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Tuesday, April 6, 2010

नक्सलियों की एक और फौज बनाने की तैयारी...

रीतेश पुरोहित
क्या बांध और शादी में कोई संबंध है? किसी और के पास इसका जबाव नहीं होगा, लेकिन अगर मध्य प्रदेश के खरगौन जिले के पथराड़ गांव के लोगों से बात करेंगे, तो आपको इसका जवाब मिलेगा और वह भी हां में। गांव के पास ही स्थित महेश्वर में नर्मदा नदी पर बन रहे बांध के कारण इस गांव के जवान लड़कों की शादी नहीं हो रही है। असल में पथराड़ बांध के डूब क्षेत्र में आ रहा है और आसपास के गांव का कोई भी पिता अपनी बेटी का हाथ उस व्यक्ति के हाथ में नहीं देना चाहता, जिसका न तो रहने का ठिकाना होगा और न ही कमाने का। मुमकिन है डूब क्षेत्र में आने वाले बाकी के 60 गांवों की भी यही कहानी हो। पिछले दिनों अपने करीब 15 साथियों के साथ इस गांव में था, तभी यह चौंका देने वाली बात सामने आई। लेकिन चौंकने की कई वजहें अभी बाकी हैं, लेकिन इससे पहले इस डैम और क्षेत्र के बैकग्राउंड के बारे में बताना जरूरी है।
होल्कर महारानी देवी अहिल्या बाई की राजधानी रहा महेश्वर इंदौर से करीब 90 किमी दूर है। महेश्वर डैम नर्मदा घाटी विकास प्रोजेक्ट के तहत इस नदी पर बने या बन रहे 30 बड़े बांधों में से एक है। मध्य प्रदेश के लोगों के लिए मां के समान मानी जाने वाली इस नदी पर 135 मीडियम साइज डैम और बन रहे हैं। सरकार का दावा है कि इस बांध के बनने से इलाके में 400 मेगावॉट बिजली मिलेगी। प्रोजेक्ट की योजना 1978 में बनाई गई थी और 1993 में देश की एक बड़ी टेक्स्टाइल कंपनी को यह प्रोजेक्ट सौंपा गया। डूब क्षेत्र का एरिया पता करने के लिए नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने इस क्षेत्र का सर्वे किया है, जिसे गांव के लोग गलत करार देते हैं। एक और महत्वपूर्ण बात। महेश्वर उन क्षेत्रों में से एक है, जहां मेधा पाटकर के नेतत्व वाला नर्मदा बचाओ आंदोलन सक्रिय है। नर्मदा बचाओ आंदोलन और गांव के लोग पिछले कई सालों से यहां बैकवॉटर सर्वे कराने की मांग कर रहे हैं, ताकि डूब क्षेत्र की असलियत सामने आ सके। बैकवॉटर सर्वे की जरूरत के लिए नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए)बरगी बांध का उदाहरण देता है। एनबीए के मुताबिक जबलपुर में बने बरगी बांध का बैकवॉटर सर्वे नहीं कराया गया था, जिस वजह से पानी बढ़ने से यहां के पुनर्वास के लिए तय की गई 26 जगहों पर पानी भर गया था। खंडवा के इंदिरा सागर प्रोजेक्ट का हाल भी कुछ ऐसा ही था। बैकवॉटर सर्वे कराने के बाद आसपास के 40 और गांव डूब क्षेत्र में आ गए।
खैर, 60 लोगों में से 12-13 लोगों के समूह में हम अलग-अलग गांवों में गए। मैं अपने साथियों के साथ पथराड़ पहुंचा। करीब 3000 लोगों की आबादी वाले और बेहद उपजाऊ जमीन वाले इस गांव के लोगों का आजीविका का मुख्य स्त्रोत खेती ही है। हमने लोगों को इकट्ठा किया और उन्हें बातचीत में सहज बनाने के लिए हमने उनसे गांव की बाकी समस्याओं जैसे बिजली, सड़कें, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के बारे में पूछा। हमें यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि गांव के लोग इन मुद्दों को छोड़ सीधे महेश्वर डेम से जुड़े मुददे पर आ गए। हालांकि बातचीत में इस बात का अहसास हुआ कि विस्थापन यहां के लोगों का सबसे बड़ा ज़ख्म है, जिसके आगे बाकी प्रॉब्लम्स ने अपना असर खो दिया है।
करीब 75 साल के राधेश्याम पाटीदार गांव के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हुए हमें महेश्वर डैम, सरकार की पुनर्वास नीति और उससे जुड़ी हर बारीक से बारीक बात को तथ्यों समेत बता रहे थे। राधेश्याम कह रहे थे, 'हमारी लड़ाई विकास से नहीं विस्थापन से है। हम विकास के लिए खून-पसीने से बनाया अपना घर छोड़ने को तैयार हैं, लेकिन सरकार हमें कम से कम यह तो बताए कि हमें कहां बसाया जाएगा। हमें कितना बड़ा घर मिलेगा? खेती के लिए हमें कहां जाना होगा?'
हमारे अलावा गांव के करीब 100 लोग उन्हें बहुत ध्यान से सुन रहे थे। उनके अंदर गुस्सा, विश्वास और जोश के मिलेजुले भाव दिखाई दे रहे थे। बीच में जब राधेश्याम ने एक आंकड़ा गलत बता दिया तो वहां मौजूद कई लोग उनकी गलती सुधारने के लिए एकसाथ बोल पड़े। यह सब देखकर मैं और मेरे कई साथियों की आंखें फटी की फटी रह गईं। हमने आज तक इतने ज्यादा जागरूक गांववाले नहीं देखे जो पूरे तथ्यों के साथ बोल रहे थे। उनमें गजब का कॉन्फिडेंस था। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इस मामले में कोई नेता और अफसर उनके सामने नहीं ठहर पाता। इसी दौरान एक युवक ने थोड़ा मुस्कुराते और शर्माते हुए नौजवान लड़कों की शादी न होने वाली बात बताई। एक और बात, लोगों ने बताया कि गांव में पिछले कई सालों से सड़क नहीं बनी क्योंकि गांव डूब क्षेत्र में आने वाले इस गांव में सड़क बनाकर सरकार अपना पैसा बर्बाद नहीं करना चाहती।
जब पूछा गया कि आप लोग 10 साल से भी ज्यादा समय से डैम का विरोध कर रहे हैं लेकिन इसके बाद भी बांध लगातार बन रहा है। अगर आप अपनी लड़ाई में असफल हो गए तो? 'तो हम यहीं नर्मदा मैया में जलसमाधि ले लेंगे', समूह में से एक युवक ने जवाब दिया और सैकड़ों लोगों ने उसकी बात में हामी भरी।
अंत में गांव के कुछ लोगों ने हमसे पूछा, 'आप बताइये नक्सली आखिर कैसे तैयार होते हैं? अगर लोगों से उनकी जमीन, घर, रोटी छीन ली जाएगी और बदले में कुछ नहीं मिले, तो आदमी क्या करेगा? क्या वह बंदूक नहीं उठाएगा?'
सचमुच इस सवाल ने सोचने पर मजबूर कर दिया। क्या वाकई देश में नक्सलियों का एक और समूह तैयार नहीं किया जा रहा?

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