Thursday, August 11, 2011
रक्षा के प्रतीक पर्व पर योद्धाओं को सलाम
रक्षा के बंधन को आज के परिवेश में प्रतीकात्मक रूप देते हुई असुरक्षा की भावना को दूर करने वाले सामाजिक त्योहार के रूप में मनाया जाना चाहिए। फिर वह रक्षा या तो एक मित्र दूसरे की करे या फिर कोई भी। इस बंधन में खून के रिश्ते की अनिवार्यता जरुरी नहीं बल्कि सामाजिक सौहार्द की ताजगी होना चाहिए। बगैर किसी बंधन से जुड़े इन्सान के रिश्ते में इंसानियत के नाते रक्षा का संकल्प, यह समाज रक्षाबंधन के पर्व पर इस मर्तबा संकल्प ले तो यह पर्व की सबसे बड़ी सार्थकता और सार्वभौमिकता होगी।
रक्षाबंधन, यानि भाई-बहन के स्नेहिल रिश्ते को मधुर प्रेम की गर्माहट से नई उर्जा देने का पावन प्रसंग। सामाजिक दृष्टि से रक्षाबंधन का यह महत्व सर्वथा प्रासंगिक है। हाँलाकि बदलते परिवेश मे इस पर्व के मायने भी विस्तृत होना अपेक्षित है। इस पर्व को अब रक्षा के संकल्प के प्रतीकात्म रूप में मनाना चाहिए। जिससे इस प्रसंग के सही मायने लोगों की समझ में आए। आज होना यह चाहिए कि जो भी जिस किसी की रक्षा का संकल्प ले, वही रक्षा का वचन एक स्वस्थ परम्परा का निर्वहन करने वाला लोक कल्याणकारी बंधन होना चाहिए।
यदि हम रक्षा के इस पर्व को प्रतीकात्मक रूप में देखे तो हम पाएँगे कि हमारे आसपास कई ऐसे योद्धा है जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर किसी की बहन, बेटी, पिता, भाई या माँ की जान बचाकर सही मायनों में राखी के मर्म अर्थात रक्षा के वचन को निभाया है। इन लोगों को न तो किसी पुरस्कार और नही किसी नाम की चेष्टा है। इन्हें जुनून है तो बस किसी को जीवनदान देने का।
नहर में कूदकर बचाई जान
धनोटू के पास सुंदरनगर में रात करीब साढ़े आठ बजे एक युवक पानी से उफनती नहर में जा गिरा और वाहनों के शोर में उसकी मदद की पुकार भी धीमी व गुम होती गई। कुछ लोगों ने उसे डूबते देखा पर उसे बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालने का जज़्बा किसी ने नहीं दिखाया। ऐसे में जगत सैनी, यशपाल चंदेर और मनोज कुमार नामक तीन युवक नहर में कूद गए। कुछ समय बाद बड़ी मशक्कत करके इन तीनों जाँबाज योद्धाओं ने नहर में डूबते उस युवक की जान बचाई।
1500 जिंदगियों को बचाने वाला दसई
जबलपुर में दोपहर के 12 बजकर 20 मिनट पर जब राजकोट एक्सप्रेस ट्रेन भेड़ाघाट के करीब स्थित गेट नंबर 308 पर आने वाली थी तब मास्टर क्राफ्टमैन दसई को गेट के करीब पटरी की फिश प्लेट में कुछ गड़बड़ नजर आई। जब दसई ने हथोड़े से फिश प्लेट पर वार किए तो उन्हें पता लगा कि फिश प्लेट के बोल्ट खुले हुए है। यह देखकर दो खलासियों के साथ दसई फिश प्लेट के नटों को कसने में जुट गए। लेकिन जब राजकोट एक्सप्रेस ट्रेन के आगमन का कंपन उन सभी को पटरियों पर महसूस होने लगा तो दोनों खलासी अपनी जान बचाने के लिए पटरी से उठ खड़े हुए। लेकिन दसई ने हिम्मत नहीं हारी और वह पटरी पर तेजी से नट कसने के लिए हाथ चलाने लगे। दसई को उस वक्त अपनी मौत से ज्यादा उन 1500 लोगों की जिंदगी की फिक्र थी जो उस वक्त उस ट्रेन में सवार थे। अंततः हजारों जिंदगियों को बचाने वाले दसई को मौत मिली।
बहादुरी का कारनामा
यह ओंकारेश्वर में घटित हुई ताजा घटना है। नदी किनारे खेल रहे 10 वर्षीय बालक ईवान को जब नर्मदा में अपनी लहरों की तीव्र गति से जकड़ लिया तब घाट पर खेल रहे 12 से 14 वर्षीय चार बालकों मिथुन केवट, लव भवरिया, राजकुमार केवट और राजा केवट ने उसे डूबते देखा और चारों ने अपनी जान की बाजी लगाकर ईवान को डूबने से बचाया।
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