पाकिस्तानी सेना में 'सेक्स स्लेव्स'
-संदीप तिवारी
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले एक गैर सरकारी संगठन, यूरोपियन आर्गनाइजेशन ऑफ पाकिस्तानी माइनॉरिटीज (इओपीएम) का दावा है कि पाकिस्तानी सेना योजनाबद्ध तराके से देश के अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं को सेना में 'सेक्स स्लेव्स' की तरह से इस्तेमाल कर रही है।
इस संबंध में संगठन ने कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र में एक सभा और प्रदर्शन का आयोजन किया और कहा कि पाकिस्तानी सेना अल्पसंख्यक समुदायों की लड़कियों, महिलाओं का उनके परिवार से अपहरण कर उनके साथ बलात्कार करती है और उन्हें सेक्स स्लेव्स की तरह प्रयोग करती है। इस प्रदर्शन में सौ से अधिक महिलाओं ने हिस्सा लिया।
इनका कहना है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर पाकिस्तानी सेना के हमले बढ़ रहे हैं और लाहौर में दिसंबर में ईसाईयों के घरों पर हमले किए गए। इन महिलाओं का कहना है कि बलोचिस्तान और गिलगित बाल्टिस्तान में महिलाओं की हालत बहुत अधिक खराब है। सैनिक अधिकारी इन क्षेत्रों की महिलाओं को जबरन अपने यातना शिविरों में ले जाते हैं, उनके साथ बलात्कार करते हैं और उन्हें सेक्स स्लेव्स बनाकर रखते हैं।
संगठन का दावा है कि क्वेटा की 23 वर्षीय स्कूली अध्यापिका जरीना मारी का ऐसा ही मामला है जिसका सेना में सेक्स स्लेव की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। बाल्टिस्तान और गिलगित बाल्टिस्तान में उन परिवारों को मीडिया से मिलने जुलने भी नहीं दिया जाता है जिनकी लड़कियाँ, महिलाएँ गायब हो गईं और पुलिस ने इनके गायब होने के मामले दर्ज करना तक जरूरी नहीं समझा।
ईसाई, सिख, हिन्दू और अल्पसंख्यकों पर लगातार हमले किए जाते रहे हैं और 2007 के बाद पाकिस्तान दुनिया का पहला ऐसा देश है जहाँ पर अल्पसंख्यकों पर सबसे ज्यादा हमले किए गए। सोमालिया, सूडान, अफगानिस्तान, म्यांमार और काँगो के साथ पाकिस्तान भी उन देशों में शामिल है जोकि अल्पसंख्यकों के लिए सर्वाधिक खतरनाक और असुरक्षित देश हैं। दस देशों की सूची में पाकिस्तान सातवें नंबर पर है।
बलोचिस्तान की 23 वर्षीया जरीना मारी को 2005 के अंतिम महीनों में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें कराची के सैनिक यातना प्रकोष्ठ में रखा गया और उन्हें किसी से संपर्क करने की इजाजत नहीं है। सैनिक अधिकारियों ने उनके साथ बारम्बार बलात्कार किया और उनका सेक्स स्लेव के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।
साथ ही उनका इस्तेमाल उन लोगों से सरकार के खिलाफ काम करने संबंधी स्वीकृति हासिल करने के लिए किया जाता है जिन्हें गैर कानूनी तरीके से देश विरोधी काम करने के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया जाता है और ऐसे लोग सेना के यातना शिविरों में बंद रहते हैं।
एक सरकारी एजेंसी द्वारा गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति ने इस लड़की को सेना के यातना शिविर में पाया। यह व्यक्ति खुद भी नौ माह तक सेना के यातना शिविर में रहा था। उसने इस महिला के बारे में रिपोर्टर्स विदआउट बार्डर्स, इंटरनेशनल रेडक्रॉस और लंदन के वूलविच कोर्ट को जानकारी दी।
इस लड़की के बारे में आजतक कोई भी जानकारी नहीं मिल सकी है। ऐसा माना जा रहा है कि बलोचिस्तान में जो लोग अधिक स्वायत्तता की माँग करते हैं उन परिवारों के पुरुषों के साथ लड़कियों, महिलाओं को भी गिरफ्तार कर लिया जाता है।
