Thursday, June 16, 2011
बच्चों के साथ ज्यादती है डराना-धमकाना
अक्सर माता-पिता अपने जिद्दी बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए उन्हें डांटते हैं और कभी-कभार तो पिटाई भी कर देते हैं। भारत में ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों में भी बच्चों को अनुशासित बनाए रखने के लिए उनके साथ सख्त बर्ताव किए जाने की खबरें पढऩे को मिलती रहती हैं। हाल ही में यूनिसेफ के एक अध्ययन में यह बात सामने आई कि हर चार में से तीन बच्चे माता-पिता के हिंसक व्यवहार और गुस्से को झेलते हैं। कई बच्चों को शारीरिक दंड भी दिया जाता है।
भारत में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक बच्चों को अनुशासित करने के लिए उन पर चिल्लाना या दंड देना लगभग हर माता-पिता के लिए सामान्य बात है। उनका मानना है कि बच्चों को अगर अनुशासन में रखना है तो यह सब करना ही पड़ता है। कई अध्यापक तो आज भी बच्चों की पिटाई जरूरी मानते हैं मगर स्कूलों में इस पर पाबंदी के कारण अब वे ऐसा नहीं कर पाते।
मानसिक तरीके से बच्चों को अनुशासित करने के तरीके में जोर-जोर से उसका नाम लिया जाता है और फिर काफी बुरा-भला सुनाया जाता है। धमकी देना भी आम बात है। यह न सिर्फ भारत मिस्र, ब्राजील, फिलीपींस और अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी होता है। भारत में 70 से 95 फीसदी अभिभावक अपने बच्चों पर चीखते-चिल्लाते देखे गए हैं। कुछ समुदायों में बच्चों को सार्वजनिक तौर पर धमकी भी दी जाती है कि उन्हें घर से बाहर निकाल दिया जाएगा या हॉस्टल भेज दिया जाएगा।
एक अध्ययन के अनुसार बच्चों को मानसिक रूप से प्रताडि़त करने के साथ-साथ शारीरिक दंड देना भी आम बात है। अगर ब्राजील और अमेरिका की बात करें तो वहां बच्चों की कमर के निचले हिस्से पर पिटाई की जाती है। जबकि भारत में बच्चों को थप्पड़ मारना आम बात है। छोटे शहरों की ज्यादातर माएं बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए काफी आक्रामक हो जाती हैं। करीब 42 फीसदी माताएं तो शारीरिक दंड भी देती हैं। चीन में 48 फीसदी बच्चों (जो 14 साल से कम उम्र वाले हैं) को बोल कर अनुशासित किया जाता है वहीं 23 प्रतिशत बच्चों को शारीरिक दंड दिया जाता है। पंद्रह फीसदी बच्चे कठोर दंड पाते हैं।
बच्चों पर चीखना-चिल्लाना और उनके साथ मारपीट करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे माता-पिता का ज्यादा पढ़ा-लिखा न होना, परिवार का निरक्षर होना, घर का माहौल खराब होना, बच्चों में किशोरावस्था के दौरान जिद्दीपन, शराबी पति का गाली-गलौज करना और घर के दूसरे सदस्यों से बुरा बर्ताव करना। इन सबका खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है। भारत में करीब 39 फीसदी बच्चों को अनुशासित करने के लिए शारीरिक दंड दिया जाता है। इक्यासी प्रतिशत बच्चे मौखिक और मानसिक तौर पर दंडित किए जाते हैं। दस फीसदी से भी कम बच्चों को सामान्य तरीके से बात कर अनुशासित बनाने की कोशिश की जाती है। इसी तरह 89 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जिन्हें अनुशासित करने के लिए माता-पिता कठोर बर्ताव करते हैं।
