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Friday, August 27, 2010

पति-पत्नी : झगड़ों की बस दो ही वजह

पति-पत्नी के बीच झगड़े के कारणों के बारे में आप सोचना शुरू करते हैं तो आपको बहुत से कारण दिखाई पड़ेंगे। लेकिन एक अध्ययन कहता है कि पति-पत्नी के बीच झगड़ों के महज दो ही कारण होते हैं। जर्नल साइकोलॉजिकल एसेसमेंट के जून अंक में प्रकाशित एक अध्ययन कहता है कि पति और पत्नी के बीच झगड़ों के केवल दो ही कारण होते हैं। बेलर यूनिवॢसटी, टैक्सास के साइकोलॉजिकल एंंड न्यूरोसाइंस विभाग के कीथ सैन्फोर्ड, पीएचडी और कपल कंफ्लिक्ट कंसल्टेंट ने ३५३९ विवाहित लोगों पर यह अध्ययन किया था। इस अध्ययन में झगड़े के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों और व्यवहार का विश्लेषण किया। सैन्फोर्ड और उसके साथी अनुसंधानकत्ताओं ने अध्ययन के दौरान एक क्वेश्चनेयर तैयार किया, ताकि इस बात को जाना जा सके कि पति-पत्नी और पार्टनर्स किन मुद्दों पर लड़ते हैं। इस टीम ने यह नतीजा निकाला कि हर झगड़े में एक व्यक्ति (पति या पत्नी) यह महसूस करता है कि उसकी उपेक्षा की जा रही है, दूसरा पार्टनर उसके प्रति प्रतिबद्ध नहीं है या एक पार्टनर दूसरे के लिए चुनौती बन रहा है। २६ वर्षीया दीपाली शर्मा कहती हैं- मैं और मेरा पार्टनर दोनों प्रोफेशन में हैं, इसलिए हमें देर रात तक काम करना होता है। लिहाजा हम दोनों ही उपेक्षित महसूस करते हैं। वास्तव में कई बार मैं अपने पार्टनर को कह चुकी हूं कि क्या उसने शादी अपने काम से की है। मैं तुम्हारे लिए बेकार की चीज हूं।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर निखिल कोतवानी का कहना है कि उसकी पत्नी हर चीज पर अपना नियंत्रण रखती है। वह कहता है, कई बार मुझे लगता है कि तीन साल से मेरी पत्नी मुझे झेल रही है। मनोचिकित्सक दीपक रहेजा कहते हैं, अक्सर ऐसी शादियों में ही ऐसा होता है, जहां पार्टनर पहले से एक-दूसरे को जानते हैं या एक-दूसरे के साथ रह रहे होते हैं। वह कहते हैं, वास्तव में लोग अपने रिश्तों पर काम नहीं करते और दूसरे व्यक्ति से भी यही उम्मीद करते हैं। वह कहते हैं, इस तरह के रिश्तों में संवेदनशीलता और सहनशीलता की नितांत कमी होती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पति-पत्नी के बीच भावनाओं का आदान-प्रदान होना बेहद जरूरी और महत्त्वपूर्ण है-खासतौर से यदि आप उपेक्षित महसूस कर रहे हों। अपनी जरूरतों के प्रति ईमानदार होना आपके रिश्ते को एक सार्थक रिश्ते में बदल सकता है।

