Thursday, September 2, 2010
दागियों पर भारी क्रिकेट प्रेमियों का जुनून
यूँ तो क्रिकेट को पसंद करने वाले लाखों लोग शुरू से ही 'जेंटलमैन गेम' को देखते आ रहे हैं, लेकिन अस्सी और नब्बे के दशक से क्रिकेट की लोकप्रियता में जबरदस्त बढोतरी हुई है। क्रिकेट के 'पारखी' लोगों ने राष्ट्र की प्रतिष्ठा से जोड़कर इसके बाजार को हजारों गुना बढ़ा दिया। क्रिकेट के आरंभिक काल में इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज सरीखी टीमों का दबदबा रहा। क्रिकेट की शुरुआत इंग्लैंड में ही हुई, इसलिए शुरुआत में ज्यादातर मैच इंग्लैंड में ही हुए।
इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट सिरीज को एशेज कहा गया और 'एशेज' नाम के बाद अचानक इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ गई। साथ ही अन्य देश जहाँ क्रिकेट उस समय शैशवकाल में था, वहाँ भी एशेज का इंतजार होने लगा। वास्तव में एशेज सिरीज का नामकरण क्रिकेट को दो देशों के लोगों की भावनाओं से जोड़ने की कोशिश थी, जो बहुत सफल रही।
एशेज सिरीज का इतिहास कुछ इस तरह है कि 1882 में ऑस्ट्रेलिया ने ओवल में पहली बार इंग्लैंड टीम को उसी की धरती पर हराया। ऑस्ट्रेलिया से मिली इस करारी हार को ब्रिटिश मीडिया बर्दाश्त नहीं कर पाया। स्पोर्टिंग टाइम्स ने लिखा कि इंग्लैंड क्रिकेट की मौत हो चुकी है और उसकी चिता जलाने के बाद राख (एशेज) ऑस्ट्रेलिया टीम अपने साथ ले जा रही है। इसके बाद इंग्लैंड टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे के समय ब्रिटिश मीडिया ने इस दौरे को इंग्लैंड की प्रतिष्ठा बचाने का अवसर कहा। इंग्लैंड टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर इंग्लैंड के कप्तान इवो ब्लिग को बेल्स की राख (एशेज) तोहफे में दी गई, जो इस सिरीज का प्रतीक बनी।
इस पूरे घटनाक्रम में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के लोग अपनी-अपनी टीमों से भावनात्मक रूप से जुड़ गए। अब चाहे एशेज ऑस्ट्रेलिया में हो या इंग्लैंड में दोनों टीमों के समर्थक वहाँ मौजूद रहते हैं और हार या जीत पर जश्न मनाते हैं, दुखी होते हैं। आज तो एशेज का इंतजार पूरी दुनिया के लोग करते हैं और कुछ 'दीवाने' तो इसे विश्वकप से भी बड़ा आयोजन मानते हैं। कहने की जरूरत नहीं कि एशेज ने क्रिकेट को इंग्लैंड सहित पूरे यूरोप में पहचान दिलाई। ऑस्ट्रेलिया ने एशेज के जमाने से ही अपने क्रिकेट का विस्तार किया और उसमें नए-नए प्रयोग किए। बाद में वनडे क्रिकेट आया और ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी सबसे पहले क्रिकेट के इस छोटे फॉर्मेट में ढले।
दूसरी तरफ वेस्टइंडीज टीम ने भी अपनी ताकत दिखाई और जल्द ही यह टीम क्रिकेट की महाशक्ति बन गई। वेस्टइंडीज छोटे-छोटे कैरेबियाई द्वीप हैं और इन सभी द्वीपों के आपस में कई विवाद हैं, लेकिन क्रिकेट की बात जब आती है तो ये सभी विवाद भुलाकर एक टीम बनाकर खेलते हैं। 1975 में जब वनडे क्रिकेट में विश्वकप की शुरुआत हुई तब वेस्टइंडीज ने अपना पराक्रम दिखाकर लगातार दो विश्व कप जीते थे।
यहाँ भी वेस्टइंडीज की 'एकता' इसलिए थी कि लोगों की भावनाओं को क्रिकेट से जोड़ा गया, इसलिए सभी द्वीप एक होकर वेस्टइंडीज के लिए खेलते हैं।
