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Monday, November 1, 2010

60 साल बाद आई है दो अमावस्या वाली दिवाली


इस बार की दीपावली बेहद खास है। 5 नवंबर को 60 साल बाद दो अमावस्याओं वाला योग बन रहा है। ज्योतिष के जानकारों का कहना है कि यह निवेशकों के लिए शुभकारी होगा, वहीं देश में इसके कारण राजनीतिक अस्थिरता और महंगाई बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। लक्ष्मी प्राप्ति के लिए धन कुबेर और लक्ष्मी का पूजन पूर्ण रूप से फल देने वाला साबित होगा।
दीपावली पर अमावस्या दोपहर बाद 1:02 बजे शुरू होगी और गोवर्धन पूजन के दिन शनिवार को 10:22 मिनट तक रहेगी। पर्व स्वाति नक्षत्र शुक्रवार के दिन शुक्र की राशी में आ रहा है। इस दिन सूर्य भी शुक्र की राशी में होगा। इसके कारण मुद्रास्फीति की दर में परिर्वतन के आसार हैं। हालांकि वर्षों बाद पुण्य नक्षत्र का महा मुहूर्त दिनभर रहेगा। इस दिन प्रॉपर्टी, सोना-चांदी, बर्तन, कपड़ा, वीइकल, इलेक्ट्रॉनिक आइटमों की खरीद करने वाले फायदे में रहेंगे।
अग्रवाल कॉलेज बल्लभगढ़ के लेक्चरर और ज्योतिषाचार्य डॉ. बांके बिहारी के अनुसार दीपावली पर दो अमावस्या का योग 60 वर्ष बाद बन रहा है। दीपावली और गौवर्धन पर अमावस्या काल में पूजन लाभकारी होता है। इस योग में की जाने वाली पूजा शनि की पीड़ा से छुटकारा दिलाएगी। शनिवार सुबह 10:22 मिनट तक अमावस्या रहने तक दिवाली का त्यौहार रहेगा।
शनिवार की अमावस्या में दीपावली पर शनि सिद्धि भी संभव है। दीपावली के दिन व्यापारी कुंभ लग्न में दोपहर बाद 1:42 से 3:07 बजे तक पूजन कर सकेंगे। गृहस्थ लोगों के लिए वृष लग्न में शाम 6:02 बजे से 7:56 बजे तक पूजन का समय रहेगा। साधना के लिए सिंह लग्न में रात को 12:33 से 2:53 बजे तक समय निर्धारित है। शनिवार सुबह 10:22 बजे तक पितरों के स्थान की पूजा की जा सकेगी।
डॉ. बांके बिहारी ने बताया कि इस योग के कारण राजनीतिक संकट पैदा हो सकता है। दूसरी ओर यह योग सोना, चांदी व अन्य धातुओं को महंगा करेगा वहीं खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयोग होने वाले गुड, शक्कर जैसी कई जरूरी चीजों को भी महंगा कर सकता है। इस योग के कारण उत्तर भारत में भयंकर सर्दी का प्रकोप आ सकता है। लक्ष्मी जी की पूजा, हिंदुओं के व्रत और त्योहार सूर्य एवं चंद्रमा की स्थितियों को ध्यान में रख कर मनाए जाते हैं। सूर्य आत्मा का प्रतीक है, उसी प्रकार चंद्रमा मन का। दीपावली पर सूर्य एवं चंद्रमा दोनों एक ही राशि में होते हैं, जिससे अमावस्या का योग बन जाता है। अमावस्या पर चंद्रमा के सूर्य में अस्त हो जाने से चंद्रमा शून्य अंश का हो जाता है। इसके प्रभाव से मन शांत एवं स्थिर होता है, तभी महालक्ष्मी का पूजन सफल होता है।

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