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Tuesday, April 27, 2010

भारत क्यों नहीं है विश्वशक्ति?

-वाईसी हालन
अपनी पुस्तक 'इंडिया, इमर्जिंग पावर' में दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ स्टीफन पी. कोहेन भारत के महाशक्ति बनने के संदर्भ में लिखते हैं कि सैन्य शक्ति समेत हर तरह की शक्ति आर्थिक मजबूती से ही हासिल होती है।
विश्व के इतिहास का विश्लेषण करें तो यह बात सही भी है। दूसरे विश्वयुद्ध से पहले तक ब्रिटेन एक बड़ी महाशक्ति रहा है, क्योंकि इसने औद्योगिक क्रांति के दौरान ही अपने उद्योगों को विकसित कर लिया था। अपना विकास करने के लिए इसने दुनिया के एक-चौथाई देशों को कब्जे में किया और दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य स्थापित किया।
अमेरिका ने भी 1776 में ब्रिटिश शासकों को निकाल भगाने के बाद अपना ध्यान मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने पर केंद्रित किया। बीसवीं सदी के प्रारंभ तक यह एक बड़ी आर्थिक शक्ति बन चुका था। पहले विश्वयुद्ध ने इसे सैन्यशक्ति तैयार करने का मौका दिया और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह दुनिया की सबसे मजबूत सैन्य व आर्थिक शक्ति बना।
अमेरिका के साथ ही सोवियत संघ ने भी महाशक्ति का दर्जा हासिल कर लिया था, क्योंकि यह विश्व राजनीति को प्रभावित करने में सक्षम हो गया था। लेकिन 90 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद वह एक महाशक्ति नहीं रह गया। वह दर्जा उसने इसलिए खो दिया था कि उसने अपनी आर्थिक शक्ति की मजबूती पर ध्यान नहीं दिया था।
उसने सिर्फ सैन्य शक्ति बढ़ाने की असंतुलित नीति लागू की। अस्सी के दशक तक तो इस रणनीति ने काम किया, लेकिन उसके बाद यह नीति असफल हो गई और नतीजे में सोवियत व्यवस्था विखंडित हो गई।
1980 के दशक में सोवियत अर्थव्यवस्था इस हद तक पतित हो चुकी थी कि वह सोवियत सैन्य तंत्र को ही नहीं संभाल पा रही थी। तब से अमेरिका अपनी सारी कमजोरियों और समस्याओं के बावजूद दुनिया की अकेली महाशक्ति बना हुआ है। इसके पास एक बहुत बड़ी आर्थिक शक्ति है, एक विस्तृत सैन्य शक्ति है और दुनिया के देशों पर उसका जबर्दस्त राजनीतिक प्रभाव है।
आर्थिक शक्ति सबसे ज्यादा जरूरी है ताकि यह अपने आर्थिक साधनों से दूसरे देशों को प्रभावित कर सके। आर्थिक शक्ति हासिल करने के लिए उसका औद्योगिक आधार विस्तृत और मजबूत होना जरूरी है।
साथ ही बड़ी मात्रा में प्राकृतिक संसाधन होने चाहिए, बड़ी पूँजी होना चाहिए ताकि दूसरे देशों में भी उसका निवेश किया जा सके, उसके पास अधुनातन प्रौद्योगिकी हो, भौगोलिक रूप से सही रणनीतिक जगहों पर उसकी पहुँच हो और उसके पास स्वास्थ्य व शिक्षा की एक विकसित प्रणाली हो।
सोवियत संघ के पतन के बाद जो दो देश इस जगह को भर सकते थे, वे थे भारत और चीन। भारत, चीन से बेहतर स्थिति में था क्योंकि उस समय भारत की अर्थव्यवस्था चीन से आगे थी लेकिन भारत राजनीति के बियाबान में भटक गया, हालाँकि इसकी अर्थव्यवस्था ने जल्द ही गति पकड़ ली लेकिन समग्र आर्थिक विकास में चीन आगे निकल गया।
उत्तर और पूर्व में उग्रवाद पर काबू पाने में राज्य और केंद्र की सरकारों का ध्यान ज्यादा रहा। और वे आतंकवाद और आर्थिक मोर्चे पर भी गैरजिम्मेदाराना रुख दिखाती रहीं।
