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Tuesday, May 17, 2011

शायद पुरुष महिलाओं से आगे नहीं निकल सकते!


भई आज के समय में महिलाओं-पुरूषों में आगे निकलने की दौड़ में महिलाओं ने मेरे हिसाब से पुरूषों को इतना पीछे छोड़ दिया है कि यदि वो गाड़ी में बैठकर भी दौड़ें तो भी शायद महिलाओं से आगे नहीं निकल सकते।
बात हरियाणा की जोकि एक कृषि प्रधान प्रदेश है उससे करें तो पता चलता है कि यहां पर पुरुषों से ज्यादा महिलाएं आपको खेतों में काम करती हुई नजर आएगीं। ६-७ महिलाओं के बीच में मात्र एक ही पुरुष कार्य करता हुआ मिलेगा या फिर किसी खेत के कौन में पेड़ की छांव में बैठकर हुक्का चल रहा होगा या फिर बीड़ी के कस लगाए जा रहे होंगे।
हाल ही में हुई जनगणना से यह पता चला है कि हरियाणा में पुरूषों से अधिक महिलाओं ने बाजी मारी है और केवल खेती ही नहीं बल्कि लगभग हर क्षेत्र में महिलाओं को आगे पाया गया है। खेल, खेती, नौकरी, दिहाड़ी आदि सभी क्षेत्रों में हरियाणा की महिलाओं ने अपना नाम कमाया है।
इसी वर्ष संपन्न हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान हर खेल में हरियाणा की छौरियों ने अपने नाम का लोहा मनवाया। दौड़, कूद, बैडमिंटन जैसे खेलों में उन्होंने भारतमाता के चरणों में पदमों का ढ़ेर लगा दिया।
हरियाणा से बाहर चलें तो पहले जम्म-कश्मीर से ही ले लेते हैं, जहां पर कुंजेर में आशा जी पहली कश्मीरी पंडित महिला हैं जो मुस्लिम बहुल और उग्रवाद प्रभावित कश्मीर घाटी में पंच चुनी गई हैं। उन्होंने मुस्लिम महिला प्रतिद्वंद्वी सर्वा बेगम को हराकर यह चुनाव जीता।
गौरतलब है कि कश्मीर में अल्पसंख्यक माने जाने वाले पंडित समुदाय के लोग 1989-90 में उभरी भारत विरोधी हिंसा के दौरान भारी संख्या में कश्मीर छोडऩे को मजबूर हो गए थे। लेकिन आशा का परिवार गांव के उन चार परिवारों में है जो अपनी पुरखों की जमीन छोडऩे को तैयार नहीं हुए।
श्रीनगर-गुलमर्ग रोड पर स्थित कुंजेर ब्लॉक के वुसन गांव में आशा जी का मुकाबला सरवा बेगम से था। इस सीधे मुकाबले में आशा जी को 55 वोट मिले जबकि सरवा बेगम को 42 वोट। आशा जी ने एक ऐसा उदाहरण पेश किया है जोकि भारतीय महिलाओं के लिए जोश पैदा करने वाला है।
गत दिनों पांच राज्यों में हुए चुनाव में भी लगभग महिलाओं ने अपना एक छत्र शासन पक्का कर दिया है। जिससे अब कहावत बन चुकी है कि केंद्र में मैडम जी, दक्षिण में अम्मा, पूर्व में दीदी, उत्तर में बहन जी, राजधानी में आंटी, घर में पत्नी, घर से बाहर वर्किंग लेडी, का आज के समय में एकछत्र राज स्थापित हो चुका है। समाज को आज महिलाओं ने सामाजिक कुरितियों और पूरानी गली-सड़ी धारणाओं को तोड़कर उन्हें ठेंगा दिखाने का काम किया है।

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