यूनिसेफ चाइल्ड प्रोटेक्शन के सर्वे में यह बात सामने आई है कि घर में बच्चों साथ हो रहे बुरे व्यवहार को अक्सर छिपाया जाता है। अध्ययन के अनुसार अगर कोई यह माने कि वह अपने बच्चों के साथ घर में बुरा व्यवहार करता है या वह बच्चों से बात करते समय हिंसक हो उठता है तो यह स्थिति न सिर्फ परेशानी का कारण बनेगी बल्कि समाज में परिवार की बदनामी भी होगी। बच्चों के लिए थोड़ी सी सजा उनके कोमल बचपन के लिए हानिकारक होती है। वह उनके विकास में बाधा डालती है। भविष्य में उनमें हिंसात्मक प्रवृत्ति बढ़ाने में भी मदद करती है। बच्चे की हंसी उड़ाना, उसे धमकाना आदि उनके बचपन के साथ ज्यादती है।
बच्चों के ऐसा करने के लिए हम जिम्मेदार
बच्चे जोकि देश का भविष्य हैं। आज के दौर में बच्चे अपने आप को एक दूसरे से आगे निकलने की पूरी-पूरी कौशिश करते हैं। यह नहीं है कि हम उन्हें कहे की पड़ौसी का बच्चा ऐसा है, उसका बच्चा ऐसा है तो यह उनके साथ ज्यादती होगी, क्योंकि जब हम अपने बच्चों के सामने दूसरे की बढ़ाई करते हैं तो इस बात का बच्चों की दिमाग पर काफी गहरा असर पड़ता है औैर यह असर काफी हद क नुकसान दायक ही सिद्ध होता है।
बच्चों को स्कूल जाने से पूर्व औैर स्कूल आने के बाद माता-पिता से भी अध्यापकों की बजाय काफी कुछ सिखने को मिलता है। मैं मानता हूं कि बच्चे ज्यादातर समय स्कूल या फिर स्कूल के दोस्तों के साथ बिताते हैं। बच्चे स्कूल में होते हैं तो अध्यापक ये नहीं सिखाते कि बच्चों घर जाते ही माता-पिता को जी, आप न करें और उन्हें तू कहकर बोले। वे नहीं सिखाते ही बच्चों गलत तरीका की सबसे बेहतरीन तरीका है, एक-दूसरे से लडऩा ही अच्छा है, लड़ाई के समय गाली-गलौच करना सही है।
ऐसा बिल्कूल भी नहीं है, बल्कि अध्यापक बच्चों को आज के समय में केवल-औैर-केवल उन्हें पढ़ाते ही हैं वे उन्हें बोलना, उठाना, बैठना, दोस्ती करना आदि कैसे करना चाहिए। आज समय में अध्यापक केवल स्कूल में अनुसाशन, शांत करना और अच्छे अंकों से पास होना ही सिखाया जाता है। यदि हम अपने बच्चों को आप, जी, दोस्त कैसे हों, पढऩा कैसे हो आदि बातों के बारे में हम ही उन्हें यह जानकारी बेहतर दे सकते हैं।
मैंने देखा भी है और सुना भी है जब मैं गांव से दूर स्कूल के लिए जाता था तो वहां शहर में जब माताएं अपने बच्चों को स्कूल बस में बैठाने के लिए घर से निकलती थी तो उन्हें खुशी महसूस होती थी। एक बार एक बच्चे ने मां के साथ जाते हुए किसी पड़ौसन को कुछ गलत कर दिया, जरा सोचो बच्चा बिल्कुल छोटा था और करीब छ: साल का ही होगा, ऐसे में मां को क्या करना चाहिए उसे मारना, धमकाना या फिर समझाना। बच्चे की मां कहती है कि बेटा ऐसा नहीं बोलते, वो आप से बड़ी हैं और उन्हें ऐसा नहीं कहा जाएगा। उनकी माता ने कहा कि बेटा वो आप से बड़ी हैं। इसमें मां अपने बच्चे को आप कहती है औैर बच्चा शांत होकर साथ-साथ हो लेता है।
बच्चे के दिमाग में आप शब्द चला जाएगा और वह सभी को आप कहकर बोलने लगेगा और इस बात से पता चलता है कि बच्चा लायक हो जाएगा। कहा भी गया है कि आप कहोगे आप कहलाओगे यदि तू कहोगे तो तू कहलाओगे। हमें सिखाना होगा कि दोस्त कैसे चुने जाएं, क्या बोलना चाहिए औैर क्या नहीं। हमें ही आज के समय में बच्चों के बारे में कुछ सोच समझकर कदम उठाना चाहिए जैसे :-
बच्चों को कभी-भी इतना अधिक नहीं डराना या धमकाना चाहिए वे बात उनके दिमाग में बैठ जाए।
अपने बच्चे के सामने गुस्से से लाल-पीले होकर दूसरे बच्चों से तुलना नहीं करनी चाहिए।
