माहौल अब महिलाओं के पक्ष में नहीं रहा। रोज ही लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और रैप के केस दर्ज होते रहते हैं।
बहरहाल सेक्स के बढ़ते बाजार और लोगों के दिमाग में घुसते सेक्स के चलते सामाजिक मान्यताओं और संस्कृति का राग अलापने वाले भले ही रुष्ट हों, लेकिन इसका फैलाव अभी और होना बाकी है। सवाल उठता है कि आखिर कब रुकेगी सेक्स की यह अंधी दौड़? क्या सरकार इसके प्रचार-प्रसार के मापदंड को तय करने के लिए गंभीर होगी या नैतिकता को ताक में रखकर इसी तरह ही पूरा समाज कामांध होता चला जाएगा?
जहाँ तक सेक्स की शिक्षा का सवाल है तो यह कौन तय करेगा की सेक्स की किस तरह की शिक्षा दी जानी चाहिए? अभी भारत में यह बहस का विषय है। भारत ही नहीं कई देशों में भी सेक्स पर बातचीत, बहस या शिक्षा को वर्जित ही माना जाता रहा है।
सेक्स का बाजार : शायद यही कारण रहा है कि यह विषय अभी तक लोगों की जिज्ञासा और रुचि का विषय बना हुआ है और इसका भरपूर फायदा उठाया है बाजारवादियों ने। पहले सिर्फ किताबें और फिल्में ही होती थीं, लेकिन अब पोर्न वेबसाइटों पर सेक्सी वीडियो और फोटो की भरमार होने के कारण इसके बाजार में और उछाल आ गया है। दुनिया भर में मंदी हो, लेकिन सेक्स का बाजार दिन दूना फल-फूल रहा है।
बाजारवादियों के लिए सेक्स का बाजार कभी मंदा नहीं रहा है। बाजार में सस्ते सेक्स साहित्य के साथ ही कुछ जानकारीपरक और उपयोगी साहित्य भी उपलब्ध है। लेकिन बाजार में उपलब्ध इस सेक्स साहित्य की शिक्षा के दुष्परिणाम रहे हैं या नहीं, इसको भी अभी उजागर किया जाना बाकी है। सेक्स की किताबों के ढेर के बीच कामशास्त्र और कामसूत्र की असलियत पर सवाल उठाए जा सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद यह साहित्य दुनिया भर की भाषाओं में अपने आसनों के बल पर धूम मचा रहा है। दुनियाभर में सेक्स इंडस्ट्रीज का फैलाव होता जा रहा है। इस धंधे में अब हर कोई तामझाम से उतरकर कार्य करने लगा है।
नीम-हकीम खतरे जान : जब दिमाग विकृत हो जाता है बाजार के उस गंदे साहित्य को पढ़ने से जिसे पश्चिमी तर्ज के चलते बेचा जाता है, तब रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंडों पर 'मर्दाना कमजोरी' के विज्ञापन देखकर गरीब और निम्न आय वर्ग का व्यक्ति सहम जाता है। उसे किसी भी प्रकार का रोग नहीं है फिर भी वह अश्लील साहित्य को पढ़ने की सोच से उपजे वहम के कारण डर जाता है। झोला छाप नीम-हकीमों के आलावा ऐसे भी डॉक्टर हैं जिनके विज्ञापनों के चलते ये लोग उनके पास जाकर अपना वहम दूर करते हैं।
बस और रेलवे स्टेशन : देश भर के बस स्टेंड और रेलवे स्टेशनों पर आपको सहज ही नजर आ आएगी गुमटीनुमा या फर्निस्ड दुकानें, जिनके सामने खड़े रहकर यदि आप दुकान का अवलोकन करेंगे तो सबसे पहले नजर आएगी वे किताबें और सीडी जिसमें से अर्धनग्न युवा लड़कियों के मसल्सभरे गदराएँ बदन के धमाकेदार फोटो आपको निहार रहे होंगे और जिन्हें देखकर आम शहरी युवाओं की इच्छाएँ मचल सकती है। यहाँ अच्छे साहित्य को ढूँढने के लिए उक्त दुकानों पर मशक्कत करना पड़ती है।
पब्लिसिटी : शहर में लगे बड़ी कंपनियों के ज्यादातर होर्डिंग सुंदर सूरतों से सजे हैं जहाँ अर्धनग्न लड़कियाँ आपके ध्यान को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है। फिर चाहे वह कंडोम का विज्ञापन हो, किसी सिम कार्ड पर नई स्कीम लांच हु्ई हो या मर्दाना कमजोरी को भुनाने का विज्ञापन। कहीं ना कहीं आपको ऐसे दृश्य या अखबारों में तेल के विज्ञापन देखने को मिल ही जाएँगे, जिसे आप चोरी-छिपे देखना पसंद करेंगे।
फिल्में और टीवी चैनल : कोई सा भी चैनल घुमाओ आपको ऐसे विज्ञापनों से सामना करना पड़ेगा, जो आपको बगलें झाँकनें पर मजबूर कर देंगे। चड्डी, बनियान या ब्रॉ की छोड़ो- सोचिए पहले चॉकलेट सिर्फ बच्चों के लिए होती थी, लेकिन अब तो दो प्यार करने वालों के लिए भी होती है। चॉकलेट का सेक्स से क्या नाता है?
बात ब्लू फिल्म की होती है तो उसका दर्शक वर्ग भारत के हर शहर, गाँव व कस्बों के गलीकूचों से निकलकर आता है और तमाम गंदगी थूकने के साथ सीट के नीचे की फोम उखाड़कर चला जाता है, लेकिन हॉलीवुड की फिल्म हो या बॉलीवुड की हर फिल्म में अब बहुत कुछ ब्लू होने लगा है। किसिंग सीन तो अब आम हो चला है, इससे आगे भी बहुत कुछ होता है। चाहे वह अवतार फिल्म हो या बॉलीवुड की कोई एक्शन फिल्म। सामान्य फिल्में भी अब सामान्य नहीं रहीं। यू सर्टिफिकेट की फिल्मों में गालियों पर अब सेंसर की कैची नहीं चलती।
जिन्होंने स्वाभिमान जैसे धारावाहिक देखा हैं वे जानते हैं कि भारत ऐसा नहीं था, लेकिन घर-घर की कहानी और वर्तमान दौर के तमाम रियलिटी शो तथा सीरियलों ने सारी हदें पार कर भारतीय समाज के कल्चर को बदलने में अहम भूमिका निभाई है।
सेक्स टॉयस : दुनिया भर में सेक्स टॉयस के बढ़ते प्रचलन से भारत भी अछूता नहीं रहा है। लेकिन सर्वे कहता है कि सेक्स खिलौनों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीन ने दूसरे देशों को पछाड़ दिया है।
सेक्स स्कैंडल : हाल ही में बेंगलुरु में स्वामी नित्यानंद का तमिल ऐक्ट्रेस के साथ नित्य आनंद की चर्चा टीवी चैनलों पर गरम रही है। दिल्ली में इच्छाधारी भीमानंद बाबा के सेक्स रैकेट का मामला भी चल ही रहा है। कथित बाबाओं के सेक्स स्कैंडल आए दिन उजागर होते रहते हैं। दूसरी ओर विश्वभर में कैथोलिक चर्च के पादरियों द्वारा यौन शोषण के कई मामले सामने आते रहे हैं।
राजनयिकों का महिलाओं से मधुर संबंध कोई नई बात नहीं है। मोनिका लेविंस्की और बिल क्लिंटन के संबंधों की चर्चा को सभी जानते हैं। इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी का टीवी अदाकारा से संबंध होना विवाद का कारण बना था। हाल ही में अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर पर फिर से दो महिलाओं से यौन दुराचरण के आरोप लगे हैं। ब्रिटेन में 80 के दसक में मिस इंडिया पामेला बोर्डेस से जुड़े सेक्स स्कैंडल ने ब्रिटिश सरकार को हिला दिया था।
दूसरी ओर भारत में गत वर्ष ताजातरीन मामलों में कांग्रेस के वयोवृद्ध (85 वर्षीय) नेता एवं आंध्रप्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी को कथित रूप से तीन युवतियों के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखे जाने के बाद अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था।
भारत में हॉकी, वेटलिफ्टिंग और भारोत्तोलन में सेक्स स्कैंडल का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है। दुनिया के नंबर वन गोल्फ खिलाड़ी टाइगर वुड्स भी अपने सेक्स स्कैंडल से खासे चर्चित रहे हैं। जहाँ भी खेलों का कुंभ आयोजित होता रहा है वहाँ पर सेक्स रैकेट की सक्रियता को सभी जानते हैं।
छेड़छाड़ और रेपकांड : आए दिन अखबारों में मेट्रो सिटी में बढ़ते बलात्कार और छेड़छाड़ की घटना छपती रहती है। इसी बीच पढ़ने को मिला की दिल्ली में अब महिलाएँ नहीं रही सुरक्षित। शराब और कबाक की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते लगभग प्रत्येक शहरों में माहौल अब महिलाओं के पक्ष में नहीं रहा। रोज ही लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और रैप के केस दर्ज होते रहते हैं।
बहरहाल सेक्स के बढ़ते बाजार और लोगों के दिमाग में घुसते सेक्स के चलते सामाजिक मान्यताओं और संस्कृति का राग अलापने वाले भले ही रुष्ट हों, लेकिन इसका फैलाव अभी और होना बाकी है। सवाल उठता है कि आखिर कब रुकेगी सेक्स की यह अंधी दौड़? क्या सरकार इसके प्रचार-प्रसार के मापदंड को तय करने के लिए गंभीर होगी या नैतिकता को ताक में रखकर इसी तरह ही पूरा समाज कामांध होता चला जाएगा?
Friday, August 27, 2010
पति-पत्नी : झगड़ों की बस दो ही वजह
पति-पत्नी के बीच झगड़े के कारणों के बारे में आप सोचना शुरू करते हैं तो आपको बहुत से कारण दिखाई पड़ेंगे। लेकिन एक अध्ययन कहता है कि पति-पत्नी के बीच झगड़ों के महज दो ही कारण होते हैं। जर्नल साइकोलॉजिकल एसेसमेंट के जून अंक में प्रकाशित एक अध्ययन कहता है कि पति और पत्नी के बीच झगड़ों के केवल दो ही कारण होते हैं। बेलर यूनिवॢसटी, टैक्सास के साइकोलॉजिकल एंंड न्यूरोसाइंस विभाग के कीथ सैन्फोर्ड, पीएचडी और कपल कंफ्लिक्ट कंसल्टेंट ने ३५३९ विवाहित लोगों पर यह अध्ययन किया था। इस अध्ययन में झगड़े के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों और व्यवहार का विश्लेषण किया। सैन्फोर्ड और उसके साथी अनुसंधानकत्ताओं ने अध्ययन के दौरान एक क्वेश्चनेयर तैयार किया, ताकि इस बात को जाना जा सके कि पति-पत्नी और पार्टनर्स किन मुद्दों पर लड़ते हैं। इस टीम ने यह नतीजा निकाला कि हर झगड़े में एक व्यक्ति (पति या पत्नी) यह महसूस करता है कि उसकी उपेक्षा की जा रही है, दूसरा पार्टनर उसके प्रति प्रतिबद्ध नहीं है या एक पार्टनर दूसरे के लिए चुनौती बन रहा है। २६ वर्षीया दीपाली शर्मा कहती हैं- मैं और मेरा पार्टनर दोनों प्रोफेशन में हैं, इसलिए हमें देर रात तक काम करना होता है। लिहाजा हम दोनों ही उपेक्षित महसूस करते हैं। वास्तव में कई बार मैं अपने पार्टनर को कह चुकी हूं कि क्या उसने शादी अपने काम से की है। मैं तुम्हारे लिए बेकार की चीज हूं।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर निखिल कोतवानी का कहना है कि उसकी पत्नी हर चीज पर अपना नियंत्रण रखती है। वह कहता है, कई बार मुझे लगता है कि तीन साल से मेरी पत्नी मुझे झेल रही है। मनोचिकित्सक दीपक रहेजा कहते हैं, अक्सर ऐसी शादियों में ही ऐसा होता है, जहां पार्टनर पहले से एक-दूसरे को जानते हैं या एक-दूसरे के साथ रह रहे होते हैं। वह कहते हैं, वास्तव में लोग अपने रिश्तों पर काम नहीं करते और दूसरे व्यक्ति से भी यही उम्मीद करते हैं। वह कहते हैं, इस तरह के रिश्तों में संवेदनशीलता और सहनशीलता की नितांत कमी होती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पति-पत्नी के बीच भावनाओं का आदान-प्रदान होना बेहद जरूरी और महत्त्वपूर्ण है-खासतौर से यदि आप उपेक्षित महसूस कर रहे हों। अपनी जरूरतों के प्रति ईमानदार होना आपके रिश्ते को एक सार्थक रिश्ते में बदल सकता है।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर निखिल कोतवानी का कहना है कि उसकी पत्नी हर चीज पर अपना नियंत्रण रखती है। वह कहता है, कई बार मुझे लगता है कि तीन साल से मेरी पत्नी मुझे झेल रही है। मनोचिकित्सक दीपक रहेजा कहते हैं, अक्सर ऐसी शादियों में ही ऐसा होता है, जहां पार्टनर पहले से एक-दूसरे को जानते हैं या एक-दूसरे के साथ रह रहे होते हैं। वह कहते हैं, वास्तव में लोग अपने रिश्तों पर काम नहीं करते और दूसरे व्यक्ति से भी यही उम्मीद करते हैं। वह कहते हैं, इस तरह के रिश्तों में संवेदनशीलता और सहनशीलता की नितांत कमी होती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पति-पत्नी के बीच भावनाओं का आदान-प्रदान होना बेहद जरूरी और महत्त्वपूर्ण है-खासतौर से यदि आप उपेक्षित महसूस कर रहे हों। अपनी जरूरतों के प्रति ईमानदार होना आपके रिश्ते को एक सार्थक रिश्ते में बदल सकता है।
भारत ने चीन को औकात बताई
चीन ने एक बार फिर उकसाने वाली हरकत करते हुए कश्मीर में तैनात भारत के बड़े सैन्य अफसर को वीजा देने से मना कर दिया है। उसकी दलील है कि कश्मीर विवादित क्षेत्र है और वहां की कमान संभाल रहे सैन्य अफसर का चीन स्वागत नहीं कर सकता। जवाब में भारत ने भी सख्त कदम उठाया है। चीन के साथ परस्पर रक्षा संबंध फिलहाल खत्म कर दिए गए हैं। विदेश मंत्रालय ने चीन के राजदूत को इस मामले में तलब कर सफाई देने को कहा है। इसके अलावा, चीन ने यह फैसला किया है कि उसकी सेना का एक अफसर अगले महीने इस मामले को सुलझाने के लिए भारत का दौरा करेगा।
