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Thursday, September 2, 2010

सेक्स की 'अंधी' दौड़

एक शब्द है कामांध। अर्थात काम या सेक्स में अंधा हो जाना। आधुनिकता के फेर में दुनिया कुछ ऐसी ही हो चली है। दुनिया में कामुकता का नशा बढ़ता ही जा रहा है। साथ ही असुरक्षित तथा अप्राकृतिक सेक्स की लत भी बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि एड्स जैसे गंभीर रोग के डर के बावजूद वेश्यावृति और समलैंगिकता भी बढ़ गई है।
जहाँ तक सेक्स की शिक्षा का सवाल है तो यह कौन तय करेगा की सेक्स की किस तरह की शिक्षा दी जानी चाहिए? अभी भारत में यह बहस का विषय है। भारत ही नहीं कई देशों में भी सेक्स पर बातचीत, बहस या‍ शिक्षा को वर्जित ही माना जाता रहा है।
सेक्स का बाजार : शायद यही कारण रहा है कि यह विषय अभी तक लोगों की जिज्ञासा और रुचि का विषय बना हुआ है और इसका भरपूर फायदा उठाया है बाजारवादियों ने। पहले सिर्फ किताबें और फिल्में ही होती थीं, लेकिन अब पोर्न वेबसाइटों पर सेक्सी वीडियो और फोटो की भरमार होने के ‍कारण इसके बाजार में और उछाल आ गया है। दुनिया भर में मंदी हो, लेकिन सेक्स का बाजार दिन दूना फल-फूल रहा है।
बाजारवादियों के लिए सेक्स का बाजार कभी मंदा नहीं रहा है। बाजार में सस्ते सेक्स साहित्य के साथ ही कुछ जानकारीपरक और उपयोगी साहित्य भी उपलब्ध है। लेकिन बाजार में उपलब्ध इस सेक्स साहित्य की शिक्षा के दुष्परिणाम रहे हैं या नहीं, इसको भी अभी उजागर किया जाना बाकी है। सेक्स की किताबों के ढेर के बीच कामशास्त्र और कामसूत्र की असलियत पर सवाल उठाए जा सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद यह साहित्य दुनिया भर की भाषाओं में अपने आसनों के बल पर धूम मचा रहा है। दुनियाभर में सेक्स इंडस्ट्रीज का फैलाव होता जा रहा है। इस धंधे में अब हर कोई तामझाम से उतरकर कार्य करने लगा है।
नीम-हकीम खतरे जान : जब दिमाग विकृत हो जाता है बाजार के उस गंदे साहित्य को पढ़ने से जिसे पश्चिमी तर्ज के चलते बेचा जाता है, तब रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंडों पर 'मर्दाना कमजोरी' के विज्ञापन देखकर गरीब और निम्न आय वर्ग का व्यक्ति सहम जाता है। उसे किसी भी प्रकार का रोग नहीं है फिर भी वह अश्लील साहित्य को पढ़ने की सोच से उपजे वहम के कारण डर जाता है। झोला छाप नीम-हकीमों के आलावा ऐसे भी डॉक्टर हैं जिनके विज्ञापनों के चलते ये लोग उनके पास जाकर अपना वहम दूर करते हैं।
बस और रेलवे स्टेशन : देश भर के बस स्टेंड और रेलवे स्टेशनों पर आपको सहज ही नजर आ आएगी गुमटीनुमा या फर्निस्ड दुकानें, जिनके सामने खड़े रहकर यदि आप दुकान का अवलोकन करेंगे तो सबसे पहले नजर आएगी वे किताबें और सीडी जिसमें से अर्धनग्न युवा लड़कियों के मसल्सभरे गदराएँ बदन के धमाकेदार फोटो आपको निहार रहे होंगे और जिन्हें देखकर आम शहरी युवाओं की इच्‍छाएँ मचल सकती है। यहाँ अच्‍छे साहित्य को ढूँढने के लिए उक्त दुकानों पर मशक्कत करना पड़ती है।
पब्लिसिटी : शहर में लगे बड़ी कंपनियों के ज्यादातर होर्डिंग सुंदर सूरतों से सजे हैं जहाँ अर्धनग्न लड़कियाँ आपके ध्यान को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है। फिर चाहे वह कंडोम का विज्ञापन हो, किसी सिम कार्ड पर नई स्कीम लांच हु्ई हो या मर्दाना कमजोरी को भुनाने का विज्ञापन। कहीं ना कहीं आपको ऐसे दृश्य या अखबारों में तेल के विज्ञापन देखने को मिल ही जाएँगे, जिसे आप चोरी-छिपे देखना पसंद करेंगे।
फिल्में और टीवी चैनल : कोई सा भी चैनल घुमाओ आपको ऐसे विज्ञापनों से सामना करना पड़ेगा, जो आपको बगलें झाँकनें पर मजबूर कर देंगे। चड्डी, बनियान या ब्रॉ की छोड़ो- सोचिए पहले चॉकलेट सिर्फ बच्चों के लिए होती थी, लेकिन अब तो दो प्यार करने वालों के लिए भी होती है। चॉकलेट का सेक्स से क्या नाता है?
