Monday, August 15, 2011
संगीत को ईश्वर का दर्जा प्राप्त
संगीत को ईश्वर का दर्जा प्राप्त है, इसीलिए इस विधा में शुद्धता और शास्त्रीयता का विशेष महत्व है। सात शुद्ध और पांच कोमल स्वरों के माध्यम से मन को साधने का उपाय है संगीत। एक तरफ जहां 'योग' से मनुष्य शरीर, मन और मस्तिष्क को साधता है, वहीं 'संगीत' हमारी आत्मा को शुद्ध करता है।
संगीत का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना नहीं है, आधुनिक एवं मीडिया में बने रहने के इच्छुक संगीतज्ञों को छोड़ दिया जाए तो हर तरह का संगीत शुद्धता व पवित्रता पर जोर देता है। स्वरों की उपासना, रियाज, शास्त्र शुद्ध पद्धति द्वारा नाद ब्रह्म की आराधना कर अंतर्मन में गहराई तक उतारना संगीत का मुख्य लक्ष्य है। इसलिए संगीत शास्त्र व आध्यात्मिक एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, क्योंकि दोनों का उद्देश्य समान है आत्म साक्षात्कार।
मानव जीवन की आवश्यकताओं में पहला सुख निरोगी काया माना गया है। निरोगी शरीर व मस्तिष्क हर किसी के लिए आवश्यक है। आत्म साक्षात्कार हेतु प्रयासरत कई साधक बीमार शरीर के कारण प्रगति नहीं कर पाते हैं। जिस प्रकार संगीत एक उपासना का तरीका है। उसी प्रकार का 'योग शास्त्र' जीवन का मित्र है। यदि शरीर स्वस्थ रहे तो हम जीवन का आनंद ले सकते हैं।
संगीत में रियाज के लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है। योग शास्त्र हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक है। मन की, मस्तिष्क की एकाग्रता, प्रसन्नचित्त व्यक्तित्व योग शास्त्र की देन है।
संगीत में स्वरों की शुद्धता पर जोर दिया जाता है, पर योग शास्त्र में आसन व मुद्राओं पर जोर दिया जाता है। दोनों में ही स्वर व मुद्रा की श्रेष्ठता से आनंद और स्वास्थ्य पाया जा सकता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो दोनों शास्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं।
संगीत साधना फिर चाहे गायन हो, वादन हो, कलाकार को एक ही मुद्रा में घंटों बैठे रहना पड़ता है। उसी तरह से योग में भी एक अवस्था में बैठना आवश्यक है। संगीत में एक ही स्थान पर साधना करने के लिए शरीर, मन व मस्तिष्क पूर्ण स्वस्थ होना चाहिए। और इसके लिए योग सर्वश्रेष्ठ है। योग से शरीर, मन, मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। मनुष्य एकाग्र रहता है व प्रसन्न मन से काम करता है।
विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि संगीत साधना व योग साधना दोनों से मनुष्य के जीवन में शक्ति का विकास होता है। अतः कहा जा सकता है कि शरीर तथा मन को स्वस्थ्य, प्रफुल्लित रखने के लिए योग शास्त्र व संगीत शास्त्र दोनों समान रूप से आवश्यक है। दोनों से शरीर, मन, मस्तिष्क स्वस्थ रहता है, एकाग्रता रहती है। योग की तरह ही संगीत से तनाव भी दूर होता है।
संगीत का असली आनंद सड़क पर, बगीचे में, बरामदे में, छत पर सुबह, शाम घूमते हुए उठाना चाहिए। रात में सोने से 2 घंटे पहले सुपाच्य भोजन करना चाहिए और दिन में कम से कम एक बार दिल खोलकर हंसना चाहिए।
Thursday, August 11, 2011
रक्षा के प्रतीक पर्व पर योद्धाओं को सलाम
