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Thursday, June 16, 2011

बच्चों के ऐसा करने के लिए हम जिम्मेदार


बच्चे जोकि देश का भविष्य हैं। आज के दौर में बच्चे अपने आप को एक दूसरे से आगे निकलने की पूरी-पूरी कौशिश करते हैं। यह नहीं है कि हम उन्हें कहे की पड़ौसी का बच्चा ऐसा है, उसका बच्चा ऐसा है तो यह उनके साथ ज्यादती होगी, क्योंकि जब हम अपने बच्चों के सामने दूसरे की बढ़ाई करते हैं तो इस बात का बच्चों की दिमाग पर काफी गहरा असर पड़ता है औैर यह असर काफी हद क नुकसान दायक ही सिद्ध होता है।
बच्चों को स्कूल जाने से पूर्व औैर स्कूल आने के बाद माता-पिता से भी अध्यापकों की बजाय काफी कुछ सिखने को मिलता है। मैं मानता हूं कि बच्चे ज्यादातर समय स्कूल या फिर स्कूल के दोस्तों के साथ बिताते हैं। बच्चे स्कूल में होते हैं तो अध्यापक ये नहीं सिखाते कि बच्चों घर जाते ही माता-पिता को जी, आप न करें और उन्हें तू कहकर बोले। वे नहीं सिखाते ही बच्चों गलत तरीका की सबसे बेहतरीन तरीका है, एक-दूसरे से लडऩा ही अच्छा है, लड़ाई के समय गाली-गलौच करना सही है।
ऐसा बिल्कूल भी नहीं है, बल्कि अध्यापक बच्चों को आज के समय में केवल-औैर-केवल उन्हें पढ़ाते ही हैं वे उन्हें बोलना, उठाना, बैठना, दोस्ती करना आदि कैसे करना चाहिए। आज समय में अध्यापक केवल स्कूल में अनुसाशन, शांत करना और अच्छे अंकों से पास होना ही सिखाया जाता है। यदि हम अपने बच्चों को आप, जी, दोस्त कैसे हों, पढऩा कैसे हो आदि बातों के बारे में हम ही उन्हें यह जानकारी बेहतर दे सकते हैं।
मैंने देखा भी है और सुना भी है जब मैं गांव से दूर स्कूल के लिए जाता था तो वहां शहर में जब माताएं अपने बच्चों को स्कूल बस में बैठाने के लिए घर से निकलती थी तो उन्हें खुशी महसूस होती थी। एक बार एक बच्चे ने मां के साथ जाते हुए किसी पड़ौसन को कुछ गलत कर दिया, जरा सोचो बच्चा बिल्कुल छोटा था और करीब छ: साल का ही होगा, ऐसे में मां को क्या करना चाहिए उसे मारना, धमकाना या फिर समझाना। बच्चे की मां कहती है कि बेटा ऐसा नहीं बोलते, वो आप से बड़ी हैं और उन्हें ऐसा नहीं कहा जाएगा। उनकी माता ने कहा कि बेटा वो आप से बड़ी हैं। इसमें मां अपने बच्चे को आप कहती है औैर बच्चा शांत होकर साथ-साथ हो लेता है।
बच्चे के दिमाग में आप शब्द चला जाएगा और वह सभी को आप कहकर बोलने लगेगा और इस बात से पता चलता है कि बच्चा लायक हो जाएगा। कहा भी गया है कि आप कहोगे आप कहलाओगे यदि तू कहोगे तो तू कहलाओगे। हमें सिखाना होगा कि दोस्त कैसे चुने जाएं, क्या बोलना चाहिए औैर क्या नहीं। हमें ही आज के समय में बच्चों के बारे में कुछ सोच समझकर कदम उठाना चाहिए जैसे :-
बच्चों को कभी-भी इतना अधिक नहीं डराना या धमकाना चाहिए वे बात उनके दिमाग में बैठ जाए।
अपने बच्चे के सामने गुस्से से लाल-पीले होकर दूसरे बच्चों से तुलना नहीं करनी चाहिए।
बच्चे की जिंदगी के लिए कोर्ई बड़ा कदम उठाने से पहले उससे चर्चा जरूर करने की जरूरत है औैर वह इसके बारे में क्या सोचना है।
बच्चों पर ऐेसे काम ना थोपें जोकि उनके लायक ना हों या फिर बसकी बात ना हो।
बच्चा कक्षा में फेल हो जाता है औैर रोता है, हमें चाहिए की उस डराने या मारने की बजाय उसका हौंसला बढ़ाना चाहिए।
यदि बच्चा किसी भी प्रकार की जीद करता है तो उसे प्यार से बैठकर समझाना चाहिए, प्यार से समझाना उससे दिमाग को शांति मिलेगी और वह समझ जाएगा।

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