1932 में क्रिकेट एशिया में आया, जब पहली बार भारतीय टीम ने लॉर्ड्स के मैदान पर मजबूत इंग्लैंड का सामना किया। तब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। सूचना के साधन नहीं होने के बावजूद लोग यह जानने के लिए उत्सुक थे कि हमारी टीम कैसा खेली। टीम के लिए दु्आएँ हुईं कि फिरंगियों को हराओ। क्रिकेट एक बार फिर भावनाओं से जुड़ा और आजादी के बाद इसकी लोकप्रियता में और भी बढो़तरी हुई।
विभाजन के बाद 1952 में पाकिस्तान क्रिकेट टीम ने भारत का पहली बार दौरा किया तो बात फिर खेल से ज्यादा राष्ट्र की प्रतिष्ठा की थी। बहरहाल, यह सिरीज बहुत लोकप्रिय हुई और क्रिकेट संचालकों को भान हो गया कि क्रिकेट के बाजार में बहुत संभावनाएँ हैं। इसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच टेस्ट क्रिकेट सिरीज होने लगीं।
वनडे क्रिकेट के आने के बाद एशिया कप और शारजाह क्रिकेट टूर्नामेंट जैसे आयोजनों ने क्रिकेट संचालकों की जेब भर दी। एशिया कप और शारजाह क्रिकेट टूर्नामेंट 1984 में पहली बार आयोजित हुए और इन्हें बहुत सफलता मिली। वास्तव में यही वह समय था, जब क्रिकेट को एशिया में पूरी तरह से पहचान मिली और उसकी लोकप्रियता चारों तरफ बढ़ गई।
इसके बाद भारत-पाकिस्तान क्रिकेट की लोकप्रियता को भुनाया गया और इसीलिए टोरेंटो में हर एक साल के अंतराल पर दोनों टीमों के बीच पाँच वनडे मैचों की सिरीज का आयोजन किया गया। हालाँकि दोनों देशों के बीच खराब राजनीतिक संबंधों के चलते यह टूर्नामेंट बंद हो गया। 1995 में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में इनडिपेंडेंस कप का आयोजन भी बहुत लोकप्रिय हुआ।
कहने का अर्थ यह है कि क्रिकेट आज वह क्रिकेट नहीं होता अगर उसमें लोगों की भावनाएँ नहीं जुड़तीं। इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट, ऑस्ट्रेलिया में बिगबैश टूर्नामेंट, पाकिस्तान में पाक चैंपियंस और भारत में इंडियन प्रीमियर लीग का कॉन्सेप्ट भी यही है कि अपनी टीम से भावनात्मक रूप से जुड़कर खेल देखिए। और इसलिए इन टूर्नामेंट में नामी खिलाड़ी खेलते हैं, क्योंकि उन्हें क्रिकेट प्रेमियों का भरपूर प्यार मिलता है और धन वर्षा होती है।
हाल ही में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के फिक्सिंग में शामिल होने के खुलासे के बाद लाखों क्रिकेट प्रेमी आहत हुए। क्रिकटरों के सट्टेबाजों के हाथों यूँ बिकने की खबर से क्रिकेट प्रेमी हिल गए। इस 'सनसनी' के बाद लगा कि वो सुबह जल्दी उठकर स्कोर जानने की ललक, देर रात तक जागकर मैच देखना, फोन पर दोस्तों को स्कोर बताना सब छलावा था। स्पॉट फिक्सिंग के साथ ही इन दगाबाज क्रिकेटरों क्रिकेट प्रेमियों के जज्बात भी बेच दिए।
फिक्सिंग कांड में जो हुआ वह दुखदायी था और दोषी क्रिकेटरों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि फिर कोई खिलाड़ी ऐसी जुर्रत न कर सके। एक बात और, क्रिकेट को बदनाम करने वाले ये 'दागी' इतना जान लें कि क्रिकेट प्रेमियों की भावनाएँ इस खेल से इस कदर जुड़ी हुई हैं कि इन आसिफों, आमिरों, और सलमानों के काले कारनामें क्रिकेट प्रेमियों की इस खेल के प्रति श्रद्धा कम नहीं कर सकते। उनके काले कारनामों पर क्रिकेट प्रेमियों का जुनून बहुत भारी है।
Miss pakistan
The 21 year old Annie was crowned Miss pakistan world at a glittering event. Annie hails from Karachi, Pakistan but is currently residing in Houston, Texas. She along withher father has established the Rupani Foundation to create employment, promote equity participation, and reduce poverty in the mountain communities of South and Central Asia.
