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Saturday, May 14, 2011

उन पांच दिनों के बारे में बदल रही है धारणा


ईशा
कई दशक पहले महिलाएं उन पांच दिनों के बारे में बताने में कतराती थी। छोटी लड़कियों को उन दिनों घर से निकलने नहीं दिया जाता था। महिलाएं रसोई में नहीं जाती थी। यौवन की दहलीज पर पहुंचते ही उन्हें सैनिटरी नैपकिन के बारे में बताया जाता था। पूजा-पाठ से उन्हें दूर ही रखा जाता था। सिवाएं घर की बड़ी बूढ़ी महिलाओं के, इसके बारे में किसी को भी जानकारी नहीं होती थी। पुरुषों को इन सब से अंजान ही रखा जाता था। इसलिए शादी के बाद जब पत्नियां इस बारे में उन्हें बताती थीं, तो अजीब सा लगता था। उन्होंने घर में कभी इस बारे में सुना नहीं था, न ही इसकी जानकारी दी जाती थी। बिना किसी परेशानी और तकलीफ के मां को हर वक्त काम में लगे देखा। आज पुरुष अपनी पत्नी के उन पांच दिनों को लेकर काफी सजग हो गए हैं। महिलाएं और युवतियां दुकान में जाकर सहजता से सेनेटरी नैपकिन खरीदती हैं। दूसरे ग्राहकों के सामने उन्हें झिझक नहीं होती। पुरुष अब महिलाओं के मासिक चक्र में रूचि लेने लगे हैं।
ब्रिटेन में महिलाएं उन पांच दिनों में कलाई पर एक बैंड लगा रही हैं, जिससे पतियों को यह पता चलता हैं कि उनकी पत्नी पीएमएस में हैं। इस बैंड से पति को भी मदद मिलती है और वह अपनी पत्नी को बेहतर समझ पाते है और ख्याल भी रख पाते हैं। इस बैंड में तापमान दिखाने का सूचक लगा होता हैं। पीएमएस के दौरान शरीर का तापमान बदलने लगता है। इससे यह पता चल जाता है कि महिलाएं उन पांच दिनों से गुजर रही हैं। इस बैंड को कार्ल डार्न ने बनाया और नतीजे में उन्होंने पाया कि पुरुष इस मामले में ज्यादा जागरूक हो रहे हैं। पत्नियों के उन पांच दिनों का ध्यान अब वे ज्यादा अच्छी तरह रखने लगे हैं। इससे महिलाओं को काफी राहत मिली है।
28 साल के अजय को जब उनकी पत्नी ने पीएमएस के बारे में बताया तो उन्हें सुनकर काफी हैरानी हुई। उनकी न ही कोई बहन थी और न ही कभी मां के इस बारे में जानकारी दी। उन्होंने कभी अपनी मां को अपना मूड बदलते देखा ही नहीं था। इसलिए यह शब्द ही उनके लिए नया था। पत्नी ने उसे समझाया और साथ में यह भी बताया कि महीने के इन कुछ दिनों में उनमें बदलाव आ सकता है। उसने अपने पति को इस बारे में ज्यादा चिंता करने के लिए नहीं कहा। अजय को यह सोचकर हैरानी हुई कि उनकी मां भी ऐसे दर्द और परेशानी से गुजरी होंगी। फिर उसने हर महीने पत्नी की परेशानी का ध्यान रखा और कैलेंडर में निशान लगाना शुरू कर दिया।
पुरुष अब हर वक्त मासिक चक्र को लेकर डरे हुए रहते हैं। इस बारे में उनकी अधूरी जानकारी ही उन्हें डरा कर रखती है। इस बारे में वे सिर्फ इंटरनेट से ही जानकारी हासिल कर सकते हैं। लगभग 75 प्रतिशत महिलाएं हर महीने इस पीड़ा और बदलाव से गुजरती हैं। शरीर में हार्मोनल, साइकोलाजिकल और सामाजिक बदलाव के कारण महिलाएं उन पांच दिनों में ज्यादा परेशान रहती हैं। कारण चाहे कुछ भी हो, पुरुष अब महिलाओं की इस तकलीफ को समझने लगे हैं। पश्चिमी देशों में महिलाओं इस पर खुलकर बात करती हैं इसलिए पुरुष भी वहां ज्यादा सजग रहते हैं। लेकिन भारत जैसे देश में अभी भी इस सब विषयों पर बात नहीं होती। हालांकि धीरे-धीरे हमारे यहां भी बदलाव शुरू हो चुके हैं।
जब महिलाओं में ओव्यूलेशन होता हैं, तो इसका असर शरीर पर भी होता है और इसी वजह से उनके रोजमर्रा के काम में थोड़ा फर्क आ जाता हैं। उनका मूड़ भी थोड़ा बदला हुआ सा होता है। पर देखा जाए तो महिलाएं अपने आप में इतनी मजबूत होती हैं कि वह ऐसी स्थिति का भी सामना आसानी से कर लेती हैं। आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से बराबरी कर रही हैं तो फिर उन पांच दिनों का डर भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।

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