भारत में चीन के राजदूत झैंग यान को शुक्रवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के आला अफसरों ने तलब किया है। इससे पहले शुक्रवार को ही चीनी दूतावास की ओर से जारी बयान में कहा गया कि दूतावास को वीज़ा न दिए जाने के बारे में मालूम तो है, लेकिन सही जानकारी नहीं है। भारतीय सेना के नॉर्दर्न एरिया कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जसवाल (देखें तस्वीर) को इसी महीने चीन जाना था। इसके लिए भारतीय सेना ने जून से ही तैयारी शुरू कर दी थी। चीन ने जसवाल के नाम पर यह कहते हुए आपत्ति जाहिर कर दी कि जसवाल जम्मू-कश्मीर के विवादित क्षेत्र को 'नियंत्रित' करते हैं।
जनरल जसवाल को जुलाई में चीन के दौरे पर जाना था। लेकिन चीन की आपत्ति के बाद जसवल का वीज़ा रोक दिया गया। भारत और चीन के बीच इसी साल जनवरी में जनरल रैंक के अफसरों की एक-दूसरे के देश की यात्रा कराने पर सहमति बनी थी। जसवाल इसी सहमति के तहत चीन जाने वाले थे। हालांकि, उस समय यह तय नहीं किया गया था कि कौन से अफसर इस तरह की यात्रा पर जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक भारत ने जब जनरल जसवाल को चीन के दौरे पर भेजने के अपने फैसले की जानकारी चीन को दी तो चीन ने कहा कि जसवाल जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील सूबे से आते हैं और इस इलाके के लोगों के लिए अलग तरह के वीज़ा की जरूरत होती है। सूत्र यह भी बताते हैं कि चीन का जवाब जसवाल की यात्रा की तारीख के आसपास आया, जिसके चलते मामले को सुलझाया नहीं जा सका।
इस बीच, जनरल जसवाल ने कहा है, 'मुझे बताया गया है कि मेरी चीन यात्रा कुछ समय के लिए टाल दी गई है। लेकिन मुझे यह नहीं मालूम है कि ऐसा क्यों हुआ।' उधर, हैदराबाद में रक्षा मंत्री ए.के.एंटनी ने चीन से रक्षा संबंध तोड़े जाने की ख़बर का खंडन किया है। उधर, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने कहा है कि चीन को भारत की चिंताओं को लेकर संवेदनशील होना होगा।
चीन के वीजा देने से इनकार करने पर भारत ने भी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए चीनी सेना के दो अफसरों को भी भारत आने की इजाजत देने से मना कर दिया गया है। ये दोनों अफसर नेशनल डिफेंस कॉलेज में ट्रेनिंग के लिए आने वाले थे। भारत ने चीन को इन फैसलों की वजह की जानकारी भी दे दी है ताकि इस मामले में कोई भ्रम की स्थिति न रहे। सूत्र बताते हैं कि जल्द ही चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के एक वरिष्ठ सदस्य भारत आने वाले हैं। संभवत: उनके सामने यह मुद्दा उठ सकता है।
चीन ने नॉर्दन आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बी एस जसवाल को इसलिए अपने देश में आने की अनुमति नहीं दी है क्योंकि जसवाल संवेदनशील जम्मू-कश्मीर से जुड़े हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक ले. जसवाल को जुलाई में रक्षा समझौतों के लिए की जाने वाली यात्रा के तहत चीन जाना था, लेकिन चीन की आपत्ति के कारण ऐसा नहीं हो सका।
चीन की इस हरकत पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए भारत ने भी उस देश के रक्षा अधिकारियों की यात्रा को अस्थाई तौर पर रोक दिया है। सूत्रों के मुताबिक जनवरी में हुई वार्षिक रक्षा वार्ता के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा समझौतों के लिए जनरल स्तर के अधिकारियों की यात्रा के बारे में सहमति बनी थी। उन्होंने बताया कि उस समय इस यात्रा के जुलाई में संपन्न होने का फैसला हुआ था, लेकिन तब यह निर्धारित नहीं हो सका था कि भारत की ओर से किसे भेजा जाएगा।
सूत्रों ने बताया कि भारत ने जब लेफ्टिनेंट जनरल जसवाल को भेजने के बारे में चीन को बताया, तो चीन ने एक पत्र लिखकर कहा कि ले. जसवाल जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाके से जुड़े हैं और दुनिया के इस भाग के लोग एक अलग वीजा पर ही आ सकते हैं।
चीन ने सुझाव दिया कि भारत किसी और को भेज सकता है और उसे अपनी यात्रा निरस्त नहीं करनी चाहिए। सूत्रों ने बताया कि चीन की आपत्ति यात्रा के ऐन पहले आई, जिसके चलते मामला सुलझ नहीं सकता था और इसलिए यात्रा निरस्त हो गई।
जनरल जसवाल ने कहा कि मुझे बताया गया कि यात्रा कुछ दिन के लिए स्थगित कर दी गई। मुझे नहीं पता कि इसमें देरी क्यों हो रही है। दूसरी ओर हैदराबाद में मौजूद रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने इस बात से इंकार कर दिया कि इस विवाद के चलते चीन के साथ रक्षा संबंधों पर कोई प्रभाव पड़ेगा।
एंटनी ने एक समारोह में संवाददाताओं से कहा कि चीन के साथ रक्षा संबंध तोड़ने का सवाल नहीं है। हमारे चीन के साथ करीबी संबंध हैं, हालांकि समय-समय पर कुछ परेशानियां हो सकती हैं।
एंटनी ने कहा कि कुछ समय की परेशानियों के कारण चीन के साथ हमारे संपूर्ण संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने कहा कि यात्रा कुछ कारणों के चलते नहीं हो सकी, हालांकि उन्होंने इस बारे में विस्तृत जानकारी देने से मना कर दिया। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि चीन को भारत की चिंताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
प्रकाश ने कहा कि हम चीन के साथ अपने संबंधों की कीमत समझते हैं, लेकिन एक-दूसरे की चिंताओं के प्रति संवेदनशीलता होनी चाहिए। इस मुद्दे पर हमारी चीन के साथ बात हो रही है।
बीजिंग की इस हरकत से व्यथित भारत ने भी चीन के दो सैन्य अधिकारियों को भारत की यात्रा की अनुमति देने से अस्थाई तौर पर इंकार कर दिया है। दोनों सैन्य अधिकारियों को नेशनल डिफेंस कॉलेज में प्रशिक्षण प्राप्त करने आना था। भारतीय सैन्य अधिकारियों की चीन यात्रा को रोक दिया गया है।
चीन की इस हरकत की राजनीतिक दल भी यह कहते हुए निंदा कर रहे हैं कि यह भारत का अपमान है और सरकार को इस मुद्दे को मजबूती से उठाना चाहिए। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा हम चीन के इस कदम की निंदा करते हैं। विदेश मंत्रालय और सरकार को फौरन चीन से इस संबंध में मजबूत तौर पर नाराजगी जाहिर करनी चाहिए। जसवाल को चीन आने की अनुमति न देना भारत का अपमान है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हमारे पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ अहम, बहुपक्षीय और जटिल संबंध हैं। उन्होंने कहा कि चीन के साथ हमारा रक्षा समेत कई क्षेत्रों में संपर्क बढ़ रहा है। हाल के वर्षों में हमने उसके साथ कई स्तरों पर उपयोगी रक्षा समझौते किए हैं।
जावड़ेकर ने कहा कि चीन को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि कश्मीर कोई विवादित क्षेत्र नहीं है और यह भारत का एक अहम भाग है। कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि भारत हमेशा से कहता आया है कि वह चीन के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते चाहता है लेकिन ये रिश्ते आपसी सम्मान पर आधारित होने चाहिए जिसमें दोनों देश एक दूसरे की संवेदनाओं को ध्यान रखें।
जावड़ेकर ने कहा कि चीन हमेशा से अरूणाचल प्रदेश में समस्या को हवा देता आ रहा है और अब कश्मीर की स्थिति से लाभ उठाना चाहता है। उन्होंने कहा कि इससे पाकिस्तान को मदद मिलेगी।
भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह ने सरकार से कहा कि वह इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाए। जसवंत ने कहा कि जसवाल एक समारोह में जा रहे थे, जो कोई निजी समारोह नहीं था। मुझे लगता है कि सरकार को इस मामले में बहुत कड़ा रुख अपनाना चाहिए। तिवारी से पूछा गया कि क्या पार्टी इस मामले में सरकार से मांग करेगी कि वह इस मुद्दे को चीन के समक्ष उठाए, इस पर उन्होंने कहा कि विदेश मंत्रालय को देखना है कि इस मामले को किस तरह सबसे अच्छे तरीके से उठाया जा सकता है। मुझे पूरा विश्वास है कि विदेश मंत्रालय इसका ध्यान रखेगा और जो जरूरी होगा, करेगा। वहीं विदेश राज्य मंत्री प्रणीत कौर ने संसद के बाहर संवाददाताओं से कहा कि सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है। पाकिस्तान की राह पर चलते हुए चीन ने पिछले कुछ दिन से जम्मू-कश्मीर के लोगों को वीजा जारी करने से मना कर दिया है। चीन इस प्रदेश को विवादित मान रहा है और इसके चलते यहां के लोगों को एक सादे कागज पर नत्थी किया हुआ वीजा जारी कर रहा है, जिसे आव्रजन अधिकारी स्वीकार नहीं कर रहे।
भारत ने चीन के फैसले को उकसाने वाला माना है। क्योंकि अगस्त, 2009 में तत्कालीन जीओसी-इन-सी ईस्टर्नकमांड लेफ्टिनेंट जनरल वी.के.सिंह चीन गए थे। भारत का मानना है कि अगर चीन को ऐसे ऐतराज थे तब वी.के.सिंह की यात्रा पर भी सवाल उठने चाहिए थे क्योंकि ईस्टर्न कमांड संभाल रहे वी.के.सिंह के ही तहत अरुणाचल प्रदेश का इलाका आता है, जिस पर चीन समय-समय पर अपना दावा करता रहाहै।
चीन कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत को घेरता रहा है। कुछ महीने पहले तक वह जम्मू-कश्मीर के निवासियों को उनका वीजा उनके पासपोर्ट पर चिपकाने के बजाय अलग पन्ने पर नत्थी कर देता था। भारत ने इस पर जबरदस्त आपत्ति की थी। चीन अरुणाचल प्रदेश के निवासियों को भी वीज़ा नहीं देता है। उसकी दलील है कि अरुणाचल प्रदेश के निवासी चीन के नागरिक हैं।
भारत में चीन के राजदूत झैंग यान को शुक्रवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के आला अफसरों ने तलब किया है। इससे पहले शुक्रवार को ही चीनी दूतावास की ओर से जारी बयान में कहा गया कि दूतावास को वीज़ा न दिए जाने के बारे में मालूम तो है, लेकिन सही जानकारी नहीं है। भारतीय सेना के नॉर्दर्न एरिया कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जसवाल (देखें तस्वीर) को इसी महीने चीन जाना था। इसके लिए भारतीय सेना ने जून से ही तैयारी शुरू कर दी थी। चीन ने जसवाल के नाम पर यह कहते हुए आपत्ति जाहिर कर दी कि जसवाल जम्मू-कश्मीर के विवादित क्षेत्र को 'नियंत्रित' करते हैं।
जनरल जसवाल को जुलाई में चीन के दौरे पर जाना था। लेकिन चीन की आपत्ति के बाद जसवल का वीज़ा रोक दिया गया। भारत और चीन के बीच इसी साल जनवरी में जनरल रैंक के अफसरों की एक-दूसरे के देश की यात्रा कराने पर सहमति बनी थी। जसवाल इसी सहमति के तहत चीन जाने वाले थे। हालांकि, उस समय यह तय नहीं किया गया था कि कौन से अफसर इस तरह की यात्रा पर जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक भारत ने जब जनरल जसवाल को चीन के दौरे पर भेजने के अपने फैसले की जानकारी चीन को दी तो चीन ने कहा कि जसवाल जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील सूबे से आते हैं और इस इलाके के लोगों के लिए अलग तरह के वीज़ा की जरूरत होती है। सूत्र यह भी बताते हैं कि चीन का जवाब जसवाल की यात्रा की तारीख के आसपास आया, जिसके चलते मामले को सुलझाया नहीं जा सका।
इस बीच, जनरल जसवाल ने कहा है, 'मुझे बताया गया है कि मेरी चीन यात्रा कुछ समय के लिए टाल दी गई है। लेकिन मुझे यह नहीं मालूम है कि ऐसा क्यों हुआ।' उधर, हैदराबाद में रक्षा मंत्री ए.के.एंटनी ने चीन से रक्षा संबंध तोड़े जाने की ख़बर का खंडन किया है। उधर, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने कहा है कि चीन को भारत की चिंताओं को लेकर संवेदनशील होना होगा।
चीन के वीजा देने से इनकार करने पर भारत ने भी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए चीनी सेना के दो अफसरों को भी भारत आने की इजाजत देने से मना कर दिया गया है। ये दोनों अफसर नेशनल डिफेंस कॉलेज में ट्रेनिंग के लिए आने वाले थे। भारत ने चीन को इन फैसलों की वजह की जानकारी भी दे दी है ताकि इस मामले में कोई भ्रम की स्थिति न रहे। सूत्र बताते हैं कि जल्द ही चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के एक वरिष्ठ सदस्य भारत आने वाले हैं। संभवत: उनके सामने यह मुद्दा उठ सकता है।
चीन ने नॉर्दन आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बी एस जसवाल को इसलिए अपने देश में आने की अनुमति नहीं दी है क्योंकि जसवाल संवेदनशील जम्मू-कश्मीर से जुड़े हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक ले. जसवाल को जुलाई में रक्षा समझौतों के लिए की जाने वाली यात्रा के तहत चीन जाना था, लेकिन चीन की आपत्ति के कारण ऐसा नहीं हो सका।