बलूची भाषा के एक टीवी चैनल के मैनेजिंग डायरेक्टर मुनीर मेंगल को कराची के हवाई अड्डे से 4 अप्रैल, 2006 को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें नौ महीने तक कराची के यातना शिविर में रखा गया। यहाँ उन्होंने जरीना मारी की हालत को देखा था। उन्होंने सेना की जेल में बहुत सारे मानवाधिकारों का उल्लंघन होते देखा। उनका कहना था कि ' एक बार तो सैनिकों ने निर्वस्त्र जरीना को उनकी कोठरी में धकेल दिया था।' उनका कहना है कि उन्हें पता नहीं कि बाद में इस महिला का क्या हुआ।
एक और बलूची राष्ट्रवादी को सेना ने दो बार गिरफ्तार किया था और उन्हें भी विभिन्न शहरों की सैनिक कोठरियों में रखा गया था। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि सेना की दो यातना कोठरियों में उन्होंने युवा बलूच महिलाओं को नग्नावस्था में देखा था। इन औरतों की हालत बहुत खराब थी।
प्रमुख बलूच नेताओं का कहना है कि उन्हें इस बात की जानकारी है कि विरोध प्रदर्शनों के दौरान या बाद में युवा बलूच लड़कियों को गिरफ्तार किया जाता है और उन्हें गायब कर दिया जाता है। उन्हें यह भी पता है कि सेना की हिरासत में इन महिलाओं का शोषण होता है लेकिन वे अपनी इज्जत और परिजनों को सरकारी जुल्मों से बचाने के लिए इन बातों को सार्वजनिक रूप से नहीं बतातीं।
अपनी कहानी को मुनीर मेंगल बताते हैं कि सेना के यातना शिविर में उन्हें प्रताडि़त किया गया और उनके लिंग को बुरी तरह घायल कर दिया गया क्योंकि उन्होंने जरीना मारी के साथ सेक्स करने से मना कर दिया था।
उन्होंने रिपोर्टर्स विदाउट फ्रंटियर्स (आर एसएफ) को बताया कि ' 27 जनवरी 2007 को शाम छह बजे सेना की खुफिया शाखा के मेजर इकरार गुल नियाजी ने उन्हें अपने दफ्तर में बुलाया। उन्हें कुछ नंगी तस्वीरें दिखाईं और हँसते हुए कहा कि आप एक टीवी चैनल के डायरेक्टर रह चुके हैं और अभिनेत्रियों के साथ आपके अच्छे संबंध भी रहे होंगे।'
जब वे अपनी कोठरी में वापस लौटे तो सारे फर्श पर अश्लील तस्वीरें बिखरी पड़ीं थीं। रात करीब12 बजे सूबेदार कहलाने वाला सैन्यकर्मी एक महिला को कोठरी में लाया। यह महिला डर के मारे काँप रही थी और रो रही थी। उसने महिला को उनके उपर गिरा दिया और कहा कि ' तुम्हें पता है कि इसके साथ क्या करना है। तुम बच्चे नहीं हो कि हम तुम्हें बताएँ कि इस औरत के साथ तुम्हें क्या करना है।'
मेंगल कहते हैं कि करीब आधा घंटे बाद वह सूबेदार फिर लौटा और दोनों को अलग अलग बैठे हुए देखकर दोनों को गालियाँ देने लगा। उसने दोनों के कपड़े उतार दिए। वे यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि महिला बलूच भाषा में प्रार्थना करने लगी। उसने बताया कि उसका नाम जरीना मारी है और वह कोहलू क्षेत्र की रहने वाली है। यह विद्रोही मारी जनजाति का मुख्यालय है। यहाँ से 2005 में हिंसक सरकार विरोधी संघर्ष शुरू हुआ था।
उसका कहना था कि वह एक स्कूली अध्यापिका थी और सैनिकों ने उसे उसके एक साल के बेटे के साथ अगवा कर लिया था। जरीना का कहना था कि सैनिक उन पर आरोप लगाते हैं कि वे बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के लिए जासूसी करती हैं। उसने मेंगल से कहा कि वह उसकी हत्या करके मुक्ति दे दें। उसने कहा कि इन लोगों ने कई बार उसका शोषण किया है।
