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Friday, April 2, 2010

बर्बरीक से श्याम बाबा

बर्बरीक से श्याम बाबा तक की कथा
भक्तजनों, श्याम बाबा कौन है? क्या है? कैसे हैं? कहां रहते हैं एवं कैसे लगते हैं? इस प्रकार के कई प्रश्र कई लोगों के मन में जिज्ञासा बनाए हुए है। पूरी कथा जानने के लिए तो विस्तार में जाना पड़ेगा। आप जैसे-जैसे श्याम भक्तों के करीब आते चले जाएंगे, वैसे-वैसे आपको इनके बारे में अत्यधिक जानकारी होती चली जाएगी। अत: हम आपको संक्षेप में बाबा के विषय में जानकारी देने का प्रयास करेंगे।
महाभारत काल की सारी घटना है जिस काल में श्याम बाका का प्रादुर्भाव हुआ। पांडव कुलभूषण बर्बरीक बड़े ही बलशाली एवं दानवीर थे। देवादिवेव महादेव एवं मां जगदम्बा का इन्हें प्रत्यक्ष आशीर्वाद प्राप्त था और इस आशीर्वाद के फलस्वरूप उन्हें इनसे तीन ऐसे तीर प्राप्त हुए थे जिनसे वे पूरे त्रिलोक को नष्ट करने की क्षमता रखते थे। बर्बरीक महादेव और जगदम्बा के प्रिय भक्त थे। माता की आज्ञा ले, वे युद्ध देखने घर से लीले घोड़ पर सवार होकर चल पड़े (इसलिए इन्हें लीले असवार भी कहा जाता है।)। कौरवों ने पांडवों के साथ हमेशा छल किया। बराबर का हक होने के बाद भी उन्हें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पांच गांव मांगने पर भी मना कर दिया और सुई के सम्मान जगह भी देने से मना कर दिया। पांडव शांतिप्रिय एवं धर्मावलंबी थे। जंगल-जंगल भटकते रहते थे। अत: भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म की रक्षा के लिए धर्मयुद्ध महाभारत का ऐलान कर डाला और उन्होंने अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार कर लिया। जिनके पक्ष में स्वयं नारायण हों उस पक्ष की हार कभी हो ही नहीं सकती, किन्तु कौरवों को श्रीकृष्ण एक मायावी, छलिया एवं गाय चराने वाले के सिवा कुछ प्रतीत नहीं होते थे। स्वयं वीर बर्बरीक की माता को भी पांडवों की जीत का संदेह हो चला था। अत: उन्होंने अपने प्रिय पुत्र बर्बरीक की वीरता को देख उसने वचन मांगा की तुम युद्ध देखने अवश्य जाओं लेकिन यदि वहां युद्ध भी करना पड़े तो हारे का साथ देना (मन में था पांडवों का साथ देना पर खुल कर नहीं कहा) और मातृभक्ति पुत्र ने माता को हारे का साथ देने का वचन दिया।
अन्तर्यामी लीला पुरूषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण को भान हो गया कि बर्बरीक युद्ध देखने के लिए चल पड़े हैं और वे जानते थे कि इस महायुद्ध में कौरवों की हार निश्चित है और बर्बरीक अपनी माता को दिए बचन के अनुसार हारे का सहारा जरूर बनेंगे। और यदि ऐसा हो गया तो पांडवों का विनाश निश्चित है उन्हें कोई नहीं बचा पाएगा। अत: लीलाधर ने एक लीला रची और उन्होंने ब्राह्मण का वेश धारण कर रास्ते में बर्बरीक से मिलने हेतु चल पड़े। बर्बरीक से प्रथम भेंट होने पर उन्होंने उनसे कई प्रकार की बातें की। फिर उनसे उनका परिचय पूछा। बर्बरीक ने अपने बल पौरुष और दान शीलता का बखान किया। ब्राह्मण रूपधारी भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी वीरता का प्रत्यक्ष परिचय दनेे के लिए कहा। बर्बरीक ने एक ही बाण से सारी सृष्टि को संहार करने का ओजस्वी स्वर गुंजायमान किया। ब्राह्मण वेश धारी ने असहमति जताते हुए कहा कि वहीं स्थित एक पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को एक ही बाण में बेधकर दिखाओ तो जानू। इसी समय श्रीकृष्ण ने उनमें से एक पत्ते को तोड़कर अपने पांव के नीचे दबा लिया। बर्बरीक ने ध्यान मग्न होकर बाग पत्तों पर छोड़ डाला। सभी पत्तों को एक ही बाण से बिंधा देखकर ब्राह्मण वेश धारी श्रीकृष्ण ने जब अपने पांव को हटाया तो उस पत्त को बिंधा हुआ पाया। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने सोचा कि यदि इस समयानुसार कोई लीला रची जाएगी तो वह सदैव अमर हो जाएगी।
भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से दान मांगा और उसका वचन ले लिया। बचन मिलने पर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसके शीश को ही दान मांग लिया। किशोर अचम्भित रह गया कि यह क्या मांग लिया-किन्तु बड़े ही नम्र भाव में आकर उन्होंने ब्राह्मण से विनती की प्रभु आपको मेरे शीश से क्या प्रायोजन, आप कौन हैं? ब्राह्मण हो नहीं हो सकते। कृपा कर अपने को प्रगट कर शंका का निवारण करें। तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने रूप का दर्शन कराया और समझाया वत्स, महाभारत युद्ध के लिए एक वीर की बलि चाहिए तुम पांडव कुल के हो। अत: रक्षा के लिए तुहारा बलिदान सदैव याद किया जाएगा। बर्बरीक ने शीश दान से पहले युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की। भगवान ने तथास्तु कहकर बर्बरीब को संतुष्ट कर दिया। सारा ब्रह्माण्ड सुन्न हो गया-अब ऐसी घटना होने वाली थी जो न तो हुई और न आगे भविष्य में किसी युग में होगी। वीर ने अपने आराध्य देवी-देवताओं का वंदन किया। माता को नमन् किया और फिर अपनी कमर से कटार खींचकर एक ही वार में अपने शीश को धड़ से अलगकर श्रीकृष्ण को शीश दान कर दिया। श्रीकृष्ण ने देरी न करते हुए बर्बरीक के शीश को अपने हाथ में उठाकर लिया एवं अमृत से सींचकर अमर करते हुए एक टीले पर रखवा दिया। खाटू मंदिर में आप जब कभी-भी जाते हैं और दर्शन करने पर श्याम बाबा का हर बार एक नया रूप देखने को मिलता है जैसे कभी दुबला-कभी मोटा-कभी हंसते हुए-कभी तेज भरा कि नजर तक नहीं टिक पाती हैं। प्रसंगवश आगे ये बात लिखने से रह नहीं जाए अत: यहीं लिख दिया।
भक्तजनों युद्ध शुरू हुआ-अमरत्व प्राप्त शीश पूरे युद्ध को देख रहा था-युद्ध के दौरान कई लीलाएं घटती रही। धर्म और अर्धम की आंख मिचौली निरंतर जारी थी-दृष्टा मौन हो सब देख रहा था। अत: कौरवों का अंत हुआ। पांडव विजयी हुए। विजय के मद में मति बदल दी। सभी आत्मा प्रशंसा में लग गए-मतांतर होने पर भगवान श्रीकृष्ण के पास निर्णय के लिए पहुंचे। श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं तो स्वयं वयस्त था आप में से किसने क्या पराक्रम दिखाया, मैनें नहीं देखा। बर्बरीक के पास चलें वहीं निर्णय मिलेगा। अब तक बर्बरीक के शीन दान कीकहानी पांडवों ने नहीं सुनी थी। बर्बरीक के पास पहुंचकर भगवान श्रीकृष्ण ने पूछा कि किसने क्या-क्या पराक्रम किया जो आपने देखा, तो बर्बरीक के कटे शीश ने उत्तर दिया कि प्रभु युद्ध में आपका सुदर्शन चक्र नाच रहा था और मां जगदम्बा खप्पर भर-भर कर लहू का पान कर रही थी और मुझे तो ये लोग कहीं दिखाई नहीं दिए। बर्बरीक की बातें सुनकर पांडवों को सिर नीचे झूक गया। ऐसे धर्मानुकूल निर्णय सुनकर केवल भगवान वासुदेव ही मुस्कुरा रहे थे। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का परिचय सभी से कराया। भक्तजनों स्कन्धपुराण में बर्बरीक को भीम के पुत्र घटोत्कच का पुत्र बतलाया गया है। जबकि कई जगहों इन्हें भीम का पौत्र नहीं पुत्र माना गया है। मैं तो केवल इतना ही जानता हूं कि यह मेरे अराध्य हैं और मैं इनका दास हुं-वे सकल फलदायक है क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण से ऐसा ही वरदान मिला। वैसे हमारी संस्कृति वेदों और पुराणों के आधार पर टिकी है।
पुनश्च: पांडवों को दिए निर्णय के तत्काल बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की दान वीरता और भक्ती भाव को देखते हुए उन्हें अपना नाम श्याम दिया और अपनी कलाएं एवं अपनी शक्तियां प्रदान की। और साथ ही कलयुग में घर-घर पूजे जाने का भी वरदान दिया-प्रभु का स्वर गुंजा-बर्बरीक धरती पर तुमसे बड़ा दानी ना तो हुआ है और ना ही होगा।
मां को दिए वचन के अनुसार तुम हारे का सहारा बनोगे। कल्याण की भावना से तुम्कारे दरबार में तुमसे लोग जो भी मांगेगे-उन्हें मिलेगा। वे खाली झोली लेकर वापिस नहीं जाएंगे। तुम्हारे दर पर सब इच्छाओं की पूर्ति होगी।

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