बच्चे की जिंदगी के लिए कोर्ई बड़ा कदम उठाने से पहले उससे चर्चा जरूर करने की जरूरत है औैर वह इसके बारे में क्या सोचना है।
बच्चों पर ऐेसे काम ना थोपें जोकि उनके लायक ना हों या फिर बसकी बात ना हो।
बच्चा कक्षा में फेल हो जाता है औैर रोता है, हमें चाहिए की उस डराने या मारने की बजाय उसका हौंसला बढ़ाना चाहिए।
यदि बच्चा किसी भी प्रकार की जीद करता है तो उसे प्यार से बैठकर समझाना चाहिए, प्यार से समझाना उससे दिमाग को शांति मिलेगी और वह समझ जाएगा।
Wednesday, June 8, 2011
ऐसे मिलेगा देश की जनता को न्याय
आज हरिद्वार में अनशन पर बैठे बाबा रामदेव की हालत गंभीर हुई और उधर एक दिन के लिए महात्मा गांधी की समाधी पर अनशन पर बैठे अन्ना हजारे में घोषणा कर दी कि यदि सरकार हमारे साथ नहीं चलेगी तो देश को आजाद कराने के लिए एक और आजादी की जंग का ऐलान कर दिया। यह आजादी की जंग का दिन 16 अगस्त रखा गया है। अन्ना ने कहा कि 4 जून की रात को रामलीला मैदान में केवल गोलियां ही नहीं चली बाकी सब कुछ हुआ और उन्होंने इसे जलियावाला कांड का नाम दिया है। अन्ना का एक दिन का अनशन और बाबा रामदेव का चल रहा अनशन अभी भी सरकार के लिए किसी जवालामुखी के कम नहीं है। सरकार शायद हाथ-पर-हाथ धरे बैठी है और स्वयं मौन होकर प्रैस प्रवक्ताओं और सचिवों को आगे कर अपनी बात कर रही है, लेकिन जब से बाबा रामदेव मैदान में उतरे हैं तभी से लेकर आज प्रधानमंत्री और यूपीए अध्यक्षा ने इस विषय में कोई बात नहीं की। जब सरकार मौन बैठी है तो सुप्रीम कोर्ट ने देश की सुध ली और सरकार को रामलीला मैदान में हुए कांड के बारे में दो हफ्ते का समय दे डाला है। अब दो बड़ी घटनाओं को इस देश को इंतजार है एक जो कि सरकार दो हफ्ते के बाद जवाब क्या देगी और दूसरा अन्ना हजारे की आजादी की जंग का ऐलान क्या-क्या रंग लाता है। आज पूरे देश में सरकार की थू-थू हो रही है। हर कोई चाहता है कि सरकार को केंद्र से बदल डालो या फिर सरकार पूर्णं रूप से अन्ना और बाबा रामदेव का साथ दे और पूरे भारत देश को भय, भ्रष्टाचार और कालेधन के निजात मिले और फिर से भारत देश सोने की चिडिय़ां कहलाए।
Sunday, June 5, 2011
अभी तक सौ रहे हैं भारत माता के लाल
सोने की चिडिय़ां कहलाने वाला भारत देश और इसी देश को फिर से सोने की चिडिय़ां बनाने की मुहिम में हिस्सा ले रहे बाबा रामदेव और उनके करोड़ों समर्थकों को ऐसी उम्मीद तक नहीं थी कि देर रात्रि को सरकार ऐसा फैसला करेगी और सभी के साथ-साथ बाबा को अपने कपड़े उतारकर माताओं-बहनों के कपड़ों में जान बचाकर छुपना पड़ा। बाबा ने बाद में खुद दिल ठोककर कहा कि मुझे मार डालने की साजिश रची जा रही थी और उधर पंडाल में सभी पर लाठियां, पत्थर, आंसू गैस के गोल, पंडाल में आग से बाबा के समर्थकों को जुझना पड़ा। क्या सरकार काले धन को वापिस नहीं लाना चाहती है। क्या सरकार का भी बाहर के देशों में काला धन है या फिर सरकार बाबा रामदेव को मारकर मामले को जबरन दबा देना चाहती है। जब से बाबा रामदेव अनशन पर बैठे थे तभी से लेकर अभी तक माता जी और सरदार जी का कोई भाषण या किसी प्रकार की टिप्पणी नहीं आई। या फिर यूं कहिए की सरकार बाबा रामदेव जैसे करोड़ों भक्तों से डर कर यह कदम उठाया है। इतना कुछ होने के बाद भी भारत माता के लाल सौ रहे हैं। उन्हें आखिर कब तक नींद आएगी और कैसे उनकी नींद को तोड़ा जा सकता है। एक