भारत ने चीन को औकात बताई

चीन ने एक बार‍ फिर उकसाने वाली हरकत करते हुए कश्‍मीर में तैनात भारत के बड़े सैन्‍य अफसर को वीजा देने से मना कर दिया है। उसकी दलील है कि कश्‍मीर विवादित क्षेत्र है और वहां की कमान संभाल रहे सैन्‍य अफसर का चीन स्‍वागत नहीं कर सकता। जवाब में भारत ने भी सख्‍त कदम उठाया है। चीन के साथ परस्‍पर रक्षा संबंध फिलहाल खत्‍म कर दिए गए हैं। विदेश मंत्रालय ने चीन के राजदूत को इस मामले में तलब कर सफाई देने को कहा है। इसके अलावा, चीन ने यह फैसला किया है कि उसकी सेना का एक अफसर अगले महीने इस मामले को सुलझाने के लिए भारत का दौरा करेगा।
भारत में चीन के राजदूत झैंग यान को शुक्रवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के आला अफसरों ने तलब किया है। इससे पहले शुक्रवार को ही चीनी दूतावास की ओर से जारी बयान में कहा गया कि दूतावास को वीज़ा न दिए जाने के बारे में मालूम तो है, लेकिन सही जानकारी नहीं है। भारतीय सेना के नॉर्दर्न एरिया कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जसवाल (देखें तस्‍वीर) को इसी महीने चीन जाना था। इसके लिए भारतीय सेना ने जून से ही तैयारी शुरू कर दी थी। चीन ने जसवाल के नाम पर यह कहते हुए आपत्ति जाहिर कर दी कि जसवाल जम्मू-कश्मीर के विवादित क्षेत्र को 'नियंत्रित' करते हैं।
जनरल जसवाल को जुलाई में चीन के दौरे पर जाना था। लेकिन चीन की आपत्ति के बाद जसवल का वीज़ा रोक दिया गया। भारत और चीन के बीच इसी साल जनवरी में जनरल रैंक के अफसरों की एक-दूसरे के देश की यात्रा कराने पर सहमति बनी थी। जसवाल इसी सहमति के तहत चीन जाने वाले थे। हालांकि, उस समय यह तय नहीं किया गया था कि कौन से अफसर इस तरह की यात्रा पर जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक भारत ने जब जनरल जसवाल को चीन के दौरे पर भेजने के अपने फैसले की जानकारी चीन को दी तो चीन ने कहा कि जसवाल जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील सूबे से आते हैं और इस इलाके के लोगों के लिए अलग तरह के वीज़ा की जरूरत होती है। सूत्र यह भी बताते हैं कि चीन का जवाब जसवाल की यात्रा की तारीख के आसपास आया, जिसके चलते मामले को सुलझाया नहीं जा सका।
इस बीच, जनरल जसवाल ने कहा है, 'मुझे बताया गया है कि मेरी चीन यात्रा कुछ समय के लिए टाल दी गई है। लेकिन मुझे यह नहीं मालूम है कि ऐसा क्यों हुआ।' उधर, हैदराबाद में रक्षा मंत्री ए.के.एंटनी ने चीन से रक्षा संबंध तोड़े जाने की ख़बर का खंडन किया है। उधर, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने कहा है कि चीन को भारत की चिंताओं को लेकर संवेदनशील होना होगा।
चीन के वीजा देने से इनकार करने पर भारत ने भी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए चीनी सेना के दो अफसरों को भी भारत आने की इजाजत देने से मना कर दिया गया है। ये दोनों अफसर नेशनल डिफेंस कॉलेज में ट्रेनिंग के लिए आने वाले थे। भारत ने चीन को इन फैसलों की वजह की जानकारी भी दे दी है ताकि इस मामले में कोई भ्रम की स्थिति न रहे। सूत्र बताते हैं कि जल्‍द ही चीन की सत्‍ताधारी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के एक वरिष्‍ठ सदस्‍य भारत आने वाले हैं। संभवत: उनके सामने यह मुद्दा उठ सकता है।
चीन ने नॉर्दन आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बी एस जसवाल को इसलिए अपने देश में आने की अनुमति नहीं दी है क्योंकि जसवाल संवेदनशील जम्मू-कश्मीर से जुड़े हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक ले. जसवाल को जुलाई में रक्षा समझौतों के लिए की जाने वाली यात्रा के तहत चीन जाना था, लेकिन चीन की आपत्ति के कारण ऐसा नहीं हो सका।
चीन की इस हरकत पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए भारत ने भी उस देश के रक्षा अधिकारियों की यात्रा को अस्थाई तौर पर रोक दिया है। सूत्रों के मुताबिक जनवरी में हुई वार्षिक रक्षा वार्ता के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा समझौतों के लिए जनरल स्तर के अधिकारियों की यात्रा के बारे में सहमति बनी थी। उन्होंने बताया कि उस समय इस यात्रा के जुलाई में संपन्न होने का फैसला हुआ था, लेकिन तब यह निर्धारित नहीं हो सका था कि भारत की ओर से किसे भेजा जाएगा।
सूत्रों ने बताया कि भारत ने जब लेफ्टिनेंट जनरल जसवाल को भेजने के बारे में चीन को बताया, तो चीन ने एक पत्र लिखकर कहा कि ले. जसवाल जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाके से जुड़े हैं और दुनिया के इस भाग के लोग एक अलग वीजा पर ही आ सकते हैं।
चीन ने सुझाव दिया कि भारत किसी और को भेज सकता है और उसे अपनी यात्रा निरस्त नहीं करनी चाहिए। सूत्रों ने बताया कि चीन की आपत्ति यात्रा के ऐन पहले आई, जिसके चलते मामला सुलझ नहीं सकता था और इसलिए यात्रा निरस्त हो गई।
जनरल जसवाल ने कहा कि मुझे बताया गया कि यात्रा कुछ दिन के लिए स्थगित कर दी गई। मुझे नहीं पता कि इसमें देरी क्यों हो रही है। दूसरी ओर हैदराबाद में मौजूद रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने इस बात से इंकार कर दिया कि इस विवाद के चलते चीन के साथ रक्षा संबंधों पर कोई प्रभाव पड़ेगा।
एंटनी ने एक समारोह में संवाददाताओं से कहा कि चीन के साथ रक्षा संबंध तोड़ने का सवाल नहीं है। हमारे चीन के साथ करीबी संबंध हैं, हालांकि समय-समय पर कुछ परेशानियां हो सकती हैं।
एंटनी ने कहा कि कुछ समय की परेशानियों के कारण चीन के साथ हमारे संपूर्ण संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने कहा कि यात्रा कुछ कारणों के चलते नहीं हो सकी, हालांकि उन्होंने इस बारे में विस्तृत जानकारी देने से मना कर दिया। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि चीन को भारत की चिंताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
प्रकाश ने कहा कि हम चीन के साथ अपने संबंधों की कीमत समझते हैं, लेकिन एक-दूसरे की चिंताओं के प्रति संवेदनशीलता होनी चाहिए। इस मुद्दे पर हमारी चीन के साथ बात हो रही है।
बीजिंग की इस हरकत से व्यथित भारत ने भी चीन के दो सैन्य अधिकारियों को भारत की यात्रा की अनुमति देने से अस्थाई तौर पर इंकार कर दिया है। दोनों सैन्य अधिकारियों को नेशनल डिफेंस कॉलेज में प्रशिक्षण प्राप्त करने आना था। भारतीय सैन्य अधिकारियों की चीन यात्रा को रोक दिया गया है।
चीन की इस हरकत की राजनीतिक दल भी यह कहते हुए निंदा कर रहे हैं कि यह भारत का अपमान है और सरकार को इस मुद्दे को मजबूती से उठाना चाहिए। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा हम चीन के इस कदम की निंदा करते हैं। विदेश मंत्रालय और सरकार को फौरन चीन से इस संबंध में मजबूत तौर पर नाराजगी जाहिर करनी चाहिए। जसवाल को चीन आने की अनुमति न देना भारत का अपमान है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हमारे पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ अहम, बहुपक्षीय और जटिल संबंध हैं। उन्होंने कहा कि चीन के साथ हमारा रक्षा समेत कई क्षेत्रों में संपर्क बढ़ रहा है। हाल के वर्षों में हमने उसके साथ कई स्तरों पर उपयोगी रक्षा समझौते किए हैं।
जावड़ेकर ने कहा कि चीन को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि कश्मीर कोई विवादित क्षेत्र नहीं है और यह भारत का एक अहम भाग है। कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि भारत हमेशा से कहता आया है कि वह चीन के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते चाहता है लेकिन ये रिश्ते आपसी सम्मान पर आधारित होने चाहिए जिसमें दोनों देश एक दूसरे की संवेदनाओं को ध्यान रखें।
जावड़ेकर ने कहा कि चीन हमेशा से अरूणाचल प्रदेश में समस्या को हवा देता आ रहा है और अब कश्मीर की स्थिति से लाभ उठाना चाहता है। उन्होंने कहा कि इससे पाकिस्तान को मदद मिलेगी।
भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह ने सरकार से कहा कि वह इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाए। जसवंत ने कहा कि जसवाल एक समारोह में जा रहे थे, जो कोई निजी समारोह नहीं था। मुझे लगता है कि सरकार को इस मामले में बहुत कड़ा रुख अपनाना चाहिए। तिवारी से पूछा गया कि क्या पार्टी इस मामले में सरकार से मांग करेगी कि वह इस मुद्दे को चीन के समक्ष उठाए, इस पर उन्होंने कहा कि विदेश मंत्रालय को देखना है कि इस मामले को किस तरह सबसे अच्छे तरीके से उठाया जा सकता है। मुझे पूरा विश्वास है कि विदेश मंत्रालय इसका ध्यान रखेगा और जो जरूरी होगा, करेगा। वहीं विदेश राज्य मंत्री प्रणीत कौर ने संसद के बाहर संवाददाताओं से कहा कि सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है। पाकिस्तान की राह पर चलते हुए चीन ने पिछले कुछ दिन से जम्मू-कश्मीर के लोगों को वीजा जारी करने से मना कर दिया है। चीन इस प्रदेश को विवादित मान रहा है और इसके चलते यहां के लोगों को एक सादे कागज पर नत्थी किया हुआ वीजा जारी कर रहा है, जिसे आव्रजन अधिकारी स्वीकार नहीं कर रहे।
भारत ने चीन के फैसले को उकसाने वाला माना है। क्योंकि अगस्त, 2009 में तत्कालीन जीओसी-इन-सी ईस्टर्नकमांड लेफ्टिनेंट जनरल वी.के.सिंह चीन गए थे। भारत का मानना है कि अगर चीन को ऐसे ऐतराज थे तब वी.के.सिंह की यात्रा पर भी सवाल उठने चाहिए थे क्योंकि ईस्टर्न कमांड संभाल रहे वी.के.सिंह के ही तहत अरुणाचल प्रदेश का इलाका आता है, जिस पर चीन समय-समय पर अपना दावा करता रहाहै।
चीन कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत को घेरता रहा है। कुछ महीने पहले तक वह जम्मू-कश्मीर के निवासियों को उनका वीजा उनके पासपोर्ट पर चिपकाने के बजाय अलग पन्‍ने पर नत्‍थी कर देता था। भारत ने इस पर जबरदस्‍त आपत्ति की थी। चीन अरुणाचल प्रदेश के निवासियों को भी वीज़ा नहीं देता है। उसकी दलील है कि अरुणाचल प्रदेश के निवासी चीन के नागरिक हैं।

क्या खेलों के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ अनुशासन है?

कॉमनवेल्थ गेम्स की बदौलत दिल्ली में बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रांसपोर्ट के प्रॉजेक्ट चल रहे हैं। लेकिन इसके लिए राजधानी को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। दिल्ली मेट्रो, ढेरों फ्लाईओवर और गेम्स से जुड़े दूसरी परियाजनाओं के लिए, पिछले कुछ सालों के दौरान, 40 हजार हरे-भरे पेड़ों की कुर्बानी दी गई है। हालांकि, शहर का ग्रीन कवर हर साल एक फीसदी की दर से बढ़ा रहा है, जो काटे गए पेड़ों की जगह लगाए जाने वाले पौधों की वजह से है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अकेले मेट्रो के लिए 4340 पेड़ काटे गए हैं 30 फ्लाईओवरों के लिए 8000 से ज्यादा पेड़ों की बलि दी गई। अफसरों का कहना है कि 2007-08 के बीच 18 शहरी वन बनाए गए हैं और हर काटे गए पेड़ के एवज में 10 नए पौधे लगाए गए हैं जिसकी वजह से शहर के ग्रीन कवर पर अच्छा असर पड़ा है।
लेकिन, पर्यावरणविद इस सरकारी दलील को सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि, 'एक भरे-पूरे पेड़ को काटने की क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती। दसियों पौधे एक पूरी तरह से विकसित वृक्ष की जगह नहीं ले सकते। हालांकि हम इस बात से इनकार नहीं करते कि शहर में ग्रीन कवर बढ़ा है लेकिन राजधानी तेजी से कंक्रीट जंगल में तब्दील होती जा रही है। और जो वन लगाए जा रहे हैं वे शहर की सीम पर स्थित हैं। इस बात का भी कोई ऑडिट नहीं हो रहा है कि काटे गए पेड़ों की जगह असल में कितने पौधे लगाए गए हैं। क्या सरकार स्ट्रीटस्केपिंग जैसे काम के लिए काटे गए पेड़ों की भरपाई कर सकती है?'

क्या वास्तव में खूबसूरत लड़कियों के कारण सड़क हादसे हो रहे हैं?