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फिक्सिंग के दागी क्रिकेटर राष्ट्रद्रोही
क्रिकेट की पिच और उसके बाहर की दुनिया में पाकिस्तानी क्रिकेटरों की 'नाजायज' हरकतों ने समूची क्रिकेट बिरादरी को शर्मसार किया हुआ है। 'स्पॉट फिक्सिंग' के ताजे एपिसोड के बाद दुनिया के क्रिकेट को चलाने वाली संस्था जिसे लोग आईसीसी के नाम से पुकारते हैं, उसकी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा बढ़ जाती है।
इन दिनों आईसीसी के मुखिया भारतीय राजनीति के चतुर खिलाड़ी शरद पवार हैं, जिन्हें फिक्सिंग कांड ने हिलाकर रख दिया है। पवार के हाथों में पॉवर है, जिसका इस्तेमाल उन्हें क्रिकेट की भलाई के लिए करना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे क्रिकेट की पिच को राजनीति की बिसात से ऊपर उठकर देखें और दोषी क्रिकेटरों को कड़ी सजा दिलवाने की मुहिम की शुरुआत करें।
वैसे पवार को इस बात का दिली तौर पर अफसोस है कि क्रिकेटरों की शर्मनाक हरकत की वजह से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को सार्वजनिक तौर पर माफी माँगनी पड़ी। यही कारण है कि वे क्रिकेटरों को ऐसा सबक देने का मन तो बना ही चुके होंगे जिससे भविष्य में किसी एक देश के प्रधानमंत्री का सिर शर्म से झुकने की नौबत नहीं आए।
मंगलवार को शरद पवार एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पाकिस्तान के क्रिकेट प्रशासकों के साथ-साथ इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) के अधिकारियों से बातचीत करने वाले हैं। आईसीसी मुखिया को इनसे बात करने के पूर्व स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस को तलब करना चाहिए ताकि हकीकत का पता चल सके।
जो स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस इस कांड में सक्रिय भूमिका निभाने वाले सट्टेबाज मजहर माजिद को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में जमानत पर छोड़ सकती है, उसकी पुलिस रिपोर्ट क्या होगी ये बताने की जरूरत नहीं है और मजेदार बात तो ये हैं कि आईसीसी मुखिया को इसी रिपोर्ट का इंतजार है। 'फिक्सिंग कांड' से इतर भी कुछ बातें हैं, जिनका यहाँ जिक्र होना लाजिमी है।
सब जानते हैं कि 'स्टार टीवी' के कार्यक्रम भारत के साथ पाकिस्तान में भी चोरी-छुपे या सीनाजोरी के साथ देखे-सुने जाते होंगे। कुछ महीनों पहले इस टीवी पर एक विवादास्पद कार्यक्रम पेश किया जाता था 'सच का सामना'। 'कौन बनेगा करोड़पति' से अमिताभ बच्चन की गरीबी दूर करने वाले सिद्धार्थ बसु ने ही 'सच' को पेश किया था और इसके एंकर राजीव खंडेलवाल सच की तह में जाकर सब कुछ उगला लेते थे।
ऐसे ही कार्यक्रम में उन तमाम नामचीन क्रिकेटरों को बुलाना चाहिए, जिन पर फिक्सिंग के आरोप लगे हों। फिर चाहे वह टेस्ट टीम के कप्तान सलमान बट्ट हो, मोहम्मद आसिफ हों, उनकी पूर्व गर्लफ्रेंड वीना मलिक हों ताकि सच्चाई पूरी दुनिया के सामने आ सके। वैसे विनोद कांबली एक दफा इसके प्लेटफार्म पर आकर पंगा ले चुके हैं।