ओर इतना कुछ हो रहा है और दूसरी ओर भारत माता के लाल सौ रहे हैं। उनके जागने का समय आ गया है। उन्हें इस मामले को पूरजोर उठाना चाहिए। बाबा के साथ पूरे भारत देश को कंधे-से-कंधा मिलाकर चला चाहिए जब जाकर कुछ हो सकता है, वरना एक हाथ से ताली कभी-भी नहीं बजती है। इसी घटना के बाद आज सुबह पूर्व रेल मंत्री लालू जी का ब्यान सुनने को मिला तो उन्होंने कहा कि ऐसे अनशन की आंच से सभी अपने-अपने काले धन को इधर का उधर कर सकते हैं तो ऐसे में काला धन गायब ही हो जाएगा। फिर उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कैसे करेंगे। लगता है लालू जी का भी काफी सारा माल बाहर बंद है। उन्हें भी अब बाबा जी से डर लगने लगा है। बाबा का तहेदिल से साथ देने वाली भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने पिछले दिनों कहा था कि गांधी परिवार का बाहर के बैंकों में काला धन जमा है। इस भाषण के शाम होते ही उन्होंने मैडम जी से लिखित में माफी मांगी। उन्हें ब्यान देने के बाद माफी की जरूर क्या पड़ी कहीं इस घेरे में आडवाणी जी भी तो नहीं आते और हो सकता है मैडम जी के पास आडवाणी के खिलाफ काले धन का सबूत हो, लेकिन यह भी हो सकता है कि आडवाणी जी के पास मैडम जी के खिलाफ सबूत ना हो। कहावत है ना की हमाम में सभी नंगे होते हैं। तो फिर क्या मैडम जी, क्या आडवाणी और क्या अन्ना हजारे जोकि लोकपाल बिल में शामिल सदस्य पहले से ही विवादों में घेरे में रहे हैं।
जरा सोचिए बाबा अब दिल्ली में कांग्रेस की सरकार से दूर उत्तराखंड में भाजपा की सरकार के क्षेत्र में है। यदि भाजपा चाहे तो अपने राज्य की सरकार के क्षेत्र में किसी को घूसने तक ना दे। बाबा रामदेव को पकड़कर उन्हें उन्हीं के पंतजलि पीठ पर ही क्यों छोड़ा गया क्योंकि वहां भाजपा की सरकार है उन्हें दिल्ली में अनशन पर बैठे देकर घबराहट हो रही थी। बाबा अब क्या कदम उठाएंगे यह अभी भविष्य के गर्भ में है।
जरा सोचिए बाबा अब दिल्ली में कांग्रेस की सरकार से दूर उत्तराखंड में भाजपा की सरकार के क्षेत्र में है। यदि भाजपा चाहे तो अपने राज्य की सरकार के क्षेत्र में किसी को घूसने तक ना दे। बाबा रामदेव को पकड़कर उन्हें उन्हीं के पंतजलि पीठ पर ही क्यों छोड़ा गया क्योंकि वहां भाजपा की सरकार है उन्हें दिल्ली में अनशन पर बैठे देकर घबराहट हो रही थी। बाबा अब क्या कदम उठाएंगे यह अभी भविष्य के गर्भ में है।
Saturday, June 4, 2011
जीन्द तेरा कुछ नहीं हो सकता
हरियाणा राज्य के मध्य में स्थित जिला जीन्द इस नाम को हर कोई जानता भी है और नहीं भी,क्योंकि ये मध्य में होकर भी कुछ नहीं है। पुरानी कथाओं को देखें तो यह बहुत कुछ अपने आंचल में छिपाए हुए है, लेकिन अब इस दौर में यह केवल एक राजनीतिक अखाडा बनकर रह गया है। यहां की राजनीति दशा राज्य की सरकार कोई भी हो उसके लिए काफी महत्त्व रखती है। कमाल की बात तो यह है कि आज तक जीन्द जिले ने राजनीतिक मामले में काफी कुछ सरकार को दिया है, लेकिन हर किसी की सरकार ने इसे कुछ भी नहीं दिया है। यहां कहते हैं कि बंसी लाल की सरकार के चलते जीन्द की बिड़ी में एक लड़ाकू हवाई पट्टी बनने जा रही थी जोकि बाहर से किसी को दिखाई नहीं देगी और गुप्ता होगी। सरकार बदली और सब कुछ खाक हो गया। इसके बाद किसी ने भी इसकी सुध नहीं ली। हरियाणा के इस लाल ने जीन्द के भविष्य के