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Monday, October 18, 2010

दुनिया की सबसे लंबी सुरंग स्विट्जरलैंड में

स्विट्जरलैंड एक छोटा-सा देश है। अपने 41 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ वह लगभग उतना ही बड़ा है, जितना भारतीय लद्दाख का आक्साई चिन इलाका, जिसे चीन ने दबा रखा है। हिमालय की ऊँची-ऊँची पर्वतमालाओं के बीच लद्दाख की ही तरह स्विट्जरलैंड भी यूरोप के सबसे ऊँचे आल्प्स पर्वतों की गोद में बसा है। उसने संसार की सबसे लंबी सुरंग बनाने का बीड़ा उठा रखा है।
लद्दाख लगभग सुनसान है, जबकि स्विट्ज़रलैंड बेहद सुंदर और गुँजान है। उसके अपनी जनसंख्या तो केवल 78 लाख (दिल्ली की आधी) ही है पर इससे कहीं ज्यादा विदेशी पर्यटक हर साल उसे आबाद करते हैं।
इसी बौने देश ने 25 साल पहले ठानी कि वह आल्प्स पर्वतों वाले गोटगार्ड दर्रे के पास 57 किलोमीटर लंबी संसार की सबसे लंबी सुरंग बनाएगा। यह इतनी बड़ी महत्वाकाँक्षी और खर्चीली परियोजना थी कि उसकी तुलना केवल स्वेज नहर और पनामा नहर के निर्माण जैसी चुनौतियों से ही की जा सकती थी। हर महत्वपूर्ण निर्णय से पहले स्विट्जरलैंड में जनमतसंग्रह द्वारा जनता की राय ली जाती है। सुरंग निर्माण से पहले भी ऐसा ही हुआ। जनता ने उस पर लगने वाली भारी लागत के बावजूद अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी।
सारे यूरोप में खुशी- 1997 में गोटहार्ड पहाड़ को तोड़ने और भारी-भरकम मशीनों से उसमें बोरिंग करने का काम शुरू हुआ। समय बचाने के लिए एक साथ पाँच अलग-अलग जगहों पर यह काम शुरू किया गया। गत 15 अक्टूबर को, भारतीय समय के अनुसार शाम पौने छह बजे, दो विपरीत दिशाओं से खुदाई कर रही मशीनों में से एक ने सुरंग के बीच के उस अंतिम डेड़ मीटर मोटे टुकड़े को भी तोड़ कर गिरा दिया, जो उसे तब तक दो भागों में बाँटे हुए था। सुरंग के आर-पार जाने का रास्ता अब साफ हो गया था।
स्विट्जरलैंड के टेलीविजन ने इस दृश्य का सीधा प्रसारण किया। केवल स्विट्जरलैंड में ही नहीं, सारे यूरोप में इस ऐतिहासिक क्षण पर खुशी मनायी गई। खुशी का एक कारण यह भी था कि यह सुरंग यूरोप के उत्तर में विश्व के एक सबसे बड़े बंदरगाह, हॉलैंड के रोटरडम को, रेलमार्ग के द्वारा दक्षिण में इटली के भूमध्यसागरीय बंदरगाह गेनुआ से जोड़ने की एक कहीं बड़ी यूरोपीय योजना का निर्णायक हिस्सा है। अब तक उस पर 18 अरब 70 करोड़ स्विस फ्रांक (लगभग 900 अरब रूपए) खर्च हो चुके हैं।
पहाड़ ने लोहे के चने चबवा दिए- रोबेर्ट मायर 11 वर्षों तक गोटहार्ड सुरंग के मुख्य निर्माण निदेशक रहे हैं। पिछले ही वर्ष सेवानिवृत्त हुए। सुरंग की डेढ़ मीटर मोटी अंतिम चट्टान टूटने के समय वे भी आमंत्रित थे। मायर बताते हैं कि पहाड़ से लड़ना कोई आसान काम नहीं है। गोटहार्ड ने हमें लोहे के चने चबवा दिए। कभी हमारे ऊपर पानी और कीचड़ उड़ेल दिया। कभी हमारी छेनियाँ उसकी दरारों में ही अटक गईं तो कभी अतिकठोर ग्रेनाइट चट्टानों से टकरा कर टूट गईं। संसार की हमारी सबसे बड़ी सुरंग कटाई मशीन भी कभी तो एक दिन में 20 मीटर तक आगे बढ़ गई, तो कभी एक मीटर भी आगे नहीं रेंग पाई।