अंजलि सिन्हा
कुछ समय पहले एक खबर आई थी कि जर्मनी के दक्षिणी शहर कोन्स्टांज में एक लड़का साइकिल More Pictures
चला रहा था तभी उसकी नजर एक सुंदर लड़की पर पड़ी। उसे निहारने के चक्कर में वह साइकिल से गिर पड़ा जिसमें उसे काफी चोट आयी। रुडोल्फ नाम का यह लड़का कोर्ट पहुंचा लड़की के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने। अपनी शिकायत में उसने कहा कि उसके घायल होने का कारण वह लड़की है लिहाजा उसे वह जुर्माना दे। कोर्ट ने उसकी मांग ठुकरा दी और कहा कि साइकिल चलाते वक्त आंखें सड़क पर होनी चाहिए न कि लड़की पर। अभी लंदन के सर्वेक्षण के नतीजों से जर्मनी की यह खबर ताजा हो गई। इस सर्वेक्षण के हवाले से कहा गया है कि खूबसूरत लड़कियों के कारण सड़क हादसे हो रहे हैं।
महिलाएं और एकाग्रता
अध्ययन में पाया गया कि गर्मियों के मौसम में पुरुष अधिक सड़क दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं क्योंकि कार चलाते वक्त उनका ध्यान सड़क पर लड़कियों के छोटे कपड़ों के कारण भटक जाता है। 29 फीसदी पुरुषों ने माना कि सड़क पर महिलाओं को देखने के चक्कर में उनकी एकाग्रता चली जाती है। उधर अमेरिका में भी एक महिला बैंक कर्मचारी को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी क्योंकि उसकी सुंदरता के कारण पुरुष कर्मचारियों का काम में मन नहीं लगता था।
ऐसे प्रेक्षण कुछ सवालों पर सोचने के लिए मजबूर करते हैं। जैसे, अधिकतर स्टियरिंग के पीछे कौन बैठता है जिसका ध्यान भंग होता है? क्या यह भावना प्राकृतिक है या उन्होंने इसे अपने परिवेश से सीखा है? यदि प्राकृतिक अंश है भी तो वह सिर्फ पुरुषों में नहीं, महिलाओं में भी होगा क्योंकि यौनिकता भाव सिर्फ पुरुषों में नहीं होता है।
कपड़ों का मुद्दा
सभ्यता के दौर में ही इंसान ने सीखा कि वह सिर्फ प्राकृतिक जरूरतें पूरी करने वाला जीव नहीं है बल्कि उसकी जरूरत दूसरे के अधिकार से भी जुड़ी है। यदि महिलाएं भी ऐसी जरूरतों को न्यायसंगत ठहरायें तो पुरुष तो उससे भी अधिक मौका देते हैं। हाफ पैंट या गमछे में बाहर दिख जाते हैं। गांव या कस्बों में सार्वजनिक कुओं या नलके पर नहाने बैठ जाते हैं। गर्मियों में वे अनौपचारिक रूप से जो पोशाक पहने रहते हैं उसमें भी अंगप्रदर्शन होता है। माना कि शारीरिक भिन्नताएं हैं लेकिन आजकल तो यह सब बच्चे अपने पाठ्यक्रम में पढ़ते हैं और उसके प्रति निगाहें कैसी हो, यह वे समाज में सीखते हैं। हमारे पूर्वज जो जंगलों में वस्त्रविहीन रहते थे, या आज भी कई आदिवासी इलाकों का पहनावा कम कपड़ों का है, क्या वहां भी पोशाक ऐसा ही मुद्दा होगा?
पूंजीवादी उपभोक्ता संस्कृति का मसला अलग है जिसमें औरत स्वयं को भी उपभोक्ता वस्तु मानने लगती है। पितृसत्तात्मक समाज में उसने यही सीखा होता है कि उसके पास सबसे बड़ी सम्पत्ति उसकी देह है। लेकिन यह एक अलग मुद्दा है। फिलहाल हम दूसरे पक्ष की बात कर रहे हैं जिसमें घूरने या छींटाकशी करने , किसी लड़की का पीछा करने तथा उसकी शांति भंग करने के लिए जिम्मेदार उसे ही ठहराने का हक पुरुष ले लेते हैं।
लंदन के सर्वे या जर्मनी की घटना या यहां घटनेवाली घटनाओं में एक ही प्रकार की धारणा या मानसिकता काम करती है। वह यह कि उन्हें स्वयं को ठीक नहीं करना , अपने भावनाओं पर नियंत्रण की सीख नहीं लेनी उल्टे इन सबको अपना हक समझ लेना। ऐसा करना धीरे - धीरे स्वाभाविक लगने लगता है। फर्क सिर्फ इतना है कि जर्मनी में वह लड़का केस दायरे करने अदालत चला गया जबकि हमारे यहां छेड़खानी या यौन हिंसा करनेवाले इसे अपना अधिकार मान लेते हैं।
वे कहते हैं कि लड़कियों को देख कर उनका मन मचल जाता है। हमारे समाज में लोग आम तौर पर यह कहते हुए पाए जाते हैं कि लड़कियां आज कल कपड़े छोटे पहनती हैं इसलिए लड़के छेड़ते हैं। वे गलत समय पर बाहर गई थीं इसलिए बलात्कार की शिकार हो गईं। पुरुषों की दुनिया में सोच विचार कर कदम बाहर नहीं रखेंगी तो खामियाजा भुगतना ही होगा। यह आम धारणा है कि यौन हिंसा का सामना उन्हीं लड़कियों या महिलाओं को करना पड़ता है जो बनी - बनाई लीक पर नहीं चलतीं। यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि किसी ने अस्वीकृत - अमर्यादित पोशाक पहन भी लिया तो इससे दूसरों को उनके खिलाफ मनमानी करने का हक कैसे मिल गया?
अपनी भावनाओं पर नियंत्रण की जिम्मेदारी स्वयं उस व्यक्ति की होती है। दूसरा व्यक्ति कुछ भी पहने हो, जब तक वह इजाजत न दे, तब तक आपको उससे क्या मतलब?
अदालत की समझ
हमारी न्याय व्यवस्था भी पारंपरिक समझ से ही निर्देशित होती रही है। तभी यौन हिंसा के खिलाफ फैसले के वक्त पीडि़ता के चरित्र या यौन संबंध बनाने की अभ्यस्त होने की बात कही जाती रही है। इसीलिए यह माना गया कि वेश्या का कोई हक नहीं है, उसके साथ कोई भी जबरन संबंध स्थापित कर सकता है। हमारे समाज में अधिकांशत : पत्नियों को भी यह हक नहीं मिलता कि वे पति के आग्रह को ठुकरा दें।
मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में जाने की इजाजत इसीलिए नहीं दी जाती है कि इबादत के समय पुरुषों को अल्लाह में ध्यान लगाने में बाधा पहुंचेगी। ऐसा क्यों नहीं सोचा गया कि जो अपनी निगाह पर काबू नहीं पा सकता है वह घर में बैठ कर इबादत करे। यदि कोई स्त्री ध्यान आकर्षित करने का कुचक्र रचती है तो भी जिसने ध्यान दिया , जवाबदेही उसी की बनती है।
आज कल शिक्षण संस्थाओं में वाद - विवाद प्रतियोगिताओं का विषय होता है कि छेड़खानी के लिए पोशाक कितनी जिम्मेदार है ? हमारी पुरानी परंपरा में या आदिवासी संस्कृति में भी कम कपड़े पहनने का रिवाज रहा है। इसका अर्थ यह नहीं हो सकता कि वे सभी स्त्रियां खुद को हिंसा के लिए प्रस्तुत करती हैं। यह देखने वाले या अश्लील व्यवहार करनेवाले के ऊपर निर्भर है कि वह किसी व्यक्ति या वस्तु को किस सोच और मानसिकता से देखता या मापता है। बाकी तो यह अलग ही मुद्दा है कि कोई क्या पहनता है और किस पोशाक में अच्छा दिखता है।

Saturday, August 21, 2010

करोड़पतियों को क्यों चाहिए और ज्यादा पैसा?

