हरियाणा राज्य के मध्य में स्थित जिला जीन्द इस नाम को हर कोई जानता भी है और नहीं भी,क्योंकि ये मध्य में होकर भी कुछ नहीं है। पुरानी कथाओं को देखें तो यह बहुत कुछ अपने आंचल में छिपाए हुए है, लेकिन अब इस दौर में यह केवल एक राजनीतिक अखाडा बनकर रह गया है। यहां की राजनीति दशा राज्य की सरकार कोई भी हो उसके लिए काफी महत्त्व रखती है। कमाल की बात तो यह है कि आज तक जीन्द जिले ने राजनीतिक मामले में काफी कुछ सरकार को दिया है, लेकिन हर किसी की सरकार ने इसे कुछ भी नहीं दिया है। यहां कहते हैं कि बंसी लाल की सरकार के चलते जीन्द की बिड़ी में एक लड़ाकू हवाई पट्टी बनने जा रही थी जोकि बाहर से किसी को दिखाई नहीं देगी और गुप्ता होगी। सरकार बदली और सब कुछ खाक हो गया। इसके बाद किसी ने भी इसकी सुध नहीं ली। हरियाणा के इस लाल ने जीन्द के भविष्य के बारे काफी कुछ सोचा था। मान लिजिए यदि वहां हवाई पट्टी बन जाती तो उस समय से आज के समय की तुलना किजिए आज जीन्द को किसी के भी सामने हाथ फैलाने की जरूर नहीं होती। जीन्द जिले को सरकार ने काफी समय से बाईपास, ओवर ब्रिज आदि की सुविधा देने का ऐलान किया था, लेकिन जब से मैं जीन्द में आया हूं तभी से सुन रहा हूं कि यहां बाईपास बनने के बाद जीन्द की काया पलट हो जाएगी, लेकिन शायद हम बुढ़े होकर स्वर्ण सिधार जाऐंगे, लेकिन यहां कुछ नहीं होगा। इतिहास गवाह है कि पहले कुछ हुआ हो तो अब कुछ हो।
एक छोटी सी सड़क के लिए भी यहां के लोगों को डीसी, एसडीएम, पीडब्ल्यूडी, खुला दरबार, मंत्रियों तक जाना पड़ता है, लेकिन कोई संतोषजनक टिप्पणी नहीं मिलती है। यहां की एक सड़क तो 30 फुट चौड़ी से और अधिक चौड़ी नहीं बल्कि घटकर आधी यानी के 15 फुट होकर रह गई है। यहां पटियाला चौंक से ओवरब्रिज बनने की चर्चाएं जोरों पर है, लेकिन कहते हैं कि शादी की बात चलने से लेकर शादी होने तक का माहौल काफी हल्ले भरा होता है, लेकिन यहां तो अभी तक दुल्हा तो पसंद कर लिया गया है, लेकिन बात बनने में काफी समय लगाती है और फिर शादी की तारिख, सगाई, गुड़चढ़ी और फिर फेरे। यह सब तो बाकि है और सुहाग रात तो अभी बहुत दूर की बात है।
यहां बाईपास का भी कुछ ऐसा ही हाल है। यहां की सड़कें देखने लायक हो चली हैं। यहां की सड़कों पर लाईट व्यवस्था भी चरमरा सी गई है। अंधेरे वाले ईलाकों में चोरी और लूट की घटनाएं आए दिन होना आज के समय में किसी को धक्का नहीं लगाती, क्योंकि सब आम बात हो चुकी है। यहां की पुलिस व्यवस्था मानों हाथ-पर-हाथ धरे बैठी है। यहां के पुलिस वाले मानो जीन्द जिले के मालिक बन बैठें हों।
एक बार की बात हैं कि मैं ऑफिस से छुट्टी कर घर हो लौट रहा था कि मेरे दोस्त का फोन आता है और वह कहता है कि आओ यार घर के पास मिलते हैं। मैं मिलने के लिए उसके घर के पास चला जाता हूं और उसके घर के पास दो-तीन ढ़ाबे हैं। हमने सोचा की कोई जानकार शराब पीकर तंग करेगा इसलिए हम दोनों एक कौने में सड़क के किनारे खड़े होकर बातें करने लगते हैं और हम से कुछ ही दूर पर ढ़ाबों के पास काफी शोर शराब चल रहा है जैसे की चार-पांच शराबी लड़ाई कर रहे तों तभी फिल्मों में हिरो की एंटी होती है मतलब पुलिस की जीप गश्त करती-करती वहां आ धमकती है। पुलिस उन्हें कुछ नहीं कहती, लेकिन थोड़ी दूर खड़े हमें दोनों को देखकर पुलिस की जीप में बैठा एक खाकी वर्दी वाला कहता है कि यहां क्या कर रहे हो। मेरे दोस्त ने बोला, बस आपस में बातें कर रहे हैं। तभी खाकी वाला कहता है कि सड़क तेरे बाप की नहीं है। यहां लठ भी लग सकते हैं और यदि यहां आते हुए दौबारा दिखे तो अच्छा नहीं होगा। ये हाल है यहां की खाकी वार्दी वालों का। तभी तो कहता हूं कि जीन्द तेरा कुछ नहीं हो सकता।
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