रक्षा के बंधन को आज के परिवेश में प्रतीकात्मक रूप देते हुई असुरक्षा की भावना को दूर करने वाले सामाजिक त्योहार के रूप में मनाया जाना चाहिए। फिर वह रक्षा या तो एक मित्र दूसरे की करे या फिर कोई भी। इस बंधन में खून के रिश्ते की अनिवार्यता जरुरी नहीं बल्कि सामाजिक सौहार्द की ताजगी होना चाहिए। बगैर किसी बंधन से जुड़े इन्सान के रिश्ते में इंसानियत के नाते रक्षा का संकल्प, यह समाज रक्षाबंधन के पर्व पर इस मर्तबा संकल्प ले तो यह पर्व की सबसे बड़ी सार्थकता और सार्वभौमिकता होगी।
रक्षाबंधन, यानि भाई-बहन के स्नेहिल रिश्ते को मधुर प्रेम की गर्माहट से नई उर्जा देने का पावन प्रसंग। सामाजिक दृष्टि से रक्षाबंधन का यह महत्व सर्वथा प्रासंगिक है। हाँलाकि बदलते परिवेश मे इस पर्व के मायने भी विस्तृत होना अपेक्षित है। इस पर्व को अब रक्षा के संकल्प के प्रतीकात्म रूप में मनाना चाहिए। जिससे इस प्रसंग के सही मायने लोगों की समझ में आए। आज होना यह चाहिए कि जो भी जिस किसी की रक्षा का संकल्प ले, वही रक्षा का वचन एक स्वस्थ परम्परा का निर्वहन करने वाला लोक कल्याणकारी बंधन होना चाहिए।
यदि हम रक्षा के इस पर्व को प्रतीकात्मक रूप में देखे तो हम पाएँगे कि हमारे आसपास कई ऐसे योद्धा है जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर किसी की बहन, बेटी, पिता, भाई या माँ की जान बचाकर सही मायनों में राखी के मर्म अर्थात रक्षा के वचन को निभाया है। इन लोगों को न तो किसी पुरस्कार और नही किसी नाम की चेष्टा है। इन्हें जुनून है तो बस किसी को जीवनदान देने का।
नहर में कूदकर बचाई जान
धनोटू के पास सुंदरनगर में रात करीब साढ़े आठ बजे एक युवक पानी से उफनती नहर में जा गिरा और वाहनों के शोर में उसकी मदद की पुकार भी धीमी व गुम होती गई। कुछ लोगों ने उसे डूबते देखा पर उसे बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालने का जज़्बा किसी ने नहीं दिखाया। ऐसे में जगत सैनी, यशपाल चंदेर और मनोज कुमार नामक तीन युवक नहर में कूद गए। कुछ समय बाद बड़ी मशक्कत करके इन तीनों जाँबाज योद्धाओं ने नहर में डूबते उस युवक की जान बचाई।
1500 जिंदगियों को बचाने वाला दसई
जबलपुर में दोपहर के 12 बजकर 20 मिनट पर जब राजकोट एक्सप्रेस ट्रेन भेड़ाघाट के करीब स्थित गेट नंबर 308 पर आने वाली थी तब मास्टर क्राफ्टमैन दसई को गेट के करीब पटरी की फिश प्लेट में कुछ गड़बड़ नजर आई। जब दसई ने हथोड़े से फिश प्लेट पर वार किए तो उन्हें पता लगा कि फिश प्लेट के बोल्ट खुले हुए है। यह देखकर दो खलासियों के साथ दसई फिश प्लेट के नटों को कसने में जुट गए। लेकिन जब राजकोट एक्सप्रेस ट्रेन के आगमन का कंपन उन सभी को पटरियों पर महसूस होने लगा तो दोनों खलासी अपनी जान बचाने के लिए पटरी से उठ खड़े हुए। लेकिन दसई ने हिम्मत नहीं हारी और वह पटरी पर तेजी से नट कसने के लिए हाथ चलाने लगे। दसई को उस वक्त अपनी मौत से ज्यादा उन 1500 लोगों की जिंदगी की फिक्र थी जो उस वक्त उस ट्रेन में सवार थे। अंततः हजारों जिंदगियों को बचाने वाले दसई को मौत मिली।
बहादुरी का कारनामा
यह ओंकारेश्वर में घटित हुई ताजा घटना है। नदी किनारे खेल रहे 10 वर्षीय बालक ईवान को जब नर्मदा में अपनी लहरों की तीव्र गति से जकड़ लिया तब घाट पर खेल रहे 12 से 14 वर्षीय चार बालकों मिथुन केवट, लव भवरिया, राजकुमार केवट और राजा केवट ने उसे डूबते देखा और चारों ने अपनी जान की बाजी लगाकर ईवान को डूबने से बचाया।