सदस्यों ने अपना वेतन तीन गुना बढ़वा लिया और छह लाख रुपए महीने के खर्चे का पात्र बनने के बावजूद उनकी लड़ाई जारी रही। लड़ाई का मुख्य कारण हैं कि सांसदों के अनुसार उन्हें जनता ने चुना है और जनता की ओर से वे देश के मालिक हैं इसलिए उनका वेतन भारत के सबसे बड़े अफसर कैबिनेट सचिव से कम से कम एक रुपए ज्यादा होना चाहिए। कैबिनेट सचिव को अस्सी हजार रुपए महीने मिलते है।
देश की सत्तर फीसदी आबादी की पारिवारिक आमदनी बीस रुपया प्रतिदिन है यानी छह सौ रुपए महीने। गरीबी की सीमा रेखा के नीचे जो लोग रह रहे हैं और जो भूखे सो जाने के लिए अभिशप्त हैं उनकी गिनती तो छोड़ ही दीजिए। उस पर तो हमारे ये माननीय सांसद खुद ही हंगामा कर के संसद का समय बर्बाद करते रहेंगे।
फिलहाल जो आंकड़े उपलब्ध है उनके अनुसार सांसदों में 315 करोड़पति हैं और उनमें से सबसे ज्यादा 146 कांग्रेस के हैं। ज्ञान, चरित्र, एकता वाली भाजपा के 59 सांसद करोड़पति हैं। समाजवादी पार्टी के 14 सांसद करोड का आंकड़ा पार कर चुके हैं। दलित और गरीबों की पार्टी कहीं जाने वाली बहुजन समाज पार्टी के 13 सांसद करोड़पति हैं। द्रविड़ मुनेत्र कषगम के सभी 13 सांसद करोड़पति हैं।
कांग्रेस में प्रति सांसद औसत संपत्ति छह करोड़ हैं जबकि भाजपा में साढ़े तीन करोड़ है। देश के सारे सांसदों को मिला लिया जाए तो कुछ को छोड़ कर सबके पास कम से कम साढ़े चार करोड़ रुपए की नकदी या संपत्तियां तो हैं ही। यह जानकारी किसी जासूस ने नहीं निकाली। खुद सांसदों ने चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार इस संपत्ति का खुलासा किया है।
सांसदों का यह भी कहना है कि अगर बेहतर सुविधाए मिलेंगी और अधिक वेतन मिलेगा तो ज्यादा प्रतिभाशाली लोग राजनीति में आएंगे। यह अपने आप में अच्छा खासा मजाक हैं। सिर्फ लोकसभा के 162 सांसदों पर आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं जिनमें से 76 पर तो हत्या, चोरी और अपहरण जैसे गंभीर मामले चल रहे हेैं। इन्हीं आंकड़ों के अनुसार चौंदहवीं लोकसभा में 128 सांसदों पर आपराधिक मामले थे जिनमें से 58 पर गंभीर अपराध दर्ज थे। जाहिर है कि प्रतिभाशाली नहीं, आपराधिक लोग संसद में बढ़ रहे हैं और उन्हें फिर भी पगार ज्यादा चाहिए।

आप शायद ही कॉमनवेल्थ पूरा देख पाएं

खेलों के बारे में अच्छी खबर का आप शायद इंतजार ही करते रहे। आज की हालत यह है कि 19 में से 12 स्टेडियम खेल की हालात में नहीं है, दिल्ली विकास प्राधिकरण ने कह दिया है कि वसंतकुंज में जो तीन सितारा फ्लैट बन रहे हैं उनमें से आधे ही वक्त पर तैयार हो पाएंगे, करने के लिए जो हाईटेक उपकरण लाए गए थे उनमें अभी से गड़बड़ी शुरू हो गई है और सुरेश कलमाडी पंचर होने के बाद से खामोश है।
उधर आयोजन समिति के कई सदस्यों ने बताया है कि उन्होंने आस्ट्रेलिया की प्रायोजक और विज्ञापन प्रबंधन कपंनी स्माम की क्षमता और उसे दिए जा रहे पैसों को ले कर सीएजी की जांच के पहले भी सवाल किए थे। मगर सुरेश कलमाडी की आस्था इस कंपनी में लगातार बनी रही। कल दिल्ली से लौटे कॉमनवेल्थ फेडरेशन के अध्यक्ष माइक फेनेल और सीईओ माइक हूपर दोनों ने मिल कर कलमाडी के साथ तालमेल किया था कि 200 करोड़ रुपए का अनुबंध स्माम के साथ कर लिया जाए क्योंकि उससे इन दोनों के पहले से लेन देन के रिश्ते थे।
स्माम एक भी विज्ञापनदाता या प्रयोजक नहीं ला सकी। आयोजन समिति की कार्यकारिणी ने 7 जून 2006 को माइक फेनेल ने साफ कहा था कि सिद्वांत रूप से स्माम को अनुबंधित करने की स्वीकृति दी जाती। माइक हूपर ने एक कदम और आगे बढ़ कर कहा था कि कॉमनवेल्थ आयोजन समिति को हर अनुबंध फेडरेशन से पूछ कर देना पड़ेगा। कलमाडी सौदे में शामिल थे इसलिए खामोश रहे। कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना ने जरूर ऐतराज उठाए थे। खन्ना खुद अब अपने बेटे की कंपनी को ठेका मिलने के कारण बाहर कर दिए गए।
अब सवाल आता है खेल समारोह की सुरक्षा का खेल मंत्रालय और आयोजन समिति ने रक्षा मंत्रालय से कहा है कि समारोह और खिलाड़ियों और दर्शकों की सुविधा और सुरक्षा के लिए सेना को नियुक्त करना चाहिए मगर इसके लिए रक्षा मंत्रालय को कोई खर्चा नहीं मिलेगा। सैनिकों का खाना भी आयोजन समिति नहीं खिलाएगी। रक्षा मंत्री एके एंटनी ने झापड़ मारने के अंदाज में इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
सेना के बैंड और एनसीसी के 2500 कैडेट भी काम करेंगे। उनके रहने के लिए 27 लाख का खर्चा कौन देगा यह भी तय नहीं है। उधर स्माम घोटाले के मामले में एक समिति के एक सदस्य टुंकु इमरान ने कहा था कि सिर्फ एक कंपनी पर भरोसा करना ठीक नहीं होगा। मगर बहुमत ने उनकी राय नहीं सुनी और इसी बैठक में ब्रॉडकास्ट अधिकारों पर भी फैसला हो गया जिसमें फिर करोड़ों का घाटा हुआ है।
फरवरी 2010 में समिति के राजस्व अधिकारी वी के सक्सेना ने कहा था कि स्माम के पास न प्रतिभा है, न लोग हैं, न शंका हैं और इसे दिए गए पैसे भी वापस ले लेने चाहिए। कोई आश्चर्य नहीं कि सुरेश कलमाडी ने या फेनेल ने या हूपर ने जिन्हें इस पत्र की प्रतियां भेजी गई थी इस बारे में कोई जवाब नहीं दिया।

Friday, August 20, 2010

क्या ऐतिहासिक सड़क है..जब भी टूटती है बनने का नाम ही नहीं लेती

स्थान : जगत क्रान्ति मार्ग
जिला : जीन्द
राज्य : हरियाणा
समय : बरसात का
बरसात के समय में यह सड़क किसी प्ले ग्राउंड के कम नहीं हो जाती जहां बच्चे नंगे होकर बरसात से गीली गारा के साथ आपस में खेलते हैं। यहां आने-जाने की जो सोचता है उसे यहां के स्थानीय निवासी पागल ही समझते होंगे, क्योंकि यह सड़क, सड़क नहीं बल्कि किसी तगार से कम नहीं होती। बरसात के सम में यहां कोई दोपहीय ही नहीं बल्कि पैदल आने-जाने के बारे में भी सोच नहीं सकता। यहां की देख-रेख करने वाला शायद ऊपर वाला ही होगा। ही...ही...ही....हंसी इस बात की है कि यहां यदि कोई स्थानीय निवासी इस सड़क को लेकर किसी सरकारी कार्यालय में जाता है तो उसे थाली के बैंगन की भांती होना पड़ता है।
एक बार की बात की यहां खुले दरबार में शिक्षा मंत्री महोदया आई हुई थी। तो यहां के रहने वालों ने उन्हीं के सामने जाना मुनासिफ समझा, जो पहुंच गए खुले दरबार में, जाते ही इस सड़के बारे में बताया कि यह सड़क पहले 24 फीट की थी, लेकिन अब केवल 12 फीट की रह गई है। है ना मजे की बात। इस बात पर मंत्री जी बोली हमने सड़कों को 12 से 24 होता देखा है लेकिन यह पहली बात है कि सड़क 24 से 12 फीट हो चुकी है। अब मंत्री जी को कौन बताए कि यहां की राजनीति क्या चीज है। यहां के सरकारी अधिकारी अपने आप को सीएम से कम नहीं समझते। उन्हें काम इतना होता है कि अन्य व्यक्ति को घर से ठाली बैठा रहता है और काम तो सिर्फ वो सरकारी बाबू लोग ही करते हैं। वहां मौजूद एक सरकारी अधिकारी बोले की मंत्री जी हमने इस सड़क की फाईल जहां इसे पास होकर सड़क बननी है वहां भेज दी है। लेकिन एक व्यक्ति ने वहां जाकर पूछा तो पता चलता है कि यहां इस सड़क के नाम की बात तक नहीं हुई तो फाईल कहां से आएगी। अब बात सोचने वाली यह है कि यह सड़क कौन बनवाएगा और कब बनकर तैयार होगी इसके बारे में जरूर लिखा जाएगा। इस सड़क का इतिहास जो रहा है कि जब यह सड़क ऐसी होती है तो लंबे समय तक इसे पूछने वाला कोई नहीं होता।