चीन की इस हरकत पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए भारत ने भी उस देश के रक्षा अधिकारियों की यात्रा को अस्थाई तौर पर रोक दिया है। सूत्रों के मुताबिक जनवरी में हुई वार्षिक रक्षा वार्ता के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा समझौतों के लिए जनरल स्तर के अधिकारियों की यात्रा के बारे में सहमति बनी थी। उन्होंने बताया कि उस समय इस यात्रा के जुलाई में संपन्न होने का फैसला हुआ था, लेकिन तब यह निर्धारित नहीं हो सका था कि भारत की ओर से किसे भेजा जाएगा।
सूत्रों ने बताया कि भारत ने जब लेफ्टिनेंट जनरल जसवाल को भेजने के बारे में चीन को बताया, तो चीन ने एक पत्र लिखकर कहा कि ले. जसवाल जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाके से जुड़े हैं और दुनिया के इस भाग के लोग एक अलग वीजा पर ही आ सकते हैं।
चीन ने सुझाव दिया कि भारत किसी और को भेज सकता है और उसे अपनी यात्रा निरस्त नहीं करनी चाहिए। सूत्रों ने बताया कि चीन की आपत्ति यात्रा के ऐन पहले आई, जिसके चलते मामला सुलझ नहीं सकता था और इसलिए यात्रा निरस्त हो गई।
जनरल जसवाल ने कहा कि मुझे बताया गया कि यात्रा कुछ दिन के लिए स्थगित कर दी गई। मुझे नहीं पता कि इसमें देरी क्यों हो रही है। दूसरी ओर हैदराबाद में मौजूद रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने इस बात से इंकार कर दिया कि इस विवाद के चलते चीन के साथ रक्षा संबंधों पर कोई प्रभाव पड़ेगा।
एंटनी ने एक समारोह में संवाददाताओं से कहा कि चीन के साथ रक्षा संबंध तोड़ने का सवाल नहीं है। हमारे चीन के साथ करीबी संबंध हैं, हालांकि समय-समय पर कुछ परेशानियां हो सकती हैं।
एंटनी ने कहा कि कुछ समय की परेशानियों के कारण चीन के साथ हमारे संपूर्ण संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने कहा कि यात्रा कुछ कारणों के चलते नहीं हो सकी, हालांकि उन्होंने इस बारे में विस्तृत जानकारी देने से मना कर दिया। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि चीन को भारत की चिंताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
प्रकाश ने कहा कि हम चीन के साथ अपने संबंधों की कीमत समझते हैं, लेकिन एक-दूसरे की चिंताओं के प्रति संवेदनशीलता होनी चाहिए। इस मुद्दे पर हमारी चीन के साथ बात हो रही है।
बीजिंग की इस हरकत से व्यथित भारत ने भी चीन के दो सैन्य अधिकारियों को भारत की यात्रा की अनुमति देने से अस्थाई तौर पर इंकार कर दिया है। दोनों सैन्य अधिकारियों को नेशनल डिफेंस कॉलेज में प्रशिक्षण प्राप्त करने आना था। भारतीय सैन्य अधिकारियों की चीन यात्रा को रोक दिया गया है।
चीन की इस हरकत की राजनीतिक दल भी यह कहते हुए निंदा कर रहे हैं कि यह भारत का अपमान है और सरकार को इस मुद्दे को मजबूती से उठाना चाहिए। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा हम चीन के इस कदम की निंदा करते हैं। विदेश मंत्रालय और सरकार को फौरन चीन से इस संबंध में मजबूत तौर पर नाराजगी जाहिर करनी चाहिए। जसवाल को चीन आने की अनुमति न देना भारत का अपमान है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हमारे पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ अहम, बहुपक्षीय और जटिल संबंध हैं। उन्होंने कहा कि चीन के साथ हमारा रक्षा समेत कई क्षेत्रों में संपर्क बढ़ रहा है। हाल के वर्षों में हमने उसके साथ कई स्तरों पर उपयोगी रक्षा समझौते किए हैं।
जावड़ेकर ने कहा कि चीन को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि कश्मीर कोई विवादित क्षेत्र नहीं है और यह भारत का एक अहम भाग है। कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि भारत हमेशा से कहता आया है कि वह चीन के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते चाहता है लेकिन ये रिश्ते आपसी सम्मान पर आधारित होने चाहिए जिसमें दोनों देश एक दूसरे की संवेदनाओं को ध्यान रखें।
जावड़ेकर ने कहा कि चीन हमेशा से अरूणाचल प्रदेश में समस्या को हवा देता आ रहा है और अब कश्मीर की स्थिति से लाभ उठाना चाहता है। उन्होंने कहा कि इससे पाकिस्तान को मदद मिलेगी।
भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह ने सरकार से कहा कि वह इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाए। जसवंत ने कहा कि जसवाल एक समारोह में जा रहे थे, जो कोई निजी समारोह नहीं था। मुझे लगता है कि सरकार को इस मामले में बहुत कड़ा रुख अपनाना चाहिए। तिवारी से पूछा गया कि क्या पार्टी इस मामले में सरकार से मांग करेगी कि वह इस मुद्दे को चीन के समक्ष उठाए, इस पर उन्होंने कहा कि विदेश मंत्रालय को देखना है कि इस मामले को किस तरह सबसे अच्छे तरीके से उठाया जा सकता है। मुझे पूरा विश्वास है कि विदेश मंत्रालय इसका ध्यान रखेगा और जो जरूरी होगा, करेगा। वहीं विदेश राज्य मंत्री प्रणीत कौर ने संसद के बाहर संवाददाताओं से कहा कि सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है। पाकिस्तान की राह पर चलते हुए चीन ने पिछले कुछ दिन से जम्मू-कश्मीर के लोगों को वीजा जारी करने से मना कर दिया है। चीन इस प्रदेश को विवादित मान रहा है और इसके चलते यहां के लोगों को एक सादे कागज पर नत्थी किया हुआ वीजा जारी कर रहा है, जिसे आव्रजन अधिकारी स्वीकार नहीं कर रहे।
भारत ने चीन के फैसले को उकसाने वाला माना है। क्योंकि अगस्त, 2009 में तत्कालीन जीओसी-इन-सी ईस्टर्नकमांड लेफ्टिनेंट जनरल वी.के.सिंह चीन गए थे। भारत का मानना है कि अगर चीन को ऐसे ऐतराज थे तब वी.के.सिंह की यात्रा पर भी सवाल उठने चाहिए थे क्योंकि ईस्टर्न कमांड संभाल रहे वी.के.सिंह के ही तहत अरुणाचल प्रदेश का इलाका आता है, जिस पर चीन समय-समय पर अपना दावा करता रहाहै।
चीन कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत को घेरता रहा है। कुछ महीने पहले तक वह जम्मू-कश्मीर के निवासियों को उनका वीजा उनके पासपोर्ट पर चिपकाने के बजाय अलग पन्ने पर नत्थी कर देता था। भारत ने इस पर जबरदस्त आपत्ति की थी। चीन अरुणाचल प्रदेश के निवासियों को भी वीज़ा नहीं देता है। उसकी दलील है कि अरुणाचल प्रदेश के निवासी चीन के नागरिक हैं।
क्या खेलों के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ अनुशासन है?
कॉमनवेल्थ गेम्स की बदौलत दिल्ली में बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रांसपोर्ट के प्रॉजेक्ट चल रहे हैं। लेकिन इसके लिए राजधानी को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। दिल्ली मेट्रो, ढेरों फ्लाईओवर और गेम्स से जुड़े दूसरी परियाजनाओं के लिए, पिछले कुछ सालों के दौरान, 40 हजार हरे-भरे पेड़ों की कुर्बानी दी गई है। हालांकि, शहर का ग्रीन कवर हर साल एक फीसदी की दर से बढ़ा रहा है, जो काटे गए पेड़ों की जगह लगाए जाने वाले पौधों की वजह से है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अकेले मेट्रो के लिए 4340 पेड़ काटे गए हैं 30 फ्लाईओवरों के लिए 8000 से ज्यादा पेड़ों की बलि दी गई। अफसरों का कहना है कि 2007-08 के बीच 18 शहरी वन बनाए गए हैं और हर काटे गए पेड़ के एवज में 10 नए पौधे लगाए गए हैं जिसकी वजह से शहर के ग्रीन कवर पर अच्छा असर पड़ा है।
लेकिन, पर्यावरणविद इस सरकारी दलील को सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि, 'एक भरे-पूरे पेड़ को काटने की क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती। दसियों पौधे एक पूरी तरह से विकसित वृक्ष की जगह नहीं ले सकते। हालांकि हम इस बात से इनकार नहीं करते कि शहर में ग्रीन कवर बढ़ा है लेकिन राजधानी तेजी से कंक्रीट जंगल में तब्दील होती जा रही है। और जो वन लगाए जा रहे हैं वे शहर की सीम पर स्थित हैं। इस बात का भी कोई ऑडिट नहीं हो रहा है कि काटे गए पेड़ों की जगह असल में कितने पौधे लगाए गए हैं। क्या सरकार स्ट्रीटस्केपिंग जैसे काम के लिए काटे गए पेड़ों की भरपाई कर सकती है?'
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अकेले मेट्रो के लिए 4340 पेड़ काटे गए हैं 30 फ्लाईओवरों के लिए 8000 से ज्यादा पेड़ों की बलि दी गई। अफसरों का कहना है कि 2007-08 के बीच 18 शहरी वन बनाए गए हैं और हर काटे गए पेड़ के एवज में 10 नए पौधे लगाए गए हैं जिसकी वजह से शहर के ग्रीन कवर पर अच्छा असर पड़ा है।
लेकिन, पर्यावरणविद इस सरकारी दलील को सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि, 'एक भरे-पूरे पेड़ को काटने की क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती। दसियों पौधे एक पूरी तरह से विकसित वृक्ष की जगह नहीं ले सकते। हालांकि हम इस बात से इनकार नहीं करते कि शहर में ग्रीन कवर बढ़ा है लेकिन राजधानी तेजी से कंक्रीट जंगल में तब्दील होती जा रही है। और जो वन लगाए जा रहे हैं वे शहर की सीम पर स्थित हैं। इस बात का भी कोई ऑडिट नहीं हो रहा है कि काटे गए पेड़ों की जगह असल में कितने पौधे लगाए गए हैं। क्या सरकार स्ट्रीटस्केपिंग जैसे काम के लिए काटे गए पेड़ों की भरपाई कर सकती है?'
क्या वास्तव में खूबसूरत लड़कियों के कारण सड़क हादसे हो रहे हैं?
अंजलि सिन्हा
कुछ समय पहले एक खबर आई थी कि जर्मनी के दक्षिणी शहर कोन्स्टांज में एक लड़का साइकिल More Pictures
चला रहा था तभी उसकी नजर एक सुंदर लड़की पर पड़ी। उसे निहारने के चक्कर में वह साइकिल से गिर पड़ा जिसमें उसे काफी चोट आयी। रुडोल्फ नाम का यह लड़का कोर्ट पहुंचा लड़की के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने। अपनी शिकायत में उसने कहा कि उसके घायल होने का कारण वह लड़की है लिहाजा उसे वह जुर्माना दे। कोर्ट ने उसकी मांग ठुकरा दी और कहा कि साइकिल चलाते वक्त आंखें सड़क पर होनी चाहिए न कि लड़की पर। अभी लंदन के सर्वेक्षण के नतीजों से जर्मनी की यह खबर ताजा हो गई। इस सर्वेक्षण के हवाले से कहा गया है कि खूबसूरत लड़कियों के कारण सड़क हादसे हो रहे हैं।
महिलाएं और एकाग्रता
अध्ययन में पाया गया कि गर्मियों के मौसम में पुरुष अधिक सड़क दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं क्योंकि कार चलाते वक्त उनका ध्यान सड़क पर लड़कियों के छोटे कपड़ों के कारण भटक जाता है। 29 फीसदी पुरुषों ने माना कि सड़क पर महिलाओं को देखने के चक्कर में उनकी एकाग्रता चली जाती है। उधर अमेरिका में भी एक महिला बैंक कर्मचारी को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी क्योंकि उसकी सुंदरता के कारण पुरुष कर्मचारियों का काम में मन नहीं लगता था।
ऐसे प्रेक्षण कुछ सवालों पर सोचने के लिए मजबूर करते हैं। जैसे, अधिकतर स्टियरिंग के पीछे कौन बैठता है जिसका ध्यान भंग होता है? क्या यह भावना प्राकृतिक है या उन्होंने इसे अपने परिवेश से सीखा है? यदि प्राकृतिक अंश है भी तो वह सिर्फ पुरुषों में नहीं, महिलाओं में भी होगा क्योंकि यौनिकता भाव सिर्फ पुरुषों में नहीं होता है।
कपड़ों का मुद्दा
सभ्यता के दौर में ही इंसान ने सीखा कि वह सिर्फ प्राकृतिक जरूरतें पूरी करने वाला जीव नहीं है बल्कि उसकी जरूरत दूसरे के अधिकार से भी जुड़ी है। यदि महिलाएं भी ऐसी जरूरतों को न्यायसंगत ठहरायें तो पुरुष तो उससे भी अधिक मौका देते हैं। हाफ पैंट या गमछे में बाहर दिख जाते हैं। गांव या कस्बों में सार्वजनिक कुओं या नलके पर नहाने बैठ जाते हैं। गर्मियों में वे अनौपचारिक रूप से जो पोशाक पहने रहते हैं उसमें भी अंगप्रदर्शन होता है। माना कि शारीरिक भिन्नताएं हैं लेकिन आजकल तो यह सब बच्चे अपने पाठ्यक्रम में पढ़ते हैं और उसके प्रति निगाहें कैसी हो, यह वे समाज में सीखते हैं। हमारे पूर्वज जो जंगलों में वस्त्रविहीन रहते थे, या आज भी कई आदिवासी इलाकों का पहनावा कम कपड़ों का है, क्या वहां भी पोशाक ऐसा ही मुद्दा होगा?