सट्टेबाजों की अँगुलियों पर नाचने वाले लालची क्रिकेटर इस बात से बेखबर होते हैं कि उनकी हरकत का खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है, पूरी दुनिया में आज हर पाकिस्तानी 'शक' की निगाहों से देखा जा रहा है। दिलों में नफरत का ग्राफ तेजी से ऊपर जा रहा है, ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि आरोपित क्रिकेटरों पर आजीवन प्रतिबंध की सजा नाकाफी है और उससे आगे बढ़कर उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। यही नहीं, ऐसे क्रिकेटरों के साथ हमदर्दी रखने वालों की जगह भी सलाखों के पीछे होनी चाहिए।
कहते हैं ना कि दुनिया गलती करती है, गलती के बारे में सुनती है, लेकिन सबक कभी नहीं लेती। हर आदमी जिंदगी के अंतिम मोड़ पर आकर कुछ सयाना अवश्य हो जाता है, लेकिन उसे ये समझदारी दूसरों की ठोकर से नहीं बल्कि उसके खुद के जख्मों से आती है। दुनिया के जितने भी क्रिकेटर हैं, उन्होंने मैच फिक्सिंग में फँसकर क्रिकेट के सीने पर जो जख्म दिए हैं, वे वक्त गुजरने के साथ भर तो जाएँगे लेकिन पीछे छोड़ जाएँगे दाग।
ओशो कहते हैं 'फूलों को चुनों, काँटों को छोड़ों।' आदमी की मूढ़ता ऐसी है कि वो काँटों को चुन लेता है और फूलों छोड़ देता है। रातों को गिन लेता है, दिन को छोड़ देता है। दु:ख को पकड़ लेता है, आनंद का जाम भी लिए उसके सामने बैठो रहो, देखेगा भी नहीं।
अगले बरस भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट का महासंग्राम 'विश्वकप' के जरिए होने जा रहा है, लिहाजा अब वक्त आ गया है, जब क्रिकेट के सम्मान और विश्वास को बचाने के लिए पहल की जाए और दुनिया का हर क्रिकेटर इसमें ईमानदारी के साथ अपना किरदार निभाए ताकि इसका 'जैंटलमैन' गौरव फिर से स्थापित हो सके।
सेक्स की 'अंधी' दौड़
एक शब्द है कामांध। अर्थात काम या सेक्स में अंधा हो जाना। आधुनिकता के फेर में दुनिया कुछ ऐसी ही हो चली है। दुनिया में कामुकता का नशा बढ़ता ही जा रहा है। साथ ही असुरक्षित तथा अप्राकृतिक सेक्स की लत भी बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि एड्स जैसे गंभीर रोग के डर के बावजूद वेश्यावृति और समलैंगिकता भी बढ़ गई है।
जहाँ तक सेक्स की शिक्षा का सवाल है तो यह कौन तय करेगा की सेक्स की किस तरह की शिक्षा दी जानी चाहिए? अभी भारत में यह बहस का विषय है। भारत ही नहीं कई देशों में भी सेक्स पर बातचीत, बहस या शिक्षा को वर्जित ही माना जाता रहा है।
सेक्स का बाजार : शायद यही कारण रहा है कि यह विषय अभी तक लोगों की जिज्ञासा और रुचि का विषय बना हुआ है और इसका भरपूर फायदा उठाया है बाजारवादियों ने। पहले सिर्फ किताबें और फिल्में ही होती थीं, लेकिन अब पोर्न वेबसाइटों पर सेक्सी वीडियो और फोटो की भरमार होने के कारण इसके बाजार में और उछाल आ गया है। दुनिया भर में मंदी हो, लेकिन सेक्स का बाजार दिन दूना फल-फूल रहा है।