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Thursday, August 19, 2010

स्त्री पहली बार हो रही है चरित्रवान


तुम्हारे चरित्र का एक ही अर्थ होता है बस कि स्त्री पुरुष से बँधी रहे, चाहे पुरुष कैसा ही गलत हो। हमारे शास्त्रों में इसकी बड़ी प्रशंसा की गई है कि अगर कोई पत्नी अपने पति को बूढ़े-, मरते, सड़ते, कुष्ठ रोग से गलते पति को भी- कंधे पर रखकर वेश्या के घर पहुँचा दी तो हम कहते हैं- 'यह है चरित्र! देखो, क्या चरित्र है कि मरते पति ने इच्छा जाहिर की कि मुझे वेश्या के घर जाना है और स्त्री इसको कंधे पर रखकर पहुँचा आई।' इसको गंगाजी में डुबा देना था, तो चरित्र होता। यह चरित्र नहीं है, सिर्फ गुलामी है। यह दासता है और कुछ भी नहीं।
पश्चिम की स्त्री ने पहली दफा पुरुष के साथ समानता के अधिकार की घोषणा की है। इसको मैं चरित्र कहता हूँ। लेकिन तुम्हारे चरित्र की बढ़ी अजीब बातें हैं। तुम इस बात को चरित्र मानते हो कि देखो भारतीय स्त्री सिगरेट नहीं पीती और पश्चिम की स्त्री सिगरेट पीती है। और भारतीय स्त्रियाँ पश्चिम से आए फैशनों का अंधा अनुकरण कर रही हैं!
अगर सिगरेट पीना बुरा है तो पुरुष का पीना भी बुरा है। और अगर पुरुष को अधिकार है सिगरेट पीने का तो प्रत्येक स्त्री को अधिकार है सिगरेट पीने का। कोई चीज बुरी है तो सबके लिए बुरी है और नहीं बुरी है तो किसी के लिए बुरी नहीं है। आखिर स्त्री में क्यों हम भेद करें? क्यों स्त्री के अलग मापदंड निर्धारित करें? पुरुष अगर लंगोट लगाकर नदी में नहाए तो ठीक है और स्त्री अगर लंगोटी बाँधकर नदी में नहाए तो चरित्रहीन हो गई! ये दोहरे मापदंड क्यों?
लोग कहते हैं, 'इस देश की युवतियाँ पश्चिम से आए फैशनों का अंधानुकरण करके अपने चरित्र का सत्यानाश कर रही हैं।'
जरा भी नहीं। एक तो चरित्र है नहीं कुछ...। और पश्चिम में चरित्र पैदा हो रहा है। अगर इस देश की स्त्रियाँ भी पश्चिम की स्त्रियों की भाँति पुरुष के साथ अपने को समकक्ष घोषित करें तो उनके जीवन में भी चरित्र पैदा होगा और आत्मा पैदा होगी। स्त्री और पुरुष को समान हक होना चाहिए।
यह बात पुरुष तो हमेशा ही करते हैं। स्त्रियों में उनकी उत्सुकता नहीं है, स्त्रियों के साथ मिलते दहेज में उत्सुकता है। स्त्री से किसको लेना देना है! पैसा, धन, प्रतिष्ठा!
हम बच्चों पर शादी थोप देते थे। लड़का कहे कि मैं लड़की को देखना चाहता हूँ, वह ठीक है। यह उसका हक है! लेकिन लड़की कहे मैं भी लड़के को देखना चाहती हूँ कि यह आदमी जिंदगीभर साथ रहने योग्य है भी या नहीं- तो चरित्र का ह्रास हो गया, पतन हो गया! और इसको तुम चरित्र कहते हो कि जिससे पहचान नहीं, संबंध नहीं, कोई पूर्व परिचय नहीं, इसके साथ जिंदगी भर साथ रहने का निर्णय लेना। यह चरित्र है तो फिर अज्ञान क्या होगा? फिर मूढ़ता क्या होगी?
पहली दफा दुनिया में एक स्वतंत्रता की हवा पैदा हुई है, लोकतंत्र की हवा पैदा हुई है और स्त्रियों ने उद्‍घोषणा की है समानता की, तो पुरुषों की छाती पर साँप लौट रहे हैं। मगर मजा भी यह है कि पुरुषों की छाती पर साँप लौटे, यह तो ठीक, स्त्रियों की छाती पर साँप लौट रहे हैं। स्त्रियों की गुलामी इतनी गहरी हो गई है कि उनको पता नहीं रहा कि जिसको वे चरित्र, सती-सावित्री और क्या-क्या नहीं मानती रही हैं, वे सब पुरुषों के द्वारा थोपे गए जबरदस्ती के विचार थे।
पश्चिम में एक शुभ घड़ी आई है। घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। भयभीत होने का कोई कारण नहीं है। सच तो यह है कि मनुष्य जाति अब तक बहुत चरित्रहीन ढंग से जी है, लेकिन ये चरित्रहीन लोग ही अपने को चरित्रवान समझते हैं। तो मेरी बातें उनको लगती हैं कि मैं लोगों का चरित्र खराब कर रहा हूँ। मैं तो केवल स्वतंत्रता और बोध दे रहा हूँ, समानता दे रहा हूँ। और जीवन को जबरदस्ती बंधनों में जीने से उचित है कि आदमी स्वतंत्रता से जीए। और बंधन जितने टूट जाएँ उतना अच्छा है, क्योंकि बंधन केवल आत्माओं को मार डालते हैं, सड़ा डालते हैं, तुम्हारे जीवन को दूभर कर देते हैं।
जीवन एक सहज आनंद, उत्सव होना चाहिए। इसे क्यों इतना बोझिल, इसे क्यों इतना भारी बनाने की चेष्टा चल रही है? और मैं नहीं कहता हूँ कि अपनी स्वस्फूर्त चेतना के विपरीत कुछ करो। किसी व्यक्ति को एक ही व्यक्ति के साथ जीवनभर प्रेम करने का भाव है- सुंदर, अति सुंदर! लेकिन यह भाव होना चाहिए आंतरिक, यह ऊपर से थोपा हुआ नहीं, मजबूरी में नहीं। नहीं तो उस व्यक्ति से बदला लेगा वह व्यक्ति, उसी को परेशान करेगा, उसी पर क्रोध जाहिर करेगा।
सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन

मौत का डर है तो यूज करो कंडोम नहीं तो धीरे-धीरे मरो!

प्रचारक : लोक संपर्क विभाग
स्थान : जिला जीन्द, हरियाणा
तो हुआ यूं की लोक संकर्प विभाग वाले अपना प्रचार करते-करते उह.....गांव का नाम याद नहीं आ रहा है....चलो छोड़। गांव में पहुंचकर गांव के सभी बच्चे, बुढ़े, महिलाएं, जवान आदि वहां जमा हो जाते हैं कि हैलो..हैलो.. वाले आए हुए हैं। शायद कोई जादू का खेल दिखाया जाएगा। उनकी आवाज सुनकर सभी भागे चले आते हैं और खड़े होकर देखने लगते हैं कि कोई बांसूरी बजा रहा है तो कोई डोलकी पीट रहा है। एक भाई आए और धूतू यानी की गांव की भाषा में हैलो..हैलो को हाथ में लेकर कंडोम के को इस्तेमाल करने के बारे में बताने लगे कि इससे एड्स से बचा जा सकता है। उनकी बातें सुनकर कुछ बुढ़े और औरतें तभी पहली गली से निकल लिए। कुछ मलंग लोग, बच्चे, बुढ़े उनकी बातों को सुनने लगे कि कंडोम को यूज करो और एड्स व इसके अलावा होने वाली यौन रोगों से बचो। तभी एक धाकड़ लुगाई उठ कै बोली, 'रै बेटा जे थामने कोए आदमी रसगूल्ला पन्ने मै डालकै दे देवै और कवै के इसनै खा ले, तो कै खाणं मैं मजा आवैगा।Ó औरत की बात सुनते ही सभी समझ गए की यहां दाल नहीं गलने वाली तो वे कुछ समय के बाद वहां से चलते बने।
अब जरा सोचिए की गांव में कितने लोग हैं कि जो कंडोम के बारे में जानते हैं और जानने वाले भी कहां लगाते होंगे। सोचते होंगे की क्यो इसे फाड़कर लगाने में समय बर्बाद किया जाए। क्या वे यह नहीं जानते ही इसके लगाने से क्या होगा.... और क्या नहीं होगा। ऐसे लोगों का तो ऊपर वाला ही रखवाला है।

Bollywood actor Salman Khan organised a blood donation camp in Bandra Mumbai on August 15, 2010. Superstar Aamir Khan along with Malaika Arora Khan, Sonakshi Sinha, Dia Mirza, Ritesh Deshmukh and Dino Morea to name a few joined in. Here's a look...