बारे काफी कुछ सोचा था। मान लिजिए यदि वहां हवाई पट्टी बन जाती तो उस समय से आज के समय की तुलना किजिए आज जीन्द को किसी के भी सामने हाथ फैलाने की जरूर नहीं होती। जीन्द जिले को सरकार ने काफी समय से बाईपास, ओवर ब्रिज आदि की सुविधा देने का ऐलान किया था, लेकिन जब से मैं जीन्द में आया हूं तभी से सुन रहा हूं कि यहां बाईपास बनने के बाद जीन्द की काया पलट हो जाएगी, लेकिन शायद हम बुढ़े होकर स्वर्ण सिधार जाऐंगे, लेकिन यहां कुछ नहीं होगा। इतिहास गवाह है कि पहले कुछ हुआ हो तो अब कुछ हो।
एक छोटी सी सड़क के लिए भी यहां के लोगों को डीसी, एसडीएम, पीडब्ल्यूडी, खुला दरबार, मंत्रियों तक जाना पड़ता है, लेकिन कोई संतोषजनक टिप्पणी नहीं मिलती है। यहां की एक सड़क तो 30 फुट चौड़ी से और अधिक चौड़ी नहीं बल्कि घटकर आधी यानी के 15 फुट होकर रह गई है। यहां पटियाला चौंक से ओवरब्रिज बनने की चर्चाएं जोरों पर है, लेकिन कहते हैं कि शादी की बात चलने से लेकर शादी होने तक का माहौल काफी हल्ले भरा होता है, लेकिन यहां तो अभी तक दुल्हा तो पसंद कर लिया गया है, लेकिन बात बनने में काफी समय लगाती है और फिर शादी की तारिख, सगाई, गुड़चढ़ी और फिर फेरे। यह सब तो बाकि है और सुहाग रात तो अभी बहुत दूर की बात है।
यहां बाईपास का भी कुछ ऐसा ही हाल है। यहां की सड़कें देखने लायक हो चली हैं। यहां की सड़कों पर लाईट व्यवस्था भी चरमरा सी गई है। अंधेरे वाले ईलाकों में चोरी और लूट की घटनाएं आए दिन होना आज के समय में किसी को धक्का नहीं लगाती, क्योंकि सब आम बात हो चुकी है। यहां की पुलिस व्यवस्था मानों हाथ-पर-हाथ धरे बैठी है। यहां के पुलिस वाले मानो जीन्द जिले के मालिक बन बैठें हों।
एक बार की बात हैं कि मैं ऑफिस से छुट्टी कर घर हो लौट रहा था कि मेरे दोस्त का फोन आता है और वह कहता है कि आओ यार घर के पास मिलते हैं। मैं मिलने के लिए उसके घर के पास चला जाता हूं और उसके घर के पास दो-तीन ढ़ाबे हैं। हमने सोचा की कोई जानकार शराब पीकर तंग करेगा इसलिए हम दोनों एक कौने में सड़क के किनारे खड़े होकर बातें करने लगते हैं और हम से कुछ ही दूर पर ढ़ाबों के पास काफी शोर शराब चल रहा है जैसे की चार-पांच शराबी लड़ाई कर रहे तों तभी फिल्मों में हिरो की एंटी होती है मतलब पुलिस की जीप गश्त करती-करती वहां आ धमकती है। पुलिस उन्हें कुछ नहीं कहती, लेकिन थोड़ी दूर खड़े हमें दोनों को देखकर पुलिस की जीप में बैठा एक खाकी वर्दी वाला कहता है कि यहां क्या कर रहे हो। मेरे दोस्त ने बोला, बस आपस में बातें कर रहे हैं। तभी खाकी वाला कहता है कि सड़क तेरे बाप की नहीं है। यहां लठ भी लग सकते हैं और यदि यहां आते हुए दौबारा दिखे तो अच्छा नहीं होगा। ये हाल है यहां की खाकी वार्दी वालों का। तभी तो कहता हूं कि जीन्द तेरा कुछ नहीं हो सकता।
एक छोटी सी सड़क के लिए भी यहां के लोगों को डीसी, एसडीएम, पीडब्ल्यूडी, खुला दरबार, मंत्रियों तक जाना पड़ता है, लेकिन कोई संतोषजनक टिप्पणी नहीं मिलती है। यहां की एक सड़क तो 30 फुट चौड़ी से और अधिक चौड़ी नहीं बल्कि घटकर आधी यानी के 15 फुट होकर रह गई है। यहां पटियाला चौंक से ओवरब्रिज बनने की चर्चाएं जोरों पर है, लेकिन कहते हैं कि शादी की बात चलने से लेकर शादी होने तक का माहौल काफी हल्ले भरा होता है, लेकिन यहां तो अभी तक दुल्हा तो पसंद कर लिया गया है, लेकिन बात बनने में काफी समय लगाती है और फिर शादी की तारिख, सगाई, गुड़चढ़ी और फिर फेरे। यह सब तो बाकि है और सुहाग रात तो अभी बहुत दूर की बात है।
