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Thursday, April 15, 2010

ये रि‍श्ते हैं टेकन फॉर ग्रांटेड


हम अपनों को प्यार करते हैं, फिर भी उनकी 'होने' को अलग से नहीं देख पाते हैं। इससे होता यह है कि हम उनके सुख-दुख, भावनाओं-इच्छाओं तथा जरूरतों-संवेदनाओं के प्रति एक तरह से लापरवाह होते हैं या यूँ कह लें कि ध्यान ही नहीं दे पाते हैं। जो व्यक्ति टेकन फॉर ग्रांटेड लिया जाता है, उसकी सारी सकारात्मकता बिना उसके जाने खत्म हो जाती है।

ऐसा अक्सर करीबी रिश्तों में होता है। चाहे वह रिश्ता पति-पत्नी का हो या फिर माता-पिता और बच्चों के बीच का... एक-दूसरे के होने को अलग से महसूस नहीं कर पाते हैं। इसलिए ऐसा होता है कि सारी दुनिया के प्रति संवेदनशील और चिंतित होकर भी हम अपनों के लिए उदासीन रहते हैं, इतने कि इस उदासीनता को भी महसूस नहीं कर पाते हैं।

अक्सर ये अपने माता-पिता के या फिर पति हमेशा अपनी पत्नी को लेकर ऐसा ही करते हैं। कारण बहुत स्पष्ट है, क्योंकि वे इतने करीब होते हैं कि उनके नहीं होने की कल्पना तक हम नहीं कर पाते हैं। हम अपने दोस्तों, सहकर्मियों और परिचितों के लिए जितना 'कंसर्न' रखते हैं, अपनों की उतनी ही उपेक्षा करते हैं। ऐसे रिश्तों में तो हम जरूरत से ज्यादा इनवेस्ट करते हैं, लेकिन करीबी रिश्तों के प्रति भयानक उदासीनता बरतते हैं।

यह एक तरह का स्वार्थ है... सेल्फसेंटर्डनेस...। ज्यादातर ऐसे मामले महिलाओं के साथ होते हैं। क्योंकि वे परिवार में ऐसे तरल हो जाती हैं कि अलग से नजर ही नहीं आती हैं, खास तौर पर पत्नी और माँ...। परिवार के लोग उस पर निर्भर होते चले जाते हैं और वह सबकी निर्भरता को निभाती चली जाती है। इस गफलत में हम यह भूल जाते हैं कि वह भी इंसान है।

हमने कभी माँ को इंसान की तरह देखा... नहीं देख पाते हैं। ऐसे में हम जिसे टेकन फॉर ग्रांटेड लेते हैं, उससे कभी कोई बात शेयर नहीं करते हैं, अपने भविष्य के प्लान... कहाँ जा रहे हैं, कब लौटेंगे, जैसी छोटी-छोटी बातें भी नहीं कहते हैं। हम ज्यादातर अपने मामलों में संवेदनशील होते हैं और दूसरों के विचारों, भावनाओं को लेकर उदासीन होते हैं। चाहे वह पति-पत्नी हो या माता-पिता इस तरह की प्रवृत्ति हरेक का दिल दुखाती है।


ND
जब हम किसी को टेकन फॉर ग्रांटेड लेते हैं, तो हम यह समझते हैं कि वह हमारे जीवन में है और हमारी उसके प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है। हम ज्यादातर ऐसे मामलों में स्वार्थी हो जाते हैं। हमारी उम्मीदें तो बहुत ज्यादा होती हैं और हम यह मान बैठते हैं कि यह व्यक्ति हमारी सेवा करने के लिए ही पैदा हुआ है। उसकी खुशी-नाखुशी, पसंद-नापसंद, जरूरत और इच्छा हम कभी भी जानने का प्रयास नहीं करते हैं।

यह प्रवृत्ति जिस भी तरह से यह हमारे जीवन में हो, यह हमेशा रिश्तों को नुकसान पहुँचाती है। यह दोतरफा वार करता है। यह हकीकत में एक घातक हथियार है, एक तरह का धीमा जहर...। जो व्यक्ति टेकन फॉर ग्रांटेड लिया जाता है, उसकी सारी सकारात्मकता बिना उसके जाने खत्म हो जाती है, तो दूसरी तरफ यह रिश्तों से वो उष्मा, वो गर्मी सोख लेता है जिससे जीवन धड़कता है।

रिश्तों को बचाने के लिए इस प्रवृत्ति को रोकें। थोड़ा खुद को समय देकर यह सोचें कि आपके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण शख्स की खुशी के लिए आपने अब तक क्या-क्या किया? आपने अपने सबसे खूबसूरत रिश्तों को बनाए रखने के लिए क्या इनवेस्ट किया है? इसे जिंदा रखने के लिए आपके प्रयास क्या रहे अब तक?

अपने रिश्तों को बचाने के लिए इन्हें सींचे... भावना से... शब्दों और कर्म से...। इसके लिए सबसे पहले आपको दूसरों के 'होने' को स्वीकार करना होगा, फिर उसके होने के प्रति आभारी होना होगा। और इसका सबसे अच्छा तरीका है, सामने वाले को खुश रखना। छोटी-छोटी चीजें जैसे - खाना बहुत स्वादिष्ट बना है, या घर बहुत सुंदर सजाया है, कहते रहेंगे तो रिश्ते खूबसूरत बनेंगे।

एक चीज को हर किसी को पसंद आएगी... दूर तक घूमने जाना या फिर खूब सारी बातें करना... तारीफ कर देना रिश्तों में नई खुशबू फैलाएगा, आपके साथी के जीवन को खुशनुमा करेगा तो जाहिर है कि आपका जीवन भी खुशी से लबरेज होगा। आखिर यही तो है जीवन...।

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