Aamir, who rushed to Leh at the first available opportunity, visited the school which had incurred heavy infrastructure damage due to the cloudburst on the intervening night of August 5 and 6, and some other villages as far as 70 kms from the Leh town. Around 200 persons perished in the flash floods that followed the cloudburst.

The school which was damaged in the devastating cloudburst nearly two weeks back shot into limelight after it was featured as Aamir aka Rancho's school in the film. 45-year-old Aamir has a very special attachment with the school, about 15 km from Leh on the Leh-Manali highway.

अमिर खान, लेह में स्कूल के बच्चों के साथ जहां रैंचों बने


"All is not well". This was how a concerned Aamir Khan reacted on seeing the condition of The Druk White Lotus School where the Bollywood star shot for his super hit 3 Idiots, tweaking the film's popular punch dialogue "All is well" to reflect the ground situation.

आजादी पर कलंक : खाप परंपरा


स्मृति जोशी
इज्जत के नाम पर हत्या?
आजादी। एक शब्द जो हमें अहसास दिलाता है हम पर किसी और का नहीं बल्कि हम पर हमारा ही शासन है। लेकिन क्या सचमुच??? क्या सच में आजादी की लंबी डगर से चलकर हम उस अवस्था तक आ गए हैं जहाँ वास्तव में प्रगतिशील कहला सकें? बात 1947 से पूर्व की नहीं, बात 1947 के बाद के धीरे-धीरे बदलते भारत की भी नहीं है। बा‍त है सन 2010 की। इसी बरस की। इसी बरस, जबकि साइना नेहवाल, तेजस्विनी जैसी देश की प्रखर बेटियों ने विश्व स्तर पर चमकीली सफलताएँ दर्ज की थी।
इसी बरस जबकि लोकसभा की स्पीकर महिला है, देश की राष्ट्रपति महिला है, सत्ता पक्ष की कमान संभालने वाली महिला है, विपक्ष‍ी दल की प्रमुख महिला है और तो और महिला मुख्यमंत्री भी बड़े प्रदेशों की बागडोर थामे हुए है। इसी बरस देश के कुछ हिस्सों में इज्जत, प्रतिष्ठा, सम्मान, रूतबा, संस्कार और परंपरा के नाम पर घर की ही बेटियों को कत्ल कर दिया गया।
मौत के घाट उतार दिया गया उस 'आज की नारी' को जिसका महज इतना ही अपराध था कि उसने अपनी पसंद का जीवनसाथी चुना। उसने प्यार करने से पहले सात गौत्र की जानकारी हासिल नहीं की जिनके अनुसार एक ही कुल-गौत्र में जन्म लेने के कारण उसका प्रेमी उसका प्रेमी नहीं बल्कि (परंपरानुसार) वह उसका भाई है। है ना सिर को लज्जा से जमीन में गाड़ देने वाली बात? मगर कहाँ दिखाई दी इतनी लज्जा?
हल्ला मचा, चैनलों पर बहस चली, नेताओं के शर्मनाक बयान आए, सब कुछ हुआ पर समाज का खौलता हुआ वह गुस्सा नहीं आया जिससे एक लावा बह निकलता। बह निकलता एक ऐसा आक्रोश, जिसके आगोश में समाज के सारे बुद्धिजीवी, पैनी पैठ के चिंतक और प्रखर नारियाँ आ पाती। इस विभत्सता को, इस हीन हरकत को मात्र एक क्षेत्र विशेष की समस्या निरूपित कर दिया गया।
क्या है खाप पंचायत :-
खाप एक ऐसी पंचायत का नाम है जो एक ही गोत्र में होने वाले विवाद का निपटारा करती हैं। राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उप्र में इस तरह की खाप अस्तित्व में हैं। खाप यानी किसी भी जाति के अलग-अलग गोत्र की अलग-अलग पंचायतें। खाप पंचायतों का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। इस समय देश भर में लगभग 465 खापें हैं। जिनमें हरियाणा में लगभग 68- 69 खाप और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में करीब 30-32 खाप अपने पुराने रूप में संचालित हैं।
सबसे पहले महाराजा हर्षवर्धन के काल (सन् 643) में खाप का वर्णन मिलता है। इसके अलावा जानकारी मिलती है कि 1528 में मुगल बादशाह बाबर ने सर्वखाप पंचायत के अस्तित्व को मान देते हुए सोरम गाँव के चौधरी को सम्मान स्वरूप एक रुपया और 125 रुपए पगड़ी के ‍लिए दिया था।
विभिन्न मतानुसार 1199 में पहली सर्वखाप पंचायत टीकरी मेरठ में हुई थी। 1248 में दूसरी खाप पंचायत नसीरूद्दीन शाह के विरूद्ध की गई थी। 1255 में भोकरहेडी में, 1266 में सोरम में, 1297 में शिकारपुर में, 1490 में बडौत में और इसके बाद 1517 में बावली में सबसे बड़ी पंचायत हुई। आरंभ में सर्वखाप पंचायतों का आयोजन विदेशी आक्रमण से निपटने के लिए होता रहा। जब भी आक्रमण हुए सर्वखाप ने उनके विरुद्ध राजा-रजवाड़ों की मदद की।
स्वतंत्रता के पश्चात सर्वखाप पंचायतों का स्वरूप बदला और एक सर्वजातीय सर्वखाप पंचायत 8 मार्च 1950 को सोरम में आयोजित हुई। तीन दिन तक चली इस पंचायत में पूरे देश की सर्वखाप पंचायतों के मुखियाओं ने भाग लिया। इस पंचायत के बाद दूसरी सबसे बड़ी सर्वखाप पंचायत 19 अक्टूबर 1956 को सोरम में ही आयोजित हुई थी।
शक्ति का प्रदर्शन :- खाप पंचायतें विवादों के निपटारे तो करती ही थी लेकिन इनकी अपनी एक विशिष्ट परंपरा भी होती थी। पंचायतों के मुखिया जब इनमें शामिल होते तो किसी सामान्य सम्मेलन की तरह नह‍ीं बल्कि परंपरागत अस्त्र-शस्त्र और अखाड़ों के साथ। इन अखाड़ों में मुख्य रूप में कुरूक्षेत्र, गढ़मुक्तेश्वर, बदायु, मेरठ, मथुरा, दिल्ली, रोहतक, सिसौली, शुक्रताल आदि शामिल है। परंपरागत शस्त्रों में मुख्य रूप से कटारी, तीरकमान, ढाल, तलवार, फरसा, बरछी, बन्दूक और भाला आदि हुआ करते थे। बाजों में ढपली, ढोल, तासे, रणसिंघा, तुरही और शंख हुआ करते थे जिसमें रणसिंघा और तुरही आज भी पंचायत के समय बजाई जाती है।
पहले ऐसी नहीं थी खाप :- आरंभिक दौर में खापों ने अँग्रेज शासन के विरुद्ध बादशाहों की मदद की। बाहरी आक्रमण से पिटने में अपनी ताकत दिखाई लेकिन धीरे-धीरे यह कतिपय स्वार्थी और सामंती लोगों के हाथ में पड़ गई जिन्होंने व्यक्तिग‍त द्वेष के चलते फैसलों को अपने अनुसार बदलने का कुकृत्य किया। यही वजह रही कि विवादित फैसलों की लंबी श्रृंखला बढ़ती गई और खाप बद से बदनाम अधिक हो गई।
खाप के चंद शर्मनाक फैसले :-
वर्ष : 2004, स्थान : भवानीपुर गाँव मुरादाबाद उत्तरप्रदेश,
मामला: एक युवक ने दूसरी जाति की युवती से शादी की। लड़की इलाके के प्रभावशाली व्यक्ति की पुत्री थी।
फैसला: खाप पंचायत ने घृणित फैसला सुनाया कि लड़के की माँ के साथ बलात्कार किया जाए। ऐसा हुआ भी। लड़के की माँ के साथ बलात्कार हुआ और सबूत मिटाने के लिए उसे जिंदा जला दिया गया।
वर्ष : 2007,
स्थान : करौंरा गाँव, 23 वर्षीय मनोज और 19 वर्षीय बबली को पसंद से शादी करने पर मौत की सजा सुनाई गई थी और दोनों को निर्ममतापूर्वक मार डाला गया। खाप पंचायत के इस खूनी फैसले के खिलाफ अदालत का फैसला आया। यह फैसला इसलिए चर्चा का विषय बन गया कि आज तक किसी भी खाप पंचायत को किसी अदालत ने सजा नहीं सुनाई।
हरियाणा के झज्जर की खाप पंचायत ने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय की अवहेलना करते हुए एक प्रेमी जोड़े को गाँव से बाहर खदेड़ दिया।
वर्ष : 2007 में हरियाणा के रोहतक में डीजे बजाने पर पाबंदी लगा दी गई। रूहल खाप द्वार लगाई गई इस पाबंदी का कारण तेज आवाज से दुधारू पशुओं पर असर पड़ना बताया गया।
2007 में ही ददन खाप ने जींद में क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया। खाप पंचायत का तर्क था कि इससे लडके बर्बाद होते हैं, और मैच पर सट्टा लगाते हैं।
हरियाणा के सोनीपत की गोहना तहसील के नूरनखेड़ा गाँव निवासी 70 वर्षीय बलराज ने छपरा (बिहार) निवासी 14 वर्षीय आरती से विवाह कर लिया। नूरनखेड़ा गाँव की खाप पंचायत ने इस बेमेल फैसले को जायज ठहरा दिया।
लगभग दो साल पहले मुजफ्फनगर जिले के हथछोया गाँव में एक ही गोत्र में शादी करने पर युवक-युवती की हत्या कर दी गई।
लगभग पाँच वर्ष पूर्व लखावटी के पास हुई एक पंचायत में प्रेमी जोड़े को बिटौडे में जला दिया गया था। इस हत्याकांड की आवाज तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के पास तक पहुँची, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ।
खाप की माँग आज के संदर्भ में :-
आज खाप पंचायत हिन्दू मैरिज एक्ट में संशोधन की माँग कर रही है। उनके अनुसार सरकार 'एक गोत्र' में होने वाली शादियों को अवैध माना जाए क्योंकि एक गोत्र के सभी लड़के-लड़कियाँ आपस में भाई-बहन होते हैं। चाहे कितनी भी पीढ़ियाँ क्यों ना गुजर गई हो! अपनी इसी सोच के चलते उन्होंने मनोज और बबली हत्याकांड के दोषियों को बचाने के लिए हर घर से दस- दस रुपए एकत्र किए। उनके अनुसार, मनोज और बबली एक ही गोत्र के थे इसलिए उनकी हत्या करने वाले दोषी नहीं है बल्कि दोषी मनोज और बबली थे क्योंकि उन्होंने एक ही गोत्र में शादी की!
खाप के विरूद्ध आपका फैसला क्या है?
तेजी से उभरती हुई एक अत्यंत ही भयावह समस्या है खाप। लेकिन आजादी के जश्न मनाते हम स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक क्या इस गंभीरता को समझ पा रहे हैं? हम जो तालीबानी हुक्म पर आह कर उठते हैं खाप के खूनी फैसलों पर हमारी चित्कार क्यों नहीं निकलती? बिना किसी कसूर के दो प्यार करने वाले जघन्य तरीके से मार डाले जाते हैं और खाप के बेशर्म अट्टहास के बीच दब कर रह जाती है सैकड़ों ‍सिसकियाँ, मर्मांतक कराहटें और घनघोर पीड़ाएँ।
राजनेताओं से अपेक्षाएँ क्यों करें जबकि उनका पूरा का पूरा वोट बैंक इन खाप प्रमुखों के इशारों पर समृद्ध होता है। अगर आप सचमुच प्रगतिशील देश के सभ्य नागरिक हैं तो आप कीजिए फैसला इन खापों के विरुद्ध। ऐसे तुगलकी, तालीबानी और तानाशाही फैसले, इससे पहले कि आप तक फैलकर पहुँच जाए कुरेदिए अपने मन की संवेदनात्मक परत और बताइए क्या होना चाहिए इन खापों का?