पूंजीवादी उपभोक्ता संस्कृति का मसला अलग है जिसमें औरत स्वयं को भी उपभोक्ता वस्तु मानने लगती है। पितृसत्तात्मक समाज में उसने यही सीखा होता है कि उसके पास सबसे बड़ी सम्पत्ति उसकी देह है। लेकिन यह एक अलग मुद्दा है। फिलहाल हम दूसरे पक्ष की बात कर रहे हैं जिसमें घूरने या छींटाकशी करने , किसी लड़की का पीछा करने तथा उसकी शांति भंग करने के लिए जिम्मेदार उसे ही ठहराने का हक पुरुष ले लेते हैं।
लंदन के सर्वे या जर्मनी की घटना या यहां घटनेवाली घटनाओं में एक ही प्रकार की धारणा या मानसिकता काम करती है। वह यह कि उन्हें स्वयं को ठीक नहीं करना , अपने भावनाओं पर नियंत्रण की सीख नहीं लेनी उल्टे इन सबको अपना हक समझ लेना। ऐसा करना धीरे - धीरे स्वाभाविक लगने लगता है। फर्क सिर्फ इतना है कि जर्मनी में वह लड़का केस दायरे करने अदालत चला गया जबकि हमारे यहां छेड़खानी या यौन हिंसा करनेवाले इसे अपना अधिकार मान लेते हैं।
वे कहते हैं कि लड़कियों को देख कर उनका मन मचल जाता है। हमारे समाज में लोग आम तौर पर यह कहते हुए पाए जाते हैं कि लड़कियां आज कल कपड़े छोटे पहनती हैं इसलिए लड़के छेड़ते हैं। वे गलत समय पर बाहर गई थीं इसलिए बलात्कार की शिकार हो गईं। पुरुषों की दुनिया में सोच विचार कर कदम बाहर नहीं रखेंगी तो खामियाजा भुगतना ही होगा। यह आम धारणा है कि यौन हिंसा का सामना उन्हीं लड़कियों या महिलाओं को करना पड़ता है जो बनी - बनाई लीक पर नहीं चलतीं। यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि किसी ने अस्वीकृत - अमर्यादित पोशाक पहन भी लिया तो इससे दूसरों को उनके खिलाफ मनमानी करने का हक कैसे मिल गया?
अपनी भावनाओं पर नियंत्रण की जिम्मेदारी स्वयं उस व्यक्ति की होती है। दूसरा व्यक्ति कुछ भी पहने हो, जब तक वह इजाजत न दे, तब तक आपको उससे क्या मतलब?
अदालत की समझ
हमारी न्याय व्यवस्था भी पारंपरिक समझ से ही निर्देशित होती रही है। तभी यौन हिंसा के खिलाफ फैसले के वक्त पीडि़ता के चरित्र या यौन संबंध बनाने की अभ्यस्त होने की बात कही जाती रही है। इसीलिए यह माना गया कि वेश्या का कोई हक नहीं है, उसके साथ कोई भी जबरन संबंध स्थापित कर सकता है। हमारे समाज में अधिकांशत : पत्नियों को भी यह हक नहीं मिलता कि वे पति के आग्रह को ठुकरा दें।
मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में जाने की इजाजत इसीलिए नहीं दी जाती है कि इबादत के समय पुरुषों को अल्लाह में ध्यान लगाने में बाधा पहुंचेगी। ऐसा क्यों नहीं सोचा गया कि जो अपनी निगाह पर काबू नहीं पा सकता है वह घर में बैठ कर इबादत करे। यदि कोई स्त्री ध्यान आकर्षित करने का कुचक्र रचती है तो भी जिसने ध्यान दिया , जवाबदेही उसी की बनती है।
आज कल शिक्षण संस्थाओं में वाद - विवाद प्रतियोगिताओं का विषय होता है कि छेड़खानी के लिए पोशाक कितनी जिम्मेदार है ? हमारी पुरानी परंपरा में या आदिवासी संस्कृति में भी कम कपड़े पहनने का रिवाज रहा है। इसका अर्थ यह नहीं हो सकता कि वे सभी स्त्रियां खुद को हिंसा के लिए प्रस्तुत करती हैं। यह देखने वाले या अश्लील व्यवहार करनेवाले के ऊपर निर्भर है कि वह किसी व्यक्ति या वस्तु को किस सोच और मानसिकता से देखता या मापता है। बाकी तो यह अलग ही मुद्दा है कि कोई क्या पहनता है और किस पोशाक में अच्छा दिखता है।
Saturday, August 21, 2010
करोड़पतियों को क्यों चाहिए और ज्यादा पैसा?
सदस्यों ने अपना वेतन तीन गुना बढ़वा लिया और छह लाख रुपए महीने के खर्चे का पात्र बनने के बावजूद उनकी लड़ाई जारी रही। लड़ाई का मुख्य कारण हैं कि सांसदों के अनुसार उन्हें जनता ने चुना है और जनता की ओर से वे देश के मालिक हैं इसलिए उनका वेतन भारत के सबसे बड़े अफसर कैबिनेट सचिव से कम से कम एक रुपए ज्यादा होना चाहिए। कैबिनेट सचिव को अस्सी हजार रुपए महीने मिलते है।
देश की सत्तर फीसदी आबादी की पारिवारिक आमदनी बीस रुपया प्रतिदिन है यानी छह सौ रुपए महीने। गरीबी की सीमा रेखा के नीचे जो लोग रह रहे हैं और जो भूखे सो जाने के लिए अभिशप्त हैं उनकी गिनती तो छोड़ ही दीजिए। उस पर तो हमारे ये माननीय सांसद खुद ही हंगामा कर के संसद का समय बर्बाद करते रहेंगे।
फिलहाल जो आंकड़े उपलब्ध है उनके अनुसार सांसदों में 315 करोड़पति हैं और उनमें से सबसे ज्यादा 146 कांग्रेस के हैं। ज्ञान, चरित्र, एकता वाली भाजपा के 59 सांसद करोड़पति हैं। समाजवादी पार्टी के 14 सांसद करोड का आंकड़ा पार कर चुके हैं। दलित और गरीबों की पार्टी कहीं जाने वाली बहुजन समाज पार्टी के 13 सांसद करोड़पति हैं। द्रविड़ मुनेत्र कषगम के सभी 13 सांसद करोड़पति हैं।
कांग्रेस में प्रति सांसद औसत संपत्ति छह करोड़ हैं जबकि भाजपा में साढ़े तीन करोड़ है। देश के सारे सांसदों को मिला लिया जाए तो कुछ को छोड़ कर सबके पास कम से कम साढ़े चार करोड़ रुपए की नकदी या संपत्तियां तो हैं ही। यह जानकारी किसी जासूस ने नहीं निकाली। खुद सांसदों ने चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार इस संपत्ति का खुलासा किया है।
सांसदों का यह भी कहना है कि अगर बेहतर सुविधाए मिलेंगी और अधिक वेतन मिलेगा तो ज्यादा प्रतिभाशाली लोग राजनीति में आएंगे। यह अपने आप में अच्छा खासा मजाक हैं। सिर्फ लोकसभा के 162 सांसदों पर आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं जिनमें से 76 पर तो हत्या, चोरी और अपहरण जैसे गंभीर मामले चल रहे हेैं। इन्हीं आंकड़ों के अनुसार चौंदहवीं लोकसभा में 128 सांसदों पर आपराधिक मामले थे जिनमें से 58 पर गंभीर अपराध दर्ज थे। जाहिर है कि प्रतिभाशाली नहीं, आपराधिक लोग संसद में बढ़ रहे हैं और उन्हें फिर भी पगार ज्यादा चाहिए।
देश की सत्तर फीसदी आबादी की पारिवारिक आमदनी बीस रुपया प्रतिदिन है यानी छह सौ रुपए महीने। गरीबी की सीमा रेखा के नीचे जो लोग रह रहे हैं और जो भूखे सो जाने के लिए अभिशप्त हैं उनकी गिनती तो छोड़ ही दीजिए। उस पर तो हमारे ये माननीय सांसद खुद ही हंगामा कर के संसद का समय बर्बाद करते रहेंगे।
फिलहाल जो आंकड़े उपलब्ध है उनके अनुसार सांसदों में 315 करोड़पति हैं और उनमें से सबसे ज्यादा 146 कांग्रेस के हैं। ज्ञान, चरित्र, एकता वाली भाजपा के 59 सांसद करोड़पति हैं। समाजवादी पार्टी के 14 सांसद करोड का आंकड़ा पार कर चुके हैं। दलित और गरीबों की पार्टी कहीं जाने वाली बहुजन समाज पार्टी के 13 सांसद करोड़पति हैं। द्रविड़ मुनेत्र कषगम के सभी 13 सांसद करोड़पति हैं।
कांग्रेस में प्रति सांसद औसत संपत्ति छह करोड़ हैं जबकि भाजपा में साढ़े तीन करोड़ है। देश के सारे सांसदों को मिला लिया जाए तो कुछ को छोड़ कर सबके पास कम से कम साढ़े चार करोड़ रुपए की नकदी या संपत्तियां तो हैं ही। यह जानकारी किसी जासूस ने नहीं निकाली। खुद सांसदों ने चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार इस संपत्ति का खुलासा किया है।
सांसदों का यह भी कहना है कि अगर बेहतर सुविधाए मिलेंगी और अधिक वेतन मिलेगा तो ज्यादा प्रतिभाशाली लोग राजनीति में आएंगे। यह अपने आप में अच्छा खासा मजाक हैं। सिर्फ लोकसभा के 162 सांसदों पर आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं जिनमें से 76 पर तो हत्या, चोरी और अपहरण जैसे गंभीर मामले चल रहे हेैं। इन्हीं आंकड़ों के अनुसार चौंदहवीं लोकसभा में 128 सांसदों पर आपराधिक मामले थे जिनमें से 58 पर गंभीर अपराध दर्ज थे। जाहिर है कि प्रतिभाशाली नहीं, आपराधिक लोग संसद में बढ़ रहे हैं और उन्हें फिर भी पगार ज्यादा चाहिए।
आप शायद ही कॉमनवेल्थ पूरा देख पाएं
खेलों के बारे में अच्छी खबर का आप शायद इंतजार ही करते रहे। आज की हालत यह है कि 19 में से 12 स्टेडियम खेल की हालात में नहीं है, दिल्ली विकास प्राधिकरण ने कह दिया है कि वसंतकुंज में जो तीन सितारा फ्लैट बन रहे हैं उनमें से आधे ही वक्त पर तैयार हो पाएंगे, करने के लिए जो हाईटेक उपकरण लाए गए थे उनमें अभी से गड़बड़ी शुरू हो गई है और सुरेश कलमाडी पंचर होने के बाद से खामोश है।
उधर आयोजन समिति के कई सदस्यों ने बताया है कि उन्होंने आस्ट्रेलिया की प्रायोजक और विज्ञापन प्रबंधन कपंनी स्माम की क्षमता और उसे दिए जा रहे पैसों को ले कर सीएजी की जांच के पहले भी सवाल किए थे। मगर सुरेश कलमाडी की आस्था इस कंपनी में लगातार बनी रही। कल दिल्ली से लौटे कॉमनवेल्थ फेडरेशन के अध्यक्ष माइक फेनेल और सीईओ माइक हूपर दोनों ने मिल कर कलमाडी के साथ तालमेल किया था कि 200 करोड़ रुपए का अनुबंध स्माम के साथ कर लिया जाए क्योंकि उससे इन दोनों के पहले से लेन देन के रिश्ते थे।
स्माम एक भी विज्ञापनदाता या प्रयोजक नहीं ला सकी। आयोजन समिति की कार्यकारिणी ने 7 जून 2006 को माइक फेनेल ने साफ कहा था कि सिद्वांत रूप से स्माम को अनुबंधित करने की स्वीकृति दी जाती। माइक हूपर ने एक कदम और आगे बढ़ कर कहा था कि कॉमनवेल्थ आयोजन समिति को हर अनुबंध फेडरेशन से पूछ कर देना पड़ेगा। कलमाडी सौदे में शामिल थे इसलिए खामोश रहे। कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना ने जरूर ऐतराज उठाए थे। खन्ना खुद अब अपने बेटे की कंपनी को ठेका मिलने के कारण बाहर कर दिए गए।
अब सवाल आता है खेल समारोह की सुरक्षा का खेल मंत्रालय और आयोजन समिति ने रक्षा मंत्रालय से कहा है कि समारोह और खिलाड़ियों और दर्शकों की सुविधा और सुरक्षा के लिए सेना को नियुक्त करना चाहिए मगर इसके लिए रक्षा मंत्रालय को कोई खर्चा नहीं मिलेगा। सैनिकों का खाना भी आयोजन समिति नहीं खिलाएगी। रक्षा मंत्री एके एंटनी ने झापड़ मारने के अंदाज में इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