मेंगल कहते हैं कि जब उन्होंने जरीना के साथ सेक्स करने से इनकार कर दिया तो उनके गोपनीय अंगों पर सैनिक अधिकारियों ने घाव कर दिए। उन्हें लगा कि सैनिक उन्हें नपुंसक बनाकर ही छोड़ेंगे या उनका लिंग ही काट देंगे। जरीना ने उन्हें बताया कि उसने यातना कमरों में और कुछ महिलाओं को देखा है लेकिन उसे किसी से भी बात नहीं कर ने दी गई।
उस समय कर्नल रजा पाक सेना के उस सेल (प्रकोष्ठ) के इंचार्ज थे। कुछ दिनों बाद जब उनका तबादला रावलपिंडी के लिए हो गया तो कर्नल अब्दुल मलिक कश्मीरी को सेना के यातना प्रकोष्ठ का प्रमुख बनाया गया।
चार अगस्त 2007 को मुनीर मेंगल को सेना के यातना सेल से छोड़ दिया गया और 5 अगस्त को उन्हें असैनिक जेल में रखा गया। इंटरनेशनल कमिटी ऑफ द रेड क्रॉस (आईसीआरसी) के प्रतिनिधि उनसे खुजादार जेल में मिले। अगले दिन डॉक्टरों ने उनके घायल लिंग का परीक्षण किया।
आईसीआरसी के अधिकारी एंड्रयू बार्टललेज मेंगल से कई बार जेल में मिले और उन्होंने कहा कि वे तब तक जरीना मारी का मामला नहीं उठा सकते हैं जबतक कि उन्हें जेल से रिहा नहीं किया जाता है। अगर ऐसा किया जाता तो दोनों की जान को खतरा हो सकता था।
एशियन ह्यूमन राइट्स कमीशन (एएचआरसी) पहले ही जानकारी दे चुका है कि पाकिस्तानी सेना द्वारा 52 यातना सेल्स चलाए जाते हैं। कराची में ही सेना के तीन यातना प्रकोष्ठ हैं। मेंगल ने कहा कि राजनीतिक विरोधियों से सरकार के खिलाफ कामों में लिप्त होने संबंधी स्वीकारोक्तियाँ पाने के लिए सेना द्वारा सेक्स स्लेव्स का इस्तेमाल किया जाता है।
पाकिस्तान अपने को इस्लामी लोकतांत्रिक गणराज्य कहता है लेकिन इसके शासकों में इतना भी साहस नहीं है कि वे अपनी सेना पर ही नियंत्रण रख सकें। इसकी सेना यातना ही नहीं और भी बहुत घृणित कार्यों में लगी रहती है। यह सभ्य समाज के उन सभी नियमों को ताक पर रखती है और पाकिस्तान को बर्बर, आदिमयुगीन राज्य बनाने पर तुली हुई है।
उल्लेखनीय है कि यह पहला मौका नहीं है जबकि पाकिस्तानी सेना पर ऐसे आरोप लगाए गए हैं और ऐसे बहुत से मामले सच भी साबित हुए हैं। धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ बुरा व्यवहार और उनके अधिकारों का हनन एक राज्य प्रायोजित कार्यक्रम बन गया है। बांग्लादेश युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश में जो कुछ किया है उससे यह बात साफ हो जाती है कि पाक सैनिक अपने ही देशवासियों के साथ दुर्व्यवहार करने के मामले में किसी भी हद तक नीचे गिर सकते हैं।
पाकिस्तानी सेना ने तब 30 लाख लोगों का कत्ल किया था लेकिन पाकिस्तान सरकार ने इस तरह से मारे जाने वाले लोगों की संख्या 26 हजार बताई थी। बड़ी संख्या में महिलाओं को यातना दी गई थी, उनके साथ बलात्कार किया गया और उनकी हत्या कर दी गई। ऐसी महिलाओं की संख्या दो लाख से अधिक बताई जाती है। युद्ध के बाद हजारों की संख्या में बलात्कार की शिकार महिलाओं ने बच्चों को जन्म दिया।
उस समय भी ढाका छावनी में पाकिस्तानी सेना ने बंगाली महिलाओं को सेक्स स्लेव्स बनाकर रखा था। इनमें से ज्यादातर लड़कियाँ, महिलाएँ ढाका विश्वविद्यालय से पकड़ी गई थीं और काफी बड़ी संख्या में घरों से अगवा कर ली गई थीं।
कहा जाता है कि उस समय जनरल टिक्का खान ने अपने सैनिक अधिकारियों को समझाया था कि एक मुस्लिम सेना द्वारा ही मुस्लिमों का कत्लेआम क्यों जरूरी है। हिंदुओं का बध क्यों जरूरी है और क्यों युवा बंगाली लड़कियों के साथ बलात्कार किया जाए। इससे न केवल सैनिकों की हवस को शाँत किया जा सकता है वरन इससे सच्ची मुस्लिम आबादी की पीढ़ी को भी पैदा किया जा सकेगा।