बाजारवादियों के लिए सेक्स का बाजार कभी मंदा नहीं रहा है। बाजार में सस्ते सेक्स साहित्य के साथ ही कुछ जानकारीपरक और उपयोगी साहित्य भी उपलब्ध है। लेकिन बाजार में उपलब्ध इस सेक्स साहित्य की शिक्षा के दुष्परिणाम रहे हैं या नहीं, इसको भी अभी उजागर किया जाना बाकी है। सेक्स की किताबों के ढेर के बीच कामशास्त्र और कामसूत्र की असलियत पर सवाल उठाए जा सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद यह साहित्य दुनिया भर की भाषाओं में अपने आसनों के बल पर धूम मचा रहा है। दुनियाभर में सेक्स इंडस्ट्रीज का फैलाव होता जा रहा है। इस धंधे में अब हर कोई तामझाम से उतरकर कार्य करने लगा है।
नीम-हकीम खतरे जान : जब दिमाग विकृत हो जाता है बाजार के उस गंदे साहित्य को पढ़ने से जिसे पश्चिमी तर्ज के चलते बेचा जाता है, तब रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंडों पर 'मर्दाना कमजोरी' के विज्ञापन देखकर गरीब और निम्न आय वर्ग का व्यक्ति सहम जाता है। उसे किसी भी प्रकार का रोग नहीं है फिर भी वह अश्लील साहित्य को पढ़ने की सोच से उपजे वहम के कारण डर जाता है। झोला छाप नीम-हकीमों के आलावा ऐसे भी डॉक्टर हैं जिनके विज्ञापनों के चलते ये लोग उनके पास जाकर अपना वहम दूर करते हैं।
बस और रेलवे स्टेशन : देश भर के बस स्टेंड और रेलवे स्टेशनों पर आपको सहज ही नजर आ आएगी गुमटीनुमा या फर्निस्ड दुकानें, जिनके सामने खड़े रहकर यदि आप दुकान का अवलोकन करेंगे तो सबसे पहले नजर आएगी वे किताबें और सीडी जिसमें से अर्धनग्न युवा लड़कियों के मसल्सभरे गदराएँ बदन के धमाकेदार फोटो आपको निहार रहे होंगे और जिन्हें देखकर आम शहरी युवाओं की इच्छाएँ मचल सकती है। यहाँ अच्छे साहित्य को ढूँढने के लिए उक्त दुकानों पर मशक्कत करना पड़ती है।
पब्लिसिटी : शहर में लगे बड़ी कंपनियों के ज्यादातर होर्डिंग सुंदर सूरतों से सजे हैं जहाँ अर्धनग्न लड़कियाँ आपके ध्यान को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है। फिर चाहे वह कंडोम का विज्ञापन हो, किसी सिम कार्ड पर नई स्कीम लांच हु्ई हो या मर्दाना कमजोरी को भुनाने का विज्ञापन। कहीं ना कहीं आपको ऐसे दृश्य या अखबारों में तेल के विज्ञापन देखने को मिल ही जाएँगे, जिसे आप चोरी-छिपे देखना पसंद करेंगे।
फिल्में और टीवी चैनल : कोई सा भी चैनल घुमाओ आपको ऐसे विज्ञापनों से सामना करना पड़ेगा, जो आपको बगलें झाँकनें पर मजबूर कर देंगे। चड्डी, बनियान या ब्रॉ की छोड़ो- सोचिए पहले चॉकलेट सिर्फ बच्चों के लिए होती थी, लेकिन अब तो दो प्यार करने वालों के लिए भी होती है। चॉकलेट का सेक्स से क्या नाता है?