सेना के बैंड और एनसीसी के 2500 कैडेट भी काम करेंगे। उनके रहने के लिए 27 लाख का खर्चा कौन देगा यह भी तय नहीं है। उधर स्माम घोटाले के मामले में एक समिति के एक सदस्य टुंकु इमरान ने कहा था कि सिर्फ एक कंपनी पर भरोसा करना ठीक नहीं होगा। मगर बहुमत ने उनकी राय नहीं सुनी और इसी बैठक में ब्रॉडकास्ट अधिकारों पर भी फैसला हो गया जिसमें फिर करोड़ों का घाटा हुआ है।
फरवरी 2010 में समिति के राजस्व अधिकारी वी के सक्सेना ने कहा था कि स्माम के पास न प्रतिभा है, न लोग हैं, न शंका हैं और इसे दिए गए पैसे भी वापस ले लेने चाहिए। कोई आश्चर्य नहीं कि सुरेश कलमाडी ने या फेनेल ने या हूपर ने जिन्हें इस पत्र की प्रतियां भेजी गई थी इस बारे में कोई जवाब नहीं दिया।
उधर आयोजन समिति के कई सदस्यों ने बताया है कि उन्होंने आस्ट्रेलिया की प्रायोजक और विज्ञापन प्रबंधन कपंनी स्माम की क्षमता और उसे दिए जा रहे पैसों को ले कर सीएजी की जांच के पहले भी सवाल किए थे। मगर सुरेश कलमाडी की आस्था इस कंपनी में लगातार बनी रही। कल दिल्ली से लौटे कॉमनवेल्थ फेडरेशन के अध्यक्ष माइक फेनेल और सीईओ माइक हूपर दोनों ने मिल कर कलमाडी के साथ तालमेल किया था कि 200 करोड़ रुपए का अनुबंध स्माम के साथ कर लिया जाए क्योंकि उससे इन दोनों के पहले से लेन देन के रिश्ते थे।
स्माम एक भी विज्ञापनदाता या प्रयोजक नहीं ला सकी। आयोजन समिति की कार्यकारिणी ने 7 जून 2006 को माइक फेनेल ने साफ कहा था कि सिद्वांत रूप से स्माम को अनुबंधित करने की स्वीकृति दी जाती। माइक हूपर ने एक कदम और आगे बढ़ कर कहा था कि कॉमनवेल्थ आयोजन समिति को हर अनुबंध फेडरेशन से पूछ कर देना पड़ेगा। कलमाडी सौदे में शामिल थे इसलिए खामोश रहे। कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना ने जरूर ऐतराज उठाए थे। खन्ना खुद अब अपने बेटे की कंपनी को ठेका मिलने के कारण बाहर कर दिए गए।
अब सवाल आता है खेल समारोह की सुरक्षा का खेल मंत्रालय और आयोजन समिति ने रक्षा मंत्रालय से कहा है कि समारोह और खिलाड़ियों और दर्शकों की सुविधा और सुरक्षा के लिए सेना को नियुक्त करना चाहिए मगर इसके लिए रक्षा मंत्रालय को कोई खर्चा नहीं मिलेगा। सैनिकों का खाना भी आयोजन समिति नहीं खिलाएगी। रक्षा मंत्री एके एंटनी ने झापड़ मारने के अंदाज में इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
सेना के बैंड और एनसीसी के 2500 कैडेट भी काम करेंगे। उनके रहने के लिए 27 लाख का खर्चा कौन देगा यह भी तय नहीं है। उधर स्माम घोटाले के मामले में एक समिति के एक सदस्य टुंकु इमरान ने कहा था कि सिर्फ एक कंपनी पर भरोसा करना ठीक नहीं होगा। मगर बहुमत ने उनकी राय नहीं सुनी और इसी बैठक में ब्रॉडकास्ट अधिकारों पर भी फैसला हो गया जिसमें फिर करोड़ों का घाटा हुआ है।
फरवरी 2010 में समिति के राजस्व अधिकारी वी के सक्सेना ने कहा था कि स्माम के पास न प्रतिभा है, न लोग हैं, न शंका हैं और इसे दिए गए पैसे भी वापस ले लेने चाहिए। कोई आश्चर्य नहीं कि सुरेश कलमाडी ने या फेनेल ने या हूपर ने जिन्हें इस पत्र की प्रतियां भेजी गई थी इस बारे में कोई जवाब नहीं दिया।
Friday, August 20, 2010
क्या ऐतिहासिक सड़क है..जब भी टूटती है बनने का नाम ही नहीं लेती
स्थान : जगत क्रान्ति मार्ग
जिला : जीन्द
राज्य : हरियाणा
समय : बरसात का
बरसात के समय में यह सड़क किसी प्ले ग्राउंड के कम नहीं हो जाती जहां बच्चे नंगे होकर बरसात से गीली गारा के साथ आपस में खेलते हैं। यहां आने-जाने की जो सोचता है उसे यहां के स्थानीय निवासी पागल ही समझते होंगे, क्योंकि यह सड़क, सड़क नहीं बल्कि किसी तगार से कम नहीं होती। बरसात के सम में यहां कोई दोपहीय ही नहीं बल्कि पैदल आने-जाने के बारे में भी सोच नहीं सकता। यहां की देख-रेख करने वाला शायद ऊपर वाला ही होगा। ही...ही...ही....हंसी इस बात की है कि यहां यदि कोई स्थानीय निवासी इस सड़क को लेकर किसी सरकारी कार्यालय में जाता है तो उसे थाली के बैंगन की भांती होना पड़ता है।
एक बार की बात की यहां खुले दरबार में शिक्षा मंत्री महोदया आई हुई थी। तो यहां के रहने वालों ने उन्हीं के सामने जाना मुनासिफ समझा, जो पहुंच गए खुले दरबार में, जाते ही इस सड़के बारे में बताया कि यह सड़क पहले 24 फीट की थी, लेकिन अब केवल 12 फीट की रह गई है। है ना मजे की बात। इस बात पर मंत्री जी बोली हमने सड़कों को 12 से 24 होता देखा है लेकिन यह पहली बात है कि सड़क 24 से 12 फीट हो चुकी है। अब मंत्री जी को कौन बताए कि यहां की राजनीति क्या चीज है। यहां के सरकारी अधिकारी अपने आप को सीएम से कम नहीं समझते। उन्हें काम इतना होता है कि अन्य व्यक्ति को घर से ठाली बैठा रहता है और काम तो सिर्फ वो सरकारी बाबू लोग ही करते हैं। वहां मौजूद एक सरकारी अधिकारी बोले की मंत्री जी हमने इस सड़क की फाईल जहां इसे पास होकर सड़क बननी है वहां भेज दी है। लेकिन एक व्यक्ति ने वहां जाकर पूछा तो पता चलता है कि यहां इस सड़क के नाम की बात तक नहीं हुई तो फाईल कहां से आएगी। अब बात सोचने वाली यह है कि यह सड़क कौन बनवाएगा और कब बनकर तैयार होगी इसके बारे में जरूर लिखा जाएगा। इस सड़क का इतिहास जो रहा है कि जब यह सड़क ऐसी होती है तो लंबे समय तक इसे पूछने वाला कोई नहीं होता।
जिला : जीन्द
राज्य : हरियाणा
समय : बरसात का
बरसात के समय में यह सड़क किसी प्ले ग्राउंड के कम नहीं हो जाती जहां बच्चे नंगे होकर बरसात से गीली गारा के साथ आपस में खेलते हैं। यहां आने-जाने की जो सोचता है उसे यहां के स्थानीय निवासी पागल ही समझते होंगे, क्योंकि यह सड़क, सड़क नहीं बल्कि किसी तगार से कम नहीं होती। बरसात के सम में यहां कोई दोपहीय ही नहीं बल्कि पैदल आने-जाने के बारे में भी सोच नहीं सकता। यहां की देख-रेख करने वाला शायद ऊपर वाला ही होगा। ही...ही...ही....हंसी इस बात की है कि यहां यदि कोई स्थानीय निवासी इस सड़क को लेकर किसी सरकारी कार्यालय में जाता है तो उसे थाली के बैंगन की भांती होना पड़ता है।
एक बार की बात की यहां खुले दरबार में शिक्षा मंत्री महोदया आई हुई थी। तो यहां के रहने वालों ने उन्हीं के सामने जाना मुनासिफ समझा, जो पहुंच गए खुले दरबार में, जाते ही इस सड़के बारे में बताया कि यह सड़क पहले 24 फीट की थी, लेकिन अब केवल 12 फीट की रह गई है। है ना मजे की बात। इस बात पर मंत्री जी बोली हमने सड़कों को 12 से 24 होता देखा है लेकिन यह पहली बात है कि सड़क 24 से 12 फीट हो चुकी है। अब मंत्री जी को कौन बताए कि यहां की राजनीति क्या चीज है। यहां के सरकारी अधिकारी अपने आप को सीएम से कम नहीं समझते। उन्हें काम इतना होता है कि अन्य व्यक्ति को घर से ठाली बैठा रहता है और काम तो सिर्फ वो सरकारी बाबू लोग ही करते हैं। वहां मौजूद एक सरकारी अधिकारी बोले की मंत्री जी हमने इस सड़क की फाईल जहां इसे पास होकर सड़क बननी है वहां भेज दी है। लेकिन एक व्यक्ति ने वहां जाकर पूछा तो पता चलता है कि यहां इस सड़क के नाम की बात तक नहीं हुई तो फाईल कहां से आएगी। अब बात सोचने वाली यह है कि यह सड़क कौन बनवाएगा और कब बनकर तैयार होगी इसके बारे में जरूर लिखा जाएगा। इस सड़क का इतिहास जो रहा है कि जब यह सड़क ऐसी होती है तो लंबे समय तक इसे पूछने वाला कोई नहीं होता।
Thursday, August 19, 2010
स्त्री पहली बार हो रही है चरित्रवान
तुम्हारे चरित्र का एक ही अर्थ होता है बस कि स्त्री पुरुष से बँधी रहे, चाहे पुरुष कैसा ही गलत हो। हमारे शास्त्रों में इसकी बड़ी प्रशंसा की गई है कि अगर कोई पत्नी अपने पति को बूढ़े-, मरते, सड़ते, कुष्ठ रोग से गलते पति को भी- कंधे पर रखकर वेश्या के घर पहुँचा दी तो हम कहते हैं- 'यह है चरित्र! देखो, क्या चरित्र है कि मरते पति ने इच्छा जाहिर की कि मुझे वेश्या के घर जाना है और स्त्री इसको कंधे पर रखकर पहुँचा आई।' इसको गंगाजी में डुबा देना था, तो चरित्र होता। यह चरित्र नहीं है, सिर्फ गुलामी है। यह दासता है और कुछ भी नहीं।
पश्चिम की स्त्री ने पहली दफा पुरुष के साथ समानता के अधिकार की घोषणा की है। इसको मैं चरित्र कहता हूँ। लेकिन तुम्हारे चरित्र की बढ़ी अजीब बातें हैं। तुम इस बात को चरित्र मानते हो कि देखो भारतीय स्त्री सिगरेट नहीं पीती और पश्चिम की स्त्री सिगरेट पीती है। और भारतीय स्त्रियाँ पश्चिम से आए फैशनों का अंधा अनुकरण कर रही हैं!
अगर सिगरेट पीना बुरा है तो पुरुष का पीना भी बुरा है। और अगर पुरुष को अधिकार है सिगरेट पीने का तो प्रत्येक स्त्री को अधिकार है सिगरेट पीने का। कोई चीज बुरी है तो सबके लिए बुरी है और नहीं बुरी है तो किसी के लिए बुरी नहीं है। आखिर स्त्री में क्यों हम भेद करें? क्यों स्त्री के अलग मापदंड निर्धारित करें? पुरुष अगर लंगोट लगाकर नदी में नहाए तो ठीक है और स्त्री अगर लंगोटी बाँधकर नदी में नहाए तो चरित्रहीन हो गई! ये दोहरे मापदंड क्यों?
लोग कहते हैं, 'इस देश की युवतियाँ पश्चिम से आए फैशनों का अंधानुकरण करके अपने चरित्र का सत्यानाश कर रही हैं।'
जरा भी नहीं। एक तो चरित्र है नहीं कुछ...। और पश्चिम में चरित्र पैदा हो रहा है। अगर इस देश की स्त्रियाँ भी पश्चिम की स्त्रियों की भाँति पुरुष के साथ अपने को समकक्ष घोषित करें तो उनके जीवन में भी चरित्र पैदा होगा और आत्मा पैदा होगी। स्त्री और पुरुष को समान हक होना चाहिए।
यह बात पुरुष तो हमेशा ही करते हैं। स्त्रियों में उनकी उत्सुकता नहीं है, स्त्रियों के साथ मिलते दहेज में उत्सुकता है। स्त्री से किसको लेना देना है! पैसा, धन, प्रतिष्ठा!
हम बच्चों पर शादी थोप देते थे। लड़का कहे कि मैं लड़की को देखना चाहता हूँ, वह ठीक है। यह उसका हक है! लेकिन लड़की कहे मैं भी लड़के को देखना चाहती हूँ कि यह आदमी जिंदगीभर साथ रहने योग्य है भी या नहीं- तो चरित्र का ह्रास हो गया, पतन हो गया! और इसको तुम चरित्र कहते हो कि जिससे पहचान नहीं, संबंध नहीं, कोई पूर्व परिचय नहीं, इसके साथ जिंदगी भर साथ रहने का निर्णय लेना। यह चरित्र है तो फिर अज्ञान क्या होगा? फिर मूढ़ता क्या होगी?
