Sunday, May 15, 2011
जीवन दर्शन की प्रणेता…. भगवदगीता
भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में गीता का योगदान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है. गीता को भारतीय जीवन दर्शन का प्रणेता कहा जा सकता है. विश्व के सबसे लोकप्रिय ग्रन्थ भगवदगीता में प्रकृति के तीन गुणों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है.
सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसंभवाः.
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम.
गीता में कहा गया है की प्रकृति तीन गुणों से युक्त है. सतो, रजो तथा तमोगुण. जब शाश्वत जीव प्रकृति के संसर्ग में आता है, तो वह इन गुणों से बंध जाता है. दिव्य होने के कारण जीव को इस भौतिक प्रकृति से कुछ भी लेना-देना नहीं है. फिर भी भौतिक जगत में आने के कारण वह प्रकृति के तीनों गुणों के वशीभूत होकर कार्य करता है. यही मनुष्य के भौतिक जगत में सुख और दुःख का कारण है.
तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम.
सुखसंगें बध्नाति ज्ञानसंगें चानघ .
सतोगुण अन्य गुणों की अपेक्षा प्रकाश प्रदान करने वाला और मनुष्यों को सभी पापकर्मों से मुक्त करने वाला है. सतोगुणी लोग सुख तथा ज्ञान के भाव से बंध जाते हैं. सतोगुणी पुरुष को भौतिक कष्ट उतना पीड़ित नहीं करते और उसमें भौतिक ज्ञान की प्रगति करने की सूझ होती है. वास्तव में वैदिक साहित्य में कहा गया है की सतोगुण का अर्थ ही है अधिक ज्ञान तथा सुख का अधिकाधिक अनुभव. सतोगुण को प्रकृति के तीनों गुणों में प्रधान गुण माना गया है.
रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासंगसमुद्भवं.
तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसंगें देहिनम.
रजोगुण की उत्पत्ति असीम आकांक्षाओं तथा तृष्णा से होती है. इसी के कारण से यह देहधारी जीव सकाम कर्मों से बंध जाता है. रजोगुण की विशेषता है, पुरुष तथा स्त्री का पारस्परिक आकर्षण. रजोगुण में वृद्धि के कारण मनुष्य विषयों के भोग के लिए लालायित रहता है. वह इन्द्रियतृप्ति चाहता है. रजोगुण के फलस्वरूप ही मनुष्य संतान, स्त्री सहित सुखी घर परिवार चाहता है. यह सब रजोगुण के ही प्रतिफल हैं. लेकिन आधुनिक सभ्यता में रजोगुण का मानदंड ऊंचा है. अर्थात समस्त संसार ही न्यूनाधिक रूप से रजोगुणी है. प्राचीन काल में सतोगुण को उच्च अवस्था माना जाता था. लेकिन आधुनिक सभ्यता में रजोगुण प्रधान हो गया है. इसका कारण भौतिक भोग की लालसा में वृद्धि होना है.
तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम.
प्रमादालास्य निद्राभिस्तन्निबध्नाती भारत.
अज्ञान से उत्पन्न तमोगुण समस्त देहधारी जीवों का मोह है. इस गुण के प्रतिफल पागलपन, आलस तथा नींद हैं, जो बद्धजीव को बांधते हैं. तमोगुण देहधारी जीव का अत्यंत विचित्र गुण है. यह गुण सतोगुण के सर्वथा विपरीत है.सतोगुण के विकास से मनुष्य यह जान सकता है की कौन क्या है, लेकिन तमोगुण इसके सर्वथा विपरीत है. जो तमोगुण के फेर में पड़ता है वह पागल सा हो जाता है और वह नहीं समझ पता है की कौन क्या है. वह प्रगति के बजाय अधोगति को प्राप्त हो जाता है. अज्ञान के वशीभूत होने पर मनुष्य किसी वस्तु को यथारूप नहीं समझ पाता है. तमोगुणी व्यक्ति जीवन भर लगातार विषयों की और दौड़ता है. और सत्य को जाने बिना पागल की तरह धन का संग्रह करता है. ऐसा व्यक्ति सदैव निराश प्रतीत होता है और भौतिक विषयों के प्रति व्यसनी बन जाता है. यह सभी तमोगुणी व्यक्ति के लक्षण हैं.
सत्त्वं सुखे संच्यति रजः कर्मणि भारत.
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे संचयत्युत.
भगवदगीता गीता के उपदेश में श्रीकृष्ण, अर्जुन से कहते हैं की हे भरतपुत्र! सतोगुण मनुष्य को सुख से बांधता है, रजोगुण सकाम कर्म से बांधता है. वहीँ तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढक कर उसे पागलपन से बांधता है. भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं की सतोगुणी पुरुष अपने कर्म या बौद्धिक वृत्ति से उसी तरह संतुष्ट रहता है, जिस प्रकार दार्शनिक, वैज्ञानिक अपनी विद्याओं में निरत रहकर संतुष्ट रहते हैं. रजोगुणी व्यक्ति सकाम कर्म में लग सकता है, वह यथासंभव धन प्राप्त करके उत्तम कार्यों में खर्च करता है. अस्पताल आदि खोलता है और धर्मार्थ के कार्यों में व्यय करता है. ये रजोगुणी व्यक्ति के लक्षण हैं.
लेकिन तमोगुण तो व्यक्ति के ज्ञान को ही ढक लेता है. तमोगुण में रहकर मनुष्य जो भी करता है, वह न तो उसके लिए, न किसी अन्य के लिए हितकर होता है. इसलिए सतोगुण ही व्यक्ति के जीवन को सफल बना सकता है, और मोक्ष की प्राप्ति का रास्ता भी सतोगुण से होकर ही जाता है.
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copy kar ke matter dete ho wah bhi apne naam se..
ReplyDeletekaise lekhak ho..
jiska matter hai uska naam to dena chahiye.
aage se aisa mat karna warna bhugatna padega.