बात ब्लू फिल्म की होती है तो उसका दर्शक वर्ग भारत के हर शहर, गाँव व कस्बों के गलीकूचों से निकलकर आता है और तमाम गंदगी थूकने के साथ सीट के नीचे की फोम उखाड़कर चला जाता है, लेकिन हॉलीवुड की फिल्म हो या बॉलीवुड की हर फिल्म में अब बहुत कुछ ब्लू होने लगा है। किसिंग सीन तो अब आम हो चला है, इससे आगे भी बहुत कुछ होता है। चाहे वह अवतार फिल्म हो या बॉलीवुड की कोई एक्शन फिल्म। सामान्य फिल्में भी अब सामान्य नहीं रहीं। यू सर्टिफिकेट की फिल्मों में गालियों पर अब सेंसर की कैची नहीं चलती।
जिन्होंने स्वाभिमान जैसे धारावाहिक देखा हैं वे जानते हैं कि भारत ऐसा नहीं था, लेकिन घर-घर की कहानी और वर्तमान दौर के तमाम रियलिटी शो तथा सीरियलों ने सारी हदें पार कर भारतीय समाज के कल्चर को बदलने में अहम भूमिका निभाई है।
सेक्स टॉयस : दुनिया भर में सेक्स टॉयस के बढ़ते प्रचलन से भारत भी अछूता नहीं रहा है। लेकिन सर्वे कहता है कि सेक्स खिलौनों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीन ने दूसरे देशों को पछाड़ दिया है।
सेक्स स्कैंडल : हाल ही में बेंगलुरु में स्वामी नित्यानंद का तमिल ऐक्ट्रेस के साथ नित्य आनंद की चर्चा टीवी चैनलों पर गरम रही है। दिल्ली में इच्छाधारी भीमानंद बाबा के सेक्स रैकेट का मामला भी चल ही रहा है। कथित बाबाओं के सेक्स स्कैंडल आए दिन उजागर होते रहते हैं। दूसरी ओर विश्वभर में कैथोलिक चर्च के पादरियों द्वारा यौन शोषण के कई मामले सामने आते रहे हैं।
राजनयिकों का महिलाओं से मधुर संबंध कोई नई बात नहीं है। मोनिका लेविंस्की और बिल क्लिंटन के संबंधों की चर्चा को सभी जानते हैं। इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी का टीवी अदाकारा से संबंध होना विवाद का कारण बना था। हाल ही में अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर पर फिर से दो महिलाओं से यौन दुराचरण के आरोप लगे हैं। ब्रिटेन में 80 के दसक में मिस इंडिया पामेला बोर्डेस से जुड़े सेक्स स्कैंडल ने ब्रिटिश सरकार को हिला दिया था।
दूसरी ओर भारत में गत वर्ष ताजातरीन मामलों में कांग्रेस के वयोवृद्ध (85 वर्षीय) नेता एवं आंध्रप्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी को कथित रूप से तीन युवतियों के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखे जाने के बाद अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था।
भारत में हॉकी, वेटलिफ्टिंग और भारोत्तोलन में सेक्स स्कैंडल का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है। दुनिया के नंबर वन गोल्फ खिलाड़ी टाइगर वुड्स भी अपने सेक्स स्कैंडल से खासे चर्चित रहे हैं। जहाँ भी खेलों का कुंभ आयोजित होता रहा है वहाँ पर सेक्स रैकेट की सक्रियता को सभी जानते हैं।
छेड़छाड़ और रेपकांड : आए दिन अखबारों में मेट्रो सिटी में बढ़ते बलात्कार और छेड़छाड़ की घटना छपती रहती है। इसी बीच पढ़ने को मिला की दिल्ली में अब महिलाएँ नहीं रही सुरक्षित। शराब और कबाक की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते लगभग प्रत्येक शहरों में माहौल अब महिलाओं के पक्ष में नहीं रहा। रोज ही लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और रैप के केस दर्ज होते रहते हैं।
बहरहाल सेक्स के बढ़ते बाजार और लोगों के दिमाग में घुसते सेक्स के चलते सामाजिक मान्यताओं और संस्कृति का राग अलापने वाले भले ही रुष्ट हों, लेकिन इसका फैलाव अभी और होना बाकी है। सवाल उठता है कि आखिर कब रुकेगी सेक्स की यह अंधी दौड़? क्या सरकार इसके प्रचार-प्रसार के मापदंड को तय करने के लिए गंभीर होगी या नैतिकता को ताक में रखकर इसी तरह ही पूरा समाज कामांध होता चला जाएगा?