पहली दफा दुनिया में एक स्वतंत्रता की हवा पैदा हुई है, लोकतंत्र की हवा पैदा हुई है और स्त्रियों ने उद्घोषणा की है समानता की, तो पुरुषों की छाती पर साँप लौट रहे हैं। मगर मजा भी यह है कि पुरुषों की छाती पर साँप लौटे, यह तो ठीक, स्त्रियों की छाती पर साँप लौट रहे हैं। स्त्रियों की गुलामी इतनी गहरी हो गई है कि उनको पता नहीं रहा कि जिसको वे चरित्र, सती-सावित्री और क्या-क्या नहीं मानती रही हैं, वे सब पुरुषों के द्वारा थोपे गए जबरदस्ती के विचार थे।
पश्चिम में एक शुभ घड़ी आई है। घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। भयभीत होने का कोई कारण नहीं है। सच तो यह है कि मनुष्य जाति अब तक बहुत चरित्रहीन ढंग से जी है, लेकिन ये चरित्रहीन लोग ही अपने को चरित्रवान समझते हैं। तो मेरी बातें उनको लगती हैं कि मैं लोगों का चरित्र खराब कर रहा हूँ। मैं तो केवल स्वतंत्रता और बोध दे रहा हूँ, समानता दे रहा हूँ। और जीवन को जबरदस्ती बंधनों में जीने से उचित है कि आदमी स्वतंत्रता से जीए। और बंधन जितने टूट जाएँ उतना अच्छा है, क्योंकि बंधन केवल आत्माओं को मार डालते हैं, सड़ा डालते हैं, तुम्हारे जीवन को दूभर कर देते हैं।
जीवन एक सहज आनंद, उत्सव होना चाहिए। इसे क्यों इतना बोझिल, इसे क्यों इतना भारी बनाने की चेष्टा चल रही है? और मैं नहीं कहता हूँ कि अपनी स्वस्फूर्त चेतना के विपरीत कुछ करो। किसी व्यक्ति को एक ही व्यक्ति के साथ जीवनभर प्रेम करने का भाव है- सुंदर, अति सुंदर! लेकिन यह भाव होना चाहिए आंतरिक, यह ऊपर से थोपा हुआ नहीं, मजबूरी में नहीं। नहीं तो उस व्यक्ति से बदला लेगा वह व्यक्ति, उसी को परेशान करेगा, उसी पर क्रोध जाहिर करेगा।
सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन
मौत का डर है तो यूज करो कंडोम नहीं तो धीरे-धीरे मरो!
प्रचारक : लोक संपर्क विभाग
स्थान : जिला जीन्द, हरियाणा
तो हुआ यूं की लोक संकर्प विभाग वाले अपना प्रचार करते-करते उह.....गांव का नाम याद नहीं आ रहा है....चलो छोड़। गांव में पहुंचकर गांव के सभी बच्चे, बुढ़े, महिलाएं, जवान आदि वहां जमा हो जाते हैं कि हैलो..हैलो.. वाले आए हुए हैं। शायद कोई जादू का खेल दिखाया जाएगा। उनकी आवाज सुनकर सभी भागे चले आते हैं और खड़े होकर देखने लगते हैं कि कोई बांसूरी बजा रहा है तो कोई डोलकी पीट रहा है। एक भाई आए और धूतू यानी की गांव की भाषा में हैलो..हैलो को हाथ में लेकर कंडोम के को इस्तेमाल करने के बारे में बताने लगे कि इससे एड्स से बचा जा सकता है। उनकी बातें सुनकर कुछ बुढ़े और औरतें तभी पहली गली से निकल लिए। कुछ मलंग लोग, बच्चे, बुढ़े उनकी बातों को सुनने लगे कि कंडोम को यूज करो और एड्स व इसके अलावा होने वाली यौन रोगों से बचो। तभी एक धाकड़ लुगाई उठ कै बोली, 'रै बेटा जे थामने कोए आदमी रसगूल्ला पन्ने मै डालकै दे देवै और कवै के इसनै खा ले, तो कै खाणं मैं मजा आवैगा।Ó औरत की बात सुनते ही सभी समझ गए की यहां दाल नहीं गलने वाली तो वे कुछ समय के बाद वहां से चलते बने।
अब जरा सोचिए की गांव में कितने लोग हैं कि जो कंडोम के बारे में जानते हैं और जानने वाले भी कहां लगाते होंगे। सोचते होंगे की क्यो इसे फाड़कर लगाने में समय बर्बाद किया जाए। क्या वे यह नहीं जानते ही इसके लगाने से क्या होगा.... और क्या नहीं होगा। ऐसे लोगों का तो ऊपर वाला ही रखवाला है।
स्थान : जिला जीन्द, हरियाणा
तो हुआ यूं की लोक संकर्प विभाग वाले अपना प्रचार करते-करते उह.....गांव का नाम याद नहीं आ रहा है....चलो छोड़। गांव में पहुंचकर गांव के सभी बच्चे, बुढ़े, महिलाएं, जवान आदि वहां जमा हो जाते हैं कि हैलो..हैलो.. वाले आए हुए हैं। शायद कोई जादू का खेल दिखाया जाएगा। उनकी आवाज सुनकर सभी भागे चले आते हैं और खड़े होकर देखने लगते हैं कि कोई बांसूरी बजा रहा है तो कोई डोलकी पीट रहा है। एक भाई आए और धूतू यानी की गांव की भाषा में हैलो..हैलो को हाथ में लेकर कंडोम के को इस्तेमाल करने के बारे में बताने लगे कि इससे एड्स से बचा जा सकता है। उनकी बातें सुनकर कुछ बुढ़े और औरतें तभी पहली गली से निकल लिए। कुछ मलंग लोग, बच्चे, बुढ़े उनकी बातों को सुनने लगे कि कंडोम को यूज करो और एड्स व इसके अलावा होने वाली यौन रोगों से बचो। तभी एक धाकड़ लुगाई उठ कै बोली, 'रै बेटा जे थामने कोए आदमी रसगूल्ला पन्ने मै डालकै दे देवै और कवै के इसनै खा ले, तो कै खाणं मैं मजा आवैगा।Ó औरत की बात सुनते ही सभी समझ गए की यहां दाल नहीं गलने वाली तो वे कुछ समय के बाद वहां से चलते बने।
अब जरा सोचिए की गांव में कितने लोग हैं कि जो कंडोम के बारे में जानते हैं और जानने वाले भी कहां लगाते होंगे। सोचते होंगे की क्यो इसे फाड़कर लगाने में समय बर्बाद किया जाए। क्या वे यह नहीं जानते ही इसके लगाने से क्या होगा.... और क्या नहीं होगा। ऐसे लोगों का तो ऊपर वाला ही रखवाला है।
Aamir, who rushed to Leh at the first available opportunity, visited the school which had incurred heavy infrastructure damage due to the cloudburst on the intervening night of August 5 and 6, and some other villages as far as 70 kms from the Leh town. Around 200 persons perished in the flash floods that followed the cloudburst.
अमिर खान, लेह में स्कूल के बच्चों के साथ जहां रैंचों बने
आजादी पर कलंक : खाप परंपरा
स्मृति जोशी
इज्जत के नाम पर हत्या?
आजादी। एक शब्द जो हमें अहसास दिलाता है हम पर किसी और का नहीं बल्कि हम पर हमारा ही शासन है। लेकिन क्या सचमुच??? क्या सच में आजादी की लंबी डगर से चलकर हम उस अवस्था तक आ गए हैं जहाँ वास्तव में प्रगतिशील कहला सकें? बात 1947 से पूर्व की नहीं, बात 1947 के बाद के धीरे-धीरे बदलते भारत की भी नहीं है। बात है सन 2010 की। इसी बरस की। इसी बरस, जबकि साइना नेहवाल, तेजस्विनी जैसी देश की प्रखर बेटियों ने विश्व स्तर पर चमकीली सफलताएँ दर्ज की थी।
इसी बरस जबकि लोकसभा की स्पीकर महिला है, देश की राष्ट्रपति महिला है, सत्ता पक्ष की कमान संभालने वाली महिला है, विपक्षी दल की प्रमुख महिला है और तो और महिला मुख्यमंत्री भी बड़े प्रदेशों की बागडोर थामे हुए है। इसी बरस देश के कुछ हिस्सों में इज्जत, प्रतिष्ठा, सम्मान, रूतबा, संस्कार और परंपरा के नाम पर घर की ही बेटियों को कत्ल कर दिया गया।
मौत के घाट उतार दिया गया उस 'आज की नारी' को जिसका महज इतना ही अपराध था कि उसने अपनी पसंद का जीवनसाथी चुना। उसने प्यार करने से पहले सात गौत्र की जानकारी हासिल नहीं की जिनके अनुसार एक ही कुल-गौत्र में जन्म लेने के कारण उसका प्रेमी उसका प्रेमी नहीं बल्कि (परंपरानुसार) वह उसका भाई है। है ना सिर को लज्जा से जमीन में गाड़ देने वाली बात? मगर कहाँ दिखाई दी इतनी लज्जा?
हल्ला मचा, चैनलों पर बहस चली, नेताओं के शर्मनाक बयान आए, सब कुछ हुआ पर समाज का खौलता हुआ वह गुस्सा नहीं आया जिससे एक लावा बह निकलता। बह निकलता एक ऐसा आक्रोश, जिसके आगोश में समाज के सारे बुद्धिजीवी, पैनी पैठ के चिंतक और प्रखर नारियाँ आ पाती। इस विभत्सता को, इस हीन हरकत को मात्र एक क्षेत्र विशेष की समस्या निरूपित कर दिया गया।
क्या है खाप पंचायत :-
खाप एक ऐसी पंचायत का नाम है जो एक ही गोत्र में होने वाले विवाद का निपटारा करती हैं। राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उप्र में इस तरह की खाप अस्तित्व में हैं। खाप यानी किसी भी जाति के अलग-अलग गोत्र की अलग-अलग पंचायतें। खाप पंचायतों का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। इस समय देश भर में लगभग 465 खापें हैं। जिनमें हरियाणा में लगभग 68- 69 खाप और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में करीब 30-32 खाप अपने पुराने रूप में संचालित हैं।
सबसे पहले महाराजा हर्षवर्धन के काल (सन् 643) में खाप का वर्णन मिलता है। इसके अलावा जानकारी मिलती है कि 1528 में मुगल बादशाह बाबर ने सर्वखाप पंचायत के अस्तित्व को मान देते हुए सोरम गाँव के चौधरी को सम्मान स्वरूप एक रुपया और 125 रुपए पगड़ी के लिए दिया था।
विभिन्न मतानुसार 1199 में पहली सर्वखाप पंचायत टीकरी मेरठ में हुई थी। 1248 में दूसरी खाप पंचायत नसीरूद्दीन शाह के विरूद्ध की गई थी। 1255 में भोकरहेडी में, 1266 में सोरम में, 1297 में शिकारपुर में, 1490 में बडौत में और इसके बाद 1517 में बावली में सबसे बड़ी पंचायत हुई। आरंभ में सर्वखाप पंचायतों का आयोजन विदेशी आक्रमण से निपटने के लिए होता रहा। जब भी आक्रमण हुए सर्वखाप ने उनके विरुद्ध राजा-रजवाड़ों की मदद की।
स्वतंत्रता के पश्चात सर्वखाप पंचायतों का स्वरूप बदला और एक सर्वजातीय सर्वखाप पंचायत 8 मार्च 1950 को सोरम में आयोजित हुई। तीन दिन तक चली इस पंचायत में पूरे देश की सर्वखाप पंचायतों के मुखियाओं ने भाग लिया। इस पंचायत के बाद दूसरी सबसे बड़ी सर्वखाप पंचायत 19 अक्टूबर 1956 को सोरम में ही आयोजित हुई थी।
शक्ति का प्रदर्शन :- खाप पंचायतें विवादों के निपटारे तो करती ही थी लेकिन इनकी अपनी एक विशिष्ट परंपरा भी होती थी। पंचायतों के मुखिया जब इनमें शामिल होते तो किसी सामान्य सम्मेलन की तरह नहीं बल्कि परंपरागत अस्त्र-शस्त्र और अखाड़ों के साथ। इन अखाड़ों में मुख्य रूप में कुरूक्षेत्र, गढ़मुक्तेश्वर, बदायु, मेरठ, मथुरा, दिल्ली, रोहतक, सिसौली, शुक्रताल आदि शामिल है। परंपरागत शस्त्रों में मुख्य रूप से कटारी, तीरकमान, ढाल, तलवार, फरसा, बरछी, बन्दूक और भाला आदि हुआ करते थे। बाजों में ढपली, ढोल, तासे, रणसिंघा, तुरही और शंख हुआ करते थे जिसमें रणसिंघा और तुरही आज भी पंचायत के समय बजाई जाती है।
पहले ऐसी नहीं थी खाप :- आरंभिक दौर में खापों ने अँग्रेज शासन के विरुद्ध बादशाहों की मदद की। बाहरी आक्रमण से पिटने में अपनी ताकत दिखाई लेकिन धीरे-धीरे यह कतिपय स्वार्थी और सामंती लोगों के हाथ में पड़ गई जिन्होंने व्यक्तिगत द्वेष के चलते फैसलों को अपने अनुसार बदलने का कुकृत्य किया। यही वजह रही कि विवादित फैसलों की लंबी श्रृंखला बढ़ती गई और खाप बद से बदनाम अधिक हो गई।
खाप के चंद शर्मनाक फैसले :-
वर्ष : 2004, स्थान : भवानीपुर गाँव मुरादाबाद उत्तरप्रदेश,
मामला: एक युवक ने दूसरी जाति की युवती से शादी की। लड़की इलाके के प्रभावशाली व्यक्ति की पुत्री थी।
फैसला: खाप पंचायत ने घृणित फैसला सुनाया कि लड़के की माँ के साथ बलात्कार किया जाए। ऐसा हुआ भी। लड़के की माँ के साथ बलात्कार हुआ और सबूत मिटाने के लिए उसे जिंदा जला दिया गया।
वर्ष : 2007,
स्थान : करौंरा गाँव, 23 वर्षीय मनोज और 19 वर्षीय बबली को पसंद से शादी करने पर मौत की सजा सुनाई गई थी और दोनों को निर्ममतापूर्वक मार डाला गया। खाप पंचायत के इस खूनी फैसले के खिलाफ अदालत का फैसला आया। यह फैसला इसलिए चर्चा का विषय बन गया कि आज तक किसी भी खाप पंचायत को किसी अदालत ने सजा नहीं सुनाई।
हरियाणा के झज्जर की खाप पंचायत ने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय की अवहेलना करते हुए एक प्रेमी जोड़े को गाँव से बाहर खदेड़ दिया।
वर्ष : 2007 में हरियाणा के रोहतक में डीजे बजाने पर पाबंदी लगा दी गई। रूहल खाप द्वार लगाई गई इस पाबंदी का कारण तेज आवाज से दुधारू पशुओं पर असर पड़ना बताया गया।
2007 में ही ददन खाप ने जींद में क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया। खाप पंचायत का तर्क था कि इससे लडके बर्बाद होते हैं, और मैच पर सट्टा लगाते हैं।
हरियाणा के सोनीपत की गोहना तहसील के नूरनखेड़ा गाँव निवासी 70 वर्षीय बलराज ने छपरा (बिहार) निवासी 14 वर्षीय आरती से विवाह कर लिया। नूरनखेड़ा गाँव की खाप पंचायत ने इस बेमेल फैसले को जायज ठहरा दिया।
लगभग दो साल पहले मुजफ्फनगर जिले के हथछोया गाँव में एक ही गोत्र में शादी करने पर युवक-युवती की हत्या कर दी गई।
लगभग पाँच वर्ष पूर्व लखावटी के पास हुई एक पंचायत में प्रेमी जोड़े को बिटौडे में जला दिया गया था। इस हत्याकांड की आवाज तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के पास तक पहुँची, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ।
खाप की माँग आज के संदर्भ में :-
आज खाप पंचायत हिन्दू मैरिज एक्ट में संशोधन की माँग कर रही है। उनके अनुसार सरकार 'एक गोत्र' में होने वाली शादियों को अवैध माना जाए क्योंकि एक गोत्र के सभी लड़के-लड़कियाँ आपस में भाई-बहन होते हैं। चाहे कितनी भी पीढ़ियाँ क्यों ना गुजर गई हो! अपनी इसी सोच के चलते उन्होंने मनोज और बबली हत्याकांड के दोषियों को बचाने के लिए हर घर से दस- दस रुपए एकत्र किए। उनके अनुसार, मनोज और बबली एक ही गोत्र के थे इसलिए उनकी हत्या करने वाले दोषी नहीं है बल्कि दोषी मनोज और बबली थे क्योंकि उन्होंने एक ही गोत्र में शादी की!