भारत माता की पीड़ा कौन समझेगा
आजादी के बाद से हमारे देश में राजनीतिक पार्टियों, राजनेताओं व नौकरशाहों के चरित्र और नैतिक मूल्यों में लगातार गिरावट ने दर्शाया है कि धृतराष्ट्र का कुर्सी प्रेम किन-किन विचित्र खेलों को जन्म देता है। चुनाव लडऩा अब हिंसा, धन और बाहुबल का खेल होकर रह गया है।
हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं में अपराधियों की भरमार होती जा रही है। क्या यही बापू के सपनों का भारत है? मंत्री, अफसर, धन्नासेठ सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। कुल मिलाकर देश का भविष्य इन्हीं के हाथों में कैद होता जा रहा है।
तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा, के नारे, और संकल्प को साकार करने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसा दूसरा नेता आजादी के बाद देश में न होना दुर्भाग्य की बात है। अपने अतीत से सबक नहीं लेने वाले देशों का इतिहास ही नहीं, भूगोल भी बदल जाता है। आज देश में धीरे-धीरे ही सही आजादी के पहले की स्थिति येन-केन-प्रकारेण निर्मित होती दिख रही है।
लेकिन, सत्ता में काबिज राजनेताओं की आंखों पर राजनीतिक स्वार्थ की पट्टी बंधी हुई है। वे तो बस अपना घर भरने और कुर्सी बचाने में ही अपनी शक्ति लगा रहे हैं। वहीं, विपक्षी राजनेताओं का एक सूत्री कार्यक्रम है कि उन्हें सत्ता कैसे हासिल हो?
इन दो पाटों के बीच में आम जनता पिस रही है और मां भारती खून के आंसू बहा रही है। वो बिलख-बिलख कर कह रही हैं कि कहां हैं मेरे प्यारे महात्मा गांधी, बच्चों के चाचा जवाहरलाल नेहरू, आजादी के दीवाने सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह ....? जिन्होंने मुझे अंग्रेजों की कैद से तो आजादी दिला दी, लेकिन अपनों के हाथों घुट-घुटकर जीने को छोड़ दिया।
अरे, मेरे बच्चों कोई तो मेरे इन लालों के आदर्शों पर चलो, उनके स्वप्नों को साकार करो। जीवनभर उनके बताए मार्गों पर नहीं चल सकते तो दो-चार कदम ही बढ़ो। इतने में ही मेरा मान-सम्मान बढ़ सकेगा और मेरे ऊपर आए नक्सलवाद, आतंकवाद, दंगा, महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, धर्म, भाषा व क्षेत्रवाद की मुसीबतें टल जाएंगी।
देशवासियों के सामने एक प्रश्न यह भी है कि आखिर हम क्यों पी रहे हैं, पानी खरीदकर? प्रकृति प्रदत्त हवा, पानी पर तो सभी का समान अधिकार है। फिर कौन लोग हैं जो पानी बेच रहे हैं? लोग आखिर क्यों खरीद रहे हैं,पानी? सरकार क्या कर रही हैं। जीने के लिए दो जून की रोटी की जरूरत तो सभी को है, लिहाजा कुछ लोग गरीबी, भुखमरी, तंगहाली के चलते तो कुछ पैसे कमाने की खातिर खून बेचने, खरीदने का धंधा कर रहे हैं।
अब पानी का व्यवसाय फल-फूल रहा है। ऐसी स्थिति में वह दिन दूर नहीं जब सांस लेने के लिए हवा खरीदनी पड़ेगी? आखिर लोग विरोध क्यों नहीं करते?
देश में प्रजातंत्र है। सरकार जनता की है। जनता के लिए है, और जनता ने ही चुनी है। तो फिर ऐसी सरकार की जरूरत क्यों है, जिनके राज में पानी खरीद कर पीना पड़े, शुद्ध हवा भी न मिले, दो जून की रोटी के लिए खून बेचना पड़े? अगर समय रहते केंद्र और राज्य सरकारों की आंखें नहीं खोली गईं तो वह दिन दूर नहीं जब सांस लेने के लिए भी अनुमति लेनी पड़ेगी?
