Thursday, August 19, 2010
आजादी पर कलंक : खाप परंपरा
स्मृति जोशी
इज्जत के नाम पर हत्या?
आजादी। एक शब्द जो हमें अहसास दिलाता है हम पर किसी और का नहीं बल्कि हम पर हमारा ही शासन है। लेकिन क्या सचमुच??? क्या सच में आजादी की लंबी डगर से चलकर हम उस अवस्था तक आ गए हैं जहाँ वास्तव में प्रगतिशील कहला सकें? बात 1947 से पूर्व की नहीं, बात 1947 के बाद के धीरे-धीरे बदलते भारत की भी नहीं है। बात है सन 2010 की। इसी बरस की। इसी बरस, जबकि साइना नेहवाल, तेजस्विनी जैसी देश की प्रखर बेटियों ने विश्व स्तर पर चमकीली सफलताएँ दर्ज की थी।
इसी बरस जबकि लोकसभा की स्पीकर महिला है, देश की राष्ट्रपति महिला है, सत्ता पक्ष की कमान संभालने वाली महिला है, विपक्षी दल की प्रमुख महिला है और तो और महिला मुख्यमंत्री भी बड़े प्रदेशों की बागडोर थामे हुए है। इसी बरस देश के कुछ हिस्सों में इज्जत, प्रतिष्ठा, सम्मान, रूतबा, संस्कार और परंपरा के नाम पर घर की ही बेटियों को कत्ल कर दिया गया।
मौत के घाट उतार दिया गया उस 'आज की नारी' को जिसका महज इतना ही अपराध था कि उसने अपनी पसंद का जीवनसाथी चुना। उसने प्यार करने से पहले सात गौत्र की जानकारी हासिल नहीं की जिनके अनुसार एक ही कुल-गौत्र में जन्म लेने के कारण उसका प्रेमी उसका प्रेमी नहीं बल्कि (परंपरानुसार) वह उसका भाई है। है ना सिर को लज्जा से जमीन में गाड़ देने वाली बात? मगर कहाँ दिखाई दी इतनी लज्जा?
हल्ला मचा, चैनलों पर बहस चली, नेताओं के शर्मनाक बयान आए, सब कुछ हुआ पर समाज का खौलता हुआ वह गुस्सा नहीं आया जिससे एक लावा बह निकलता। बह निकलता एक ऐसा आक्रोश, जिसके आगोश में समाज के सारे बुद्धिजीवी, पैनी पैठ के चिंतक और प्रखर नारियाँ आ पाती। इस विभत्सता को, इस हीन हरकत को मात्र एक क्षेत्र विशेष की समस्या निरूपित कर दिया गया।
क्या है खाप पंचायत :-
खाप एक ऐसी पंचायत का नाम है जो एक ही गोत्र में होने वाले विवाद का निपटारा करती हैं। राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उप्र में इस तरह की खाप अस्तित्व में हैं। खाप यानी किसी भी जाति के अलग-अलग गोत्र की अलग-अलग पंचायतें। खाप पंचायतों का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। इस समय देश भर में लगभग 465 खापें हैं। जिनमें हरियाणा में लगभग 68- 69 खाप और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में करीब 30-32 खाप अपने पुराने रूप में संचालित हैं।
सबसे पहले महाराजा हर्षवर्धन के काल (सन् 643) में खाप का वर्णन मिलता है। इसके अलावा जानकारी मिलती है कि 1528 में मुगल बादशाह बाबर ने सर्वखाप पंचायत के अस्तित्व को मान देते हुए सोरम गाँव के चौधरी को सम्मान स्वरूप एक रुपया और 125 रुपए पगड़ी के लिए दिया था।
विभिन्न मतानुसार 1199 में पहली सर्वखाप पंचायत टीकरी मेरठ में हुई थी। 1248 में दूसरी खाप पंचायत नसीरूद्दीन शाह के विरूद्ध की गई थी। 1255 में भोकरहेडी में, 1266 में सोरम में, 1297 में शिकारपुर में, 1490 में बडौत में और इसके बाद 1517 में बावली में सबसे बड़ी पंचायत हुई। आरंभ में सर्वखाप पंचायतों का आयोजन विदेशी आक्रमण से निपटने के लिए होता रहा। जब भी आक्रमण हुए सर्वखाप ने उनके विरुद्ध राजा-रजवाड़ों की मदद की।
स्वतंत्रता के पश्चात सर्वखाप पंचायतों का स्वरूप बदला और एक सर्वजातीय सर्वखाप पंचायत 8 मार्च 1950 को सोरम में आयोजित हुई। तीन दिन तक चली इस पंचायत में पूरे देश की सर्वखाप पंचायतों के मुखियाओं ने भाग लिया। इस पंचायत के बाद दूसरी सबसे बड़ी सर्वखाप पंचायत 19 अक्टूबर 1956 को सोरम में ही आयोजित हुई थी।
शक्ति का प्रदर्शन :- खाप पंचायतें विवादों के निपटारे तो करती ही थी लेकिन इनकी अपनी एक विशिष्ट परंपरा भी होती थी। पंचायतों के मुखिया जब इनमें शामिल होते तो किसी सामान्य सम्मेलन की तरह नहीं बल्कि परंपरागत अस्त्र-शस्त्र और अखाड़ों के साथ। इन अखाड़ों में मुख्य रूप में कुरूक्षेत्र, गढ़मुक्तेश्वर, बदायु, मेरठ, मथुरा, दिल्ली, रोहतक, सिसौली, शुक्रताल आदि शामिल है। परंपरागत शस्त्रों में मुख्य रूप से कटारी, तीरकमान, ढाल, तलवार, फरसा, बरछी, बन्दूक और भाला आदि हुआ करते थे। बाजों में ढपली, ढोल, तासे, रणसिंघा, तुरही और शंख हुआ करते थे जिसमें रणसिंघा और तुरही आज भी पंचायत के समय बजाई जाती है।