यहां बाईपास का भी कुछ ऐसा ही हाल है। यहां की सड़कें देखने लायक हो चली हैं। यहां की सड़कों पर लाईट व्यवस्था भी चरमरा सी गई है। अंधेरे वाले ईलाकों में चोरी और लूट की घटनाएं आए दिन होना आज के समय में किसी को धक्का नहीं लगाती, क्योंकि सब आम बात हो चुकी है। यहां की पुलिस व्यवस्था मानों हाथ-पर-हाथ धरे बैठी है। यहां के पुलिस वाले मानो जीन्द जिले के मालिक बन बैठें हों।
एक बार की बात हैं कि मैं ऑफिस से छुट्टी कर घर हो लौट रहा था कि मेरे दोस्त का फोन आता है और वह कहता है कि आओ यार घर के पास मिलते हैं। मैं मिलने के लिए उसके घर के पास चला जाता हूं और उसके घर के पास दो-तीन ढ़ाबे हैं। हमने सोचा की कोई जानकार शराब पीकर तंग करेगा इसलिए हम दोनों एक कौने में सड़क के किनारे खड़े होकर बातें करने लगते हैं और हम से कुछ ही दूर पर ढ़ाबों के पास काफी शोर शराब चल रहा है जैसे की चार-पांच शराबी लड़ाई कर रहे तों तभी फिल्मों में हिरो की एंटी होती है मतलब पुलिस की जीप गश्त करती-करती वहां आ धमकती है। पुलिस उन्हें कुछ नहीं कहती, लेकिन थोड़ी दूर खड़े हमें दोनों को देखकर पुलिस की जीप में बैठा एक खाकी वर्दी वाला कहता है कि यहां क्या कर रहे हो। मेरे दोस्त ने बोला, बस आपस में बातें कर रहे हैं। तभी खाकी वाला कहता है कि सड़क तेरे बाप की नहीं है। यहां लठ भी लग सकते हैं और यदि यहां आते हुए दौबारा दिखे तो अच्छा नहीं होगा। ये हाल है यहां की खाकी वार्दी वालों का। तभी तो कहता हूं कि जीन्द तेरा कुछ नहीं हो सकता।
हरियाणा के लालों की तिकड़ी की अंतिम कड़ी टूटी
हरियाणा के पूर्व मुख्यमन्त्री चौधरी भजन लाल के गत तीन जून को हुए स्वर्गवास के साथ ही हरियाणा की राजनीति की तीन लालों की तिकड़ी की अंतिम कड़ी भी टूट गई। हरियाणा के 'तीन लाल चौधरी देवीलाल, चौधरी बंसीलाल और चौधरी भजन लाल राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त राजनीतिक नेता थे। हरियाणा की प्रारंभिक राजनीति इन तीनों लालों के इर्द-गिर्द ही केन्द्रित रही। तीनों लालों की हरियाणा के जनमानस में गहरी पैठ थी। हरियाणा को कई ऐतिहासिक उपलब्धियां देने वाले चौधरी भजन लाल का जन्म 6 अक्तूबर, 1930 को भावलपुर रियासत (पाकिस्तान) में चौधरी खेराज के घर श्रीमती कुन्दन देवी की कोख से हुआ। चौधरी भजनलाल को बचपन से ही कठिन संघर्षों से गुजरना पड़ा। परिवार की आर्थिक हालत के चलते ही वे आठवीं तक ही शिक्षा ग्रहण कर पाए।
स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत हुए देश विभाजन के बाद चौधरी भजन लाल अपने परिवार के साथ अपना पैतृक गाँव छोड़कर हरियाणा के हिसार जिले में आ गये। यहां पर आने के बाद उन्हें और भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने कभी समस्याओं के समक्ष साहस नहीं खोया और निरन्तर आगे बढ़ते रहे। युवा भजन लाल की मेहनत और विशिष्ट प्रतिभा का ही कमाल था कि ग्रामीणों ने उन्हें पंचायत का पंच चुन लिया। इसके बाद भजन लाल ने ग्रामीणों की अथक सेवा करके सरपंच पद भी प्राप्त किया। तब किसी को भी पता नहीं था कि यह युवा आगे चलकर गाँव की पंचायत से देश की सर्वोच्च पंचायत तक का सफर तय करेंगे।