अब देश में ऐसी कौन सी चीज बची है जो नहीं बिकतीं? स्वयंभू धर्माचारी, राजनेता, अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी, उद्योगपति बिके हुए हैं, पुलिस व कथित तौर पर न्यायाधीश पर भी बिकने का आरोप है।
ऐसे हालात में क्या देश का कोई नागरिक गर्व से यह कह सकता है कि वह देवताओं की भूमि भारतवर्ष में रहता है, जहां धर्म, कर्म, नैतिकता ही प्रधान रही क्या यह बलिदानी भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस जैसे शूरवीर की भूमि है, महात्मा गांधी, महावीर, नानक, गौतम बुद्ध, कबीर जैसे संत-महात्माओं की कर्मभूमि है?
जरा सोचिए! कहते हैं एक व्यक्ति से बड़ा परिवार, परिवार से बड़़ा समाज और समाज से बड़ा देश होता है। विपत्ति के समय परिवार के लिए खुद को, समाज के लिए परिवार को और देश के लिए समाज को कुर्बान कर देना चाहिए। लेकिन, आज देश में ऐसा होते कहीं दिखाई नहीं देता? उल्टे ऐसे लोग हैं जो स्वयं को परिवार, समाज और देश से बड़ा समझने लगे हैं।
यदि ऐसा नहीं होता तो कोई राजनेता भ्रष्ट न होता, अधिकारी-कर्मचारी ईमानदार व कर्तव्यपरायण होते, व्यापारी, उद्योगपति देश की संपत्ति नहीं लूटते और जनता सरकारी संपत्ति की समुचित सुरक्षा करते, बात-बेबात पर आगजनी, तोडफ़ोड़ कभी न करते।
विकास के नारे लगाने वाले लोग क्या पैसे की चकाचौंध में अंधे हो गए हैं? जिन्हें लाखों भूखे, नंगे, अशिक्षित, भिखारी, गंदी बस्तियों व झोपड़पट्टियों में रहने वाले लोग, जंगलों में निवासरत आदिवासियों की दशा दिखाई नहीं देती। क्या ये भारत के वासी नहीं है?
समाज सेवा का क्षेत्र हो या धर्म-अध्यात्म अथवा राजनीति का, चारों ओर अवसरवादी, सत्तालोलुप, आसुरी वृत्ति के लोग ही दिखाई देते हैं। शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र, जहां कभी सेवा के उच्चतम आदर्शों का पालन होता था, आज व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के केंद्र बन गए हैं। व्यापार में तो सर्वत्र कालाबाजारी, चोर बाजारी, बेईमानी, मिलावट, टैक्सचोरी आदि ही सफलता के मूलमंत्र समझे जाते हैं। त्याग, बलिदान, शिष्टता, शालीनता, उदारता, ईमानदारी, श्रमशक्ति का सर्वत्र उपहास उड़ाया जाता है। गरीबी और महंगाई आज देश की विकट समस्या है।
गरीबी का अर्थ समाज की क्षमताओं और विचारों के अनुरूप जीवनस्तर और जीवन-प्रणाली से वंचित होना है। गरीबी निवारण का अर्थ है लोगों को ऐसा जीवनस्तर और जीवन-प्रणाली प्रदान करना जिससे वे सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक जीवन में संयुक्त रूप से सहभागिता प्राप्त कर सकें।
क्या यह सही नहीं है कि आज देश में आजादी की क्रांति की भांति ही एक और बगावत की सख्त जरूरत है। ताकि, भ्रष्टाचार, बेईमानी, बेरोजगारी, हिंसा, अशिक्षा, असमानता, गरीबी, महंगाई, आतंकवाद, नक्सलवाद का अंत हो सके। भारत माता की इस पीड़ा को कौन समझेगा?