पहले ऐसी नहीं थी खाप :- आरंभिक दौर में खापों ने अँग्रेज शासन के विरुद्ध बादशाहों की मदद की। बाहरी आक्रमण से पिटने में अपनी ताकत दिखाई लेकिन धीरे-धीरे यह कतिपय स्वार्थी और सामंती लोगों के हाथ में पड़ गई जिन्होंने व्यक्तिगत द्वेष के चलते फैसलों को अपने अनुसार बदलने का कुकृत्य किया। यही वजह रही कि विवादित फैसलों की लंबी श्रृंखला बढ़ती गई और खाप बद से बदनाम अधिक हो गई।
खाप के चंद शर्मनाक फैसले :-
वर्ष : 2004, स्थान : भवानीपुर गाँव मुरादाबाद उत्तरप्रदेश,
मामला: एक युवक ने दूसरी जाति की युवती से शादी की। लड़की इलाके के प्रभावशाली व्यक्ति की पुत्री थी।
फैसला: खाप पंचायत ने घृणित फैसला सुनाया कि लड़के की माँ के साथ बलात्कार किया जाए। ऐसा हुआ भी। लड़के की माँ के साथ बलात्कार हुआ और सबूत मिटाने के लिए उसे जिंदा जला दिया गया।
वर्ष : 2007,
स्थान : करौंरा गाँव, 23 वर्षीय मनोज और 19 वर्षीय बबली को पसंद से शादी करने पर मौत की सजा सुनाई गई थी और दोनों को निर्ममतापूर्वक मार डाला गया। खाप पंचायत के इस खूनी फैसले के खिलाफ अदालत का फैसला आया। यह फैसला इसलिए चर्चा का विषय बन गया कि आज तक किसी भी खाप पंचायत को किसी अदालत ने सजा नहीं सुनाई।
हरियाणा के झज्जर की खाप पंचायत ने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय की अवहेलना करते हुए एक प्रेमी जोड़े को गाँव से बाहर खदेड़ दिया।
वर्ष : 2007 में हरियाणा के रोहतक में डीजे बजाने पर पाबंदी लगा दी गई। रूहल खाप द्वार लगाई गई इस पाबंदी का कारण तेज आवाज से दुधारू पशुओं पर असर पड़ना बताया गया।
2007 में ही ददन खाप ने जींद में क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया। खाप पंचायत का तर्क था कि इससे लडके बर्बाद होते हैं, और मैच पर सट्टा लगाते हैं।
हरियाणा के सोनीपत की गोहना तहसील के नूरनखेड़ा गाँव निवासी 70 वर्षीय बलराज ने छपरा (बिहार) निवासी 14 वर्षीय आरती से विवाह कर लिया। नूरनखेड़ा गाँव की खाप पंचायत ने इस बेमेल फैसले को जायज ठहरा दिया।
लगभग दो साल पहले मुजफ्फनगर जिले के हथछोया गाँव में एक ही गोत्र में शादी करने पर युवक-युवती की हत्या कर दी गई।
लगभग पाँच वर्ष पूर्व लखावटी के पास हुई एक पंचायत में प्रेमी जोड़े को बिटौडे में जला दिया गया था। इस हत्याकांड की आवाज तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के पास तक पहुँची, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ।
खाप की माँग आज के संदर्भ में :-
आज खाप पंचायत हिन्दू मैरिज एक्ट में संशोधन की माँग कर रही है। उनके अनुसार सरकार 'एक गोत्र' में होने वाली शादियों को अवैध माना जाए क्योंकि एक गोत्र के सभी लड़के-लड़कियाँ आपस में भाई-बहन होते हैं। चाहे कितनी भी पीढ़ियाँ क्यों ना गुजर गई हो! अपनी इसी सोच के चलते उन्होंने मनोज और बबली हत्याकांड के दोषियों को बचाने के लिए हर घर से दस- दस रुपए एकत्र किए। उनके अनुसार, मनोज और बबली एक ही गोत्र के थे इसलिए उनकी हत्या करने वाले दोषी नहीं है बल्कि दोषी मनोज और बबली थे क्योंकि उन्होंने एक ही गोत्र में शादी की!
खाप के विरूद्ध आपका फैसला क्या है?
तेजी से उभरती हुई एक अत्यंत ही भयावह समस्या है खाप। लेकिन आजादी के जश्न मनाते हम स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक क्या इस गंभीरता को समझ पा रहे हैं? हम जो तालीबानी हुक्म पर आह कर उठते हैं खाप के खूनी फैसलों पर हमारी चित्कार क्यों नहीं निकलती? बिना किसी कसूर के दो प्यार करने वाले जघन्य तरीके से मार डाले जाते हैं और खाप के बेशर्म अट्टहास के बीच दब कर रह जाती है सैकड़ों सिसकियाँ, मर्मांतक कराहटें और घनघोर पीड़ाएँ।
राजनेताओं से अपेक्षाएँ क्यों करें जबकि उनका पूरा का पूरा वोट बैंक इन खाप प्रमुखों के इशारों पर समृद्ध होता है। अगर आप सचमुच प्रगतिशील देश के सभ्य नागरिक हैं तो आप कीजिए फैसला इन खापों के विरुद्ध। ऐसे तुगलकी, तालीबानी और तानाशाही फैसले, इससे पहले कि आप तक फैलकर पहुँच जाए कुरेदिए अपने मन की संवेदनात्मक परत और बताइए क्या होना चाहिए इन खापों का?
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