जहाँ तक सेक्स की शिक्षा का सवाल है तो यह कौन तय करेगा की सेक्स की किस तरह की शिक्षा दी जानी चाहिए? अभी भारत में यह बहस का विषय है। भारत ही नहीं कई देशों में भी सेक्स पर बातचीत, बहस या शिक्षा को वर्जित ही माना जाता रहा है।
सेक्स का बाजार : शायद यही कारण रहा है कि यह विषय अभी तक लोगों की जिज्ञासा और रुचि का विषय बना हुआ है और इसका भरपूर फायदा उठाया है बाजारवादियों ने। पहले सिर्फ किताबें और फिल्में ही होती थीं, लेकिन अब पोर्न वेबसाइटों पर सेक्सी वीडियो और फोटो की भरमार होने के कारण इसके बाजार में और उछाल आ गया है। दुनिया भर में मंदी हो, लेकिन सेक्स का बाजार दिन दूना फल-फूल रहा है।
बाजारवादियों के लिए सेक्स का बाजार कभी मंदा नहीं रहा है। बाजार में सस्ते सेक्स साहित्य के साथ ही कुछ जानकारीपरक और उपयोगी साहित्य भी उपलब्ध है। लेकिन बाजार में उपलब्ध इस सेक्स साहित्य की शिक्षा के दुष्परिणाम रहे हैं या नहीं, इसको भी अभी उजागर किया जाना बाकी है। सेक्स की किताबों के ढेर के बीच कामशास्त्र और कामसूत्र की असलियत पर सवाल उठाए जा सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद यह साहित्य दुनिया भर की भाषाओं में अपने आसनों के बल पर धूम मचा रहा है। दुनियाभर में सेक्स इंडस्ट्रीज का फैलाव होता जा रहा है। इस धंधे में अब हर कोई तामझाम से उतरकर कार्य करने लगा है।
नीम-हकीम खतरे जान : जब दिमाग विकृत हो जाता है बाजार के उस गंदे साहित्य को पढ़ने से जिसे पश्चिमी तर्ज के चलते बेचा जाता है, तब रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंडों पर 'मर्दाना कमजोरी' के विज्ञापन देखकर गरीब और निम्न आय वर्ग का व्यक्ति सहम जाता है। उसे किसी भी प्रकार का रोग नहीं है फिर भी वह अश्लील साहित्य को पढ़ने की सोच से उपजे वहम के कारण डर जाता है। झोला छाप नीम-हकीमों के आलावा ऐसे भी डॉक्टर हैं जिनके विज्ञापनों के चलते ये लोग उनके पास जाकर अपना वहम दूर करते हैं।
बस और रेलवे स्टेशन : देश भर के बस स्टेंड और रेलवे स्टेशनों पर आपको सहज ही नजर आ आएगी गुमटीनुमा या फर्निस्ड दुकानें, जिनके सामने खड़े रहकर यदि आप दुकान का अवलोकन करेंगे तो सबसे पहले नजर आएगी वे किताबें और सीडी जिसमें से अर्धनग्न युवा लड़कियों के मसल्सभरे गदराएँ बदन के धमाकेदार फोटो आपको निहार रहे होंगे और जिन्हें देखकर आम शहरी युवाओं की इच्छाएँ मचल सकती है। यहाँ अच्छे साहित्य को ढूँढने के लिए उक्त दुकानों पर मशक्कत करना पड़ती है।
पब्लिसिटी : शहर में लगे बड़ी कंपनियों के ज्यादातर होर्डिंग सुंदर सूरतों से सजे हैं जहाँ अर्धनग्न लड़कियाँ आपके ध्यान को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है। फिर चाहे वह कंडोम का विज्ञापन हो, किसी सिम कार्ड पर नई स्कीम लांच हु्ई हो या मर्दाना कमजोरी को भुनाने का विज्ञापन। कहीं ना कहीं आपको ऐसे दृश्य या अखबारों में तेल के विज्ञापन देखने को मिल ही जाएँगे, जिसे आप चोरी-छिपे देखना पसंद करेंगे।
फिल्में और टीवी चैनल : कोई सा भी चैनल घुमाओ आपको ऐसे विज्ञापनों से सामना करना पड़ेगा, जो आपको बगलें झाँकनें पर मजबूर कर देंगे। चड्डी, बनियान या ब्रॉ की छोड़ो- सोचिए पहले चॉकलेट सिर्फ बच्चों के लिए होती थी, लेकिन अब तो दो प्यार करने वालों के लिए भी होती है। चॉकलेट का सेक्स से क्या नाता है?
