Saturday, June 4, 2011
हरियाणा के लालों की तिकड़ी की अंतिम कड़ी टूटी
हरियाणा के पूर्व मुख्यमन्त्री चौधरी भजन लाल के गत तीन जून को हुए स्वर्गवास के साथ ही हरियाणा की राजनीति की तीन लालों की तिकड़ी की अंतिम कड़ी भी टूट गई। हरियाणा के 'तीन लाल चौधरी देवीलाल, चौधरी बंसीलाल और चौधरी भजन लाल राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त राजनीतिक नेता थे। हरियाणा की प्रारंभिक राजनीति इन तीनों लालों के इर्द-गिर्द ही केन्द्रित रही। तीनों लालों की हरियाणा के जनमानस में गहरी पैठ थी। हरियाणा को कई ऐतिहासिक उपलब्धियां देने वाले चौधरी भजन लाल का जन्म 6 अक्तूबर, 1930 को भावलपुर रियासत (पाकिस्तान) में चौधरी खेराज के घर श्रीमती कुन्दन देवी की कोख से हुआ। चौधरी भजनलाल को बचपन से ही कठिन संघर्षों से गुजरना पड़ा। परिवार की आर्थिक हालत के चलते ही वे आठवीं तक ही शिक्षा ग्रहण कर पाए।
स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत हुए देश विभाजन के बाद चौधरी भजन लाल अपने परिवार के साथ अपना पैतृक गाँव छोड़कर हरियाणा के हिसार जिले में आ गये। यहां पर आने के बाद उन्हें और भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने कभी समस्याओं के समक्ष साहस नहीं खोया और निरन्तर आगे बढ़ते रहे। युवा भजन लाल की मेहनत और विशिष्ट प्रतिभा का ही कमाल था कि ग्रामीणों ने उन्हें पंचायत का पंच चुन लिया। इसके बाद भजन लाल ने ग्रामीणों की अथक सेवा करके सरपंच पद भी प्राप्त किया। तब किसी को भी पता नहीं था कि यह युवा आगे चलकर गाँव की पंचायत से देश की सर्वोच्च पंचायत तक का सफर तय करेंगे।
चौधरी भजन लाल ने अपने अदम्य साहस, दृढ़ संकल्प शक्ति और लोगों की असीम सेवा के बलबूत गाँव के सरपंच पद के बाद पंचायत समिति हिसार के चेयरमैन के पद पर पहुंचे और वे इस पद पर रिकार्ड सात वर्ष रहे। इसके बाद चौधरी भजन लाल ने आदमपुर विधानसभा क्षेत्र से अपना भाग्य आजमाया और शानदार जीत दर्ज की। उन्हें मार्केटिंग बोर्ड के अध्यक्ष पद पर बैठाया गया। चौधरी भजन लाल 1968-86, 1991-98 और 2000-09 तक पाँच बार हरियाणा विधानसभा के सदस्य बने। जब वर्ष 1972 में वे दूसरी बार हरियाणा विधानसभा में पहुंचे तो उन्हें चौधरी बंसीलाल की सरकार कृषि मन्त्री का पद मिला और वे इस पद पर 1975 तक सुशोभित रहे। चौधरी बंसीलाल के साथ हुए राजनीतिक मतभेदों के चलते चौधरी भजन लाल ने 1975 में कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और वे वर्ष 1977 में बाबू जगजीवन राम की नई पार्टी डेमोक्रेसी फॉर कांग्रेस में शामिल हो गए।
हरियाणा प्रदेश में जून, 1977 में विधानसभा चुनाव हुए। इन चुनावों मं कांगे्रस को बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा और उसके तीन प्रत्याशी शमशेर सिंह सूरजेवाला, विरेन्द्र सिंह और कन्हैया लाल पोसवाल ही बड़ी मुश्किल से जीत दर्ज कर पाए। इन विधानसभा चुनावों में चौधरी देवीलाल के नेतृत्व में जनता पार्टी ने रिकार्ड+ 90 में से 85 सीटें जीतीं थीं। इसलिए चौधरी देवीलाल को सर्वसम्मति से नेता चुन लिया गया और उन्हें मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। तब चौधरी भजन लाल तीसरी बार हरियाणा विधानसभा में पहुंचे थे। वे वर्ष 1979 तक चौधरी देवीलाल सरकार में सहकारिता मंत्री, डेयरी विकास, पशुपालन, श्रम व रोजगार और वनमंत्री रहे। पार्टी की अन्तकलह के चलते चौधरी देवीलाल की सरकार मात्र अढ़ाई वर्ष बाद ही टूट गई, जिसका सीधा लाभ चौधरी भजन लाल को मिला और उन्हें 28 अगस्त, 1979 को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनने का सुनहरा मौका मिल गया।