ये हुई ना मर्दों वाली बात

देश की साख पर बट्टा लगता देख केंद्र सरकार ने कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन की कमान पूरी तरह से अपने हाथों में ले ली है और ऑर्गनाइजिंग कमिटी को लगभग निष्प्रभावी कर दिया है। ऑर्गनाइजिंग कमिटी के चेयरमैन सुरेश कलमाड़ी से गेम्स के आयोजन से जुड़े सारे अधिकार छीन लिए गए हैं। कमिटी के सारे लोग अब 10 नौकरशाहों के पैनल को रिपोर्ट करेंगे। इस पैनल के सभी सदस्यों को सीधे पीएमओ ने चुना है। दरअसल, सरकार ने पिछले ही सप्ताह कलमाड़ी के पर कतरते हुए गेम्स के आयोजन की कमान कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता वाले सेक्रेटरियों के पैनल को सौंप दी थी। लेकिन गुरुवार को इस मामले में सोनिया गांधी के बयान के बाद आनन-फानन हरकत में आई सरकार ने कलमाड़ी को गेम्स ने पूरी तरह से अलग कर दिया। अब वह सिर्फ नाम के लिए ही ऑर्गनाइजिंग कमिटी के चेयरमैन होंगे। सोनिया ने गुरुवार को सभी लोगों से गेम्स को सफल बनाने में सहयोग देने की अपील करते हुए कहा था कि इसके आयोजन के बाद दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
चलो ये तो हुई मर्दों वाली बात, लेकिन जो घोटाले कलमाड़ी व उसके साथ लगे लोगों या रिश्तेदारों के मिले हैं उनकी रिपोर्ट का क्या होगा? क्या यह रिपोर्ट इधर-उधर कर दी जाएगी? या फिर सरकार अपनी इस मर्दों वाली बात को कायम रखते हुए सख्त कदम भी उठाएगी। मेरे मानना है कि सरकार को ऐसा काफी समय पहले कर देना चाहिए था ताकि गेम्स के नाम पर शायद ऐसा नहीं होता।

