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Friday, August 27, 2010

क्या खेलों के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ अनुशासन है?

कॉमनवेल्थ गेम्स की बदौलत दिल्ली में बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रांसपोर्ट के प्रॉजेक्ट चल रहे हैं। लेकिन इसके लिए राजधानी को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। दिल्ली मेट्रो, ढेरों फ्लाईओवर और गेम्स से जुड़े दूसरी परियाजनाओं के लिए, पिछले कुछ सालों के दौरान, 40 हजार हरे-भरे पेड़ों की कुर्बानी दी गई है। हालांकि, शहर का ग्रीन कवर हर साल एक फीसदी की दर से बढ़ा रहा है, जो काटे गए पेड़ों की जगह लगाए जाने वाले पौधों की वजह से है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अकेले मेट्रो के लिए 4340 पेड़ काटे गए हैं 30 फ्लाईओवरों के लिए 8000 से ज्यादा पेड़ों की बलि दी गई। अफसरों का कहना है कि 2007-08 के बीच 18 शहरी वन बनाए गए हैं और हर काटे गए पेड़ के एवज में 10 नए पौधे लगाए गए हैं जिसकी वजह से शहर के ग्रीन कवर पर अच्छा असर पड़ा है।
लेकिन, पर्यावरणविद इस सरकारी दलील को सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि, 'एक भरे-पूरे पेड़ को काटने की क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती। दसियों पौधे एक पूरी तरह से विकसित वृक्ष की जगह नहीं ले सकते। हालांकि हम इस बात से इनकार नहीं करते कि शहर में ग्रीन कवर बढ़ा है लेकिन राजधानी तेजी से कंक्रीट जंगल में तब्दील होती जा रही है। और जो वन लगाए जा रहे हैं वे शहर की सीम पर स्थित हैं। इस बात का भी कोई ऑडिट नहीं हो रहा है कि काटे गए पेड़ों की जगह असल में कितने पौधे लगाए गए हैं। क्या सरकार स्ट्रीटस्केपिंग जैसे काम के लिए काटे गए पेड़ों की भरपाई कर सकती है?'

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