इंजीनियरिंग का चमत्कार- "सिसी" नाम की यह मशीन भी अपने आप में एक इंजीनियरिंग-चमत्कार है। करीब 450 मीटर लंबी है। 3000 टन भारी है। बर्मे का काम करने वाले उसके मुखाग्र की 62 घूमती हुई छेनियों में से हर छेनी चट्टानों पर 25 टन का बोझ डालती हुई उन्हें छीलती, पीसती और काटती है। मुखाग्र अपने 10 मीटर व्यास और 5000 हॉर्सपावर बल के साथ जब चट्टानों से जूझता है, तब पूरा पहाड़ जैसे गुस्से से झंझनाने और थर्राने लगता है। उसने और दूसरी मशीनों ने पहाड़ को काट कर अब तक जो कंकड़-पत्थर निकाले हैं, उनका कुल वजन ढाई करोड़ टन है। यदि किसी एक ही मालगाड़ी को यह मलबा ढोना होता, तो उसकी लंबाई 6350 किलोमीटर होती। यानी, वह स्विट्ज़रलैंड में ज्यूरिच से लेकर अमेरिका में न्यू यॉर्क तक लंबी होती।
नई गोटहार्ड सुरंग का निर्माणकार्य पूरा होने में अभी सात साल और लगेंगे। अभी तो उसके भीतर रहते हुए केवल आर-पार आना-जाना ही संभव हो पाया है। अब उसकी छतों और दीवारों को लोहे की जालियों पर सीमेंट-कंक्रीट की परत चढ़ाकर पुख्ता करना होगा। बिजली के केबल और रेल पटरियाँ बिछानी होंगी। हवा के प्रवाह और तापमान नियंत्रण की प्रणालियाँ लगानी होंगी। यदि कभी आग लग गई या कोई दुर्घटना हो गई, तो उससे निपटने के लिए आवश्यक तकनीकी व्यवस्थाएँ करनी होंगी।
2017 में होगा निर्माणकार्य पूरा- यह सारे काम जब पूरे हो जाएँगे, तब आशा है कि 2017 से नई गोटहार्ड सुरंग में यात्री और माल गाड़ियों का चलना भी शुरू हो जाएगा। तब, हर दिशा के लिए एक-एक, यानी कुल दो सुरंगें होंगी। कुछ निश्चित दूरियों पर उन्हें जोड़ने वाली 176 संपर्क सुरंगें अलग से होंगी। सुरंग प्रणाली की कुल लंबाई तब 152 किलोमीटर हो जाएगी।
ट्रेनों की औसत गति 200 और अधिकतम गति 270 किलोमाटर प्रतिघंटा होगी। औसत गति इस समय की अपेक्षा 80 किलोमीटर बढ़ जाने और इटली तथा स्विट्जरलैंड के बीच की दूरी 40 किलोमीटर घट जाने से ज्यूरिच से मिलान जाने में लगने वाला समय एक घंटा कम हो जाएगा, यानी 2 घंटे 40 मिनट ही रह जाएगा। अनुमान है कि तब हर दिन 300 गाड़ियाँ गोटहार्ड सुरंग से होकर गुजरेंगी। अधिकतर लंबी-लंबी मालगाड़ियाँ होंगी, जो इस समय की अपेक्षा दुगुनी, यानी 160 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से दौडेंगी और दुगुने माल की ढुलाई करेंगी।
बाऐँ सड़क सुरंग और पुरानी रेल सुरंग, दाएँ नई सुरंग- इटली और स्विट्जरलैंड के बीच के गोटहार्ड दर्रे को पार करने के उपाय लंबे समय से खोजे जाते रहे हैं। 1830 में वहाँ पहली बार एक सड़क बनी। 1882 में पहली रेलवे सुरंग बनाई गई। इस समय ट्रेनें इसी 128 साल पुरानी सुरंग से होकर आती-जाती हैं। 1980 में सड़क परिवहन के लिए 17 किलोमीटर लंबी एक अलग सुरंग बनकर तैयार हुई। हर साल कोई 60 लाख वाहन इस सड़क-सुरंग से गुजरते हैं। उन में से 12 लाख माल ढुलाई ट्रक होते हैं।
चिंता है पर्यावरणरक्षा की- सड़क परिवहन इस बुरी तरह बढ़ जाने और साथ ही पर्यावरण चेतना के कारण उसके प्रति जनविरोध भी प्रबल हो जाने से स्विट्जरलैंड की सरकार को दो नई सुरंगों वाली एक अलग योजना का सहारा लेना पड़ा। "आल्प्स अंतरपरिवहन के नये रेलमार्ग" (Neat) नाम की इस योजना के अधीन आल्प्स पर्वतों के आर-पार हो रहे सड़क परिवहन को रेलवे लाइन पर डालने के लिए गोटहार्ड के साथ-साथ एक और रेल सुरंग बनाई गयी है। लौएचबेर्ग नाम की दूसरी सुरंग इस बीच बन चुकी है।