इसके विपरीत चीन ने अपना पूरा ध्यान आर्थिक विकास पर लगाया और सैन्य शक्ति को बढ़ाया। आर्थिक विकास को लेकर उसका एजेंडा बहुत साफ रहा है। उसने सस्ते उत्पादों के जरिए दुनिया के बाजारों में प्रवेश किया और देश के हित के लिए विदेशी पूँजी आने के लिए अपने रास्ते खोल दिए। एक मजबूत ढाँचा खड़ा करने में वह सफल रहा।
इस प्रक्रिया में उसने विदेशी मुद्रा और खासकर अमेरिकी डॉलर का इतना बड़ा भंडार खड़ा कर लिया कि वह अमेरिकी सिक्योरिटीज में निवेश करने लगा और अमेरिका को कर्ज देने वालों में वह सबसे आगे हो गया।
भारत के पास भी वे सुविधाएँ थीं, जो चीन के पास थीं-एक बड़ी और बढ़ती युवा जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधन की प्रचुरता और बहुत बड़ी संख्या में विदेशी उद्यमी भी यहाँ निवेश करने में दिलचस्पी ले रहे थे। लेकिन महाशक्ति बनने के लिए राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जरूरतों को भारत पूरा नहीं कर सका। एक मजबूत ढाँचा बनाने में वह नाकाम रहा।
औद्योगिक और कृषि के विकास के लिए जरूरी सड़कें, रेल सुविधाएँ, विमान सेवाएँ और जहाजरानी, ऊर्जा, पानी आदि पर्याप्त नहीं रहे। बिजली की भारी कमी के कारण उद्योग महीने में कई-कई दिन के लिए बंद रहने लगे जिससे उत्पादन में बहुत कमी आई। भारत अपने को विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में नाकाम रहा।
भारत का बुनियादी ढाँचा (बिजली, सड़कें, बंदरगाह और हवाई अड्डे) हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हैं। इसकी वजह से हमारा औद्योगिक और कृषि विकास रुक गया। प्रतिबंधात्मक श्रम कानूनों के कारण ऐसे उत्पादों के निर्यात में जिनमें ज्यादा श्रमशक्ति की जरूरत होती है, वह चीन के मुकाबले पिछड़ गया। अफसरशाही अपनी औपचारिक सीमाओं में बँधी होने के कारण आगे नहीं देख पा रही थी।
इससे उद्योगों और ढाँचागत निवेश प्रभावित हुआ और विकास में बाधा आई। कृषि क्षेत्र के प्रति उदासीनता बरतने से इसमें निवेश वास्तव में नकारात्मक हो गया। आज भी भारत की कृषि मानसून पर निर्भर है। और यह कृषि के मामले में साठ साल पीछे की हालत में है।
अगर भारत महाशक्ति बनना चाहता है तो इसे आर्थिक रूप से ताकतवर बनना होगा। तभी यह अपने को सैन्य शक्ति या सामरिक रूप से प्रभावकारी बना सकता है। तभी यह अपने निकट के और दूर के क्षेत्रों में अपना प्रभाव पैदा करने में सक्षम होगा।
नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे अपने कमजोर पड़ोसियों को प्रभावित करने में भी भारत असफल रहा है। आज सारी दुनिया में कहा जा रहा है कि अगली महाशक्ति भारत नहीं, चीन है। चीन तरक्की की राह पर है। पिछले आठ सालों में विश्व के आर्थिक उत्पादन में चीन का हिस्सा 3.4 प्रतिशत से बढ़कर 8 प्रतिशत हो गया है।
आज पूरी दुनिया को यकीन है कि आने वाले 20 सालों में चीन अगली महाशक्ति होगा। महाशक्ति बनने के सभी लक्षण वह देश दिखा रहा है। 2003 में चीन ने दुनिया का 70 प्रतिशत तेल, चौथाई इस्पात और अल्युमीनियम, विश्व के संपूर्ण लौह अयस्क और कोयले का एक तिहाई हिस्सा और सीमेंट का 40 प्रतिशत भाग खरीदा औऱ अपने को विश्व का अग्रणी देश साबित किया।

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