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Tuesday, May 10, 2011

मिटने लगी इंटरनेट से खरीददारी की झिझक

भारत में जिस तेजी से इंटरनेट ने पांव पसारे हैं, उसके मुकाबले यहां ई-कॉमर्स के विस्तार को लेकर आशंकाएं जताई जाती रही हैं। दस करोड़ से ज्यादा इंटरनेट यूज़र्स के देश में ऑनलाइन खरीद-फरोख्त की मात्रा छोटे-छोटे यूरोपीय देशों से भी कम रही है जिसके लिए सरकारी प्रोत्साहन की कमी से लेकर ढांचागत समस्याओं और पेमेंट गेटवे सेवाओं की खामियों को दोषी माना गया है। लेकिन विश्व व्यापी वेब सेवाओं के आगमन के डेढ़ दशक बाद अब हालात तेजी से बदलते दिखाई दे रहे हैं। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) की ताजा रपट के अनुसार सन 2011 में भारत का ई-कॉमर्स व्यापार 46,520 करोड़ के स्तर को छूने जा रहा है।
ई-कॉमर्स एक ऐसा तंत्र है बाजार को उपभोक्ता के घर तक ला रहा है। वह आपको अपने ड्राइंग रूम में बैठे-बैठे घर की जरूरतें पूरी करने का जरिया मुहैया करा रही हैं। अपनी कंप्यूटर स्क्रीन पर बैठे-बैठे ही विभिन्न कंपनियों के उत्पादों और सेवाओं के बीच तुलना करने और चुनाव करने की आजादी भी कोई छोटी चीज नहीं है। समय और दूरी की अवधारणाओं को अप्रासंगिक बनाते हुए वह एक बड़ी किंतु मौन व्यापारिक क्रांति करने में लगी हुई है।
देश में इंटरनेट के जरिए होने वाले कारोबार का आकार 2009 के अंत में 19,688 करोड़ था जो अगला साल खत्म होते-होते 31,598 करोड़ तक जा पहुंचा था, यानी कि करीब 12 हजार करोड़ रुपए की बढ़ोतरी। इस साल यही बढ़ोतरी 15 हजार करोड़ तक जा पहुंची है जिससे जाहिर है कि भारत में ई-कॉमर्स का बाजार और सुविधाएं धीरे-धीरे परिपक्वता की ओर बढ़ रही हैं। न सिर्फ कारोबार का आंकड़ा बढ़ रहा है बल्कि वृद्धि दर में भी वृद्धि हो रही है। यह आंकड़ा यह भी सिद्ध करता है कि आम हिंदुस्तानी नागरिक आर्थिक मजबूती की ओर बढ़ रहा है और उसमें शिक्षा, जागरूकता तथा तकनीकी सक्षमता का स्तर भी लगातार बेहतर हुआ है। लगता है, इंटरनेट से चीजें खरीदने के प्रति लोगों की झिझक धीरे-धीरे दूर हो रही है।
इस बीच, ऑनलाइन कारोबार करने वाली भारतीय कंपनियों की विश्वसनीयता में खासी बढ़ोत्तरी हुई है। इंटरनेट आधारित बाजार में यह पहलू बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वहां यूज़र और विक्रेता एक दूसरे से सैंकड़ों या हजारों किलोमीटर दूर होते हैं और उपभोक्ता को अपना फैसला उत्पाद के चित्र या विवरण भर के आधार पर करना होता है।
कुछ साल पहले भारत में ई-कॉमर्स को नाकाम बताने वाले मार्केटिंग जगत के दिग्गजों का कहना था कि भारतीय उपभोक्ता पारंपरिक ढंग से खरीददारी करने का आदी है और जब तक वह उत्पाद को अच्छी तरह देख-भाल और उलट-पलट न ले,उसकी जेब से एक पैसा भी निकवालना टेढ़ी खीर है। बहरहाल,ई-कॉमर्स संबंधी ताजातरीन अनुमानों से जाहिर है कि भारतीय इंटरनेट उपभोक्ता भी इस मामले में एक व्यापक वैश्विक रूख के अनुरूप आचरण करने लगा है। भारत की प्रमुख ईकॉमर्स कंपनी ईबे इंडिया का अनुभव भी इससे मेल खाता है जिसका मानना है कि इस साल उसके कारोबार में 50 से 60 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी होने जा रही है।

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