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Thursday, April 22, 2010

घट रहे जल-जंगल-जमीन


ज्वालामुखी से निकले धूल के गुबार ने ब्रिटेन व योरप में हवाई यातायात ठप कर दिया। इससे करोड़ों का नुकसान हो गया। चीन में कुछ समय पहले भूकम्प आया था, जिसमें 1700 लोग मारे गए। ये दोनों घटनाएँ हाल-फिलहाल की हैं। इसके पहले भी अगर पाँच से दस वर्ष की घटनाओं को देखा जाए तो भूकम्प व प्राकृतिक आपदाओं की घटनाओं की संख्या में तेजी आ रही है।
धरती का बुखार तेजी से बढ़ रहा है। वैज्ञानिक अब इस बात को लेकर अध्ययन कर रहे हैं कि ज्वालामुखी के कारण जो धूल और धुआँ वातावरण में फैल रहा है और उसका मौसम के बदलाव से कितना संबंध है? जिस तेजी से धरती का तापमान भी बढ़ रहा है उससे जंगल, जमीन और जल पर भी असर पड़ा है। पृथ्वी का अस्तित्व ही इन तीनों से जुड़ा है।
दुनियाभर में अब पर्यावरण और पृथ्वी दिवस को लेकर काफी जागरूकता आ गई है लेकिन इस जागरूकता का फायदा कितना हो रहा है, इसका आकलन अभी तक नहीं हो पा रहा है।
हम नजरअंदाज करने लगे : पर्यावरण बदलाव के कारण तापमान बढ़ रहा है। तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघलेंगे और इससे दुनिया के कई शहर डूब जाएँगे! इस प्रकार की रिपोर्ट और अन्य पर्यावरण की रिपोर्टें मीडिया में कुछ वर्षों से आ रही हैं। यह इतनी संख्या में आ रही हैं कि हमारा ध्यान इनकी ओर सहसा नहीं जाता। शायद, हम इन्हें नजरअंदाज करना सीख गए हैं।
इन रिपोर्टों का उद्देश्य आम जनता को जागरूक करना होता है, परंतु हम यह मान बैठे हैं कि इनसान सब कुछ कर सकता है, यहाँ तक कि धरती के पर्यावरण को भी बदल सकता है। लेकिन आइसलैंड में हुए ज्वालामुखी विस्फोट और उसके बाद आर्थिक नुकसान ने यह जता दिया है कि विकसित राष्ट्र की टेक्नोलॉजी और संसाधन कितने बौने साबित हुए।
जल, जंगल और जमीन : विश्वभर में मानव आबादी बढ़ने के कारण जंगल कम हो रहे हैं। जिसका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है। विभिन्न गैसों के कारण धरती का तापमान बढ़ रहा है। तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियरों का पिघलना जारी है, जिससे जमीन पानी में जा रही है। तापमान बढ़ने का असर यह भी है कि कई नदियाँ केवल मौसमी नदियाँ बन कर रह जाएँगी जिससे पीने के पानी का भीषण संकट पैदा होगा!
विश्व की अर्थव्यवस्था पर असर : धरती ने कई बार चेतावनी दी, परंतु लगता है हम थोड़े समय तक ही गंभीर होते हैं। बाद में पर्यावरण जैसे मुद्दे पर सोचने का भी आलस करने लगे हैं। जिस प्रकार से प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ रही हैं उसका सीधा असर विश्व अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है।
भूकम्प, बाढ़, भूस्खलन, ज्वालामुखी, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के चलते हम वास्तविक विकास करना भूल ही जाएँगे। हमारा अधिकांश समय और पैसा अपने आप को बनाए रखने के लिए खर्च करना होगा। आइसलैंड के ज्वालामुखी ने यह साबित कर दिया है कि हम कितनी भी आर्थिक तरक्की कर लें प्रत्येक तरक्की का आधार धरती ही है।
विशेषज्ञों की चेतावनी : लंदन की रॉयल सोसायटी ने हाल ही में बिल मेक्ग्योर के शोध पत्र को प्रकाशित किया है। इस शोध पत्र में यह कहा गया है कि भूकम्प और सुनामी तो अभी शुरुआत भर है। मौसम परिवर्तन के कारण आने वाले वर्षों में काफी गंभीर समस्याएँ खड़ी होने वाली हैं। तापमान में वृद्धि के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, हम सभी को पता है।

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