सन् 1980 के लोकसभा चुनावों में आपातकाल के बाद कांगे्रस फिर से केन्द्रीय सत्ता में आ गई। केन्द्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर श्रीमती इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। तब चौधरी भजन लाल ने श्रीमती इन्दिरा गांधी से सम्पर्क साधा तो हरियाणा की राजनीति में एक नया ही अध्याय लिख डाला। वे वर्ष 1981 में अपने मन्त्रीमण्डल व अपने विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गये। 12 मई, 1982 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांगे्रस को ही बहुमत प्राप्त हुआ और इस तरह चौधरी भजन लाल दूसरी बार हरियाणा प्रदेश के मुख्यमन्त्री पद पर सुशोभित हुए। बाद में कांगे्रस हाई कमान के कहने पर चौधरी भजन लाल ने 4 जून, 1986 को चौधरी बंसीलाल के लिए मुख्यमन्त्री पद छोड़कर वे देश की सर्वोच्च पंचायत संसद में जा पहुंचे। वे केन्द्र सरकार में केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री बने। वर्ष 1986 से 1989 तक वे राज्य सभा के सदस्य रहे। वे वर्ष 1988-89 के दौरान केन्द्रीय कृषि मंत्री और योजना आयोग के सदस्य भी रहे। इसके बाद उन्हें 1989-91 तक नौंवी लोकसभा में पहुंचने का गौरव हासिल हुआ। इसके साथ ही वर्ष 1990-91 में चौधरी भजन लाल कृषि सलाहकार समिति एवं पर्यावरण व वन मंत्रालय समिति के सदस्य पद पर भी रहे।
इसके बाद हरियाणा की राजनीति में खूब उतार-चढ़ाव आए। काफी उतार-चढ़ावों के बीच जून, 1991 में हरियाणा के विधानसभा के मध्यावधि चुनाव हुए। इस बार फिर कांग्रेस को बहुमत मिला और चौधरी भजन लाल को तीसरी बार हरियाणा के मुख्यमन्त्री पद को सुशोभित करने मौका मिला। अपने इस कार्यकाल में चौधरी भजन लाल ने कई ऐसे ऐतिहासिक व जनहितकारी काम किए, जो बाद में ऐतिहासिक मिसाल बन गए। उन्होंने 1 नवम्बर, 1995 को हरियाणा दिवस के पावन अवसर पर हिसार में गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी। इसके अलावा चौधरी भजन लाल के कार्यकाल में ही हरियाणा पंचायती राज एक्ट, 1994 बनाकर लागू किया गया। इसके साथ ही उन्हीं के कार्यकाल में पानीपत, कैथल, यमुनानगर, रेवाड़ी व पंचकूला जैसे नगरों को जिले का दर्जा मिला।
मई, 1996 में सातवीं बार वे आदमपुर से हरियाणा विधानसभा का चुनाव जीते। चौधरी भजन लाल ने वर्ष 1998 में दूसरी बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद की गरिमा बढ़ाई। उन्हें कृषि सलाकार समिति का सदस्य भी बनाया गया। वे वर्ष 1998-99 के दौरान रेलवे समिति के सदस्य भी रहे। चौधरी भजन लाल वर्ष 2000-04 तक हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता पद पर विराजमान रहे। वर्ष 2009 में वे तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे। चौधरी भजन लाल हरियाणा कांग्रेस प्रभारी के पद पर भी रहे। इससे पूर्व राजनीतिक उठा-पटक के बीच चौधरी भजन लाल ने अपने सुपुत्र कुलदीप बिश्नोई को राजनीतिक क्षेत्र में स्थापित करने के उद्देश्य से उनके हाथों 'हरियाणा जनहित कांगेस (भजन लाल) पार्टीÓ का वर्ष 2007 में रोहतक की विशाल रैली में गठन करवाया और उसके नेता बन गए। इसके बाद तो चौधरी भजन लाल ने कुलदीप बिश्नोई को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित करके हरियाणा की राजनीति में एक नई पीढ़ी को अग्रसित कर दिया। चौधरी भजन लाल की ही मेहनत एवं संघर्ष के परिणामस्वरूप ही अल्प समय में हरियाणा जनहित कांग्रेस को प्रदेश में बड़ा जनाधार मिला। कुल मिलाकर चौधरी भजन लाल ने राजनीति के अखाड़े में बड़े-बड़े धुरन्धरों को मात दी। बेशक वे इंटरमीडियट ही पास थे, लेकिन उनकी राजनीतिक पकड़ व नुस्खों के चलते उन्हें राजनीति का पी.एच.डी. कहा जाता था। इसी नाम के चलते वे विदेशों तक मशहूर हो गये थे। वे जब-जब अपना राजनीतिक दांव खेलते थे तो विरोधी पार्टी के नेता पानी तक नहीं मांगते थे। उन्होंने अपने पूरे जीवन में संघर्ष से नाता बनाये रखा और आम आदमी के सेवक बनकर रहे। उन्होंने राजनीति के साथ गृहस्थ जीवन की जिम्मेवारियों को भी बखूबी निभाया। उनका विवाह श्रीमती जस्मा देवी के साथ हुआ। उनके दो पुत्र चन्द्र मोहन और कुलदीप बिश्नोई और एक लड़की हुई। चन्द्र मोहन तो वर्ष 2005 में चौधरी भूपेन्द्र हुड्डा सरकार में उपमुख्यमंत्री पद पर भी आसीन हुआ। लेकिन अपने प्रेम प्रसंगों के चलते उन्हें इस पद को छोडऩा पड़ा। चौधरी भजन लाल तीन लालों की कड़ी में वे एक महत्वपूर्ण और अंतिम कड़ी थे। इस कड़ी के टूटने के बाद हरियाणा की राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया है। परमपिता उनकी आत्मा को शांति दे। उन्हें कोटिश: नमन।
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