Tuesday, December 13, 2011
हाए..रे...हाए...लगे रहो अन्नाभाई
भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध में दुश्मन के विमानों की बमबारी का मुकाबला करने वाले सेना के जीप चालक अन्ना हजारे जब स्वैच्छिक सेवानिवृति के बाद अपने गांव लौटे थे, तब उनका लक्ष्य भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ना नहीं था लेकिन इस आंदोलन के वह सबसे मुखर व्यक्ति बन गए हैं। भ्रष्टाचार निरोधक कानून को लेकर अन्ना हजारे के नाम से मशहूर किसान बाबूराव हजारे नई दिल्ली स्थित जंतर मंतर पर आमरण अनशन कर रहे हैं। मैग्सायसाय पुरस्कार से नवाजे जा चुके हजारे का जन्म महाराष्ट्र में अहमदनगर जिले के रोलेगन सिद्धी में एक कृषक परिवार में 15 जून 1938 को हुआ था। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भारत सरकार ने युवकों से सेना में शामिल होने की अपील की। हजारे उन युवकों में शामिल थे जो 1963 में सेना में शामिल हुए। भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान वह खेमकारन सेक्टर में तैनात थे, जहां पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों ने भारतीय मोर्चे पर बमबारी की। उन्होंने अपने साथियों को वहां शहीद होते देखा, जिसके चलते उन्होंने अविवाहित रहने का फैसला किया।
सेना में 1960 में वाहन चालक के पद पर रहने के दौरान उन्होंने स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे के बारे में काफी अध्ययन किया। सेना में 15 साल की सेवा के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर वह 1975 में अपने गांव रालेगण सिद्धी लौट आए। उन्हें अपने गांव में सूखा, गरीबी, अपराध और मद्यपान जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने ग्रामीणों को नहर बनाने और बांध बनाकर पानी का संग्रह करने में मदद करने के लिए प्रेरित किया ताकि गांव में सिंचाई की संभावनाएं बढ़ सकें। साक्षरता कार्यक्रम भी चलाए गए, जिससे उनके गांव को एक आदर्श गांव बनने में मदद मिली। इस प्रयोग ने उन्हें देश भर में मशहूर कर दिया। उस वक्त उनका सामना महाराष्ट्र के वन विभाग के अधिकारियों के भ्रष्टाचार से हुआ। वह पुणे के नजदीक अलंदी में भूख हड़ताल पर बैठ गए। उनके आंदोलन ने शासन को हिला कर रख दिया और आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई। उन्होंने 1991 में ‘भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन‘ का गठन किया जिसका धीरे धीरे राज्य में प्रसार हो गया। उन्होंने 1997 में सूचना का अधिकार की मांग करते हुए अभियान चलाया, जिसके चलते महाराष्ट्र सरकार को इस बारे में एक कानून बनाना पड़ा। आगे चलकर केंद्र ने भी 2005 में इस कानून की तर्ज पर सूचना का अधिकार कानून बनाया। हजारे अपने गांव के यादवबाबा मंदिर से लगे एक छोटे से कमरे में रहते हैं।
हजारे ने केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार को भ्रष्ट कह दिया, जिस पर पवार ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर गठित मंत्री समूह को छोड़ दिया। उन्होंने पिछले तीन दशक में महाराष्ट्र के राजनीतिक प्रतिष्ठान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, उनके आंदोलन के चलते शिवसेना-भाजपा और कांग्रेस-राकांपा की सरकार के मंत्रियों को इस्तीफा तक देना पड़ गया। महात्मा गांधी के बाद हजारे उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने आमरण अनशन को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन में आठ बार आमरण अनशन किया है। वर्ष 1995 में हजारे के आमरण अनशन से महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा सरकार के कैबिनेट के दो मंत्रियों को अपने पद से हाथ धोना पड़ गया। हजारे ने कांग्रेस-राकांपा शासन को भी नहीं बख्शा। इस सरकार के चार मंत्रियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए वह आमरण अनशन पर चले गए। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ उनके अभियान ने उनके लिए कई दुश्मन भी पैदा कर दिए। वर्ष 2009 में कांग्रेस नेता पवनराजे निम्बालकर की हत्या के आरोप में गिरतार दो लोगों ने बताया कि उन्हें हजारे की हत्या की सुपारी मिली थी। उनके परिवार में सिर्फ दो शादीशुदा बहनें हैं। एक मुंबई में रहती है जबकि दूसरी अहमदनगर जिले में रहती है। उनकी मां लक्ष्मी बाई का 2002 में निधन हो गया था।
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