सोचा यह गया है कि सड़क परिवहन वाले ट्रकों को भविष्य में रेलवे की मालगाड़ियों पर लाद कर आल्प्स पर्वत पार कराये जाएँ। इससे स्विट्जरलैंड की सड़कों पर हर दिन 3600 ट्रकों का बोझ और दमघोंट धुँआ घटेगा, पर्यावरण को कुछ राहत मिलेगी।
बहुत मामूली उठान और ढलान- ताकि भारी ट्रकों से लदी लंबी मालगाड़ियों को अधिक चढ़ाई न करनी पड़े और वे अपनी तेज गति बनाए रख सकें, गोटहार्ड सुरंग को पहाड़ के नीचे इतनी गहराई पर बनाया गया है कि गाड़ियों को एक किलोमीटर दूरी के भीतर आठ मीटर से अधिक ऊँची ढलान न पार करनी पड़े। सुरंग का उत्तरी छोर समुद्रतल से 460 मीटर की ऊँचाई पर और 57 किलोमीटर बाद दक्षिणी छोर 312 मीटर की ऊँचाई पर है। दोनो के बीच का सबसे ऊँचा स्थान समुद्रतल से केवल 549 मीटर की ऊँचाई पर है। सुरंग अपने ऊपर के सबसे ऊँचे पहाड़ से 2300 मीटर की गहराई पर है।
अनोखी चुनौतियाँ- गोटहार्ड सुरंग के निर्माण के 11 वर्षों तक मुख्य निदेशक रहे रोबेर्ट मायर बताते हैं कि पहाड़ के नीचे इतनी गहराई पर सही दिशाज्ञान एक बड़ी समस्या है। सुरंग खोदने का काम समय बचाने के लिए क्योंकि एक साथ कई जगहों पर दोनो दिशाओं से आगे बढ़ते हुए किया जाता है, इसलिए यह संभावना हमेशा बनी रहती है कि आप बीच में मिलने के बदले एक-दूसरे की बगल से, या ऊपर-नीचे से, निकल जाएँगे। यह सुरंग क्योंकि पहाड़ के नीचे करीब दो किलोमीटर की गहराई पर है, इसलिए यह जानने के लिए कि हम कहाँ हैं, हम वहाँ उपग्रह आधारित GPS नेविगेशन सिस्टम के सिग्नल भी नहीं पकड़ सकते थे। कुतुबनुमा वाला चुंबकीय दिशासूचक भी वहाँ साथ नहीं देता। इसलिए हमें एक विशेष कंपास और लेजर किरणों की मदद से पता लगाना पड़ता था कि हम कहाँ हैं।
यह विधि इतनी सटीक निकली कि 15 अक्टूबर को जब डेढ़ मीटर मोटी अंतिम दीवार गिरी, तब दोनो दिशाओं से आकर मिलने वाली सुरंगों के आड़े और खड़े निर्देशांकों (कोओर्डिनेट) वाली रेखाओं के कटान-बिंदुओं के बीच केवल एक-एक सेंटीमीटर का अंतर मिला।
सुरंग में भठ्ठी जैसी गर्मी- रोबेर्ट मायर के अनुसार पहाड़ के नीचे इस गहराई पर तापमान भी किसी भठ्ठी की तरह होता है। गोटहार्ड सुरंग के भीतर पंखों और एयरकूलरों की सहायता से 28 डिग्री सेल्सीयस का तापमान बनाए रखने की कोशिश की गई, वर्ना वह 40 डिग्री से भी अधिक हो जाता। हवा में 70 प्रतिशत आर्द्रता के कारण इतने ऊँचे तापमान पर काम करने में नानी याद आ जाती। रोबेर्ट मायर का यह भी कहना है कि "गोटहार्ड हमेशा एक पहेली बना रहेगा।" यह पहाड़ बड़ा छलिया है। कब आप के साथ कौन सा नया छल कर बैठे, किस अनुमान को झुठला कर रख दे, आप नहीं जान सकते।
इसीलिए, आज भी पक्के भरोसे के साथ नहीं कहा जा सकता कि 2017 से नई गोटहार्ड सुरंग में रेल गाड़ियाँ सचमुच दौड़ने लगेंगी। भरोसे के साथ केवल इतना ही कहा जा सकता है कि 57 किलोमीटर की उसकी लंबाई ने 1988 में जापान के होक्काइदो और होन्शू द्वीपों के बीच समुद्र के नीचे बनी 53.9 किलोमीटर लंबी संसार की अब तक की सबसे लंबी सुरंग को पीछे छोड़ दिया है। फ्रांस और इंग्लैंड को जोड़ने वाली 1993 में खुली चैनल सुरंग अब तीसरे नंबर पर पहुँच गई है। स्विट्जरलैंड ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि वह छोटा जरूर है, पर बड़ों से कम नहीं है।

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