अच्छी नींद से खूबसूरती बढ़ती है
एक दिन में 24 घंटे होते हैं। प्रकृति के अनुसार दिन का समय कार्य के लिए एवं रात्रि का समय विश्राम के लिए निर्धारित किया गया है, किंतु कुछ लोग सोचते हैं कि 24 घंटे में जितना काम कर सकें, कर लें। वे 7-8 घंटे सोने को विलासिता मानते हैं, किंतु विभिन्न शोधों के अनुसार वयस्कों का इतने घंटे सोना कतई विलासिता नहीं है, यह तो शारीरिक जरूरत है। बच्चों और बुजुर्गों को तो इससे भी ज्यादा समय के लिए सोने की सलाह दी जाती है। हां, कम सोना शरीर के साथ ज्यादती अवश्य है।
आधुनिक सुख-सुविधाओं के चलते अब लोगों की शारीरिक गतिविधियों का कम होना, खान-पान पर ध्यान न देना, सारे दिन बंद कमरों में बैठे रहना, अवसादग्रस्त रहना, मोटापा बढऩा आर्थेराइटिस, डायबिटीज जैसी बीमारियां, महिलाओं में हॉट फ्लेशेज (मेनोपॉज के समय हार्मोन में बदलाव की प्रक्रिया), पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रंथि का बढऩा, नींद में चलने की बीमारी होना भी नींद की कमी के लिए जिम्मेदार है।
चिकित्सकों द्वारा किए गए अध्ययनों में भरपूर नींद न लेने के कई दुष्परिणाम सामने आए हैं। यह भी पाया गया है कि कम नींद लेने वाले लोगों का वजन बढऩे की अधिक संभावना रहती है।
अध्ययनों के अनुसार कम सोने से मस्तिष्क के हाइपोथेलेमस में सक्रिय न्यूरॉन्स के एक समूह की कार्यशैली गड़बड़ा जाती है। यहीं पर ओरेक्सिन नामक हार्मोन भी सक्रिय होता है, जो खानपान संबंधी व्यवहार को नियंत्रित करता है। कम सोने से आपके कार्य की गुणवत्ता में कमी आ सकती है और यहां तक कि सोचने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है और कोई दुर्घटना भी घटित हो सकती है, जैसे गाड़ी चलाते समय नींद का झोंका आ सकता है।
अलग-अलग आयु वर्ग के लोगों पर नींद को लेकर किए गए एक अध्ययन में कम नींद लेने वाले लोग अस्वस्थ्य, थके-थके, कम आकर्षक नजर आए, वहीं भरपूर नींद लेने वाले लोगों के परिणाम ठीक इसके उलट पाए गए। शोधों में यह बात सामने आई है कि पर्याप्त नींद लेने से लोग बेहतर काम कर पाते हैं, क्योंकि शरीर और मस्तिष्क दोनों को आराम की सख्त जरूरत होती है।
गहरी नींद से सोकर उठने पर आप स्वयं को तरोताजा तो महसूस करते ही हैं, साथ ही इससे एकाग्रता और याददाश्त भी बढ़ती है। रोग प्रतिरोधक तंत्र भलीभांति काम करता है। आपकी उत्पादकता और संवेदनशीलता बढ़ाने तथा खूबसूरती को निखारने में भी पर्याप्त नींद की अहम भूमिका है।
अच्छी और मीठी नींद के लिए कुछ आसान से टिप्स पेश है :
नियमित व्यायाम करें एवं सोने के 3 घंटे पूर्व ज्यादा थकाने वाला व्यायाम न करें।
अपनी दिनचर्या में सोने के लिए समय निर्धारित करें और सप्ताहांत के दौरान भी उसे अमल में लाएं।
यदि आप दिन में झपकी लेते हैं तो कोशिश करें कि वह 20 से 30 मिनट की हो और दोपहर की शुरुआत में हो।
यदि सोने के समय आपको कोई विचार परेशान कर रहा है तो उसे कागज पर लिख लें और सुबह तक उसे भूलने की कोशिश करें।
दिन के 3 बजे बाद कैफीनयुक्त पदार्थों का सेवन न करें।
सोने के पहले गरिष्ठ भोजन न करें और न ही भूखे पेट सोएँ। कार्बोहाइड्रेट से भरपूर हल्का-फुल्का नाश्ता ले सकते हैं।
यदि आप धूम्रपान करते हैं तो छोड़ दें। निकोटिन का सेवन भी नींद में बाधक है। अल्कोहल लेना भी नींद खराब करता है।
यदि रात्रि में आपको बार-बार बाथरूम जाने की जरूरत महसूस होती है तो रात्रि के समय पेय पदार्थ लेने की मात्रा कम कर दें।
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