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Friday, October 22, 2010

शरद पूर्णिमा : चाँदनी रोशनी में खीर बनेगी अमृत


शरद ऋतु, पूर्णाकार चंद्रमा, संसार में उत्सव का माहौल और पौराणिक मान्यताएँ। इन सबके संयुक्त रूप का यदि कोई नाम या पर्व है तो वह है 'शरद पूनम'। वह दिन जब इंतजार होता है रात्रि के उस पहर का जिसमें 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा अमृत की वर्षा धरती पर करता है। वर्षा ऋतु की जरावस्था और शरद ऋतु के बालरूप का यह सुंदर संजोग हर किसी का मन मोह लेता है। आज भी इस खास रात का जश्न अधिकांश परिवारों में मनाया जाता है।
इसके महत्व और उल्लास के तौर-तरीकों को संबंध में ज्योतिषाचार्य प्रेमनारायण शास्त्री के अनुसार शरद पूनम का महत्व शास्त्रों में भी वर्णित है। वे बताते हैं कि इस रात्रि को चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ होता है और धरती पर अमृत वर्षा करता है। रात्रि 12 बजे होने वाली इस अमृत वर्षा का लाभ मानव को मिले इसी उद्देश्य से चंद्रोदय के वक्त गगन तले खीर या दूध रखा जाता है जिसका सेवन रात्रि 12 बजे बाद किया जाता है। मान्यता तो यह भी है कि इस तरह रोगी रोगमुक्त भी होता है। इसके अलावा खीर देवताओं का प्रिय भोजन भी है।
इस संबंध में स्मिता हार्डिकर बताती हैं कि उनके परिवार में शरद पूनम के दिन एक और जहाँ चंद्रमा की पूजा कर दूध का भोग लगाते हैं वहीं अनंत चतुर्दशी के दिन स्थापित गुलाबाई का विसर्जन भी किया जाता है। इस दिन परिवार के सबसे बड़े बच्चे की आरती उतारकर उसे उपहार भी दिया जाता है। शरद पूर्णिमा पर घर में कन्याओं को आमंत्रित कर गुलाबाई के गीत गाए जाते हैं।
प्राचीन काल से शरद पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है। शरद पूर्णिमा पर चाँद अपनी पूर्ण कलाएँ लिए होता है। मान्यता है कि इस दिन केसरयुक्त दूध या खीर चाँदनी रोशनी में रखने से उसमें अमृत गिर जाता है। यह पर्व शुक्रवार को धूमधाम से मनाया जाएगा।
ज्योतिषाचार्य पं. जी.एम. हिंगे के अनुसार शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन चंद्र भगवान की तथा भगवान भोलेनाथ की पूजा सायंकाल के समय करके केसरयुक्त दूध या खीर का भोग रात को लगाते हैं। इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण कलाएँ लिए होता है।
ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा की सारी कलाएँ रात्रि के समय इस धरती पर बिखरती हैं, इसलिए रात्रि के समय दूध या खीर चंद्रमा को भोग के रूप में खिलाते हैं, जिससे चंद्रमा की अमृतमय किरणें इस खीर पर पड़ती हैं। इस खीर को पूजा-अर्चना व भजन-कीर्तन के बाद सभी लोगों में वितरण की जाती है। इस अमृतमय खीर पान से मनुष्य की उम्र बढ़ती है। इसके बाद से हेमंत ऋतु का प्रारंभ हो जाता है।
चामेलिका कुंडू बताती हैं कि शरद पूर्णिमा को कोजागौरी लोक्खी (देवी लक्ष्मी) की पूजा की जाती है। चाहे पूर्णिमा किसी भी वक्त प्रारंभ हो पर पूजा दोपहर 12 बजे बाद ही शुभ मुहूर्त में होती है। पूजा में लक्ष्मीजी की प्रतिमा के अलावा कलश, धूप, दुर्वा, कमल का पुष्प, हर्तकी, कौड़ी, आरी (छोटा सूपड़ा), धान, सिंदूर व नारियल के लड्डू प्रमुख होते हैं। जहाँ तक बात पूजन विधि की है तो इसमें रंगोली और उल्लू ध्वनि का विशेष स्थान है।
अनादिकाल से चली आ रही प्रथा का आज फिर निर्वाह किया जाएगा। स्वास्थ्य और अमृत्व की चाह में एक बार फिर खीर आदि को शरद-चंद्र की चाँदनी में रखा जाएगा और प्रसाद स्वरूप इसका सेवन किया जाएगा। शरद पूर्णिमा के अवसर पर मंदिरों में गरबा-डांडिया का आयोजन के बाद प्रसाद के रूप में खीर का वितरण होगा।

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