चौधरी भजन लाल ने अपने अदम्य साहस, दृढ़ संकल्प शक्ति और लोगों की असीम सेवा के बलबूत गाँव के सरपंच पद के बाद पंचायत समिति हिसार के चेयरमैन के पद पर पहुंचे और वे इस पद पर रिकार्ड सात वर्ष रहे। इसके बाद चौधरी भजन लाल ने आदमपुर विधानसभा क्षेत्र से अपना भाग्य आजमाया और शानदार जीत दर्ज की। उन्हें मार्केटिंग बोर्ड के अध्यक्ष पद पर बैठाया गया। चौधरी भजन लाल 1968-86, 1991-98 और 2000-09 तक पाँच बार हरियाणा विधानसभा के सदस्य बने। जब वर्ष 1972 में वे दूसरी बार हरियाणा विधानसभा में पहुंचे तो उन्हें चौधरी बंसीलाल की सरकार कृषि मन्त्री का पद मिला और वे इस पद पर 1975 तक सुशोभित रहे। चौधरी बंसीलाल के साथ हुए राजनीतिक मतभेदों के चलते चौधरी भजन लाल ने 1975 में कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और वे वर्ष 1977 में बाबू जगजीवन राम की नई पार्टी डेमोक्रेसी फॉर कांग्रेस में शामिल हो गए।
हरियाणा प्रदेश में जून, 1977 में विधानसभा चुनाव हुए। इन चुनावों मं कांगे्रस को बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा और उसके तीन प्रत्याशी शमशेर सिंह सूरजेवाला, विरेन्द्र सिंह और कन्हैया लाल पोसवाल ही बड़ी मुश्किल से जीत दर्ज कर पाए। इन विधानसभा चुनावों में चौधरी देवीलाल के नेतृत्व में जनता पार्टी ने रिकार्ड+ 90 में से 85 सीटें जीतीं थीं। इसलिए चौधरी देवीलाल को सर्वसम्मति से नेता चुन लिया गया और उन्हें मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। तब चौधरी भजन लाल तीसरी बार हरियाणा विधानसभा में पहुंचे थे। वे वर्ष 1979 तक चौधरी देवीलाल सरकार में सहकारिता मंत्री, डेयरी विकास, पशुपालन, श्रम व रोजगार और वनमंत्री रहे। पार्टी की अन्तकलह के चलते चौधरी देवीलाल की सरकार मात्र अढ़ाई वर्ष बाद ही टूट गई, जिसका सीधा लाभ चौधरी भजन लाल को मिला और उन्हें 28 अगस्त, 1979 को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनने का सुनहरा मौका मिल गया।
सन् 1980 के लोकसभा चुनावों में आपातकाल के बाद कांगे्रस फिर से केन्द्रीय सत्ता में आ गई। केन्द्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर श्रीमती इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। तब चौधरी भजन लाल ने श्रीमती इन्दिरा गांधी से सम्पर्क साधा तो हरियाणा की राजनीति में एक नया ही अध्याय लिख डाला। वे वर्ष 1981 में अपने मन्त्रीमण्डल व अपने विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गये। 12 मई, 1982 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांगे्रस को ही बहुमत प्राप्त हुआ और इस तरह चौधरी भजन लाल दूसरी बार हरियाणा प्रदेश के मुख्यमन्त्री पद पर सुशोभित हुए। बाद में कांगे्रस हाई कमान के कहने पर चौधरी भजन लाल ने 4 जून, 1986 को चौधरी बंसीलाल के लिए मुख्यमन्त्री पद छोड़कर वे देश की सर्वोच्च पंचायत संसद में जा पहुंचे। वे केन्द्र सरकार में केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री बने। वर्ष 1986 से 1989 तक वे राज्य सभा के सदस्य रहे। वे वर्ष 1988-89 के दौरान केन्द्रीय कृषि मंत्री और योजना आयोग के सदस्य भी रहे। इसके बाद उन्हें 1989-91 तक नौंवी लोकसभा में पहुंचने का गौरव हासिल हुआ। इसके साथ ही वर्ष 1990-91 में चौधरी भजन लाल कृषि सलाहकार समिति एवं पर्यावरण व वन मंत्रालय समिति के सदस्य पद पर भी रहे।