खाप के विरूद्ध आपका फैसला क्या है?
तेजी से उभरती हुई एक अत्यंत ही भयावह समस्या है खाप। लेकिन आजादी के जश्न मनाते हम स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक क्या इस गंभीरता को समझ पा रहे हैं? हम जो तालीबानी हुक्म पर आह कर उठते हैं खाप के खूनी फैसलों पर हमारी चित्कार क्यों नहीं निकलती? बिना किसी कसूर के दो प्यार करने वाले जघन्य तरीके से मार डाले जाते हैं और खाप के बेशर्म अट्टहास के बीच दब कर रह जाती है सैकड़ों सिसकियाँ, मर्मांतक कराहटें और घनघोर पीड़ाएँ।
राजनेताओं से अपेक्षाएँ क्यों करें जबकि उनका पूरा का पूरा वोट बैंक इन खाप प्रमुखों के इशारों पर समृद्ध होता है। अगर आप सचमुच प्रगतिशील देश के सभ्य नागरिक हैं तो आप कीजिए फैसला इन खापों के विरुद्ध। ऐसे तुगलकी, तालीबानी और तानाशाही फैसले, इससे पहले कि आप तक फैलकर पहुँच जाए कुरेदिए अपने मन की संवेदनात्मक परत और बताइए क्या होना चाहिए इन खापों का?
ये हुई ना मर्दों वाली बात
देश की साख पर बट्टा लगता देख केंद्र सरकार ने कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन की कमान पूरी तरह से अपने हाथों में ले ली है और ऑर्गनाइजिंग कमिटी को लगभग निष्प्रभावी कर दिया है। ऑर्गनाइजिंग कमिटी के चेयरमैन सुरेश कलमाड़ी से गेम्स के आयोजन से जुड़े सारे अधिकार छीन लिए गए हैं। कमिटी के सारे लोग अब 10 नौकरशाहों के पैनल को रिपोर्ट करेंगे। इस पैनल के सभी सदस्यों को सीधे पीएमओ ने चुना है। दरअसल, सरकार ने पिछले ही सप्ताह कलमाड़ी के पर कतरते हुए गेम्स के आयोजन की कमान कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता वाले सेक्रेटरियों के पैनल को सौंप दी थी। लेकिन गुरुवार को इस मामले में सोनिया गांधी के बयान के बाद आनन-फानन हरकत में आई सरकार ने कलमाड़ी को गेम्स ने पूरी तरह से अलग कर दिया। अब वह सिर्फ नाम के लिए ही ऑर्गनाइजिंग कमिटी के चेयरमैन होंगे। सोनिया ने गुरुवार को सभी लोगों से गेम्स को सफल बनाने में सहयोग देने की अपील करते हुए कहा था कि इसके आयोजन के बाद दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
चलो ये तो हुई मर्दों वाली बात, लेकिन जो घोटाले कलमाड़ी व उसके साथ लगे लोगों या रिश्तेदारों के मिले हैं उनकी रिपोर्ट का क्या होगा? क्या यह रिपोर्ट इधर-उधर कर दी जाएगी? या फिर सरकार अपनी इस मर्दों वाली बात को कायम रखते हुए सख्त कदम भी उठाएगी। मेरे मानना है कि सरकार को ऐसा काफी समय पहले कर देना चाहिए था ताकि गेम्स के नाम पर शायद ऐसा नहीं होता।
चलो ये तो हुई मर्दों वाली बात, लेकिन जो घोटाले कलमाड़ी व उसके साथ लगे लोगों या रिश्तेदारों के मिले हैं उनकी रिपोर्ट का क्या होगा? क्या यह रिपोर्ट इधर-उधर कर दी जाएगी? या फिर सरकार अपनी इस मर्दों वाली बात को कायम रखते हुए सख्त कदम भी उठाएगी। मेरे मानना है कि सरकार को ऐसा काफी समय पहले कर देना चाहिए था ताकि गेम्स के नाम पर शायद ऐसा नहीं होता।
Wednesday, August 18, 2010
क्या होगा कोम्ॅनवेल्थ गेम्स का
राष्ट्रमंडल खेलों का क्या होगा? इसके बारे में कभी कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि एक ओर सरकार इसके सफल होने का दावा कर रही है तो वहीं दूसरी ओर इसके शुरू होने से पहले की असंतोषजन समाचार भी प्राप्त हो रहे हैं। आए दिन राष्ट्रमंडल खेलों के बारे में एक नई बात सुनने को मिलती है। राष्ट्रमंडल खेलों के बारे में कुछ चकित कर देने वाली जानकारी राजस्थान पत्रिका से प्राप्त हुई। कॉमनवेल्थ गेम्स में हुई वित्तीय गडड़बडियों के चलते यह घोटालों का महाखेल बन गया है। सीवीसी की रिपोर्ट में गेम्स के लिए तैयार 16 प्रोजेक्ट््स में गड़बड़ी की रिपोर्ट का खुलासा होते ही धीरे धीरे गेम्स की तैयारियों के नाम पर हो रही लूट सामने आने लगी। रिपोर्ट से हुआ घोटालों और घपलों के खुलासे का सिलसिला बहुत लंबा है। रिपोर्ट के बाद आयोजन समिति से जुड़े तीन सदस्यों की बलि आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को बचाने के लिए हो चुकी है और टेनिस संघ के कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना को इस्तीफा देना पड़ा है। हालांकि कलमाड़ी अभी भी अपनी खाल बचाए हुए हैं । सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग कलमाड़ी से किनारा किए जाने का पक्षधर है। ऎसे में कलमाड़ी पर भी तलवार लटकती दिख रही है।
अपने लोगों को दिए ठेके
गेम्स की तैयारियों में गड़बड़झाले का सबसे पहले खुलासा सीवीसी की रिपोर्ट में हुआ। सीवीसी की रिपोर्ट में कहा गया कि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए तैयार किए जा रहे प्रोजेक्ट्स की बोली में मनमानी वाला रवैया अपनाया गया। बोली में सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए उनको ठेके दिए गए। प्रोजेक्ट्स में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद तो कॉमनवेल्थ गेम्स में घपलों की खबरों की झड़ी लग गई। गेम्स की तैयारियों के लिए बड़े पैाने पर लूट की खबरें आने लगी। यह लूट हर तरीके से हो रही है। ज्यादातर लूट कमीशनखोरी के तौर पर हो रही है।
कीमत से ज्यादा किराया
मीडिया रिपोर्टो के मुताबिक आयोजन समिति में सबसे ज्यादा घपला किराए पर ली जाने वाली चीजों के नाम पर हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक गेम्स की आयोजन समिति ने जिन मेडिकल उपकरणों को खरीदा उनमें बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। समिति ने जिन छतरियों, मेज, पानी के जग, एयरकंडीशन, कुर्सियों को किराए पर लिया उनकी कीमत किराए से आठ से दस गुना कम है। सूत्रों के मुताबिक गेम्स के उद्घाटन व समापन समारोह में इस्तेमाल होने वाले कार्यक्रम में इस्तेमाल होने वाले गुब्बार पर करीब 48 करोड़ रूपए में खर्च किए जा रहे हैं।
बेनामी कंपनी को दिए पैसे, ई-मेल से छेड़छाड़
समिति ने टेंडर की प्रक्रिया को पूरा किए बिना ही लंदन की एक बेनामी कंपनी को 4.50 लाख पाउंड की रकम सौंप दी और इसके लिए कोई दस्तावेजी रिकॉर्ड भी नहीं रखा। समिति की ओर से कहा गया कि लंदन स्थित उच्चायोग की सिफारिश पर कंपनी को पैसा ट्रांसफर किया गया था। हालांकि उच्चायोग ने समिति के इन आरोपों को खारिज कर दिया। बाद में इस मामले में समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने अपने पक्ष में एक ई-मेल सार्वजनिक किया। हालांकि इस मामले में कलमाड़ी की ही फजीहत हुई। विदेश मंत्रालय ने अपनी जांच में पाया कि कलमाड़ी ने जिस ई-मेल को पेश किया है उसके साथ छेड़छाड़ की गई है।
4 लाख की ट्रेडमिल का किराया 10 लाख
आयोजन समिति ने जिस ट्रेड मिल को करीब 10 लाख रूपए में किराए पर लिया उसकी कीमत दिल्ली के स्थानीय बाजार में सिर्फ 4 लाख रूपए है। मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि किसी को फायदा पहुंचाने के लिए ऎसा किया गया है। हालांकि बाद में आयोजन समिति ने ट्रेडमिल को किराए पर लिए जाने के प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया। समिति ने ट्रेडमिल को बाजार से खरीदने का फैसला किया गया था।
बेटे को दिलाया ठेका
हालिया खबर के मुताबिक कॉमनवेल्थ खेलों के लिए टेनिस टर्फ के निर्माण का ठेका आयोजन समिति के कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना के बेटे को दे दिया गया। आर के खन्ना टेनिस स्टेडियम में 14 सिंथेटिक टर्फ तैयार करने का टेंडर अनिल खन्ना के बेटे आदित्य की कंपनी रिबाउंड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया था। लेकिन कंपनी ने गुणवत्ता की परवाह किए बगैर आनन फानन में ही निमार्ण कार्य पूरा करवा दिया। आदित्य ऑस्ट्रेलियन फर्म रिबाउंड ऎस की भारतीय शाखा रिबाउंड फर्म इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ हैं।
लॉन टर्फ खरीदने में भी घपला
टेनिस टर्फ के निर्माण में आए घोटाले के बाद कॉमनवेल्थ के लिए लॉन बॉल टर्फ खरीदे जाने में भी गड़बडियां सामने आई हैं। बताया जा रहा है कि लॉन बॉल टर्फ के लिए तय कीमत से पांच गुना अधिक कीमत चुकाई गई है। सूत्रों के अनुसार एक लॉन बॉल टर्फ के लिए निर्माण कंपनी को करीब 1.35 करोड़ रूपए चुकाए गए जबकि यह मात्र 27 लाख रूपए में तैयार हो सकता था। सूत्रों के अनुसार 3-14 अक्टूबर तक होने वाले खेलों के लिए आठ टर्फ खरीदी गई हैं। दिल्ली की कंपनी एरोस टर्फ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को टर्फ खरीदे जाने के लिए पांच गुना ज्यादा का भुगतान किया गया है। सूत्रों के मुताबिक नेशनल गेम्स के दौरान एक टर्फ के निर्माण में लगभग 18.37 लाख रूपए का खर्च आया था जबकि कॉमनवेल्थ के लिए यह अचानक बढ़कर 1.35 करोड़ रूपए तक पहुंच गया। झारखंड में होने वाले राष्ट्रीय खेलों के लिए ऑस्ट्रेलियाई ग्रीनगॉज सरफेस लिमिटेड ने वर्ष 2005 में 18,37,500 रूपए में टर्फ का निर्माण किया था। ग्रीनगॉज वही कंपनी है जिसे आईओए ने मंजूरी दी थी।
अपने लोगों को दिए ठेके
गेम्स की तैयारियों में गड़बड़झाले का सबसे पहले खुलासा सीवीसी की रिपोर्ट में हुआ। सीवीसी की रिपोर्ट में कहा गया कि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए तैयार किए जा रहे प्रोजेक्ट्स की बोली में मनमानी वाला रवैया अपनाया गया। बोली में सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए उनको ठेके दिए गए। प्रोजेक्ट्स में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद तो कॉमनवेल्थ गेम्स में घपलों की खबरों की झड़ी लग गई। गेम्स की तैयारियों के लिए बड़े पैाने पर लूट की खबरें आने लगी। यह लूट हर तरीके से हो रही है। ज्यादातर लूट कमीशनखोरी के तौर पर हो रही है।
कीमत से ज्यादा किराया