बात ब्लू फिल्म की होती है तो उसका दर्शक वर्ग भारत के हर शहर, गाँव व कस्बों के गलीकूचों से निकलकर आता है और तमाम गंदगी थूकने के साथ सीट के नीचे की फोम उखाड़कर चला जाता है, लेकिन हॉलीवुड की फिल्म हो या बॉलीवुड की हर फिल्म में अब बहुत कुछ ब्लू होने लगा है। किसिंग सीन तो अब आम हो चला है, इससे आगे भी बहुत कुछ होता है। चाहे वह अवतार फिल्म हो या बॉलीवुड की कोई एक्शन फिल्म। सामान्य फिल्में भी अब सामान्य नहीं रहीं। यू सर्टिफिकेट की फिल्मों में गालियों पर अब सेंसर की कैची नहीं चलती।
जिन्होंने स्वाभिमान जैसे धारावाहिक देखा हैं वे जानते हैं कि भारत ऐसा नहीं था, लेकिन घर-घर की कहानी और वर्तमान दौर के तमाम रियलिटी शो तथा सीरियलों ने सारी हदें पार कर भारतीय समाज के कल्चर को बदलने में अहम भूमिका निभाई है।
सेक्स टॉयस : दुनिया भर में सेक्स टॉयस के बढ़ते प्रचलन से भारत भी अछूता नहीं रहा है। ले‍किन सर्वे कहता है कि सेक्स खिलौनों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीन ने दूसरे देशों को पछाड़ दिया है।
सेक्स स्कैंडल : हाल ही में बेंगलुरु में स्वामी नित्यानंद का तमिल ऐक्ट्रेस के साथ नित्य आनंद की चर्चा टीवी चैनलों पर गरम रही है। दिल्ली में इच्छाधारी भीमानंद बाबा के सेक्स रैकेट का मामला भी चल ही रहा है। कथित बाबाओं के सेक्स स्कैंडल आए दिन उजागर होते रहते हैं। दूसरी ओर विश्वभर में कैथोलिक चर्च के पादरियों द्वारा यौन शोषण के कई मामले सामने आते रहे हैं।
राजनयिकों का महिलाओं से मधुर संबंध कोई नई बात नहीं है। मोनिका लेविंस्की और बिल क्लिंटन के संबंधों की चर्चा को सभी जानते हैं। इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी का टीवी अदाकारा से संबंध होना विवाद का कारण बना था। हाल ही में अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर पर फिर से दो महिलाओं से यौन दुराचरण के आरोप लगे हैं। ब्रिटेन में 80 के दसक में मिस इंडिया पामेला बोर्डेस से जुड़े सेक्स स्कैंडल ने ब्रिटिश सरकार को हिला दिया था।
दूसरी ओर भारत में गत वर्ष ताजातरीन मामलों में कांग्रेस के वयोवृद्ध (85 वर्षीय) नेता एवं आंध्रप्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी को कथित रूप से तीन युवतियों के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखे जाने के बाद अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था।
भारत में हॉकी, वेटलिफ्टिंग और भारोत्तोलन में सेक्स स्कैंडल का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है। दुनिया के नंबर वन गोल्फ खिलाड़ी टाइगर वुड्स भी अपने सेक्स स्कैंडल से खासे चर्चित रहे हैं। जहाँ भी खेलों का कुंभ आयोजित होता रहा है वहाँ पर सेक्स रैकेट की सक्रियता को सभी जानते हैं।
छेड़छाड़ और रेपकांड : आए दिन अखबारों में मेट्रो सिटी में बढ़ते बलात्कार और छेड़छाड़ की घटना छपती रहती है। इसी बीच पढ़ने को मिला की दिल्ली में अब महिलाएँ नहीं रही सुरक्षित। शराब और कबाक की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते लगभग प्रत्येक शहरों में माहौल अब महिलाओं के पक्ष में नहीं रहा। रोज ही लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और रैप के केस दर्ज होते रहते हैं।
बहरहाल सेक्स के बढ़ते बाजार और लोगों के दिमाग में घुसते सेक्स के चलते सामाजिक मान्यताओं और संस्कृति का राग अलापने वाले भले ही रुष्ट हों, लेकिन इसका फैलाव अभी और होना बाकी है। सवाल उठता है कि आखिर कब रुकेगी सेक्स की यह अंधी दौड़? क्या सरकार इसके प्रचार-प्रसार के मापदंड को तय करने के लिए गंभीर होगी या नैतिकता को ताक में रखकर इसी तरह ही पूरा समाज कामांध होता चला जाएगा?

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