Sunday, October 3, 2010
खेल के दौरान वेश्यावृत्ति का खतरा
एस्कॉर्ट सेवाएँ उपलब्ध कराने वाली एक एजेंसी ने राष्ट्रमंडल खेलों के लिए पूर्वोत्तर भारत की हजारों महिलाओं को नियुक्त किया है। बड़ी संख्या में लड़कियों और महिलाओं की नियुक्ति पर 'इंपल्स' नाम के गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने संदेह जताया है।
'इंपल्स' ने आशंका जताई है कि इन महिलाओं और लड़कियों को वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया जाएगा। एनजीओ के मुताबिक इस एजेंसी ने पूर्वोत्तर के सात पहाड़ी राज्यों से करीब 40 हजार महिलाओं और युवतियों को अच्छी तनख्वाह का प्रलोभन देकर नियुक्त किया है।
अच्छी नौकरी का वादा : इस तरह की नियुक्तियों के लिए इस एस्कॉर्ट एजेंसी ने अखबार में विज्ञापन दिया था। पूर्वोत्तर भारत में महिलाओं की खरीद-फरोख्त के खिलाफ काम करने वाले 'इंपल्स' की अध्यक्ष हसीना खरबीह कहती हैं, 'राष्ट्रमंडल खेलों के लिए पूर्वोत्तर की इन महिलाओं की नियुक्ति पर बारीकी से नजर रखी जा रही है।'
वे कहती हैं, 'वास्तव में हम अपनी लड़कियों को लेकर बहुत चिंतित हैं, क्योंकि उनमें से बहुतों को एस्कॉर्ट सेवाओं के नियुक्त किया गया है। उन्हें अच्छी तनख्वाह और नौकरी दिलाने का वादा किया गया है।'
मेघालय के समाज कल्याण मंत्री जेबी लिंगदोह इस समस्या से काफी चिंतित हैं। वे कहते हैं, 'ये केवल मेघालय की लड़िकयाँ नहीं हैं बल्कि पूर्वोत्तर के सभी राज्यों से बड़ी संख्या में लड़कियों को नियुक्त किया गया है। हमारे पासे इनके आँकड़े तो नहीं है, लेकिन हमारे चिंतित होने का कारण है।'
उन्होंने बताया कि हमने लोगों से इस पर नजर रखने को कहा है। दिल्ली के एक एनजीओ 'दी नार्थ ईस्ट सपोर्ट सेंटर एंड हेल्पलाइन' का कहना है कि एस्कॉर्ट सेवाओं के लिए पूर्वोत्तर की लड़िकियों का इतने बड़े पैमाने पर चयन चिंता का विषय है।
हेल्पलाइन की मधु चंदर कहती हैं, 'खेलों के लिए पूर्वोत्तर भारत की हजारों लड़कियों को संदिग्ध प्लेसमेंट एजेंसियों ने नियुक्त किया है। इससे हम बहुत चिंतित हैं। हमें डर है कि वे गलत हाथों में जा सकती हैं।'
रविवार से शुरू हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों के टिकटों के बिक्री की रफ्तार काफी कम है। ऐसा अनुमान है कि इस दौरान हजारों पर्यटक दिल्ली आएँगे। पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में हुई पुलिस जाँच में पता चला है कि पिछले दशक में 15 हजार से अधिक युवतियाँ और महिलाएँ गायब हुई हैं।
पुलिस का कहना है कि इन युवतियों को अच्छी नौकरी का लालच दिया गया था, लेकिन वे वापस अपने घर नहीं लौटीं। इनमें से कुछ को पुलिस ने बचा लिया और 'इंपल्स' जैसे एनजीओ ने उनका पुनर्वास कराया।
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