मीडिया रिपोर्टो के मुताबिक आयोजन समिति में सबसे ज्यादा घपला किराए पर ली जाने वाली चीजों के नाम पर हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक गेम्स की आयोजन समिति ने जिन मेडिकल उपकरणों को खरीदा उनमें बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। समिति ने जिन छतरियों, मेज, पानी के जग, एयरकंडीशन, कुर्सियों को किराए पर लिया उनकी कीमत किराए से आठ से दस गुना कम है। सूत्रों के मुताबिक गेम्स के उद्घाटन व समापन समारोह में इस्तेमाल होने वाले कार्यक्रम में इस्तेमाल होने वाले गुब्बार पर करीब 48 करोड़ रूपए में खर्च किए जा रहे हैं।
बेनामी कंपनी को दिए पैसे, ई-मेल से छेड़छाड़
समिति ने टेंडर की प्रक्रिया को पूरा किए बिना ही लंदन की एक बेनामी कंपनी को 4.50 लाख पाउंड की रकम सौंप दी और इसके लिए कोई दस्तावेजी रिकॉर्ड भी नहीं रखा। समिति की ओर से कहा गया कि लंदन स्थित उच्चायोग की सिफारिश पर कंपनी को पैसा ट्रांसफर किया गया था। हालांकि उच्चायोग ने समिति के इन आरोपों को खारिज कर दिया। बाद में इस मामले में समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने अपने पक्ष में एक ई-मेल सार्वजनिक किया। हालांकि इस मामले में कलमाड़ी की ही फजीहत हुई। विदेश मंत्रालय ने अपनी जांच में पाया कि कलमाड़ी ने जिस ई-मेल को पेश किया है उसके साथ छेड़छाड़ की गई है।
4 लाख की ट्रेडमिल का किराया 10 लाख
आयोजन समिति ने जिस ट्रेड मिल को करीब 10 लाख रूपए में किराए पर लिया उसकी कीमत दिल्ली के स्थानीय बाजार में सिर्फ 4 लाख रूपए है। मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि किसी को फायदा पहुंचाने के लिए ऎसा किया गया है। हालांकि बाद में आयोजन समिति ने ट्रेडमिल को किराए पर लिए जाने के प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया। समिति ने ट्रेडमिल को बाजार से खरीदने का फैसला किया गया था।
बेटे को दिलाया ठेका
हालिया खबर के मुताबिक कॉमनवेल्थ खेलों के लिए टेनिस टर्फ के निर्माण का ठेका आयोजन समिति के कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना के बेटे को दे दिया गया। आर के खन्ना टेनिस स्टेडियम में 14 सिंथेटिक टर्फ तैयार करने का टेंडर अनिल खन्ना के बेटे आदित्य की कंपनी रिबाउंड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया था। लेकिन कंपनी ने गुणवत्ता की परवाह किए बगैर आनन फानन में ही निमार्ण कार्य पूरा करवा दिया। आदित्य ऑस्ट्रेलियन फर्म रिबाउंड ऎस की भारतीय शाखा रिबाउंड फर्म इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ हैं।
लॉन टर्फ खरीदने में भी घपला
टेनिस टर्फ के निर्माण में आए घोटाले के बाद कॉमनवेल्थ के लिए लॉन बॉल टर्फ खरीदे जाने में भी गड़बडियां सामने आई हैं। बताया जा रहा है कि लॉन बॉल टर्फ के लिए तय कीमत से पांच गुना अधिक कीमत चुकाई गई है। सूत्रों के अनुसार एक लॉन बॉल टर्फ के लिए निर्माण कंपनी को करीब 1.35 करोड़ रूपए चुकाए गए जबकि यह मात्र 27 लाख रूपए में तैयार हो सकता था। सूत्रों के अनुसार 3-14 अक्टूबर तक होने वाले खेलों के लिए आठ टर्फ खरीदी गई हैं। दिल्ली की कंपनी एरोस टर्फ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को टर्फ खरीदे जाने के लिए पांच गुना ज्यादा का भुगतान किया गया है। सूत्रों के मुताबिक नेशनल गेम्स के दौरान एक टर्फ के निर्माण में लगभग 18.37 लाख रूपए का खर्च आया था जबकि कॉमनवेल्थ के लिए यह अचानक बढ़कर 1.35 करोड़ रूपए तक पहुंच गया। झारखंड में होने वाले राष्ट्रीय खेलों के लिए ऑस्ट्रेलियाई ग्रीनगॉज सरफेस लिमिटेड ने वर्ष 2005 में 18,37,500 रूपए में टर्फ का निर्माण किया था। ग्रीनगॉज वही कंपनी है जिसे आईओए ने मंजूरी दी थी।
रणदीव की 'नो बॉल' क्रिकेट पर कलंक
धाकड़ बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग को दाम्बुला में श्रीलंकाई गेंदबाज सूरज रणदीव ने खेल भावनाओं के परे जाकर शतक पूरा नहीं करने दिया। आम दर्शक से लेकर क्रिकेट के पूर्व खिलाड़ियों ने रणदीव की इस हरकत को बचकाना और अपरिपक्व कहा है और किसी भी क्रिकेट प्रेमी को उनकी यह हरकत माफी के काबिल नहीं लगती।
टेलीविजन रिप्ले से यह साफ हो गया कि रणदीव ने जानबूझकर नो बॉल फेंकी थी, जिससे कि सहवाग अपना शतक पूरा न कर पाएँ। सहवाग जैसे खिलाड़ी के लिए शतक कोई मायने नहीं रखता, लेकिन इस पूरे प्रकरण में रणदीव की 'बेइमानी' खुलकर सामने आ गई।
अब तक क्रिकेट इतिहास में कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जिनसे क्रिकेट कलंकित हुआ है, लेकिन रणदीव ने जानबूझकर यह 'हरकत' की, जिसे माफ नहीं किया जा सकता। श्रीलंका के इस युवा गेंदबाज ने जानबूझकर 'नो बॉल' फेंकते हुए इतना भी नहीं सोचा कि वे नेट्स पर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मैच में गेंदबाजी कर रहे हैं।
रणदीव ने दाम्बुला वनडे में क्रिकेट को कलंकित किया और 30 साल पहले हुई एक घटना याद दिला दी, जिसने खेल भावना को तहस-नहस कर दिया था।
1 फरवरी 1981 को मेलबोर्न क्रिकेट ग्राउंड में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच वनडे मैच में ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ग्रेग चैपल ने अपने भाई ट्रेवर चैपल से मैच की आखिरी गेंद अंडरआर्म डालने को कहा। यह पल क्रिकेट इतिहास में सबसे शर्मनाक पलों में से एक है।
मैच की आखिरी गेंद पर न्यूजीलैंड को छह रनों की जरूरत थी और स्ट्राइक पर ब्रायन मैकेंजी थे, लेकिन चैपल ने अंडरआर्म गेंद डालकर खेल भावना को तहस-नहस कर दिया।
इसके बाद ही अंडरआर्म गेंद को क्रिकेट में अमान्य घोषित किया गया। चैपल ने खेल के सारे नैतिक मूल्यों को ताक में रखकर अपने गेंदबाज भाई को अंडरआर्म गेंद फेंकने को कहा, जिसकी क्रिकेट जगत मे बहुत आलोचना हुई।
ऐसा कई बार हुआ है जब खिलाड़ियों ने खेल भावना का परिचय देते हुए विरोधी टीमों या बल्लेबाज, गेंदबाज के रिकॉर्ड बनने में किसी तरह की बेइमानी नहीं की है। ज्यादा पुरानी बात नहीं है। हाल ही में भारत-श्रीलंका टेस्ट सिरीज के पहले टेस्ट में जब श्रीलंका के गेंदबाज मुथैया मुरलीधरन टेस्ट क्रिकेट में 799 विकेट ले चुके थे। तब उन्हें 800 विकेट का जादुई आँकड़ा छूने के लिए केवल एक विकेट की जरूरत थी। भारतीय बल्लेबाज चाहते तो दूसरे छोर के गेंदबाज पर ऊल-झलूल शॉट खेलकर अपना विकेट गँवा सकते थे, लेकिन भारतीय बल्लेबाजों ने खेल भावना का परिचय दिया और मुरली को रिकॉर्ड से रोकने के लिए किसी तरह के हथकंडे नहीं अपनाए। इसके अलावा भी ऐसी कई मिसालें हैं जब विरोधी टीम ने किसी खिलाड़ी का रिकॉर्ड बनने से रोकने के लिए खेल भावना का उलंघन नहीं किया।
रणदीव अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में नए हैं, इसलिए हो सकता कि उन्होंने नो बॉल फेंककर वह करने की कोशिश की हो जो अब तक नहीं हुआ, लेकिन ऐसा करके वे क्रिकेट जगत की नजरों में गिर गए। उन्होंने न केवल खुद की छवि खराब की बल्कि श्रीलंकाई क्रिकेटरों का भी सिर झुकाया है।
टेलीविजन रिप्ले से यह साफ हो गया कि रणदीव ने जानबूझकर नो बॉल फेंकी थी, जिससे कि सहवाग अपना शतक पूरा न कर पाएँ। सहवाग जैसे खिलाड़ी के लिए शतक कोई मायने नहीं रखता, लेकिन इस पूरे प्रकरण में रणदीव की 'बेइमानी' खुलकर सामने आ गई।
अब तक क्रिकेट इतिहास में कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जिनसे क्रिकेट कलंकित हुआ है, लेकिन रणदीव ने जानबूझकर यह 'हरकत' की, जिसे माफ नहीं किया जा सकता। श्रीलंका के इस युवा गेंदबाज ने जानबूझकर 'नो बॉल' फेंकते हुए इतना भी नहीं सोचा कि वे नेट्स पर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मैच में गेंदबाजी कर रहे हैं।
रणदीव ने दाम्बुला वनडे में क्रिकेट को कलंकित किया और 30 साल पहले हुई एक घटना याद दिला दी, जिसने खेल भावना को तहस-नहस कर दिया था।
1 फरवरी 1981 को मेलबोर्न क्रिकेट ग्राउंड में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच वनडे मैच में ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ग्रेग चैपल ने अपने भाई ट्रेवर चैपल से मैच की आखिरी गेंद अंडरआर्म डालने को कहा। यह पल क्रिकेट इतिहास में सबसे शर्मनाक पलों में से एक है।
मैच की आखिरी गेंद पर न्यूजीलैंड को छह रनों की जरूरत थी और स्ट्राइक पर ब्रायन मैकेंजी थे, लेकिन चैपल ने अंडरआर्म गेंद डालकर खेल भावना को तहस-नहस कर दिया।
इसके बाद ही अंडरआर्म गेंद को क्रिकेट में अमान्य घोषित किया गया। चैपल ने खेल के सारे नैतिक मूल्यों को ताक में रखकर अपने गेंदबाज भाई को अंडरआर्म गेंद फेंकने को कहा, जिसकी क्रिकेट जगत मे बहुत आलोचना हुई।
ऐसा कई बार हुआ है जब खिलाड़ियों ने खेल भावना का परिचय देते हुए विरोधी टीमों या बल्लेबाज, गेंदबाज के रिकॉर्ड बनने में किसी तरह की बेइमानी नहीं की है। ज्यादा पुरानी बात नहीं है। हाल ही में भारत-श्रीलंका टेस्ट सिरीज के पहले टेस्ट में जब श्रीलंका के गेंदबाज मुथैया मुरलीधरन टेस्ट क्रिकेट में 799 विकेट ले चुके थे। तब उन्हें 800 विकेट का जादुई आँकड़ा छूने के लिए केवल एक विकेट की जरूरत थी। भारतीय बल्लेबाज चाहते तो दूसरे छोर के गेंदबाज पर ऊल-झलूल शॉट खेलकर अपना विकेट गँवा सकते थे, लेकिन भारतीय बल्लेबाजों ने खेल भावना का परिचय दिया और मुरली को रिकॉर्ड से रोकने के लिए किसी तरह के हथकंडे नहीं अपनाए। इसके अलावा भी ऐसी कई मिसालें हैं जब विरोधी टीम ने किसी खिलाड़ी का रिकॉर्ड बनने से रोकने के लिए खेल भावना का उलंघन नहीं किया।
रणदीव अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में नए हैं, इसलिए हो सकता कि उन्होंने नो बॉल फेंककर वह करने की कोशिश की हो जो अब तक नहीं हुआ, लेकिन ऐसा करके वे क्रिकेट जगत की नजरों में गिर गए। उन्होंने न केवल खुद की छवि खराब की बल्कि श्रीलंकाई क्रिकेटरों का भी सिर झुकाया है।
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