इसके बाद हरियाणा की राजनीति में खूब उतार-चढ़ाव आए। काफी उतार-चढ़ावों के बीच जून, 1991 में हरियाणा के विधानसभा के मध्यावधि चुनाव हुए। इस बार फिर कांग्रेस को बहुमत मिला और चौधरी भजन लाल को तीसरी बार हरियाणा के मुख्यमन्त्री पद को सुशोभित करने मौका मिला। अपने इस कार्यकाल में चौधरी भजन लाल ने कई ऐसे ऐतिहासिक व जनहितकारी काम किए, जो बाद में ऐतिहासिक मिसाल बन गए। उन्होंने 1 नवम्बर, 1995 को हरियाणा दिवस के पावन अवसर पर हिसार में गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी। इसके अलावा चौधरी भजन लाल के कार्यकाल में ही हरियाणा पंचायती राज एक्ट, 1994 बनाकर लागू किया गया। इसके साथ ही उन्हीं के कार्यकाल में पानीपत, कैथल, यमुनानगर, रेवाड़ी व पंचकूला जैसे नगरों को जिले का दर्जा मिला।
मई, 1996 में सातवीं बार वे आदमपुर से हरियाणा विधानसभा का चुनाव जीते। चौधरी भजन लाल ने वर्ष 1998 में दूसरी बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद की गरिमा बढ़ाई। उन्हें कृषि सलाकार समिति का सदस्य भी बनाया गया। वे वर्ष 1998-99 के दौरान रेलवे समिति के सदस्य भी रहे। चौधरी भजन लाल वर्ष 2000-04 तक हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता पद पर विराजमान रहे। वर्ष 2009 में वे तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे। चौधरी भजन लाल हरियाणा कांग्रेस प्रभारी के पद पर भी रहे। इससे पूर्व राजनीतिक उठा-पटक के बीच चौधरी भजन लाल ने अपने सुपुत्र कुलदीप बिश्नोई को राजनीतिक क्षेत्र में स्थापित करने के उद्देश्य से उनके हाथों 'हरियाणा जनहित कांगेस (भजन लाल) पार्टीÓ का वर्ष 2007 में रोहतक की विशाल रैली में गठन करवाया और उसके नेता बन गए। इसके बाद तो चौधरी भजन लाल ने कुलदीप बिश्नोई को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित करके हरियाणा की राजनीति में एक नई पीढ़ी को अग्रसित कर दिया। चौधरी भजन लाल की ही मेहनत एवं संघर्ष के परिणामस्वरूप ही अल्प समय में हरियाणा जनहित कांग्रेस को प्रदेश में बड़ा जनाधार मिला। कुल मिलाकर चौधरी भजन लाल ने राजनीति के अखाड़े में बड़े-बड़े धुरन्धरों को मात दी। बेशक वे इंटरमीडियट ही पास थे, लेकिन उनकी राजनीतिक पकड़ व नुस्खों के चलते उन्हें राजनीति का पी.एच.डी. कहा जाता था। इसी नाम के चलते वे विदेशों तक मशहूर हो गये थे। वे जब-जब अपना राजनीतिक दांव खेलते थे तो विरोधी पार्टी के नेता पानी तक नहीं मांगते थे। उन्होंने अपने पूरे जीवन में संघर्ष से नाता बनाये रखा और आम आदमी के सेवक बनकर रहे। उन्होंने राजनीति के साथ गृहस्थ जीवन की जिम्मेवारियों को भी बखूबी निभाया। उनका विवाह श्रीमती जस्मा देवी के साथ हुआ। उनके दो पुत्र चन्द्र मोहन और कुलदीप बिश्नोई और एक लड़की हुई। चन्द्र मोहन तो वर्ष 2005 में चौधरी भूपेन्द्र हुड्डा सरकार में उपमुख्यमंत्री पद पर भी आसीन हुआ। लेकिन अपने प्रेम प्रसंगों के चलते उन्हें इस पद को छोडऩा पड़ा। चौधरी भजन लाल तीन लालों की कड़ी में वे एक महत्वपूर्ण और अंतिम कड़ी थे। इस कड़ी के टूटने के बाद हरियाणा की राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया है। परमपिता उनकी आत्मा को शांति दे। उन्हें कोटिश: नमन।
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