बात ब्लू फिल्म की होती है तो उसका दर्शक वर्ग भारत के हर शहर, गाँव व कस्बों के गलीकूचों से निकलकर आता है और तमाम गंदगी थूकने के साथ सीट के नीचे की फोम उखाड़कर चला जाता है, लेकिन हॉलीवुड की फिल्म हो या बॉलीवुड की हर फिल्म में अब बहुत कुछ ब्लू होने लगा है। किसिंग सीन तो अब आम हो चला है, इससे आगे भी बहुत कुछ होता है। चाहे वह अवतार फिल्म हो या बॉलीवुड की कोई एक्शन फिल्म। सामान्य फिल्में भी अब सामान्य नहीं रहीं। यू सर्टिफिकेट की फिल्मों में गालियों पर अब सेंसर की कैची नहीं चलती।
जिन्होंने स्वाभिमान जैसे धारावाहिक देखा हैं वे जानते हैं कि भारत ऐसा नहीं था, लेकिन घर-घर की कहानी और वर्तमान दौर के तमाम रियलिटी शो तथा सीरियलों ने सारी हदें पार कर भारतीय समाज के कल्चर को बदलने में अहम भूमिका निभाई है।
सेक्स टॉयस : दुनिया भर में सेक्स टॉयस के बढ़ते प्रचलन से भारत भी अछूता नहीं रहा है। लेकिन सर्वे कहता है कि सेक्स खिलौनों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीन ने दूसरे देशों को पछाड़ दिया है।
सेक्स स्कैंडल : हाल ही में बेंगलुरु में स्वामी नित्यानंद का तमिल ऐक्ट्रेस के साथ नित्य आनंद की चर्चा टीवी चैनलों पर गरम रही है। दिल्ली में इच्छाधारी भीमानंद बाबा के सेक्स रैकेट का मामला भी चल ही रहा है। कथित बाबाओं के सेक्स स्कैंडल आए दिन उजागर होते रहते हैं। दूसरी ओर विश्वभर में कैथोलिक चर्च के पादरियों द्वारा यौन शोषण के कई मामले सामने आते रहे हैं।
राजनयिकों का महिलाओं से मधुर संबंध कोई नई बात नहीं है। मोनिका लेविंस्की और बिल क्लिंटन के संबंधों की चर्चा को सभी जानते हैं। इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी का टीवी अदाकारा से संबंध होना विवाद का कारण बना था। हाल ही में अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर पर फिर से दो महिलाओं से यौन दुराचरण के आरोप लगे हैं। ब्रिटेन में 80 के दसक में मिस इंडिया पामेला बोर्डेस से जुड़े सेक्स स्कैंडल ने ब्रिटिश सरकार को हिला दिया था।
दूसरी ओर भारत में गत वर्ष ताजातरीन मामलों में कांग्रेस के वयोवृद्ध (85 वर्षीय) नेता एवं आंध्रप्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी को कथित रूप से तीन युवतियों के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखे जाने के बाद अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था।
भारत में हॉकी, वेटलिफ्टिंग और भारोत्तोलन में सेक्स स्कैंडल का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है। दुनिया के नंबर वन गोल्फ खिलाड़ी टाइगर वुड्स भी अपने सेक्स स्कैंडल से खासे चर्चित रहे हैं। जहाँ भी खेलों का कुंभ आयोजित होता रहा है वहाँ पर सेक्स रैकेट की सक्रियता को सभी जानते हैं।
छेड़छाड़ और रेपकांड : आए दिन अखबारों में मेट्रो सिटी में बढ़ते बलात्कार और छेड़छाड़ की घटना छपती रहती है। इसी बीच पढ़ने को मिला की दिल्ली में अब महिलाएँ नहीं रही सुरक्षित। शराब और कबाक की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते लगभग प्रत्येक शहरों में माहौल अब महिलाओं के पक्ष में नहीं रहा। रोज ही लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और रैप के केस दर्ज होते रहते हैं।
बहरहाल सेक्स के बढ़ते बाजार और लोगों के दिमाग में घुसते सेक्स के चलते सामाजिक मान्यताओं और संस्कृति का राग अलापने वाले भले ही रुष्ट हों, लेकिन इसका फैलाव अभी और होना बाकी है। सवाल उठता है कि आखिर कब रुकेगी सेक्स की यह अंधी दौड़? क्या सरकार इसके प्रचार-प्रसार के मापदंड को तय करने के लिए गंभीर होगी या नैतिकता को ताक में रखकर इसी तरह ही पूरा समाज कामांध होता चला जाएगा?
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