सूसन ब्राउनमिलर ने तब पूर्वी पाकिस्तान में बलात्कार की शिकार महिलाओं की संख्या चार लाख से भी अधिक बताई थी। ढाका में एक फोटो पत्रकार ने खादिगा नाम की तेरह वर्षीय लड़की का साक्षात्कार लिया था। जिसमें बताया गया कि जब वह अपनी चार अन्य सहेलियों के साथ स्कूल जा रही थी तो सैनिकों के एक गुट ने उनका अपहरण कर लिया था और पाँचों को सेना के मोहम्मदपुर स्थित वेश्यालय में भेज दिया गया था। छह माह बाद युद्ध खत्म हुआ, तभी इन लड़कियों को सेक्स स्लेवरी से छुटकारा मिल सका।
इतना ही नहीं, 15 अप्रैल, 1971 को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल नियाजी को भी पता था कि उनके सैनिक क्या कर रहे हैं। इस दिन अपने डिवीजनल कमांडरों को भेजे एक गोपनीय मेमोरेंडम में जनरल नियाजी ने कहा था कि ' यहाँ आने के बाद मुझे सैनिकों द्वारा लूटपाट करने, लोगों की हत्या करने के मामले सुनाई दिए हैं।
हाल ही में तो बलात्कार की भी खबरें आ रही हैं। और तो और पश्चिमी पाकिस्तानियों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। 12 अप्रैल को दो पश्चिमी पाकिस्तानी महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और दो अन्य के साथ ऐसा करने की कोशिश की गई।'
यह पाक सेना के तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के सर्वोच्च सैन्य कमांडर का कहना था और इसलिए आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि युद्ध के दौरान सैनिकों के बंकरों में कुरान की प्रतियों के साथ महिलाओं के अंतर्वस्त्र भी बड़ी संख्या में मिले थे।
पाकिस्तान में मुस्लिम महिलाओं के साथ ऐसा होना आम है तो धार्मिक रूप से अल्पसंख्यकों की महिलाओं का क्या हाल होता है ? यह भी जान लीजिए। हिंदू और ईसाई समुदायों की शहरों में रहने वाली महिलाओं को सफाई कर्मियों या मैला ढोने का काम मिलता है। वे प्रति माह 12 अमेरिकी डॉलर से भी कम कमाती हैं। उनके न कोई बुनियादी मानव अधिकार होते हैं और न ही कोई श्रम कानून।
शहर के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में ये लोग मुस्लिम बस्तियों से दूर झोपडि़यों में रहते हैं और इन्हें अनुसूचित जाति की तरह समझा जाता है। सिंध राज्य में हिंदू महिलाएँ जमींदारी समाज का शिकार हैं। ये महिलाएँ और इनके पुरुष भी हमेशा ही कर्ज में डूबे रहते हैं जोकि भूमि मालिकों द्वारा दिए गए कर्जों के तले दबे रहते हैं।
सिंध प्रांत में हिंदू समुदाय विभिन्न अनुसूचित जातियों-भील, कोहली और अन्य- का संगम है जोकि भारतीय सीमा से लगे इलाकों में रहता है। बादिन, मीरपुरखास, संघर, उमरकोट और थारपारकर जिलों में हिंदू महिलाओं का अपहरण, बलात्कार, मनमानी गिरफ्तारी, यातनाएँ और विस्थापन तथा हत्याएँ तक आम हैं। इन जिलों में धार्मिक घृणा के चलते और कर्ज में होने के कारण महिलाएँ सेक्स स्लेव्स का जीवन बिताती हैं।
जब यह सब नगरीय जीवन का आईना है तो सैनिक प्रशासन तो कुछ भी कर सकता है उसके लिए धार्मिक अल्पसंख्यक क्या, मुस्लिम समुदाय की महिलाएँ क्या, किसी भी समुदाय की महिलाओं को सेक्स स्लेव्स बनाना विशेषाधिकार का हिस्सा है। जो कुछ सेना करती है, उससे जो कुछ छूट जाता है, उस अत्याचार, उत्पीड़न की खुराक आम जनता को कट्टरपंथी गुट पिलाते रहते हैं।
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