Wednesday, August 18, 2010

क्या होगा कोम्ॅनवेल्थ गेम्स का

राष्ट्रमंडल खेलों का क्या होगा? इसके बारे में कभी कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि एक ओर सरकार इसके सफल होने का दावा कर रही है तो वहीं दूसरी ओर इसके शुरू होने से पहले की असंतोषजन समाचार भी प्राप्त हो रहे हैं। आए दिन राष्ट्रमंडल खेलों के बारे में एक नई बात सुनने को मिलती है। राष्ट्रमंडल खेलों के बारे में कुछ चकित कर देने वाली जानकारी राजस्थान पत्रिका से प्राप्त हुई। कॉमनवेल्थ गेम्स में हुई वित्तीय गडड़बडियों के चलते यह घोटालों का महाखेल बन गया है। सीवीसी की रिपोर्ट में गेम्स के लिए तैयार 16 प्रोजेक्ट््स में गड़बड़ी की रिपोर्ट का खुलासा होते ही धीरे धीरे गेम्स की तैयारियों के नाम पर हो रही लूट सामने आने लगी। रिपोर्ट से हुआ घोटालों और घपलों के खुलासे का सिलसिला बहुत लंबा है। रिपोर्ट के बाद आयोजन समिति से जुड़े तीन सदस्यों की बलि आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को बचाने के लिए हो चुकी है और टेनिस संघ के कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना को इस्तीफा देना पड़ा है। हालांकि कलमाड़ी अभी भी अपनी खाल बचाए हुए हैं । सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग कलमाड़ी से किनारा किए जाने का पक्षधर है। ऎसे में कलमाड़ी पर भी तलवार लटकती दिख रही है।
अपने लोगों को दिए ठेके
गेम्स की तैयारियों में गड़बड़झाले का सबसे पहले खुलासा सीवीसी की रिपोर्ट में हुआ। सीवीसी की रिपोर्ट में कहा गया कि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए तैयार किए जा रहे प्रोजेक्ट्स की बोली में मनमानी वाला रवैया अपनाया गया। बोली में सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए उनको ठेके दिए गए। प्रोजेक्ट्स में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद तो कॉमनवेल्थ गेम्स में घपलों की खबरों की झड़ी लग गई। गेम्स की तैयारियों के लिए बड़े पैाने पर लूट की खबरें आने लगी। यह लूट हर तरीके से हो रही है। ज्यादातर लूट कमीशनखोरी के तौर पर हो रही है।
कीमत से ज्यादा किराया
मीडिया रिपोर्टो के मुताबिक आयोजन समिति में सबसे ज्यादा घपला किराए पर ली जाने वाली चीजों के नाम पर हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक गेम्स की आयोजन समिति ने जिन मेडिकल उपकरणों को खरीदा उनमें बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। समिति ने जिन छतरियों, मेज, पानी के जग, एयरकंडीशन, कुर्सियों को किराए पर लिया उनकी कीमत किराए से आठ से दस गुना कम है। सूत्रों के मुताबिक गेम्स के उद्घाटन व समापन समारोह में इस्तेमाल होने वाले कार्यक्रम में इस्तेमाल होने वाले गुब्बार पर करीब 48 करोड़ रूपए में खर्च किए जा रहे हैं।
बेनामी कंपनी को दिए पैसे, ई-मेल से छेड़छाड़
समिति ने टेंडर की प्रक्रिया को पूरा किए बिना ही लंदन की एक बेनामी कंपनी को 4.50 लाख पाउंड की रकम सौंप दी और इसके लिए कोई दस्तावेजी रिकॉर्ड भी नहीं रखा। समिति की ओर से कहा गया कि लंदन स्थित उच्चायोग की सिफारिश पर कंपनी को पैसा ट्रांसफर किया गया था। हालांकि उच्चायोग ने समिति के इन आरोपों को खारिज कर दिया। बाद में इस मामले में समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने अपने पक्ष में एक ई-मेल सार्वजनिक किया। हालांकि इस मामले में कलमाड़ी की ही फजीहत हुई। विदेश मंत्रालय ने अपनी जांच में पाया कि कलमाड़ी ने जिस ई-मेल को पेश किया है उसके साथ छेड़छाड़ की गई है।
4 लाख की ट्रेडमिल का किराया 10 लाख
आयोजन समिति ने जिस ट्रेड मिल को करीब 10 लाख रूपए में किराए पर लिया उसकी कीमत दिल्ली के स्थानीय बाजार में सिर्फ 4 लाख रूपए है। मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि किसी को फायदा पहुंचाने के लिए ऎसा किया गया है। हालांकि बाद में आयोजन समिति ने ट्रेडमिल को किराए पर लिए जाने के प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया। समिति ने ट्रेडमिल को बाजार से खरीदने का फैसला किया गया था।
बेटे को दिलाया ठेका
हालिया खबर के मुताबिक कॉमनवेल्थ खेलों के लिए टेनिस टर्फ के निर्माण का ठेका आयोजन समिति के कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना के बेटे को दे दिया गया। आर के खन्ना टेनिस स्टेडियम में 14 सिंथेटिक टर्फ तैयार करने का टेंडर अनिल खन्ना के बेटे आदित्य की कंपनी रिबाउंड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया था। लेकिन कंपनी ने गुणवत्ता की परवाह किए बगैर आनन फानन में ही निमार्ण कार्य पूरा करवा दिया। आदित्य ऑस्ट्रेलियन फर्म रिबाउंड ऎस की भारतीय शाखा रिबाउंड फर्म इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ हैं।
लॉन टर्फ खरीदने में भी घपला
टेनिस टर्फ के निर्माण में आए घोटाले के बाद कॉमनवेल्थ के लिए लॉन बॉल टर्फ खरीदे जाने में भी गड़बडियां सामने आई हैं। बताया जा रहा है कि लॉन बॉल टर्फ के लिए तय कीमत से पांच गुना अधिक कीमत चुकाई गई है। सूत्रों के अनुसार एक लॉन बॉल टर्फ के लिए निर्माण कंपनी को करीब 1.35 करोड़ रूपए चुकाए गए जबकि यह मात्र 27 लाख रूपए में तैयार हो सकता था। सूत्रों के अनुसार 3-14 अक्टूबर तक होने वाले खेलों के लिए आठ टर्फ खरीदी गई हैं। दिल्ली की कंपनी एरोस टर्फ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को टर्फ खरीदे जाने के लिए पांच गुना ज्यादा का भुगतान किया गया है। सूत्रों के मुताबिक नेशनल गेम्स के दौरान एक टर्फ के निर्माण में लगभग 18.37 लाख रूपए का खर्च आया था जबकि कॉमनवेल्थ के लिए यह अचानक बढ़कर 1.35 करोड़ रूपए तक पहुंच गया। झारखंड में होने वाले राष्ट्रीय खेलों के लिए ऑस्ट्रेलियाई ग्रीनगॉज सरफेस लिमिटेड ने वर्ष 2005 में 18,37,500 रूपए में टर्फ का निर्माण किया था। ग्रीनगॉज वही कंपनी है जिसे आईओए ने मंजूरी दी थी।

रणदीव की 'नो बॉल' क्रिकेट पर कलंक

धाकड़ बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग को दाम्बुला में श्रीलंकाई गेंदबाज सूरज रणदीव ने खेल भावनाओं के परे जाकर शतक पूरा नहीं करने दिया। आम दर्शक से लेकर क्रिकेट के पूर्व खिलाड़ियों ने रणदीव की इस हरकत को बचकाना और अपरिपक्व कहा है और किसी भी क्रिकेट प्रेमी को उनकी यह हरकत माफी के काबिल नहीं लगती।
टेलीविजन रिप्ले से यह साफ हो गया कि रणदीव ने जानबूझकर नो बॉल फेंकी थी, जिससे कि सहवाग अपना शतक पूरा न कर पाएँ। सहवाग जैसे खिलाड़ी के लिए शतक कोई मायने नहीं रखता, लेकिन इस पूरे प्रकरण में रणदीव की 'बेइमानी' खुलकर सामने आ गई।
अब तक क्रिकेट इतिहास में कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जिनसे क्रिकेट कलंकित हुआ है, लेकिन रणदीव ने जानबूझकर यह 'हरकत' की, जिसे माफ नहीं किया जा सकता। श्रीलंका के इस युवा गेंदबाज ने जानबूझकर 'नो बॉल' फेंकते हुए इतना भी नहीं सोचा कि वे नेट्स पर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मैच में गेंदबाजी कर रहे हैं।
रणदीव ने दाम्बुला वनडे में क्रिकेट को कलंकित किया और 30 साल पहले हुई एक घटना याद दिला दी, जिसने खेल भावना को तहस-नहस कर दिया था।
1 फरवरी 1981 को मेलबोर्न क्रिकेट ग्राउंड में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच वनडे मैच में ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ग्रेग चैपल ने अपने भाई ट्रेवर चैपल से मैच की आखिरी गेंद अंडरआर्म डालने को कहा। यह पल क्रिकेट इतिहास में सबसे शर्मनाक पलों में से एक है।
मैच की आखिरी गेंद पर न्यूजीलैंड को छह रनों की जरूरत थी और स्ट्राइक पर ब्रायन मैकेंजी थे, लेकिन चैपल ने अंडरआर्म गेंद डालकर खेल भावना को तहस-नहस कर दिया।
इसके बाद ही अंडरआर्म गेंद को क्रिकेट में अमान्य घोषित किया गया। चैपल ने खेल के सारे नैतिक मूल्यों को ताक में रखकर अपने गेंदबाज भाई को अंडरआर्म गेंद फेंकने को कहा, जिसकी क्रिकेट जगत मे बहुत आलोचना हुई।
ऐसा कई बार हुआ है जब खिलाड़ियों ने खेल भावना का परिचय देते हुए विरोधी टीमों या बल्लेबाज, गेंदबाज के रिकॉर्ड बनने में किसी तरह की बेइमानी नहीं की है। ज्यादा पुरानी बात नहीं है। हाल ही में भारत-श्रीलंका टेस्ट सिरीज के पहले टेस्ट में जब श्रीलंका के गेंदबाज मुथैया मुरलीधरन टेस्ट क्रिकेट में 799 विकेट ले चुके थे। तब उन्हें 800 विकेट का जादुई आँकड़ा छूने के लिए केवल एक विकेट की जरूरत थी। भारतीय बल्लेबाज चाहते तो दूसरे छोर के गेंदबाज पर ऊल-झलूल शॉट खेलकर अपना विकेट गँवा सकते थे, लेकिन भारतीय बल्लेबाजों ने खेल भावना का परिचय दिया और मुरली को रिकॉर्ड से रोकने के लिए किसी तरह के हथकंडे नहीं अपनाए। इसके अलावा भी ऐसी कई मिसालें हैं जब विरोधी टीम ने किसी खिलाड़ी का रिकॉर्ड बनने से रोकने के लिए खेल भावना का उलंघन नहीं किया।
रणदीव अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में नए हैं, इसलिए हो सकता कि उन्होंने नो बॉल फेंककर वह करने की कोशिश की हो जो अब तक नहीं हुआ, लेकिन ऐसा करके वे क्रिकेट जगत की नजरों में गिर गए। उन्होंने न केवल खुद की छवि खराब की बल्कि श्रीलंकाई क्रिकेटरों का भी सिर झुकाया है।